बुधवार, दिसंबर 30, 2009

उड़न तश्तरी जी नववर्ष के एक दिन पहले की टिप्पणियों बहुत प्रभावित किया |

नववर्ष द्वार पर दस्तक दे रहा है, सभी पाठकों को नववर्ष की मंगलकामना और शुभकामनाये, नववर्ष की बधाई तो सब लोग देतें हैं, और अपने,अपने लिए नववर्ष में कुछ नियम बनाते हैं,और उन नियोमों पर चलने के लिए प्रण करतें हैं, लेकिन उड़न तश्तरी जी ने तो सर्व हिताय की बात कही है मन को भा गयी , यदा,कदा ब्लॉग पड़ने पर उड़न तश्तरी जी की टिप्पणियों पर दृष्टि पड़ी, और टिप्पणियों में नए ब्लोग्गरों को जोड़ने और पुराने ब्लोग्गरों को प्रोत्साहित करने की बात लिखी थी, उनकी यह सहहिर्द्यता मन को छु गयी, वोह तो हैं ही हिंदी लेखन को समर्पित परन्तु सब के बारें उनका सोचना बहुत प्रभावित कर गया |
  बुडे हुए जाते हुए नववर्ष के साथ,अपनी वोह बुराइयाँ जो आपको लगती हैं, बीते हुए वर्ष के साथ भेज कर,स्नेहिल मधुर वातावरण बनाएं |
अंत में सभी पाठकों और उनके परिवार   जो भी नयें आने वाले हैं, उन लोगों का इस नववर्ष पर हार्दिक स्वागत और उनके मंगलमय जीवन की शुभकामनाओं के साथ इस लेख का समापन करता हूँ |
   नववर्ष की शुभकामनायें |

सोमवार, दिसंबर 28, 2009

राज पिछले जन्म का सीरियल में मुझे एक संदेह है

आज कल दूरदर्शन पर पूर्वजनम से सम्ब्धन्दित एक सीरियल दिखाया जा रहा है, "राज पिछले जन्म का", जिसमे जानी मानी हस्ती डाक्टर तृप्ति जैन लोगों का इस जन्म का डर निकालने के लिए, या उनकी शंका का समाधान करने के लिए पूर्वजन्म में ले जातीं हैं, डाक्टर तृप्ति जैन के बारे में में इस सीरियल के प्रारंभ होने से पहले से जानता हूँ, और यह भी ज्ञात था कि हिप्नोसिस कर के लोगों को पूर्व जन्म में ले जातीं है, मेरे को अक्सर उरिसा की रहने वाली सुप्रसिद्ध लेखिका फेसबुक में अक्सरमुझे अपने लेखो को  मेल करतीं  रहतीं है, उनकी एक मेल इसी सीरियल के सन्दर्भ में आया था, उनको तो दो तीन संदेह थे, पर उसमें से एक संदेह तो मुझे भी है, डाक्टर तृप्ति यदा कदा पुर्बजन्म में ले जाने से ऐसी बातें पूछतीं हैं,जैसे कि पुर्बजन्म में ले गए इन्सान के द्वारा देखे हुए दृश्यों को वोह सवयं भी देख रहीं हों, ऐसे लोगों को तो अंग्रेजी   क्लेरोवेनेट में  कहा जाता है, परन्तु उनके बारे में तो क्लेरोवेनेट का कोई वर्णन नहीं है, यह वर्णन है तो पूनम सेठी जी के बारे में है,पर तृप्ति जैन के बारे में नहीं |
  हिप्नोतिस्म का मेरे पिता जी को ज्ञान होने के कारण इस विद्या को में, बहुत समीप से जानता हूँ, इसके तीन प्रमुख नियम हैं |
     पहला हिप्नोटाइस होने वाले व्यक्ति को इस क्रिया के लिए सहयोग देना आवश्यक है |
     दूसरा हिप्नोटाइस होने वाला कभी भी वोह काम नहीं करेगा जो कि वोह जागृत अवस्था में नहीं कर सकता |
     तीसरा हिप्नोटाइस करने वाले व्यक्ति की यह क्रिया प्रारंभ होने से पहले उसकी बातों पर पूर्ण मनोयोग से ध्यान देना |

