शनिवार, अगस्त 29, 2009

मानो या ना मानो ( आप भी दो प्रयोग कर सकते हैं)

नौकरी के सिलसिले मैं स्थान,स्थान पर गया,गाजिआबाद से अपनी नौकरी के सिलसिले मै कोटा गया,परन्तु मुझे उस फैक्ट्री का वातावरण काम के सिलसिले मै,अच्छा नहीं, लगा,मन ही मन मैं माँ भगवती से प्रार्थना करता था, कि मुझे यहाँ से छुटकारा दिलाओ, वैसे तो प्रतेय्क देवी,देवता को मानता हूँ, परन्तु अपनी माँ के कारण दुर्गा माँ के प्रति अधिक आकर्षण था, अब तो सब देवी,देवताओ को सामान रूप से मानता हूँ, मेरा तो साईं बाबा की तरह मानना है,सबका मालिक एक, गुरद्वारे,मन्दिर,और चर्च सब मैं चला जाता हूँ, मेरी माँ पंजाब मै अमृतसर शहर की है, और पिता जी मथुरा के है, अमृतसर मै स्वर्ण मन्दिर मै,हम लोग अक्सर माथा टेकने जाते थे, इसी प्रकार ब्रिज भूमि मैं कण,कण मै कृषण भगवन का वास है, हम लोग जब मथुरा मैं होते हैं,तो उस ब्रिज्भूमी के पावन मंदिरों का दर्शन करते है, और मेरे गुरु जी स्वामी परमहंस योगानंद जी अनेको वर्षो तक विदेशो मैं प्रचार करते रहे, तो उनके अदधायो मैं इसाई धर्मं के वारे मैं लिखा हुआ है,यह अद्दाहय आप भी मंगा सकते है, और उनको पड़ के आप भी वोह लाभ उठा सकते है जैसा मैंने ऊपर लिखा है,यह प्रयोग आप भी कर सकते है, उनके स्थापित किए हुए योगदा संत्संग सोसाइटी की मुख्य शाखा रांची मैं है,और अनेको शेहरो मैं इसकी शाखाएँ हैं, रांची मैं मुख्य ब्रांच है, जिसका पता है, yogda saatsanga society of India
Pramhans Yogananda Path Ranchi 834 001
झारखण्ड
उनके जब आप अद्धाय आप पड़ेगे तो आप लोगो को बहुत सी मूल्यवान वस्तुए मिलेंगी, और उनके द्वारा रचित पुस्तक है,योगी अमृत्कथा,उसमे आप को बहुत सी ऐसी जानकारी मिल जाएँगी उस पर बहुत से पाठक को विश्वास करना कठिन है।
अब आता हूँ मूल विषय पर माँ दुर्गा की कृपा से चार महीने मैं,मुझे मोदीनगर मै, नौकरी मिल गई, सब कुछ ठीक,ठाक चलता रहा, एक दिन हमारे घर मैं,चोरी हो गयी, और वह चोरी भी इस प्रकार, की गोदरेज की अलमारी का ताला बंद और मेरी पत्नी कुछ आभूषण आलमारी से गायब और कुछ अलमारी से नीचे गिरे हुए, इस असमनजस में में पड़ा हुआ था, तो किसी ने हमे बताया की एक आदमी है, वोह इस चोर का पता बता सकता है, और वोह उस फैक्ट्री जहाँ में काम करता था, पता नहीं वोह अब वोह वहाँ कि नही, बोला हम पड़ के चावल देंगे, जिस पर आप को शक है, उसको खिला देना, उसके मुँह से खून निकलने लगेगा, अब मै कहता हूँ,ऐसे लोगो के पास नहीं जन चाहिए,परन्तु में भ्रमित था, और चोर का पता भी जानना चाहता था, मैंने चावल तो लिए नही,बस और बातो में उसका अनुसरण करने लगा, इससे मेरे ऊपर से माँ कि कृपा उठ गई।
अब में गाजिआबाद आ चुका था, मन्दिर तो जाता ही था, उस मन्दिर में एक भैरो बाबा के पुजारी आते थे, और मन्दिर में वोह लोगो कि समस्यों का निदान करते थे, अभी मेरे पर योगंनद जी के अद्ध्याओ का अच्छा प्रभाव पड़ रहा था।
मैंने प्राणिक हीलिंग सीख ली थी,वोह विद्या वोह थी,जिससे मरीज को बिना छुए,और बिना दवाईयों के इलाज कर सकते हैं,यह आप भी सीख सकते है, और स्वामी जी के अद्ध्याओ के कारण अभी इसी प्रकार का इलाज में योग विद्या के द्वारा करने लगा था।
परन्तु भाग्य में तो कुछ और बदा था, मुझे उन भेरो बाबा के पुजारी का आचरण अच्छा लगा, और उनको गुरु बना लिया,परन्तु अभी गुरु मंत्र नहीं लिया था, एक दिन मैंने अपनी जिगयासा शांत करने के लिए कुछ पुछा,उन्होने अकारण ही मुझे बुरी तरह से फटकार दिया, उसके बाद मुझे चार तक नींद नहीं आयी,और दिमाग पर ऐसा असर पड़ा की अब ना तो योगानंद जी के अध्याओ को पड़ने का मन करता है,और नही अब वोह इलाज कर पाता हूँ, जिससे अनेको लोग लाभ्बंतित हुए है।
इसीलिए कहता हूँ
पानी पि छान के
के गुरु करो जान के ।।

अगले जनम मै मुझे बेटी देना(भाग २)

