शनिवार, नवंबर 07, 2009

बिना जाने और खोज किये बिना लोग अपने तर्क क्यों देते हैं?

 कल मैंने पंडित डी.के शर्मा जी का लेख पड़ा और "विज्ञान भी मानने लगेगा  है,भूत प्रेत आत्मा का सचमुच अस्तित्व है", और संगीता जी का लेख क्या "ज्योतिष को विकासशील नहीं होना चाहिए, और मैंने अपनी टिप्पणियों के द्वारा साक्ष्य के प्रमाण भी दिए,फिर भी लोग बिना जाने और खोज किये बिना अपने तर्क देने लगे,भूत प्रेत का अस्तित्व नहीं होता, मैंने भूत प्रेत को देखा तो नहीं,परन्तु उनका अधिकार लोगों के शरीर पर देखा है,अगर वोह लोग राजस्थान के महेंद्रगढ़ में बाला जी के मंदिर में जा कर देखे तो उनको उत्तर मिल जायेगा कि भूत,प्रेत का अस्तित्व होता है कि नहीं,वहाँ पर बहुत से लोगों के शरीर पर भूत प्रेत का अधिपत्य देखने को स्वयं ही मिल जायेगा,और मैंने  एक टिप्पणी यह भी देखा , भूत प्रेत होते हैं, इसका चेलेंज किया हुआ था,मेरा उत्तर भी उन सज्जन के लिए वोही है, और यही प्रमाण देता है,कि आत्माएं होती हैं,मेरा भी चेलेंज है,वोह सज्जन वहाँ जा कर देखे तो उनको इसका उत्तर स्वयं मिल जायेगा, वहाँ पर आरती के समय इन भूत,प्रेत से ग्रसित लोग इस प्रकार की हरकते ऐसी होती हैं,कोई आम इंसान नहीं कर सकता है, और दूसरा प्रमाण देता हूँ, जो आप लोग घर बैठे ही देख सकतें हैं, गूगल पर सर्च करिए, "Life After Death",और आप लोगों को संभवत: वोह किताब मिल जाये और उस पुस्तक में, उन लोगों के अनुभव हैं,जो चिकत्सक के अनुसार अपना जीवन छोड़ चुके थे,फिर उनके प्राण उनके शरीर में वापिस आ गये थे,और उन लोगों का अनुभव इस पुस्तक में हैं, और साक्षात् आप लोगों को आत्मा का प्रमाण मिल जायेगा,परन्तु जो लोग मेरे ऊपर दिए हुए प्रमाण को जानने का प्र्यतन ही नहीं करते, और अपने नकार्ताम्क तर्क प्रस्तुत करते हैं,वोह लोग इसको कपोल कल्पना ही समझेंगे, विदेश में हर चीज को जानने का प्र्यतन होता है, और जानने के बाद बताया जाता है, इसका एक उदहारण जो इंडिया टीवी के न्यूज़ चैनल पर दिखाया गया था, किसी विदेशी इंसान ने बताया था,हमारी पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्द्रा गाँधी पुर्ब जन्म में,नाना जी साहिब थीं,और इस बात को भी बताया गया था, सामान्यता अस्सी परतिशत आत्मा लिंग नहीं बदलती,जो आत्मा स्त्री में होती हैं,वोह दूसरे जन्म में स्त्री के ही शरीर में जाती है, और ऐसा ही पुरुष के लिए होता है,परन्तु बीस परतिशत में ऐसा होता आत्मा लिंग बदलती है, उस इंसान ने कुछ प्रयोग ही कियें होंगे तभी बताया होगा, ना कि बिना जाने और खोज किये अपना तर्क प्रस्तुत किया होगा |
दूसरा लेख संगीता जी का पड़ा "क्या ज्योतिष को विकासशील नहीं होना चाहिए?" तब मेरे मस्तिष्क में एक विचार आया,बहुत से लोग ज्योतिष को तुक्का कह देते हैं,वोह मेरे लेख "भिर्गु सहिंता के बारे में मेरी अल्प जानकारी" पर पंडित डी.के शर्मा जी की टिप्पणी देखे और उनको समझ में आ जायेगा की ज्योतिष क्या है, मेरे इस लेख को पड़ा ही बहुत कम लोगों ने,और बिना जाने,बिना होशियारपुर जाये हुए जहाँ पर यह भृगु सहिंता है,कह देते हैं ज्योतिष तुक्का है, या ज्योतिष कोई विद्या नहीं हैं,वहाँ पर यहाँ तक बता दिया जाता है,अमुक व्यक्ति,अमुक दिन अपने बारे में जानकारी लेने आएगा, और मैंने एक लेख भी लिखा था,"सीमित विज्ञान कैसे खोजेगा असीमित विद्यायें", वोह भी बहुत कम लोगों ने पड़ा होगा,में अपने लेख का प्रचार नहीं कर रहा हूँ,बस यह बताने की चेष्टा कर रहा हूँ, पहले जानने की चेष्टा तो करो,फिर अपना तर्क दो,में स्वयं इंजनियर हूँ,और में समझता हूँ,विज्ञान भी हर चीज को जानने की चेष्टा करता है,प्रयोग करता है,और प्रमाणित करता है,विज्ञान निरे तर्क पर नहीं आधारित है |
     कुछ दिन पहले मैंने लवली जी का पराशक्तियों के बारे में,लिखा हुआ लेख पड़ा था,जो कि,बिलकुल यथार्थ पर लिखतीं हैं,और उसमें किसी की टिप्पणी पड़ी थी, उकिसी ने  कहा था में पराशक्तियों का अनुभव करा सकता हूँ कुछ ऐसा ही लिखा था ,और लवली जी कि प्रसंशा करनी पड़ेगी,उन्होंने उस बात को नाकारा नहीं और उन्होंने कहा कभी झारखण्ड आ कर मुझ से मिलिए, यह होती है जानने की चेष्टा, और लवली जी ने किसी मनोविज्ञानिक विषय पर लिखा था,और उन्होंने किसी मानसिक रोगी  मनोचिक्त्सक को दिखाने का वर्णन किया था, उस के बाद वोह रोगी ठीक हो गया था,और वोह  इंसान मनोचिक्त्सक को गालियाँ देने लगा कि मनोचिक्त्सक ने मेरा भगवान् से संपर्क तोड़ दिया, और फिर मैंने एक लेख लिखा था, मानसिक चिकत्सक और मनोचिक्त्सक में अंतर वोह लेख केवल उन्ही ने पड़ा,उन्होंने स्किज्फ्रोनिया के बारे में,एक भी  लिखा और मैंने इम्पल्सिव हो कर एक उनके लेख पर किसी के द्वारा दी हुई टिप्पणी के कारण तीखी टिप्पणी दे दी,और फिर मैंने क्षमा मांगते हुए,इम्पल्सिव व्यव्हार रिश्ते बिगाड़ सकता है,एक लेख लिखा,तब उन्होंने टिप्पणी दी और टिप्पणी में लिखा, अगर आप लिंक दे देते तो पाठको को आसानी हो जाती,यहहोती है  जानने की चेष्टा करना और दूसरों को बताना , मालूम नहीं अब लिंक में क्यों नहीं दे पा रहा,पहले मैंने अपने स्नेह परिवार वाले ब्लॉग में,स्नेह परिवार का ही लिंक दे दिया था,और वोह मेरी हर पोस्ट को दो बार दिखा रहा था,पावला जी ने मुझे इस समस्या से छुटकारा दिलाया था,और इस बार भी वोह मेरे लिंक ना दे पाने की समस्या से ऑनलाइन हल कर  रहे थे, बस वोह समस्या बीच में ही रह गयी है, हो सकता है जब हम ऑनलाइन होंगे तो संभवत: लवली जी आपको लिंक दे पाउँगा |
प्रिय पाठको पहले विषयों को जानने की चेष्टा करो तो सही |
 

