कहा जाता है,जब इस पृथ्वी पर प्रलय हो चुकी थी,और उस प्रलय के बाद केवल स्वयंभू मनु और श्रधा इस संसार में जीवित बचे थे, पृथक,पृथक धर्मो में,एक कथा तो लगभग सभी धर्मो में एक सी ही है, जब इस पृथ्वी पर प्रलय हुई थी,तो सर्वत्र जल का समराज्य था,हमरे देश में, विष्णु भगवान ने मतस्य अवतार लेकर,एक नौका को अपने से बांध कर मतस्य अवतार लेकर उस जल में से खींच कर के सुरक्षित स्थान पर ले गये थे,और उस नौका में वोह लोग वैठे हुए थे,जिनको पता चल गया था,प्रलय के समय सर्वत्र जल का सम्राज्य होगा,और वोह लोग बच गये थे,परन्तु अधिकतर वर्णन आता है,श्रधा और मनु का ,और उसके पश्चात मानव ने इस धरा पर जन्म लिया,इसी प्रकार मुस्लिम और इसाई धर्म में भी,नूह और नोहा का वर्णन आता है, इन लोगों ने भी जब जल सर्वत्र था,परमेश्वर के द्वारा बताने के बाद,उसी प्रकार सुरुक्षित स्थान पहुँच गये थे, जैसे विष्णु भगवान के मतस्य अवतार लेने के बाद,वोह लोग पहुँच गये थे, जो लोग उस नौका में बैठे थे,जिसको विष्णु भगवान ने मतस्य रूप में खींचा था, बाकि धर्मो को छोड़ कर हिन्दू धर्म को लेतें हैं,जो कि भारतवर्ष में हैं,और जिसमें मनु और श्रधा हुए थे, और जो मनु और श्रधा के बाद और मानव,मानवी इस हिंदुस्तान की धरा पर आये,और उसके पश्चात बनी वर्णव्यवस्था,ब्राहमण,क्षत्रिय,वैश्य,शुद्र,सब के अलग,अलग कर्तव्य निर्धारित कर दिए गये,ब्राह्मणों का कार्य पठन, पाठन क्षत्रियों का काम सुरक्षा,वैश्य का कार्य धनोउपार्जन,और शूद्रों का कार्य सबकी सेवा करना, यह बात पृथक है,जब देश की सुरक्षा का सवाल आया तो, सबसे पहले देश और शास्त्रों की रक्षा करने के लिए,ब्राह्मणों ने क्षत्रियों के प्रकार शस्त्र भी उठा लिए थे, और तत्कालीन राजाओं ने ब्रहामणों के लिए एक शाही दिन इनके लिए निर्धारित कर दिया था, कुम्भ पर होने वाला शाही स्नान इसी बात का प्रतीक है, ब्राहमण,क्षत्रियों,वैश्यों के साथ तो सम भाव रहा,परन्तु शुद्रो के साथ उपेक्षित व्यवहार क्यों था, अगर शुद्रो वेद सुन लें तो उनके कानो में पिघला हुआ सीसा डालने का कानून था,उनसे छूना वर्जित था, बहुत से रुर्डीवादी तो आज कल भी यह छुआ छूत की परम्परा निबाह रहें हैं, जब कालांतर में सब मनु और श्रधा की संतान बने तो आपस में इस प्रकार की मानसिकता क्यों थी,एक ही प्रकार की संतान में वैर क्यों था ?क्या माँ बाप अपनी संतानों को सिखाते हैं आपस में वैर भाव रखो? कहा जाता है,"आत्मा अंश जीव अविनाशी ",और आत्मा को परमात्मा का अंश कहा गया है,शुद्रो को मंदिर में जाने की आज्ञा नहीं थी,यह कैसा विरोधाभास था, एक ओर तो कहा जाता था,आत्मा परमात्मा का अंश है,क्या शूद्रों की आत्मा परमात्मा का अंश नहीं थी?आत्मा अगर परमात्मा का अंश है, तो परमात्मा का परमात्मा से वैर कैसा ?
शूद्रों को उच्च जाती के लोगों के साथ बैठना, उनके कुओं से पानी लेना सर्वथा वर्जित था,यह किस प्रकार की वर्णव्यवस्था थी ?
यह भी कहा जाता है,ब्राह्मणों की उत्पत्ति,ब्रह्मा जी के मुख से, क्षत्रियों की उत्पत्ति ब्रह्मा जी की भुजाओं से, वैश्यों की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के उदर से,और शूद्रों की उत्पत्ति ब्रह्मा जी की टांगो से हुई थी, फिर एक ही शरीर से उतपन्न लोगों का आपस में वैर? समझ नहीं आता |
अंत मे कहना चाहूँगा, शरीर के अलग,अलग भागो को भी इस प्रकार से विभक्त क्या गया है, सिर को ब्राहमण, भुजाओं को क्षत्रिय,उदर को वैश्य कहा गया और पैरो को शुद्र कहा गया है, तो इस शरीर के भागो का आपस में वैर कैसा ?
क्यों थी वर्णव्यवस्था दूषित?
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