अब जो मैं लिख रहा हूँ,वोह भी मेरे साथ घटी सच्ची घटना है, दिमाग परेशां तो था ही,मेरी माँ दुर्गा स्तुति का पाठ किया करती थी, मैंने भी अपनी माँ के देखा,देखी मैंने भी दुर्गा स्तुति का पाठ कर लिया,मुझे नही पता था,आगे किया होगा, फिर मै दिल्ली मै जा कर जमुना किनारे बैठ गया, पाठ करते समय भी और जमुना किनारे बैठे भी माँ भगवती का ध्यान लगा हुआ था,आखिरकार लौट के घर आ गया,और निंद्रा के समय निंद्रा मैं लीन हो गया, अब जो लिखने जा रहा हूँ, उस पर पाठक गन को विश्वास हो या ना हो,पर यह मेरे साथ की घटित घटना है, रात्रि का अंधकार का था, समय क्या होगा ज्ञात नहीं,पर स्वपन मैं देखता हूँ, माँ दुर्गा और माँ काली साथ,साथ खड़ी थी, निंद्रा भंग हो गयी खुली आँखों से उन दोनों को देखा, उन दिनों मेरे पास कोई गुरु तो था नही, बस माँ काली के सवरूप से डर गया, और दूसरे कमरे मैं चला गया, पर वोह दोनों वहाँ नही थी, फिर मै उस कमरे मैं आ गया जा दोनों मातेय खड़ी थी, माँ दुर्गा के मुखमंडल ऐसा भावः क्या चाहिए,डर तो गया ही था मैंने कह दिया मुझे कुछ नहीं चाहिए,आप लोग जाओ और वोह दोनों अन्तरधयान हो गयीं, फिर मेरा विवाह हो गया,एक दिन मेरी पत्नी ने दिल्ली के कालका मन्दिर चलने के लिए कहा, और हम दोनों कालका मन्दिर से निकल रहे थे, तब एक स्त्री दुल्हन के भेष मैं कालका मन्दिर से निकल रही थी।
फिर हमारे घरमै कन्या ने जनम लिया, मेरे मन मैं उसका नाम माँ दुर्गा के नाम पर रखने का था,तो उस के बाद उसके नामकरण वाले दिन उसका नाम माँ दुर्गा के १०८ नाम मै जया पड़ा,और उससे मुझे मिलता है बेटी का स्नेह।
बेटिया ही तो है,जो आगे चल कर माँ,और पत्नी बनती है, माँ बन कर अपने बच्चो पर ममता लुटती है, और करती है,अपने बच्चो का निर्माण और अपना घर आँगन छोड़ कर पति के सुख,दुःख मैं,भागीदार बनती है, राखी को वोह पवित्र त्यौहार,इन्ही बेटियों की ही तो कारण है.

अगले जनम मैं मुझे बिटिया देना (भाग १)

मेरे परिवार मैं चार सदस्य है,मै मेरी पत्नी और मेरी बेटी,पिता जी तो अब नहीं रहे,और मेरी बेटी की शादी हो चुकी है, मेरी बेटी के दो बच्चे हैं, एक लड़का और एक लड़की,मेरी नातिन का आगमन इस वर्ष के जून महीने मै तारीख को हुआ है, जब मेरी बेटी अपने पति के घर से हमारे घर आती है, तो जाहिर सी बात है,उसके दोनों बच्चे भी आते हैं,मेरी नातिन तो केवल तीन महीने की अभी हुई है,और मेरा नाती कोई साडे तीन वर्ष का हो चुका है, उसकी बाल सुलभ क्रिराओ से ऐसा लगता है, जैसे सुखे पड़े हुए मन पर वर्षा ऋतू का आगमन हो गया है, परन्तु जब मेरी बेटी चली जाती है,तो बच्चे भी चले जाते है,और एक सन्नाटा सा पसर जाता है,घर काटने को आता है
अब मुझे थोड़ा फ्लैशबेक मैं जाना पड़ेगा, पाठक लोग माने या ना माने और सरिता पत्रिका के संपादक गण भी विश्वास करें या ना करें
कोई ४०,४२ वर्ष पहले की बात होगी,हम दो भाई हैं,और हमारी कोई बहिन नही है, बचपन से मैं धार्मिक परवर्ती का हूँ, और बचपन मैं बिना किसी के सिखाहे ध्यान मग्न हो जाता था, और मन मैं एक बहिन के लिए टीस सी उठती थी, पिता जी का तो स्थान,स्थान पर बदली होती रहती थी, तो निश्चित ही हमे उनके साथ जाना पड़ता था,इस प्रक्रिया मैं उनकी आखरी बदली गाजिआबाद मैं हो गई, और उसके बाद दिल्ली मैं बदली का आखिरी विराम था
इसलिए हमारे जीवन के अधिकतम वर्ष गाजियाबाद मैं गुजरे, भाई तो बम्बई मैं नौकरी करता है, और मै स्थान,स्थान पर नौकरी करने के बाद गाजिआबाद मैं स्थापित हो गया, हमारे मासी,नाना जी और मामा जी का घर दिल्ली मैं था
अब जो मै लिखने जा रहा हूँ, उसको पाठक गन माने या ना माने,सरिता के संपादक गन माने या ना माने परन्तु यह मेरे साथ घटित सच्ची घटना है, मन मैं बहिन की टीस तो थी ही, मैंने अपने एक रिश्तेदार की बेटी को अपनी बहिन बनाने की सोची, पहेले तो मैं उनके यहाँ कम जाता था, परन्तु उस लड़की ने मेरे पर ऐसा वशीकरण कर दिया
मैं ना रात देखता ना दिन बस वही पहुँच जाता था, फिर मेरी नौकरी लगी और उस लड़की को मेरे से पैसा चाहीये था, मेरे मन मैं तो बस बहिन की भावना थी, उसने मुझसे दूर,दूर तक रहने लगी,परन्तु मैं तो वशीकरण का मारा था, बस मेरा तो वही हाल की वहाँ बिना रात,दिन देखे पहुँच जाता था, आखिरकार उसके इस प्रकार से दूर,दूर रहने पर मेरे दिमाग पर बुरा असर पड़ा,अब मैं बताता हूँ, कि मैं वशीकरण किस कारण से कह रहा हूँ, गाजिआबाद मै हमारे रिश्तेदार रहते थे,थे तो वोह बैंक से अवकाशप्राप्त थे, और उनपर ईश्वर कृपा भी थी, और अच्छे ज्योतिष भी थे,उनकी भाविश्यवानिया समय और दिन के हिसाब से अक्षरश: सत्य निकलती थी उन्होने बताया कि उस लड़की ने मेरे को चाये मैं जड़ी डाल कर पिला दी,उससे मेरे पर वशीकरण हो गया

