बुधवार, जनवरी 20, 2010

परिवर्तन (भाग 6)

अब नरेश,उस घर में आ चुका था, जो उसके पिता जी ने ख़रीदा था,क्योंकि सुषमा ने बी.एड कर लिया था इस कारण यहाँ के एक अच्छे स्कूल में,वोह उच्च क्लासों की प्राध्यापिका हो चुकी थी, और बहुत अच्छा वेतन प्राप्त करती थी, मतलब समय चक्र के अनुसार वोह उस स्थान पर पहुँच चुकी थी,जिस स्थान पर कभी नरेश था, इससे पहले वाली जिस  कम्पनी से नरेश को  निकाला गया था, वोह भी एक बड़ी कम्पनी थी, और इस कम्पनी में भी,उसको और दूसरी बड़ी कंपनियों जहाँ वोह काम कर चुका था,उसी प्रकार का  मेडिकल और लीव ट्रवेल का खर्चा मिलता था, वोह सुषमा और उसके बाद संध्या तथा सुषमा को भारत के बहुत से रमणीक,पर्यटन स्थलों पर घुमा चुका था, अब वोह इस घर में उदास सा बैठा रहता था,उसके ससुर इस घर में आते थे, पर वोह नरेश से कुछ भी बात,चीत नहीं करते थे, बस सुषमा में से बात करके चले जाते थे,मतलब जब उसको सांत्वना कि आवयश्कता थी,उसको सांत्वना देने वाला कोई नहीं था,अब नरेश की आँखों पर पड़ने वाला चश्मा लग चुका था, और अभी भी नरेश काम खोजता रहता था,और कुछ समय खाली रहने के बाद उसको एक कम्पनी में जर्नल मेनेजेर की नौकरी मिल चुकी थी, उस में मनोवेग्यानिक कमियां तो थी हीं,सो वोह इस जर्नल मेनेजर की नौकरी पर कहाँ तक चल सकता था,और यहाँ से भी निकाला गया, उसके बाद उसने दो तीन छोटी,मोटी नौकरी करी,और वोह अधिक ना चल सका, अब नरेश प्रोड़ हो चुका था,उसके सिर के बालों में सफेदी आ चुकी थी,और उसकी बेटी भी बड़ी हो चुकी थी, इस प्रकार खाली रहने पर उसके अर्जित किये हुए धन का बहुत सा प्रतिशत समाप्त हो चुका था, घर का खर्चा अब सुषमा के वेतन से चल रहा था, क्योंकि संध्या और नरेश की बेटी बड़ी हो चुकी थी,सो उसका विवाह तो करना ही था, सुषमा और नरेश ने संध्या के लिए उपयुक्त वर खोजना प्रारंभ किया,और दोनों को एक लड़का पसंद आ गया,इसलिए संध्या का विवाह उस लड़के  आशीष के साथ हो गया था, और संध्या के विवाह के लिए नरेश ने अपनी सारी जमा पूँजी लगा दी,और इसके साथ सुषमा के घर वालों ने भी संध्या के विवाह के समय बहुत आर्थिक सहयता की, अब नरेश के पास कुछ भी धन नहीं रह गया था, सुषमा के वेतन से घर का खर्चा चल रहा था,और सुषमा के पिता जी अर्थार्त नरेश के ससुर आते,जाते रहते थे,और केवल सुषमा से बात कर के चले जाते थे, वस नरेश को जो थोड़ा बहुत सुकून मिलता था,वोह अपने पिता जी से, कुछ समय के बाद नरेश के ससुर का तो स्वर्गवास हो चुका था, और नरेश के पिता जी भी कब तक नरेश का साथ देते वोह भी चल बसे, नरेश ने अपने पिता जी के देहांत के बाद अपनी माता जी को अपने साथ रख लिया है, और अब स्थिति इस प्रकार बदल चुकी है, सुषमा नरेश को कोई खास महत्व  नहीं देती है, और नरेश से कोई छोटी,मोटी गलती हो जाती है,उसको खरी खोटी सुनाती है,नरेश से अब भी जो कुछ बन पड़ता है,वोह सुषमा के लिए करता है, नरेशअब  इन विचारों में खोये रहते हैं,अगर उसके पिता जी ने उसके स्वाभाव में इस प्रकार की मनोवेग्यानिक कमियां नहीं होने देते तो उनका यह हाल नहीं होता,नरेश का तो साहित्य में सबसे अधिक रुचि थी,परन्तु जब तक कोई प्रसिद्ध साहित्यकार नहीं हो जाता उसको धन और प्रतिष्ठा नहीं मिल पाती, वोह जाएँ तो जाये कहाँ बेटी तो परबस होती है, सोचतें है,अगर बेटी संध्या से इस विषय में बात करें तो उनके दामाद आशीष क्या सोचेंगे?, अब नरेश के भाई सुरेश भी प्रोड़अवस्था में पहुँच चुकें हैं, और उनका बेटा अर्जुन भी युवावस्था में पहुँच चुका है, और नरेश के मस्तिष्क में यह विचार भी कौनधता रहता है, अगर सुरेश इस विषय में बात करतें हैं,तो ना जाने सुरेश की पत्नी विभा क्या सोचेगी?
 इस प्रकार नरेश के जीवन में परिवर्तन हो चुका है,जो स्थान उनका होना चाहिए था,वोह विभा ने ले लिया , क्योंकि अब नरेश कुछ नहीं करते उनको विभा और आस पास के लोग हेय दृष्टि से देखते हैं |

समाप्त

2 टिप्‍पणियां:

Vinashaay sharma ने कहा…

ध्न्यवाद उत्साहवर्धन के लिये उड़नतश्त्री जी,राजेश स्वार्थी जी,ताऊ राम्पुरिया जी,श्रद्धा जैन जी और संगीता पूरी जी,मेने अपने नायक को एक साधारण सा इन्सान दिखाया है,और कहानी के अन्तिम दो चरण में यह दिखाने का प्रयत्न किया है,मनोवेग्यानिक कमियों के कारण वोह जीवन में सफल नहीं हो पाया,अगली बार जब इस प्रकार की कहानी लिखूगाँ,तो अपने नायक को सफलता की सीड़ी पर चड़ाऊगाँ,अब मेरे ब्लोग और स्नेह परिवार के लेखों को मिला कर एक शतक पूरा कर लिया है ।

Urmi ने कहा…

बहुत सुन्दर! आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!