                अब इसमें कहीं भी यह नहीं आता कि इस क्रिया में हिप्नोटाइस होने वाले व्यक्ति के दृश्यों को हिप्नोटाइस करने वाला देख रहा है, अब रहा पुर्बजन्म के बारे में,इसके बारे में सुना और पड़ा अवश्य है,पर देखा कभी नहीं,इसका वर्णन हमारे आदि ग्रंथो में तो है,और समाचार पत्रों में कभी,कभी छप जाता है |
 कहा जाता है कि चोरासी लाख योनिया है,परन्तु इस सीरियल "राज पिछले जन्म का ", में मनुष्य का जन्म मन्युष का ही दिखाया है,हाँ एक सीरियल में,स्त्री का पुर्बजन्म पुरष का दिखाया था, परन्तु मानव जाती का पुर्बजन्म मानव ही दिखाया गया है, अभी तक और किसी योनी में नहीं |
           कुछ समय पहले अमर उजाला में एक बालक के बारे में समाचार छपा था,उसके पॉँच जन्म हुए थे, मक्खी,बर्र सांप और बालक के दो जन्म, हो सकता है,किसी को इस सीरियल में पुर्बजन्म  किसी और योनी में दिखा दें,देखते हैं क्या होता है ?




       

रविवार, दिसंबर 27, 2009

आ गयी हमारी दूसरी ख़ुशी

मैंने तो राखी पर भाई से चोकलेट मांगी थी, पर भाई ने एक फ्राक में टरका दिया,कंजूस कहीं का










बैठने के बाद तो मेरा ख़ुशी का ठिकाना ना रहा, कोई जलता है तो जले मेरे ठेंगे से

पहली बार में बैठने में में सफल हुई (नीचे दायें नजर तो डालो )

मेरा नामकरण हो रहा है, हमें क्या? (ऊपर )
मेरा जन्म 8 जून 2009 को हुआ था |

 



बुधवार, दिसंबर 09, 2009

सिगरेट,गुटखा, छुड़वाने का सरकार की ओर से प्रवाधान क्यों नहीं?

समाचार पत्रों में पड़ा था,सिगरेट के पेकेट पर सिगरेट से होनेवाले नुक्सान का फोटोग्राफिक सन्देश के बारे में विचार हो रहा है,और उसके बाद सिगरेट के पेकेट पर फेफरों का नुक्सान पहूचाने वाला चित्र बन गया,और उससे पहले सिगरेट के पेकेट पर हिंदी में लिखा होता था,"सिगरेट स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है",और अंग्रेजी में भी लिखा होता था, " cigrette smoking is injurious for health", यह भी सर्वविदित है कि सिगरेट पीने से केंसर जैसी मृत्यु के कगार पर ले जाने वाली वीमारी हो जाती है,यही सबब होता है, गुटखे खाने वाले का उस गुटखे के पाउच पर भी हिंदी में लिखा होता है,"गुटखा खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है",यही सन्देश अंग्रेजी में लिखा होता है,"chewing tobacco is injurious for health", परन्तु ना सिगरेट पीने वाला सिगरेट छोड़ पाता है,और ना गुटखा खाने वाला,यह तो सच है,अगर इच्छा शक्ति हो तो सब कुछ संभव हो जाता है,परन्तु सिगरेट और गुटखा खाने वाले में इच्छा शक्ति प्रबल हो तो वोह इन व्यसनों को छोड़ पाता है, अन्यथा नहीं |
  अगर कोई सिगरेट ना पीने वाला या गुटखा ना खाने वाला, किसी सिगरेट पीने वाले और गुटखा खाने वाले से कोई यह प्रश्न करे कि सिगरेट क्यों पीते हो या गुटखा क्यों खाते हो, तो इन व्यसनों को करने वाला इसका कारण समझा ही नहीं पाता,ना तो यह व्यसन भूख को शांत करते हैं,ना प्यास को तो समझाए तो समझाए क्या? असल में इनमें पाया जाने वाला निकोटिन दिमाग में एसा प्रभाव डालता है,कि दिमाग को एक ख़ुशी होती है,दिमाग को उस प्रकार की ख़ुशी होती है,जैसे कोई पुरुस्कार मिल गया हो, और इसी कारण से मानसिक तनाव के कारण इंसान इन व्यसनों की संख्या बड़ा देता है |
  में भी सिगरेट पीता था और गुटखा भी खाता था,गुटखा तो मैंने पहले छोड़ दिया था,संभवत: इस कारण कि यह व्यसन बहुत बाद में लगा था,पर सिगरेट चाहते हुए भी नहीं छोड़ पाया था,यह आदत तो बहुत पुरानी थी, इन्टरनेट पर ढूँढा तो एक साईट सिगरेट छुड़ाने वाला मिल गया था,उसमें बहुत प्रकार की चीजे बताई गयीं थीं, चेविगुम, निकोटिन पेच और भी बहुत कुछ और साथ में मनोवेगाय्निक के पास कोंसिलिंग के लिए बताया गया था, सब कुछ ढूँढा हमारे देश में चेविन्ग्म ही मिल पाई थी जिसका नाम निकोतेक्स है, ५० रुपए की दस चेविन्ग्म,और शुरू के कुछ हफ़्तों में जब भी सिगरेट की इच्छा हो तो वोह चेविन्गुम खाने का निर्देश,मतलब की पॉँच,छे चेविन्गुम और धीरे,धीरे चेविन्गुम की और सिगरेट की इच्छा भी कम होने लगेगी बताया हुआ था |
  अब इतना महंगा इलाज जो कि साधारण इंसान के बस में नहीं, और भिन्न,भिन्न प्रकार की सरकार की और से सिगरेट,और गुटखे के पेकेट पर चेतावानिया, पड़ा लिखा इंसान तो जानता है,इस से केंसर हो सकता है,परन्तु सरकार अगर केंसर को रोकना चाहे तो इसका रोकथाम उस प्रकार क्यों नहीं जैसे पल्स पोलियो का बच्चों के लिए होता है, और तो और बीडी के पेकेट पर कोई चेतवानी नहीं होती, बीडी पीने वाले गरीब इंसान को अँधेरे में क्यों रखा हुआ है ?