बुधवार, अगस्त 26, 2009

मुझे आशा नही थी(मेरी पोस्ट समाचार पत्र मैं छपेगी)

मै तो यदा कदा लिखता रहता हूँ, और अपनी आदत के अनुसार पहले की लिखी हुई, पोस्ट को देखता रहता हूँ,मुझे आशा ही नही थी कि मेरी, कोई पोस्ट समचार पत्र मैं छपेगी, सबसे पहले ध्यन्यवाद समाचार पत्र हरिभूमि को,जिसने मेरी पोस्ट आइये गणपति जी से प्रार्थना करें, और दूसरा धन्यवाद अविनाश जी को जिन्होने मेरे को इससे अवगत कराया, इस गणपति पर शायद गणेश चतुर्थी वाले दिन को मैंने पाठको को एक संदेश दिया था, कि आज कि ज्वलंत स्यम्स्याओ के विघ्न विनाश की विघ्नविनाशक गणेश जी से प्रार्थना करें, आशा इसलिए नही थी, कोई मेरी किसी पोस्ट पर कोई यदा ही कोई टिप्पणी ही देता है, यह तो ज्ञात हो जाता है कि कितने पाठको ने मेरी पोस्ट पड़ी उस के लिए धन्यवाद आशीष जी को।
ना तो मैं सामायिक विषयों पर लिखता हूँ, और नाही मेरे विषय किसी विद्या और ज्ञान वर्धक लेख होते हैं,जैसे की संचिका जी की तरह भुजंग पर और नाही संगीता जी की तरह गत्यात्मक की तरह पर जब मैं ब्लोगवाणी या ऐसे ही किसी साईट पर जाता हूँ, तो अधिकतर लोगो के विचार आज के सामायिक विषयों पर ही मुझे प्रतीत होते है, इतना तो मेरे पास समय नहीं है, कि बहुत अधिक ब्लॉग या पोस्ट देख सकूं, बस जो भी क्रम संख्या १ मैं होते है उनको पड़ लेता हूँ, अब मुझे पावला जी को धन्यवाद देता हूँ, क्योंकि उन्होने मेरे स्नेह परिवार मैं मेरी पोस्ट "कोई मेरी सहायता कर सकता है", अपना मूल्यवान समय दिया और यह हुआ ईमेल से, वोह मेरी ईमेल की प्रतीक्षा लगातार करते रहे,और यह क्रम कोई आधे पोने घंटे या इससे भी अधिक चला,पावला जी आपको धेर्य को शत: शत नमन।
मै तो अपने को लेखनी का धनी नही समझता, ना ही यह मेरा शेत्र है, बस मैं तो एक साधारण सा इंजिनियर हूँ,बस अताम्तुष्टि के लिए लिखने का शौक पाल रखा है, जब मैंने इस ब्लॉग की दुनिया मै पदार्पण किया था,तो पहला ब्लॉग बनाया था, vinay-loniness.blogspot.कॉम परन्तु यह ब्लॉग ब्लॉगर जब अपने मैं कुछ सुधार कर रहा था,तो यह ऐसे गुम हो गया और मिला ही नही कोई दो वर्ष पुरानी बात होगी,बाद मैं twitter.chittajagat.in से मेल आया आप इसको यहाँ जोड़ सकते है,यह भी मुझे ज्ञात नहीं,यह ट्विट्टर पर कैसे पहुंचा।
इंजीनियरिंग करने से पहले मैंने काव्य रचना का प्रारम्भ किया था, मुझे ज्ञात ही नहीं था, कविता को सुनने के लिए भी विशेष वर्ग की अवयाश्कता होती है,उस समय मैं कही भी अपनी लिखी हुई कविता सुनाने लगता,बाद मैं भी मेरे साथ ऐसा ही हुआ,जब कुछ विशेष वर्ग को कविता सुनाई तो उन लोगो ने मुझे प्रोत्साहित किया, अब तो कविता का सृजन हो नहीं पाता।
पुन: धन्यवाद अविनाश जी का जिन्होने मेरी इस पोस्ट के छपने के लिए बधाई का मेल भेजा, मैं तो कुछ तो अपने काम,कुछ दूसरे लोग जिनकी होंठो पर मुस्कान लाने के अतिरिक्त कुछ लेखन कर लेता हूँ, अभी स्नेह परिवार मैं एक और पोस्ट लिखना चाह रहा हूँ,प्रेरणा संस्था के बारे मैं जो की निर्धन वर्ग की कन्या का विवाह कराती है, इस संस्था के संस्थापक मेरे मित्र हैं, जो की प्रचार का व्यापर करते है, वहाँ के कर्मचारी उस संस्था के मेम्बर हैं, जो इस नेक काम मैं उन कन्याओ का विवाह तो कराते ही है,और उनको जीवन निरबाह के लिए बर्तन,कपडे आदि देते है, उस अनास्था के संस्थापक का नाम अजय है,अभी उनसे संपर्क नही हो पा रहा,जब समपर्क हो जाएगा तब उनकी आज्ञा लेकर कर स्नेह संस्था की तरह टेलीफोन नम्बर,उसका एड्रेस और उनकी कार्यशेली की जानकारी दूँगा।
पाठक गन से शमाप्रर्थी हूँ,कहीं,कही मूल विषय से भटक गया हूँ, और अंत मैं येही कहता हूँ,सफल व्यक्ति की जयजयकार अवश्य करें, परन्तु जो प्र्यतन कर के भी असफलता पर हैं, उसको प्रोत्साहित करके आगे बड़ने का अवसर दें, जिससे एक स्वस्थ्य समाज का सृजन हो सके।
एक दूसरे पर आक्षेप,पर्तिअक्षेप के स्थान पर दूसरे की कमियों को उसके सहारे की लाठी बन कर दूर करें।
बस कबीर दास जी की इन्ही पंक्तियों के साथ इस पोस्ट का पटाक्षेप करता हूँ।


