नववर्ष के पहले दिन हमारे बेटी दामाद आ गए थे,मेरी पत्नी बहुत दिनों से कह रही थी, मैंने थ्री इडइयटस पिक्चर की बहुत प्रशंसा सुनी कि यह पिक्चर बहुत हंसी की है, नववर्ष का समय था,और बेटी दामाद आ गये थे,यह पिक्चर देखने का अच्छा कारण बन गया था, पिक्चर 3.50 पर प्रारंभ होनी थी और घर से निकलते,निकलते 3.20 का समय हो गया था,मेरी पत्नी और हमारे दामाद को यह थ्री इडइयटस पिक्चर देखने की बहुत बेसब्री थी, खैर हमारे घर से सिनेमा हॉल नजदीक ही था,और दामाद एक दिन पहले इस पिक्चर की टिकेट ले आये थे, सिनेमा हॉल तक पहुंचते,पहुंचते पॉँच,दस मिनट ऊपर हो गये थे |
इस चलचित्र का पहला सीन चल रहा था, और जैसे,जैसे यह पिक्चर आगे की ओर अग्रसर हो रही थी, मुझे अपने इंजीनियरिंग कोलेज के क्लास रूम और छात्रावास की याद आ रही थी, वैसे ही स्वस्थ रेगिंग,उसी प्रकार छात्रों में सहयोग,फ्रेशर डे के बाद हमारे यहाँ रेगिंग समाप्त हो जाती थी,सीनियर,जुनीयर का आपस में मित्रवत व्यव्हार होने लगता था, परन्तु सीनियर,जूनियर को अनुशाशन में तो हर वर्ष रखते थे, अगर कोई जूनियर बाजार में कोलेज की गरिमा का ख्याल नहीं रखता था,तो सीनियर बाजार में तो कुछ नहीं कहतें थे,परन्तु उक्त जूनियर को छात्रावास में अच्छा सबक सिखलाते थे, और क्लास रूम का वातावरण याद आता है , आज कल तो इस प्रकार के अनेकों,मेडिकल,इंजीनियरिंग कोलेज हो चुके हैं,और सुप्रीम कोर्ट के आर्डर से पहले इन कोलेजों में बहशी रेगिंग होती थी, और खेद के साथ कहना पड़ रहा है, बहुत से छात्र,छात्रओं को इस प्रकार की बहशी रेगिंग के कारण आत्महत्या करने को विवश होना पड़ा था |
इस पिक्चर में भी दो अताम्हात्यों का प्रयास दिखाया गया है,एक में तो एक छात्र की मृत्यु इस कारण से होती हैं,कि उस छात्र के हवाई जहाज बनाने की ओर उस कोलेज का डिरेक्टर कोई ध्यान नहीं देता और विवश हो कर वोह छात्र आत्महत्या को गले लगा लेता है, और दूसरे छात्र से उसके घर वालों को इस कोलेज का डिरेक्टर, उसी को निष्कासित करने की चिट्ठी लिखवाता हैं, खैर यह पिक्चर है,पर हमारे कोलेज में ऐसा नहीं होता था |
चलो अ़ब आता हूँ,इस पिक्चर के संदेशों पर |
१.) रूचि के अनुसार कोर्स का चुनाव करना :- इसके बारें में तो बहुत कुछ लिखा जा चुका है,तो इस बारें में अधिक ना लिख कर इतना ही कहना चाहूँगा, यदि कोर्स के चुनाव के बारें में रूचि से विपरीत अगर सरंक्षक दवाब डालेंगे,तो छात्र की रूचि अनुसार प्रतिभा दिखलाने के अवसर ना मिलने के कारण,उसकी अपनी रूचि की प्रतिभा दब तो जाएगी,और जीवन भर अपनी रूचि का काम ना करने के कारण ,हीन भावना से ग्रसित तो हो ही जायेगा,और उसकी उन्नति भी बाधक हो जाएगी,इसी कारण विदेशों में एपटीचुड टेस्ट होता है,और उसी हिसाब से छात्र को कोर्स दिया जाता है |
२.) अभी तक इंजीनियरइंग कोलेजों में किताबों में ही लिखे विषयों को पड़ाया जाता है,और उसी की परीक्षा होती है, इसलिए प्रारंभ से नयी खोज,नए शोध नहीं हो पाते,हाँ में यह मानता हूँ,प्रारंभ में मूल सिधान्तों का ज्ञान तो देना आवश्यक है,परन्तु प्रारंभ से ही शोध के बारें में ध्यान दिया जाये तो नयी,नयी प्रतिभा उभर कर आएँगी, इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में तो प्रोजेक्ट होता है, जिसमें नईं चीज को प्रस्तुत करना होता है, अच्छा तो है,परन्तु प्रारंभ इस बात की और ध्यान दिया जाये,तो प्रतिभाओं को संपन्न होने का और अवसर मिलेंगे |
अंत में इस लेख का समापन इस बात से करता हूँ, हमारे कोलेज में तो इस औरों की सहायता करने के , अपनी गरिमा बना के रखने के संस्कार मिलते थे,जिस प्रकार इस पिक्चर में,एक छात्र के पिता जी का जीवन बचाना गया था,इसी प्रकार के संस्कार मिलते थे, और कोलेजों का तो मुझे ज्ञात नहीं |
हंसी के साथ थ्री इडइयटस अच्छे सन्देश दे गयी |
2 टिप्पणियां:
kiya baat hai sir aap ne jo likha hai wo kafi had tak thik hi he 3 idets wastam be bahut sandesh de gai hai...
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इस फिल्म का संदेश विचारों को जन्म देता है । फिल्म अच्छी है आपने अपने विचार रखे । जो फिल्म के अलुकूल है । ज्ञानवर्धक, हसीं से भरपूर ।
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