     

शनिवार, दिसंबर 05, 2009

प्राचीन काल में प्यार की उत्पत्ति

आज कल प्यार का मतलब तो विकृत  वासना से हो गया है, परन्तु सब से पहले प्यार का उदहारण हमारे ऋग्वेद में मिलता है, और उस समय के ऋषि मुनि यह मानते थे, पूरे विश्व को प्यार का सन्देश हमरे देश भारत से मिला था, हमरे ग्रंथो में प्यार के देवता कामदेव का काम का सन्देश पहूचाने के लिए बहुत सुन्दर उदहारण मिलता है, जब कामदेव को किसी के हिर्दय में प्यार जगाना होता है,तो वसंत ऋतू का आगमन हो जाता है,और चारो ओर सुरमय वातावरण हो जाता, सुन्दर,सुन्दर फूल खिल जाते हैं, ना ग्रीष्म ऋतू की गर्मी, ना शरद ऋतू की शीत, आम के पेड़ों पर लगे बोर, और कामदेव के हाथों में, धनुष जिससे फूलों वाला तीर सीधे प्रेमी और प्रेमिका के हिर्दय पर अघात करता है, और प्रेमी और प्रेमिका के मन में प्यार जागृत हो जाता है, यह भी वासना है,परन्तु विकृत ना होकर वासना का सुन्दर स्वरुप |
   कामदेव का पहले शरीर होता था, परन्तु उन्के शरीर ना होने का कारण के पीछे एक कथा है, एक बार किसी राक्षस का वध करना था,जो कि केवल देवों के देव महादेव कर सकतें थे, लेकिन उस समय महादेव जी समाधि में बैठे थे, और राक्षस का वध करने के लिए उनकी समाधी का टूटना आवश्यक था, तो देवताओं ने कामदेव से प्रार्थना की आप भगवान् शिव की समाधी तोड़ें,तब कामदेव ने शिव भगवान् के मन में प्यार का अंकुर जगाने का प्र्यतन किया,और भगवान् शिव का तीसरा नेत्र खुल गया और कामदेव के शरीर का नाश हो गया,कामदेव की पत्नी रति रोती,बिलखती भगवान् शिव के पास गयीं तो महादेव जी ने कहा,कामदेव का शरीर तो नहीं मिल पायेगा परन्तु तुम दोनों मिल कर लोगों के हिर्दय को प्रेम से अंकुरित करोगे |
  हमारे देश में खुजराहो और कोणार्क के मंदिरों को देखने के लिए दूर,दूर से लोग आते हैं, खजुराहो के मंदिरों में बहार की दीवारों पर काम कला को पर्दर्शित करने वाले भित्ति चित्र हैं, परन्तु मंदिरों के अन्दर कुछ नहीं,जिसका आशय है, भित्ति चित्र इंसान के अन्दर की बुराई को पर्दर्शित करते हैं,और जब इंसान मंदिर के अन्दर जाता है,तो उसकी बुराइयाँ बहार रह जातीं हैं|
  इन खजुराहों के मंदिर का इतिहास यह है, उन दिनों चंदेल राजा का राज्य था, और उनकी प्रजा के लोग सन्यास ले रहे थे, तब राजा को लगा की जब सब लोग सन्यास ले लेंगे तो उसके राज्य का अस्तित्व तो कुछ नहीं रह जायेगा,तब उसने प्रजा को इन मंदिरों का निर्माण करके यह सन्देश दिया, सन्यास के अतिरिक्त भी बहुत कुछ है, और इस प्रकार इन मंदिरों का निर्माण हुआ
  हमारे देश की ही देन है,वात्सायन का कामसूत्र परन्तु लोग भागते हैं, विदेशों के विकृत वासना के साहित्य और विकृत चलचित्रों के ओर |
  आज कल तो लिव इन रिलेशन का स्वरुप देखने को मिल रहा है, परन्तु हमारे प्राचीन ग्रंथों में,शिव पारवती के प्रेम का बहुत ही सुंदर वर्णन मिलता है, यह तो सर्विदित है, माता पारवती ने भगवान् शिव को अपने पिता दक्ष के पूजा पर ना बुलाने पर हवन कुंड में अपने तन को स्वहा कर दिया,और महादेव जी माता पारवती का मृत शरीर लिए हुए सब ओर घूमते रहे, ऐसा था महादेव जी का और पारवती जी का प्रेम,और बाद में विष्णु भगवान् ने अपने सुदर्शन चक्र से पारवती के शरीर के ५१ टूकरे कर दिए,और जहाँ,जहाँ माता पारवती के शरीर के टूकरे गिरे वहाँ,वहाँ शक्ति पीठ बन गये |
 कहा जाता है,विवाहित स्त्री पुरुष शिव पारवती का जोड़ा है, मत करो बदनाम  इस माँ पारवती और शिव के जोड़े को |