ऐसी बाणी बोलिए मन का आप खोये।
औरो को भी शीतलता मिले ख़ुद भी शीतल होए॥


मैंने हरिभूमि समाचार पत्र मैं छपने वाली पोस्ट का एड्रेस लेबल मैं दे दिया है
धन्यवाद्

रविवार, अगस्त 23, 2009

आईये गणपति जी से प्रार्थन करें

ॐ गंग गणपति नम:

आइये इस गणपति पर गणेश जी से सामूहिक आग्रह करें, विश्व की ज्वलंत समस्यओं के विघ्न का विनाश करें, मेरे मन मैं जो समस्याएँ आती हैं।

१। सवाइन फलु: विश्व मैं व्याप्त इस महामारी का समूल विनाश करें, इस भयंकर महामारी ने अनेको लोगो को काल के मुँह मैं ढकेल दिया है, कितने ही लोगो को इसने अपने परिवार के लोगो से सदा के लिए विदा कर दिया है, और बुद्धि देने वाले गणेश जी उन लोगो को सद्बुद्धि दो,जो लोग इस महामारी से बचने के लिए मास्क का उपयोग करते है, इस मास्क का समूल नाश करने की बजाये इस मास्क को इधर,उधर फ़ेंक देते हैं,वोह नहीं सोचते कि इससे सक्रमण और फेलता है, जो सफाई कर्मचारी कूड़ा उठाने के लिए आते हैं,वोह संक्रमित हो सकते हैं, उन बेचारो को इस रोग के बारे मैं और उससे बचने के लिए अधिक ज्ञान नहीं है।

२। इस वर्ष वर्षा बहुत कम हुई है, बेचारा किसान आसमान मैं टकटकी लगाये देखता है कि वर्षा कब होगी, उसका जीवन ही इस वर्षा पर निर्भर हैं,वोह तो अपनी जमा पूंजी खेतो मैं लगा देता है, और वर्षा ना होने के कारण उसकी खेतो मैं खड़ी फसल सुख जाती है,तो उसके ऊपर तो तुषारापात हो जाता है, पता नहीं उसने कहाँ,कहाँ से लोन ले कर के अपनी खेती मैं पैसा लगाया होता है, और लोन ना चुका के कारण वोह आत्महत्या कि ओर प्रेरित हो जाता है, उस बेचारे का परिवार टूट जाता है, विघ्न विनाशक गजपति ऐसा समय किसान को देखने को ना मिले,हमारी आपसे कर जोड़ कर यह विनती है।

३। बाजार मैं खाने पीने की वस्तुओं का अभाव हो जाता है, तो इन वस्तुओं के दाम आसमान छुने लगते हैं, और कालाबाजारी,जमाखोरी का बाजार गरम हो जाता है,इन लोगो का जमीर तो मर चुका है, इन लोगो को तो आत्मा की आवाज नहीं सुनाई देती, पर है गणेश जी यह बेचारे गरीब लोग और गरीबी रेखा से नीचे जीने वाले लोग कहाँ जाए, इन जमाखोरों,मिलावट करने वालो और कालाबाजारी करने वालों को सध्बुद्धि दो।

४। आज देश मैं आतंकवाद बढता जा रहा है, मजहब के नाम पर भड़काया जा रहा है, और युवा लोगो को आंतकवादी बनाया जा रहा है, यह बेचारे युवक नहीं जानते एक बार आंतकवादी बन गए,तो इनका सम्पूर्ण जीवन नष्ट हो जायगा, है बुद्धि देने वाले गणेश जी उन लोगो को सध्बुद्धि दो,ताकि यह लोग आंतकवादी बनाना छोड़ दे।

५। आज विश्व्ब ग्लोवल वार्मिंग की समस्या से जूझ रहा है ओर पर्यावरण की समस्या उत्पन्न हो रही है, ओर प्राक्रतिक मौसम की स्थिति खराब हो रही है, नदिया सूख जाएँगी, भूमि के नीचे जलस्तर कम हो जाएगा, है विघ्नविनाशक इस समस्या को दूर करो।

६। विश्व मैं सदाचार हो लोग एक दूसरे पर आक्षेप ना करें,अगर किसी मैं किसी को कोई कमी दिखाई देती है ,तो उसका उचित मार्गदर्शन करें।
अंत मैं भाई,बहनों से मेरा येही कहना है,हम सब इस गणपति के अवसर पर विघ्न विनाशक गणेश जी से प्रार्थना करें विश्व मैं शान्ति हो, ओर उन्निती के पथ पर अग्रसर हों।
मेरी दृष्टि से तो मुझे येही प्रमुख समस्याए लगी,पर आप लोगो को जो भी निजी,या सार्वजानिक समस्याए लगती हो,तो इस गणेश चतुर्थी से लेकर के गणपति विसर्जन तक उनसे प्रार्थना करें, यह मेरा निवेदन है।
गणपति बाप्पा मोर्या
जय गणेश जी