9 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

umdaa aalekh

संगीता पुरी ने कहा…

किसी भी बात में पूर्वाग्रह से ग्रस्‍त लोग हों .. तो तर्क नहीं हो पाता .. और हम भारतीयों की यह पुरानी आदत है कि हम बहस नहीं करना चाहते .. सीधा अपने विचार दूसरों पर थोपना चाहते हैं !!

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बहुत अच्छे जी, भूत-प्रेत आप को मुबारक! हमें और जनता को तो बख्शिए इंजिनियर साहब!

L.Goswami ने कहा…

विनय जी,
कृपानिधान, मैं भूत-प्रेत और ,मानव शरीर से इतर किसी और शक्ति जैसी किसी अवधारण पर विश्वाश नही करती ..कृपया तर्क करें कुतर्कों में मुझे न घसीटें ..दया कीजिए बंधू

पं सुभाष चंद मिश्र "वामाचारी " ने कहा…

diwedi ji ko shayad ye bhi pata hoga ki Param Prabhu ko bhi koi nahi dekhta par uske bare me sabhi yakin rakhtey hai chahe hindu ho ya musalmann. Aise hi bhuto aur preto ke bare me bhi samjhey. Ek hindi me kahavat hai -- jake pair na fati bivai vo kya jane peer parai.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

विनय जी,अच्छी पोस्ट लिखी है।विज्ञान और आध्यातम मे कुछ बुनियादी फर्क होते हैं जो मैनें एक पोस्ट मे लिखे हैं...।
जब तक कोई किसी चीज का अनुभव नही कर लेता वह कभी मान नही सकता....जो अनुभव कर लेता है वह इंकार नही कर पाता.........

Vinashaay sharma ने कहा…

लवली जी में किसी की भी भावनाओं को आहत नहीं करना चाहता,अगर आपकी भावनायें आहत हुईं है,तो क्षमा प्रार्थी हूँ,मेरा मतलब तो बस इतना था,कि त्थओं को जाने बस उदाहरण विवादस्पद लिख दिये ।

Vinashaay sharma ने कहा…

परमजीत जी आप मुझे उस पोस्ट का लिकं दे दें,अच्छा लगेगा ।

Vinashaay sharma ने कहा…

द्ववेदी जी आप मूल विषय को तो देखिये,मैने त्थयों की पड़ताल करने को लिखा है,ना कि मैने जबरदस्ती की है ।