शुक्रवार, दिसंबर 04, 2009

सहानभूति पर्दर्शित करने से उत्तम है,अनुभूति करना

बहुत दिनों से मन में विचार आ रहा था,सहानुभूति पर्दर्शित करने से उत्तम है के बारे में लिखूं ,अनुभूति करना,सहानभूति के शब्द तो इंसान के मन को रहत देता है,और अनुभूति तो मानव को अपना बना लेती है, सहानभूति तो कुछ समय के लिए राहत देती है,और अनुभूति तो सदा के लिए अपना बना लेती है, सहानुभूति का तो अर्थ है,किसी बेबस को देखकर चंद शब्द कह देना या उस बेबस की कुछ सहायता कर देना,परन्तु अनुभूति करना का अर्थ है,किसी बेबस की परिसिथित्यों को,उसी बेवस के अनुसार महसूस करना और फिर उसी की सहायता करने के लिए उसी के अनुरूप क्रिया कलाप करना,यह चीज किसी विवश को एक बहुत ही सुखद एहसास कराती है |
  अनुभूति करना तो एक कला है,इसमें अपने स्वाभाव,और परिस्थितयों  को गौण रख कर किसी दूसरे के व्यक्तिव और परिस्थितयों के अनुसार अपने को ढालना पड़ता है, इसमें सुनने की कला आवश्यक रूप से आनी चाहिए, और उसके साथ,साथ मनन करना भी अति आवश्यक है, वाद विवाद का तो विल्कुल ही स्थान नहीं है, किसी का दुःख,सुख के अनुभव उसके अनुसार करना तो अति कठिन काम है,अगर दूसरे इंसान की बात गलत लगती हो,तो अपना आचरण इस प्रकार से बनाना पड़ता है,की उसका अंत:कारण बदल जाये, यह प्रभाव ऐसा होना चाहिए,आप उसके रोल माडल बन जाएँ |
  इसीलिए मनोचिक्त्सक किसी मानसिक रोगी की चिकत्सा के लिए,उसके परिवार के सदस्यों को बुला कर,उनसे बात करके उनको परामर्श देते हैं,कि उक्त रोगी के साथ कैसा व्यव्हार किया जाये |