शनिवार, अगस्त 22, 2009

नारी कब स्वतंत्र होगी बन्धनों से

कल आज का बहुत लोकप्रिय सीरियल बालिका बधु देख रहा था, है तो सीरियल ही मैं दिखाए गए कठोर चरित्रों का अत्याचार मैं देख नही पाता मन भावुक हो जाता है, सीरियल मैं दिखाए गये सुरेखा सीकरी (दादी सा), का अविका गोड़
(आनंदी) को अपने घर की मर्यादा तोड़ने के कारण पर उसको घर से निकाल देना कुछ अच्छा नही लगा, उस बेचारी आनंदी के माँ बापू की जमीन उस जमींदार ने हड़प ली तो बेचारी आनंदी अपने पति के साथ जमीन छुडाने के लिए गई थी,दोष तो बेचारी आनंदी का तो था नही, उसका पति जगदीश उसको लेकर गया था, और सजा भुगतनी पड़ी बेचारी आनंदी को, उसका बिलख,बिलख कर रोना अच्छा नहीं लगा।
वोह जमाना याद आ गया जब नई नवेली बहु,अपनी आँखों मैं नई दुनिया के सपने पिरोये हुए अपने दुल्हे के साथ नई दुनिया मैं कदम रखती थी, और आते ही उसको बहुधा सास के ताने सुनने को मिलते थे, समझ आता था नारी,नारी के प्रति कठोर क्यों होती थी, अगर सास ताने नही देती थी,तो उस नई नवेली गहेनो से सजी हुई दुल्हन को वहाँ पर एकत्रित रिश्तेदार ताने दे दे कर उसके सपने धूल धूसरित कर देते थे।
समझ नहीं आता क्यों लोग भ्रूण हत्या कर के प्रकर्ति के नियमो से क्यों खिलवाड़ कर रहे है, इस्त्री,पुरूष का अनुपात क्यों बिगाड़ रहे है, अगर यह क्रम चलता रहा तो सृष्टि आगे कैसे चलेगी,यह तो सच है सरकार ने लिंग परिक्षण को अवैध घोषित कर दिया है, परन्तु अभी भी यह कारोबार छुप, छुप के तो हो रहा है, लोग क्यों भूल जाते हैं,आज हिंदुस्तान के सर्वोच्च शिखर पर एक नारी ही बैठी है, हमारी पूर्ब प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को कौन भूल सकता है, जिनके समय विश्व मैं उनकी साख थी, और परम्परा को तोड़ते हुए लोकसभा की स्पीकर भी एक महिला है मीरा कुमार फिर नारी के साथ अनानाये क्यों,और तो और बहुत बार आज के युग मैं नारी कमा के अपने पति का भरण पोषण कर रही है, मैं जानता है एक ऐसे पति को अच्छा पड़ा लिखा है, परन्तु उसके भोले स्वाभाव के कारण वोह नौकरी मैं अधिक समय तक नही रह पाया,वोह एक टेक्नीकल डिग्रीधारक हैं,और अच्छी,अच्छी पोस्ट पर रहा है, कुछ तो उसके काम की बाजार मैं मांग नहीं रही इस कारण से वोह १४ वर्ष से खाली बैठा है, और उसकी पत्नी ने उसका स्थान ले लिया है,बिना शिकन के उस व्यक्ति का पालन पोषण कर रही है, फिर अभी भी इस्त्री को पुरूष से काम क्यों अंका जाता है?
पुरूष तो बहुत है जो की आर्थिक उन्निती के साथ परसिद्ध हो गये हैं,परन्तु अभी नारी की अनुपात उनसे प्रसिद्दि और आर्थिक अवस्था का अनुपात काम हैं, और वोह भी नारी के लिए कड़े संघर्ष के बाद,वोह भी बेटी,बेहेन,माँ,पत्नी होने के साथ।
बस वोह कविता की चंद पंक्तिया याद आती है
अबला तेरी येही कहानी है
आंचल मैं दूध आँखों मैं पानी है

उलझन,व्यथा,जीवन एक प्लेटफोर्म है

उलझन ऐसी कुछ कहना चाहता हूँ
पर लब सिल जाते हैं
दिल की बात जुबां पर कैसे लाऊ
कुछ कहना चाहता हूँ
उनकी आंखे देख कर
लब थरथराने लगते है
पी जाता हूँ अपनी बात को
बस दिल मैं घुट के रह जाती है वोह आवाज
जा के किसे सुनाऊ
उनकी आंखे देख कर डर जाता हूँ
बस इस आवाज को पी जाता हूँ
एक कसक उठती है दिल मैं
इस टीस को कहाँ ले जाऊँ
बस अन्दर ही अन्दर घुट के रह जाता हूँ
फिर वोह पूछते हैं चुप से क्यों हो
अनकहे शब्दों शब्दों को केसे समझाऊ
बस पी जाता हूँ इन अनकही बातों को
किसको जा कर सुनाऊ
बस रह जाती हैं दिल मैं दिल की बातें
व्यथा
वोह बैठी है नदिया किनारे आकुल
मन है उसका व्याकुल
लहरों पर स्थित दोनों कूल
खिलते हैं स्मित के फूल
प्रेमी गया है विदेश
भूल गया अपना देश
अश्रुपूरित नेत्रों की वेदना लहरों मैं घुल गई
प्रेयसी की व्यथा नदी मैं मिल गयी

जीवन एक प्लेटफोर्म है
जीवन एक प्लेटफोर्म है
यहा गाड़ी आती है, चली जाती है
बचपन है वोह पेसंजेर गाड़ी
चलती है और हर स्टेशन पर रूकती जाती है
फिर आती है जवानी यह है एक्सप्रेस गाड़ी
चलती जाती है, स्टेशन छोड़ती जाती है
कही रूकती है, पर चलती जाती है
बुडापा है वोह मालगाड़ी बेदम सी होकर चलती है
आखिर स्टेशन पर पहुंच ही जाती है

