और स्वाभाव में तेज होने के कारण,आनन फानन में विभा ने,तुरंत सुरेश को लेकर उस नरेश और सुरेश के पिता जी के द्वारा खरीदे हुए घर में रहने का निर्णय लिया, और सुरेश को लेकर चल पड़ी उस घर में रहने के लिए, अब सुरेश तथा विभा उस घर में रहने लगे, समय बीतता गया और विभा ने एक पुत्र को जन्म दिया, और सुरेश उस घर से अपने,उस शहर में नौकरी करने के लिए,जाने लगा जहाँ पर सुरेश नौकरी करता था, और बेचारा नरेश अपनी पत्नी सुषमा और अपनी बेटी संध्या को लेकर, अपनी माँ,पिता जी के साथ रहने को विवश था, कम्पनी में हर समय तो नरेश काम नहीं करता था,नरेश क्या कोई भी नहीं हर समय काम नहीं करता, हाँ जब कम्पनी में कोई उच्च अधिकारी हो जाता है, तब वोह कम्पनी को समर्पित हो जाता है,उसके पास अपना निजी समय होता ही नहीं,परन्तु नरेश अपनी मनोवेगाय्निक कमियों के कारण,उच्च पद पर आसीन कैसे होता ? चूंकि वोह अपने कोलेज में क्रिकेट का अच्छा खिलाडी था, और जब वोह कम्पनी में काम नहीं कर रहा होता, वोह अपना समय क्रिकेट खेल कर बिताता, अब क्रिकेट तो दिन में ही खेला जा सकता है,और रह जाता संध्या समय उस समय वोह क्या करता,इसलिए वोह संध्या समय वोह कम्पनी के के इनडोर बेडमिन्टन कोर्ट में,बेडमिन्ट खेल कर बिताता था, ऐसा नहीं था वोह अपनी पत्नी और अपनी बेटी की और ध्यान नहीं देता था, वोह दोनों तो उसके लिए जीवन में सबसे बड़ी ख़ुशी थी,इंसान को अपने मन को खुश करने के लिए,कुछ ना कुछ तो चाहिए ही,इसलिए वोह यह खेल,खेल कर अपना मन खुश करता था, और कुछ सालों के बाद,बेडमिन्टन खेलने में हाफ्ने लगता, सो उसने संध्या समय बेडमिन्टन,छोड़ के बिल्लीयर्ड खेलना प्रारंभ कर दिया,और अपने इस घर से दूर नौकरी करने के लिए समाचार पत्रों में विज्ञापन देखता रहता था,और आखिरकार वोह समय आ गया,जिस समय की उसको पर्तीक्षा थी,मतलब उसको अपने मतलब का विज्ञापन दिखाई दे गया,और उसने तुरंत उस नौकरी के लिए अर्जी डाल दी,और उस विज्ञापन के उत्तर में उसको इस नौकरी के साक्षात्कार के लिए बुलावा आ गया,और वोह वहाँ गया तो उसका उस नौकरी के लिए,चुनाव हो गया, यह नहीं कि उसने औरकम्पनियों में विज्ञापन देख कर अर्जी नहीं डाली थी,परन्तु और नौकरियों में उसके हाथ मासूमियत लगी थी, परन्तु यहाँ पर भी उसके भाग्य ने उसका साथ इस प्रकार नहीं दियाथा, यह शहर बहुत महंगा था, वोह तो बेचारा अपने उस माहोल से निकलना चाहता था,उसने इस शहर के बारे में सोचा ही नहीं था, वोह बेचारा इस कम्पनी में उसी सेलरी पर हाँ कर बैठा था,जो सेलेरी उसको पिछली कम्पनी में मिलती थी, बस लाभ यही था,कि इस कम्पनी में नरेश उच्च पद पर आसीन हो गया था, इस शहर में तो अपना सारा पीछे का कमाया हुआ धन समाप्त कर चुका था, और अब वोह अपनी आजीविका कमाने के लिए,अपने पिता से धन मंगाने लगा, और नरेश के पिता जी,अपनी पत्नी अर्थार्त नेरश कि माँ से चोरी,छुपे नरेश को उसकी और उसकी पत्नी सुषमा,और बेटी संध्या कि जीविका के लिए धन,भेजने लगे, और संध्या अब कक्षा चार में,पड़ने लगी थी, और नरेश की पत्नी अब उसी स्कूल में,जहाँ पर संध्या पड़ रही थी,वही वोह कक्षा आठ में पड़ा रही थी, चूंकि नरेश अ़ब उच्च पद पर आसीन था, और उसी के समकक्ष उसके साथी भी थे, परन्तु उच्च पद पर तो लोग, ऐसे होते हैं,अपने लाभ के लिए,दूसरे का गला काट कर आगे बडते हैं, बेचारा भोला नरेश इस प्रकार की प्रतिस्पर्धा को नहीं समझ पाया,और उसको अपनी इस नौकरी से हाथ धोना पड़ा,नरेश को जो कम्पनी से गाड़ी और ड्राईवर मिला हुआ था,उससे भी महरूम हो गया, बस एक बात जो अच्छी थी,इसी बीच संध्या ने बी.एड कर लिया था, अब तो नरेश के साथ ऐसा सिलसिला चल पड़ा,वोह इसी शहर में,और कंपनियों में काम करता,रहा और वोह इस सिलसिला इस प्रकार चलता रहा,उसके नौकरियों के लिए,कम्पनी छोटी होती रहीं,और उसका पद बड़ा होता रहा, अब उसको पैसे की समस्या नहीं थी, लेकिन एक कम्पनी को छोड़ कर दूसरी कम्पनी में,काम करने का कारण यह था,एक स्थान से वोह निकाला जाता,तो दूसरी कम्पनी में काम करने लगता,लेकिन यह सिलसिला एक शहर में कब तक चलता, अब वोह अधेर भी हो चला था, और उसके साथ एक बात अच्छी हुई कि,अबकी बार उसको उस शहर के पास नौकरी मिल गयी,जिस शहर से वोह इस शहर में,आया था, आजीविका की कोई समस्या नहीं थी, सुषमा यहाँ पर भी एक स्कूल में पड़ा रही थी,और संध्या अब कक्षा दस में आ चुकी थी,परन्तु इस बार फिर नरेश को एक झटका लगा, संध्या उसकी बेटी कक्षा दस में,और नरेश को यहाँ से भी निकाल दिया गया,और अब तक नरेश के भाई सुरेश का दूर,शहर में स्थान्तरण हो चुका था, सुरेश,बिभा,अपने पुत्र जिसका नाम उन लोगों ने अर्जुन रक्खा था,उस शहर में जा चुका था,जहाँ पर उसका स्थान्तरण हो चुका था,बस नरेश को जैसे डूबते को सहारा मिल गया था,अब वोह अपनी पत्नी सुषमा,बेटी को लेकर उसी घर में आ गया था जो उसके पिता जी ने ख़रीदा था |
क्रमश:
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