ऐसे हुआ माता रानी का चमत्कार |

अक्सर दूरदर्शन पर श्रीडी के साईं बाबा के चमत्कार देखता हूँ, और इन दिनों में,मुझे अपने छोटे भाई के साथ हुआ माता रानी का चमत्कार याद आ गया, बहुत पुरानी बात है, मेरे पिता जी की पोस्टिंग उन दिनों मेरठ में थी,और हम दोनों भाई छोटे,छोटे थे,उस समय हम दोनों की आयु क्या होगी ठीक से याद नहीं, मेरा भाई मेरे से २ साल ८ माह छोटा है , में आठवीं कक्षा में और मेरा छोटा भाई छटी कक्षा में पड़ता था |
  वोह दिन दिवाली से एक दिन पहले था, और मेरा भाई धागे में बांध के एक कंकर घुमा रहा था (जिसको लंगर बोला जाता है),वोह कंकर का टूकरा उसकी बायीं आँख में लग गया,और उसकी आँख सूज गयी थी, उस समय मेरठ में आँखों के विघयात डाक्टर वीर चन्द्र हुआ करते थे,मेरी माँ और पिता जी उसको उस डाक्टर के पास ले गए, उन आँखों के डाक्टर ने बताया की आंख की पुतली(कोर्निया) में,आंख का मांस फस गया है,इस बच्चे को सीतापुर ले जाओ,और उन्होंने आँख में,आंख की दवाई अतरोपीन डाल दी,जिससे आंख की पुतली फेल जाये और कहा इसको मेरे पास कल सुबह लाना, अगले दिन मेरे भाई को उन्ही डाक्टर के पास ले कर गए, तो आँख में कोई लाभ नहीं हुआ, आंख की पुतली में उसी प्रकार से आंख का मांस फसा हुआ था, अतरोपीन दवाई की बूंदे आंख में डालने के २४ घंटे के  बाद पुतली फेल जाती है,और आंख की पुतली में फसी हुई वस्तु निकल जाती है,परन्तु मेरे भाई की आंख की पुतली में से आंख का फसा हुआ मांस नहीं निकला  |
  उन दिनों मेरे पिता जी के पास उन्ही के महकमे में काम करने वाले,माता के भक्त दुर्गसिंह आया करते थे, वोह मुझे गणित की टूशन भी पडाते थे, वोह उस दिवाली के एक दिन पहले भीसुबह  आये थे, और जब उनको मेरे छोटे भाई की आंख के बारे में पता चला तो वोह बोले में रात को आता हूँ,और वोह रात में आये और उन्होंने रात भर माँ दुर्गा का हवन किया,और अगले दिन की सुबह,मेरे माँ,पिता जी,और दुर्गासिंह मेरे भाई को लेकर उन्ही आँखों के  डाक्टर वीरचन्द्र के पास लेकर गये, उन डाक्टर सहाब ने मेरे भाई की चोट लगी आंख को चेक किया,और वोह हैरान रह गये कि यह आंख की पुतली में से आंख का  मांस निकल गया,यह तो चमत्कार है, मेरे माँ,पिता जी ने कहा यह इन दुर्गासिंह के कारण हुआ है,तब डाक्टर साहब ने कहा इस आदमी को पहले क्यों नहीं बुलाया था, दुर्गासिंह जी ने हवन के समय  एक मिटटी की माँ दुर्गा की परतिमा बनाई थी, और पूजा के बाद उस परतिमा को वोह ले जाना भूल गये थे,जब भी हम लोग उस कमरे में जाते थे,तो हम लोगों को एक करंट सा लगता था,तब वोह बोले में इस परतिमा को ले जाना तो भूल गया,और उन्होंने वोह परतिमा अपनी जेब में रख ली, और हम लोगों को करेंट लगना समाप्त हो गया था, यह घटना मुझे याद आ गयी जो की हमारे साथ घटित हो चुकी है, इसलिए लिख दी |