रविवार, अगस्त 16, 2009

बिजली वालों से पर्तिशोध लेने के अजब तरीके

बिजली की अघोषित कटोती की समस्या तो हर स्थान पर है, हमारे हरयाणा प्रान्त मैं,भिवानी शहर मैं,बिजली की समस्या से लोग इतने,व्यथित हो गए,उन्होने एक बिजली कर्मचारी को पकड़ा और चड़ा दिया बिजली के खंभे पर,हालाँकि बाद मैं उसने पुलिस से अपनी इस दूर्दुषा के बारे मैं बयान किया, यह तो मालूम नही अंतत: क्या हुआ।
दूसरी घटना इसी हरियाणा प्रान्त के कुरुषेत्र की, बहुत सारे बिजली कर्मचारी को पेडो से बाँध दिया, और बहुत से बिजली कर्मचारियों को कमरे मैं बैठा दिया,और पंखे को बंद कर दिया, एक बिजली कर्मचारी को डेर घंटे तक सूरज की कड़कती गर्मी मैं खड़ा कर दिया,अंजाम किया हुआ वोह तो खुदा जाने, जनता का आक्रोश इस तरह से निकला बिचारे नीरह प्राणियो पर, बाद मैं बिजली की व्यवस्था सुचारू हुई की नही,परन्तु इस प्रकार हरयाणा मैं इस तरह निकला आक्रोश उन बिजली कर्मचारियों पर।
अब मैं बात करता हूँ, उत्तर परदेश मैं स्थित गाजिआबाद की,यहाँ पर जिस कालोनी मैं, उत्तर परदेश के उर्जा मंत्री रहते हैं, शहर मैं अगर बाकी बची कोअलनियो मैं,अघोषित कटोती हो,परन्तु उस कालोनी मैं बिजली कभी नही जाती, मंत्री जी घर वहाँ तो उस कालोनी मैं रहने वाले सुखी, अगर वोह किसी भी कारणवश वोह किसी और कालोनी मैं चले जाते हैं, तो उस कालोनी के तो वारे न्यारे लगता हैं,लगता है मंत्री जी वहीँ रह जाए, क्योंकि जब तक मंत्री जी वहाँ रहते हैं तो उस कालोनी की बिजली नहीं जाती, लेकिन यहाँ पर भी लोगो का धेर्य जवाब दे गया, तीन दिन तक दूसरी कालोनी जो कि मंत्री जी की कालोनी के निकट हैं, वहाँ तीन दिन तक अगोहषित विजली के कारण ठीक से बिजली नहीं मिल पा रही थी, जनता जनार्दन ने मंत्री जी के घर का घिराब कर लिया, लोगो का कहना था, हमारे यहाँ तो ठीक से बिजली नहीं आ रही है, जिसके कारण हमें पानी की दिक्कत हो रही है, और इस कालोनी मैं बिजली आती रहती है, परन्तु मंत्री जी तो गये हुए थे चुनाब प्रचार मे लोग मायूस हो कर के बिजली घर पहुंचे, और वोही जाना पहचाना कार्यक्रम, लोट कर बिजलीघर जो की मंत्री जी की कालोनी मैं है उस मैं तोड़,फोड़ और सड़क पर जाम लगना।
अफ़सोस मेरा घर मंत्री जी की कालोनी मैं नही है,तो हम भी बिजली समस्या से दुखी नहीं होते, एक वर्षा ना होने के कारण दुखी और दूसरी बिजली की आंख मिचोनी से दुखी, सोचता हूँ अगर मंत्री जी सुखी तो कोलोनी वाले सुखी, हाँ ऊपर लिखे हरयाना प्रान्त के उन शेरहों मैं क्या हुआ मुझे ज्ञात नहीं, परन्तु सोचता हूँ उन शेरहों मैं शायद उर्जा मंत्री का उनकी कोलोनियों मैं घर होता जिस शहर की वोह जनता,जनार्दन थी यह आफत उन बिचारे बिजली कर्मचारियों पर नहीं आती, ना तो किसी को बन्दर की तरह बिजली के खम्बे पर ना चड़ना परता, ना ही गर्मी की मार सहनी पड़ती,इस प्रकार से उनको जनता का आक्रोश नहीं सहना पड़ता।
मैं सोचता हूँ उर्जा मंत्री जी समय,समय पर अपना आशियाना बदलते रहे तो कुछ समय के लिए तो उपरोक्त स्थान पर बिजली समस्या का निवारण हो जाए।

शुक्रवार, अगस्त 14, 2009

क्या हम अपने राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान रख पा रहे हैं

कल स्वंत्रता दिवस है, और इस समय पूरानी दिल्ली की ऐतिहासक इमारत लाल किले के साथ, अनेको

