लोगों की अपनी,अपनी रुचि होती है, किसी की पिक्चर देखने की, किसी की भ्रमण की,किसी की लेखन की,किसी की पड़ने की और भी बहुत कुछ, अधिकतर लोग तो अपनी ही रुचि में ही व्यस्त रहते हैं,और उसी में उनको संतोष मिलता है,आखिर रुचि तो होती ही है,अपने लिए ख़ुशी और संतोष के लिए |
यह भी होता है,एक ही प्रकार की रुचि अनेकों लोगों की हो, जैसे ताश खेलना, कोई खेल खेलना, पिकनिक पर जाना,सामूहिक डांस करना,इस प्रकार की रुचिया तो साहूमिक होतीं हैं, इस प्रकार की रूचियों में तो अनेकों लोगों का मनोरंजन होता है, जैसे क्रिकेट के खेल में बाईस खिलाडी होते हैं उसमे २२ लोगों का मनोरंजन होता है , इसी प्रकार होकी,फूटबाल में भी अनेकों खिलाडी होते हैं,और इसमें सामाहुइक मनोरंजन होता है, ताश के खेल में भी दो से लेकर अनेकों खिलाडी हो सकते हैं, इसमें भी सामाहुइक मनोरन्जन होता है, पिकनिक,डांस इत्यादि में तो लोगों की कोई सीमा निर्धारित नहीं होती,इसमें भी सामाहुइक मनोरंजन होता है |
अब आता हूँ,उन रूचियों पर जैसे मैंने आरम्भ किया था,किसी की रुचि पिक्चर में हैं,किसी की भ्रमण की है,लेकिन स्नेह तब बड़ता है, अगर आप की रुचि दूसरे में ना हो, परन्तु फिर भी मन से दूसरे की रुचि में मन से साझीदार बनिए, इसमें,कुछ सीखने को मिलने के साथ आपस में स्नेह बड़ता है |
अगले इंसान को लगता है,वोह मुझे महत्तव दे रहा है,और आपस में प्यार बड़ता है, और भी अनेकों उदाहरण, जो कि अकेले भी किये जा सकते हैं,जैसे बर्ड वाचिंग,किसी अभ्यारण में जाना, अगर इनमे से आप किसी का आप साथ देते हैं,तो उक्त इंसान की ख़ुशी बड जाती है,और आपके उसके साथ आत्मीय सम्बन्ध हो जाते हैं |
1 टिप्पणी:
आजकल 'स्व' की भावना अधिक हो गयी है .. दूसरे के बारे में सोंचने की किसी को फुर्सत ही नहीं .. यही कारण है कि संबंध नहीं टिक पाते !!
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