  आप माने या ना माने

मंगलवार, दिसंबर 01, 2009

हमारे घर में ही हो विवाद तो कैसे लहरायेगे अपनी संस्कृति का परचम |

यह लेख में प्रारंभ कर रहा हूँ, अत्यधिक विघयात चलचित्र स्लम डोग मिल्लिओनोरे से, हमरे मुंबई शहर की झुग्गी झोपड़ी की गरीबी पर विदेशी चलचित्र बना देते हैं,और इस चलचित्र को अनेकों सम्मानित ओस्कार इनाम मिल जाते हैं, हाँ यह तो सच इस फ़िल्म के कलाकार रुबीना और अझर भी विश्विघ्यात हो जाते हैं, इससे क्या विश्व को सन्देश मिला कि, हमारे देश में गरीबी है |
  लेकिन आज के युग में,मुझे कोई ऐसी फ़िल्म नहीं याद आती,जिसमें हमारे देश कि संस्कृति का विश्व में प्रचार हुआ हो, केवल एक ही फ़िल्म याद आती है, रिचर्ड अटएनबरो द्वारा निर्देशित,और बेन किंग्सले द्वारा अभिनीत गाँधी,हाँ उस चलचित्र में गाँधी जी के आदर्शो के बारे में बताया था,लेकिन यह बहुत पुरानी बात हो गयी है, नयी पीड़ी का आगमन होता रहता है,उन लोगों को अपनी पुरानी संस्कृति का आभास नहीं हो पाता,और पुरानी पीड़ी के भी मानसपटल पर छबी धूमिल होती जाती है |
 आज कल तमाम समाचार पत्रों में,  सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं में,आरोप,आक्षेप और पर्तिअक्षेप का ही सिलसिला चलता रहता है, सत्ता पक्ष और विपक्ष कभी भी एकमत होते नहीं देखे जाते, और हमारे इन समाचार पत्रों को हमारे देश में आने वाले विदेशी भी पड़ते हैं, और इसका उन पर क्या प्रभाव पड़ता होगा,कोई भी सोच सकता है, हमारे यहाँ के सद्भाव को तो यह गोण ही कर देता है |
         हमारे देश के महान ग्रन्थ हैं,रामायण और गीता,और जिनको विदेशों में मिथ कहा जाता है,और इस देश में भी विवाद हो जाता है, इनके चरित्र मिथक अर्थात कोरी परिकल्पना है, और यह ग्रन्थ मिथ हैं,मतलब की कोरी गप्प, तो हम इसके वारे में विश्व को कैसे बताएँगे? रामायण में मर्यादा पुरषोत्तम राम का चरित्र है, अगर हमारे देश में इस ग्रन्थ पर विवाद होगा तो हम उसके आदर्शो को कैसे विश्व को बताएँगे?
    गीता में कृष्ण भगवान् द्वारा अर्जुन को दिया हुआ गीता का ज्ञान है, जब कौरवों और पांडवों की सेना आमने सामने हो गयी,और अर्जुन अपने गुरुओं,चचरे भाईओं को देख कर अपना गांडीव उठा कर रख दिया,तब श्री कृष्ण भगवान् पार्थ के रथ को रणभूमि में दोनों सेनाओं के मध्य में ले गए तब उन्होंने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था, श्री कृष्ण भगवान् ने कहा,जो में तुमको यह ज्ञान दे रहा हूँ,वोह मैंने तुमसे पहले सूर्य को दिया था, अर्जुन ने कहा आप से तो सूर्य तो बहुत पहले आ गए थे,तब कृष्ण भगवान् ने कहा "है पार्थ में और तुम हर जन्म में थे,मुझे सब कुछ याद है,पर तुम्हे नहीं", यह श्री कृष्ण का उपदेश पुर्ब्जन्म को प्रमणित करता है, और कृष्ण भगवान् ने यह भी कहा कि, "आत्मा अजर अमर है, शरीर का नाश होता है,और जिस प्रकार से मन्युष नए वस्त्र धारण करता है,इसी प्रकार आत्मा नया शरीर धारण करती है",यह दोनों बातें भी विवादित है, संभवत: इसी लिए इन ग्रंथो को मिथ और इन चरित्रों को मिथ्या कहा जाता हो,लकिन रामायण के राम के चरित्र और गीता के ज्ञान का प्रचार क्यों नहीं होता?
 यह तो सही है,रामायण और महाभारत पर सीरियल तो बने,पर यह सीमित तो हमारे देश तक ही थे,परन्तु इन ग्रंथो के आदर्शों पर कोई की फ़िल्म नहीं, बनी,इन ग्रंथों के आदर्शों पर चलचित्र बनना चाहिए,और इनका प्रचार भी स्लम डोग मिल्लोनोर की तरह होना चाहिए |