http://www.mapsofindia.com/maps/india/national-flag.htm






सार्वजानिक इमारतो स्कूल कालेज मैं, हमारे राष्ट्रिये धवज का ध्वजारोहण होगा, और इसको सलामी दी जायेगी, यह १५ अगस्त के राष्ट्रीय दिवस पर उन शहीदो को याद किया जाएगा,जिन्होंने इस देश के लिए अपनी जान की कुर्बानी दी थी, जिसके कारण हम आजादी के वातावरण मैं साँस ले रहे हैं, इस तिरंगे झंडे मैं, तीन रंग हैं, जो कि परतीक हैं, अलग,अलग भावो का, सबसे ऊपर है,वोह केसरिया रंग जो कि परतीक है,वीरता का और हमें याद दिलाता है, कि लोग हंसते,हंसते देश की स्वाधीनता के लिए अपनी जान की बाजी लगा गये, उस समय का वातावरण ही ऐसा था,बच्चे बच्चे मैं आजादी पाने का जोश था, शहीद भगतसिंह नेबचपन मैं अपने पिता जी से पुछा,हम अपने खेतो मैं गोलियां बो दे,तो गोलियां ही पैदा होंगी, हमारी पूर्ब प्रधानमंत्री इन्द्रा गाँधी ने बानर सेना का निर्माण किया था, ताकि अंग्रेजो की ख़बर तात्कालिक नेताओं को पहुंचाई जाए,और अंग्रेजो को इसकी ख़बर ना हों,ऐसा था बच्चे,बच्चे मैं स्वंत्रता मैं साँस लेने का जोश,सबसे पहले मुठी भर साधुओ ने अंग्रेजो को खदेरने के लिए संतान सेना बनाई, यह पता था कि अंग्रेजो कि विशाल सेना को वोह नही हरा सकते लेकिन उन्होंने उस समय की आम जनता के हिर्दय मैं विद्रोह का बीज तो बो दिया और अंत मैं उस संतान सेना मैं कोई भी साधू नहीं बचा,यह था स्वंत्रता संग्राम का आगाज, तत्पश्चात बहुत से स्वंत्रता संग्राम के सेनानी हुए, यह वीरता दर्शाता है इस झंडे का केसरिया रंग।
जाते जाते अंग्रेज देश का बिभाजन कर गए,और हिंदुस्तान,पाकिस्तान बना गये, इस कारण हिंदुस्तान पाकिस्तान ने पहली लड़ाई १९६५ मैं लड़ी, और हिन्दुस्तानी सेना के बहुत से रणबांकुरों ने अपनी जान की बाजी लगा दी, इसी प्रकार १९७१ की हिंदुस्तान,पाकिस्तान की लड़ाई मैं फिर देश की रक्षा के लिए हंसते,हँसते अपने प्राण गँवा दिए, इससे पहले चीन और हिंदुस्तान मैं भी येही अंजाम हुआ उन रणबांकुरो का, उनका साहस तो देखिये बिना आधुनिक हथियारों के उस चीन की उस समय के आधुनिक हथियारों और विशाल सेना के साथ जा भिड़े, अभी १० वर्ष ही हुए है, कारगिल की लड़ाई मैं उस टाइगर हिल की उस खड़ी चढाई पर अपने साजो सामान के साथ जा कर के त्रिनगा फेरा आये,यह इस झंडे का केसरिया रंग पारतिक है,उस वीरता का, अब तो आम इन्सान के लिए वीरता और सहास दिखाने के अवसर तो कम है, बस नमन है इस तिरेंगे के केसरिया रंग को।
दूसरा रंग जो की केसरिया के नीचे है,वोह सफेद जो कि अमन और शान्ति का पारतिक , समाचार पत्र भरे रहते है, भिन,भिन अपराधो से,अराजकता पहेली पड़ी है जो कि अपराधो को और शेह देती है, सफेद रंग और सफेद कबूतर शान्ति का प्रतिक है, सडको पर रोड रेज तो आम हो गया है, आगे निकलने का स्थान ना हो,परन्तु पीछे से आगे निकलने की होड़ मैं गाडियों के हार्न के कर्णभेदी स्वर सुनाई देते है, और रात्रि मैं तो आगे निकलने की होड़ मैं,आपकी गाड़ी के पीछे देखने वाले शीशे मैं,पीछे आने वाली गाड़ी के डिपिर की रौशनी की चओन्ध पड़ती है, और आप पीछे आने वाली गाड़ी को साइड नहीं दे पाते क्योकि आप साइड ना देने के लिए विवश हैं, क्या राष्ट्रीय ध्वज के सफेद रंग का मान रखा जा रहा है, अपने को शांत और सयामिंत रखने का प्रयास तो है ही नही,फिर मेरा वोही प्रश्न की हम लोग क्या राष्ट्रीय ध्वज का मान रख रहे हैं?
सबसे नीचे है,हरा रंग जो कि हरित क्रांति का पार्तिक,पर फिर वोही सवाल क्या हम इस राष्ट्रीय ध्वज का मान रख पा रहे हैं, बनो की तेजी से होती हुई कटाई, कुछ तो आज की आवश्यकतायें है,परन्तु अपनी शानो शौकत के लिए शेत्रफल के हिसाब से बड़े बड़े घर की क्या आवश्यकता है, जिसके कारण पेडो को काटा जाए,जिससे वन्य जीवो का आश्रय समाप्त हो जाए,और इसका परिणाम यह वन्य जंतु आबादियों की ओर आते है, इंसानों पर हमला कर देते है, और दूसरा परिणाम पर्यावरण का दूषित होना, और इसीका असर है पराकरतिक संतुलन बिगड़ना,और परिणाम
सामने है,वर्षा का ना होना,पराकरतिक संतुलन जो बिगड़ रहा है।
यह इस तिरंगे के तीन अलग,अलग रंगों का आशय, स्वंत्रता दिवस के समय पर शहीदो को याद तो करिए पर इस त्रिन्गे के तीन रंगों का मान रखिये,जिसको इस दिन सलामी दी जाती है, इसी के साथ स्वंत्रता दिवस की शुभ्कमानेय।
वन्दे मातरम

