अब मैं विद्यार्थी जीवन को छोड़ कर के, अपूर्ण व्यक्तिव को लेकर के यथार्थ के कडे जीवन के लिए, गाजियाबाद मैं आ चुका था, मुझे नहीं ज्ञात था कि अब यथार्थ के जीवन की कितनी परीक्षाएं देनी पड़ेगी,पर जीवन तो अपनी गति से अग्रसर हो रहा था। अब मैं भिवानी मैं स्वदेशी पोल्य्तेक्स का साक्षात्कार दे कर के गाजियाबाद आ चुका था, क्योंकि किसी भी मेरे अध्यापक ने मुझे साक्षात्कार के लिए प्रेरित नहीं किया था, बस मैंने तो अपने आप ही साक्षात्कार दिया था, मुझे ज्ञात ही नहीं था कि गाजियाबाद मैं भी स्वदेशी पोल्य्तेक्स के लिए भी मेरा साक्षात्कार होना है, लेकिन सयोंग ऐसा बना कि एक दिन मैं अपने दोस्तों के यहाँ कवि नगर गया हुआ था, जहाँ पर अश्वनी और जोश रहते थे, तब अश्वनी स्वदेशी मैं काम करता था, और जोश डी.स.म मैं।
अश्वनी ने कहा कल तो तेरा साक्षात्कार है, तब मुझे पता चला कि स्वदेशी से मेरी यथार्थ की जीवन रेखा प्रारम्भ होनी है, अगले दिन बस पहुँच गया स्वदेशी के साक्षात्कार के लिए, जो कि हमारे "chief executive", के साथ होना था, व्यक्तित्व तो अपूर्ण था, इसलिए मैंने घबहारात के साथ साक्षात्कार दिया जो कि मेरे स्वाभाव मैं घर कर चुकी थी, अब मैं जीवन के यथार्थ के लिए अग्रसर हो चुका था, मतलब कि अब मैंने स्वदेशी से अपनी नौकरी का प्रारम्भ कर दिया था, मेरे बॉस मिस्टर वी.के गुप्ता थे।
चूँकि मैं मह्त्वंक्षी था, इसलिए मैंने उच्च पद पाने के लिए जे.के। सिन्थेटिक्स, मोदीपोन,हरियाणा पेत्रोचेमिकाल्स,चंद्रा सिन्थेटिक्स मैं नौकरी की थी।
शेष मेरी जीवन यात्रा विवादास्पद हैं,यही से इतिश्री करना चाहता हूँ, बस अब की परिस्थितयों के साथ, मेरे पिता जी का देहावसान हो चुका हैं, परन्तु वोह कालांतर मैं बदल चुके थे, अब वोह हमे प्रतारित नहीं करते थे, परन्तु कहते हैं कि मृत्यु को तो अवसर की परतिक्षा होती हैं, वोह मोदीनगर मैं रहते थे, उनको एक बार १०२ बुखार हो गया और मेरी उनके कहने पर मेरी माँ ने उनको चिकत्सालय मैं दाखिल, करवा दिया, पता नहीं होनी को क्या मंजूर था, उनको बार बार बाथरूम जाना पड़ रहा था, और मेरी माँ की आँख लग गई और एक बार वोह बाथरूम मैं फिसल गए, और उनकी कुलेह की हड्डी टूट गई, और उनका मोहन नगर अस्पताल मैं कुलेहे का ऑपरेशन हुआ था, ठीक हो कर के वोह गाजियाबाद के मोहन नगर अस्पताल से मोदीनगर चले गए थे, परन्तु होनी तो बलवान होती है, वोह फिर बीमार होने के कारण मोहन नगर अस्पताल मैं इलाज के लिए आए थे, और उनको वेंतिलाटर पर रख दिया गया था, डोक्टोरो ने तो उम्मीद छोड़ दी थी, क्योंकि वोह सरकारी मुलाजिम थे उनका इलाज चलता रहा, और उनमे जान पड़ चुकी थी, पर यह रहस्य मुझे अभी तक नहीं समझ आया, एक दिन क्लोट उनके हीर्दय मैं पहुँच गया, और हीर्दय गति के रुक जाने के कारण वोह अन्तिम यात्रा की ओर चल पडे।
पापा के देहावसान के बाद मेरी माँ के लिए हमने उनके लिए अपने घर के ऊपर उनका पोर्शन बनवा दिया है, वोह अब हमारे साथ गाजियाबाद मैं रहती हैं, पर स्वाबहव वैसा ही, वोही छुआ छूत, वोही हम दोनों भाइयों मैं भेद भावः
अब मैं शादी शुदा हूँ, मेरे और मेरी पत्नी से अधिक मेरे भाई और उसकी पत्नी की ओर ध्यान देना, मैंने तो अपनी मोटर बेच दी थी, पापा के बीमार होने पर मेरी माँ ने पापा की मोटर जो कि मोदीनगर मैं थी, मुझे नहीं लाने दी मेरी पत्नी तो रात मैं ऑटो मैं बैठ कर के मोहन नगर से घर आती थी, परन्तु मेरे भाई के आने पर वोही कार उसके लिए आ गई थी।
पता नहीं हमारे भाग्य मैं क्या बदा हैं, पापा के परलोकगमन के बाद मैं तो अपने को नितांत अकेला पाता हूँ।
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