गुरुवार, अगस्त 13, 2009

जन्माष्टमी को प्यार अथवा प्रेम का संदेश

प्यार अथवा प्रेम ऐसी मूक भाषा है, जिससे एक दूसरे अपनत्व की भावना उत्पन्न होती है, परन्तु हम लोग इसको भूले बैठे हैं, यह अलग, अलग भाषा मैं अलग,अलग नामो से प्रचलित है, हिन्दी मैं प्रेम, उर्दू मैं इश्क,तो अंग्रेजी मैं लव, और इसका वर्गीकरण भी बहुत सुंदर है, जैसे कि माता,पिता का बच्चो के साथ वात्सल्य, और इस पर मुझे इस जन्माष्टमी पर याद आ है, महान संत और कवि सूरदास जी के दोहे, जिन्होने वात्सल्य रस से सरोबर भगवान कृष्ण के लिए लिखे, दूसरा माँ की ममता अपने बच्चो के लिए, हर धुप छांव से बच्चो को माँ की ममता से सुखमय ऐसहास कराती है, अपने आप गीले बिस्तर पर सोती है, और बच्चे को सुखे पर सुलाती है, बच्चे को कोई कष्ट ना हो इसके लिए ना जाने कितनी राते जगती है, जो कि उस ईश्वर की प्राक्रतिक देन है, और तो और भक्त का भी ईश्वर से प्रेम होता है, और कहते है ईश्वर को प्रेम से प्राप्त किया जा सकता है, कबीर दास जी के अनुसार ढाई अक्षर प्रेम से ईश्वर को पाया जा सकता है, किसी ने कहा है, "कहाए की चाराहूँ तुझे पूजा, जल चारहु तो मछली ने कर दिया झूठा
फूल चराहूँ भंवरे ने कर दिया जूठा, ढूध चारहु तो बछरे ने कर दिया झूठा, तुझे बस चारहु प्रेम की पूजा", और सच ही तो है उस भीलनी शबरी ने अपने झूठे बेर खिला कर भगवान राम को अपने बस मैं कर लिया, और मजारो मैं खुदा से प्यार की कव्वालिया गूंजती रहती हैं, चर्च मैं भी पादरी प्यार और सहानभूति से confession सुनते है,कहने वालो को प्रेम की ठंडी छाया मिल जाती है, यह भगवान के द्वारा दी हुई अलोकिक वस्तु है, प्रेम ऐसी मूक भाषा है,जिसको पशु,पक्षी भी समझते हैं, कुत्ते को प्यार करते हैं, तो वोह अपना प्रेम पूँछ हिला कर पर्दर्शित करता है, इसमे संवाद तो होता ही नही पर एक दूसरे के लिए मूक भाषा मैं प्रेम पर्दर्शित होता है, एक और वर्गीकरण है स्नेह,यह किसी मैं भी हो सकता है, भाई,बहनों का आपस मैं स्नेह, मित्रो,सहेलियों मैं आपस मैं स्नेह, यह सब हैं पवित्र प्रेम।
आज कल तो एक दिन हो गया वैलेंटाइन डे जिसका अस्तित्व तो है, बस एक दिन जिसको प्रेमी, प्रेमिका के प्यार के तोर पर लिया जाता है, परन्तु किसी का वैलेंटाइन कोई भी हो सकता है, लेकिन प्रेम तो शास्वत हैं,जिनका मैंने वर्गीकरण किया है, इसके खिलाफ लोग नफरत के बीज बो कर के आतंकवादी बना रहे हैं, हमारे गुरु जी के अनुसार अगर आप किसी को चांटा मारेंगे तो वोह आपको मुक्का मारेगा,आप मुक्का मारेंगे तो वोह लात मारेगा.झगडा बढता ही जाएगा, परन्तु अगर प्रेम से बात करेंगे तो संभवत: झगडा समाप्त हो जाएगा, मैंने यह सब इस्लिएय लिखा, क्योंकि मुझे एक घटना याद आ रही है, एक अंग्रेज लड़की को किसी कारण से मेरे से बात करने को कहा तो वोह बोली "i hate him", कुछ ऐसा सयोंग हुआ कि एक दिन उसको पहली बार साँस का अटैक हो गया, उसको कुछ समझ नही आ रहा था, मैं उसको अपनी गाड़ी मैं बैठा कर के चिकत्सक के पास ले गया, मेरे मन में उसके परति कोई वैमन्यस्य की भावना नही थी, गुरु जी के आशीर्वाद से मैंने शांत रहना सीख लिया है, खैर डॉक्टर ने उसका परिक्षण किया, और उसको दवाइयाँ दी, बाद मैं मुझे पता चला कि वोह हिंदुस्तान के गांवों मैं जाती रहती है,
और गांवों मैं धूल का परदुषण तो होता ही है, जिसका उसको पहली बार साँस का अटैक हो गया, आज वोह मेरी अच्छी मित्र है, इसीलिए तो कह रहा हूँ,वासना रहित प्रेम या प्यार सर्वोपरि है, यह ऐसी मूक भाषा है जिसको मानव, पशु, पक्षी सब समझते हैं, पक्षियों को चुग्गा डाल कर देखिये वोह भी अपने हाव: भाव: से प्रेम का मूक प्रदर्शन करेंगे, जब मैं छोटा था,मेरी माँ अनाज साफ करते समय उसके ना खाने वाले पदार्थ फेंका करती थी, उस घर मैं जंगली कबूतर बहुत आया करते थे, जो की जरा सी आहट से डर जाते हैं, परन्तु उनका डर निकल गया था और वोह गुटरगूं,गुटरगूं करते हुए मेरी माँ के पास आ जाते थे, यह है शाश्वत प्रेम का प्रवाहाव, और इसका ज्वलंत उदहारण है, एक ब्लॉगर द्वारा लिखा हुआ लेख, जिसमे खन्ना साहव और उनके बेटे की आवाज पर कोए उनकी छत पर खाने के लिए पर चले आना, इस जन्माष्टमी को इस सर्विदित गोपियों के कृष्ण प्रेम के साथ समाप्त करता हूँ,गोपिया क्या सारा वृन्दावनके पेड़,पोधे,गए, बछरे कृष्ण के वृन्दावन छोड़ने के बाद मैं, कृष्ण विरह के वियोग से पीड़ित थे, एक बार कृष्ण भगवान ने उद्धव जो कि बहुत ज्ञानी थे, उनको गोपियों को समझाने के लिए भेजा,तो गोपियाँ कहती हैं,"उधो हम तुम्हारे योग योग नही", इस प्रेम के आगे उद्धव जी विवश हो कर के मथुरा लौट गये,ऐसा होता है पवित्र प्रेम, और प्रेम की पराकाष्ठा ही तो है, एक बार द्वारका मैं कृष्ण भगवान ने पेट के दर्द का बहाना किया, और पूछने पर वोह बोले अगर कोई मुझे अपने चरणों की धूल खिला दे तो यह पेट का दर्द ठीक हो जाएगा, पर उनकी सोलह हजार एक सो आठ रानियों मैं, कोई भी अपने चरणों की धूल भगवान को नही खिलाना
चाती थी, क्योंकि उनको नरक का भागी होने का डर था, फिर कृष्ण जी ने अपने प्यारे सखा उद्धव को इस के लिए वृन्दावन भेजा, तब जितनी भी गोपिया थी सब की सब अपने चरणों की धूल देने को तत्पर थी, कहती थी, हम जाती है नरक जायें, परन्तु हमारे प्र्यितम स्वस्थ होने चाहीएय।
जन्माष्टमी के पावन अवसर पर शुभकामनाये देते हुए प्यार,प्रेम,इश्क, लव का संदेश।