रविवार, नवंबर 29, 2009

मेरी पत्नी को ऐसा कमर में दर्द हुआ जो मुझे समझ में ही नहीं आया |

हमारी श्रीमती जी को गृहकार्य के अतिरिक्त,घर के रख रखाव में भी दिलचस्पी है, वैसे तो गृहकार्य तो अधिकतर हमारी काम वाली करती है, परन्तु हर रविवार को बिस्तरों की चादरें बदलना तो उनका नियमित कार्य है, मेरे और अपने मोबइलों को चार्जर पर लगाना उनका नित्यक्रम है, और इसके अतिरिक्त इन्वेर्टर की बेटरी में,रविवार को आवश्यकता अनुसार पानी डालना भी उन्होंने अपने जिम्मे ले रखा है |
बात गत रविवार की है,उस दिन वोह इन्वेर्टर की बेटरी में पानी डाल रही थी,और में नहा रहा था,सिर पर अभी साबुन ही लगाया था, तो उनकी आवाज आई सुनो,सुनो मेरे को पुकारने के लिए इसी संबोधन का प्रयोग करती हैं, में कमर पर टावल बांध कर सिर पर लगा साबुन लेकर,बाथरूम  से बहार निकला तो देखा वोह कुर्सी का सहारा लेकर खड़ी हुईं थीं, मेरे पूछने पर उन्होंने कहा इन्वेर्टर की बेटरी में पानी डालने के लिए झुकी तो झुकी की झुकी रह गयीं, और अब ना बैठा जा रहा और ना ही लेटा जा रहा, मुझे तो समझ में ही नहीं आया यह क्या हुआ ?
  रविवार को अपने फॅमिली  डाक्टर से फ़ोन पर पूछा यह क्या हुआ,उन्होंने बताया की मसल खीच गयी है,और कुछ दवाइयां बतायीं जो में उस रविवार को ले आया था|
  दो दिन पहले वोही डाक्टर आये थे,और हमारी श्रीमती जी को सुखी रोटी और उबली सब्जी खाने की हिदयात दे गए थे, और कमर पर बाँधने के लिए एक बेल्ट दे गये थे,अब एक सप्ताह के बाद मेरी श्रीमती जी को आराम है,लेकिन यह चीज मेरे लिए तो बिलकुल अप्रताय्षित थी |
  इसका मुझे लाभ यह हुआ, अधिकतर समय घर में उनके पास रह कर शनिवार और रव्विवार को तीन पोस्ट लिख दीं,और समयावकाश ना होने के कारण ब्लोगवाणी के क्रमांक एक की भी सारी पोस्ट नहीं पड़ पाता था,वोह सब तो पड़ ही लीं,शेष नए ब्लोग्गोरों को भी पड़ लिया,और ब्लोगवाणी के ब्लोगों तथा नए ब्लोग्गोरों को टिप्पणी भी दे दी |
  अ़ब अगले शनिवार या रविवार तक के लिए अलविदा
 

शनिवार, नवंबर 28, 2009

चिकत्सा शास्त्र का नया शोध का विषय (अंग प्रत्यारोपण करवाने वाले का स्वाभाव अंग देने वाले के स्वाभाव की तरह हो जाता है)

यह तो सर्वविदित है की मानव स्वाभाव सामाजिक परिवेश,उसका लालन पालन,बदलती परिस्थितिओं के अनुसार होता है, यह भी कहा जाता है कि उसकी जन्म के समय की गृह स्थितिओं के कारण उसका स्वाभाव निर्मित होता है, यह गृह स्थिति की बात तो उन लोगों के लिए कह रहा हूँ,जो इसको मानते हैं, में अपनी ओर से इस विषय पर कुछ नहीं कह रहा हूँ, अभी में इस विषय का प्रमाण देने में अक्षम हूँ,क्योंकि मेरे स्मृति पटल से इस विषय का प्रमाण उतर गया है, लेकिन बहुधा सोचता हूँ,कि प्रमणित और स्थापित प्रमाण को भी लोग नकार देते हैं,तो प्रमाण देने की अधिक आवश्यकता भी नहीं हैं, अब आता हूँ मूल विषय पर प्राय: देखा गया है, कि अंग प्रत्यारोपित करवाने वाले का स्वाभाव में इस प्रकार से परिवर्तन हो जाता है उसका स्वाभाव , अंग प्रत्यारोपित का स्वाभाव अंग देने वाले जैसा हो जाता है, मान लीजिये अगर अंग प्रत्यारोपित करवाने वाला शांत प्रक्रति को हो,और अंग देने वाले का स्वाभाव झग्रालू हो तो,अंग प्रत्यारोपित करवाने वाले का स्वाभाव भी झग्रालू हो जाता है |
  यह तो सर्वविदित है कि मानव के अंगों में नाड़ियों का जाल है,और इन नाड़ियों का संबध मस्तिष्क से है, यह नाड़ीयाँ ही बहारी संदेशो को मस्तिष्क को पहुंचती हैं,और इन्ही नाड़ियों के द्वारा मस्तिष्क अपना सन्देश अंगों को देता है,और हमारे अंगों का एछीक या अनेछिक रिफ्लेक्स इन्ही संदेशों के अनुसार होता है, और बिलकुल जाहिर सी बात है,इन नाड़ियों का जाल मानव अंगों में भी होता है, कहने का अर्थ है, इन नाड़ियों के कारण से मस्तिष्क के अतिरिक्त यह अंग भी मानव स्वाभाव को संचित कर लेते हैं,जिसको चिकत्सा विज्ञान के अनुसार सेल्लुलोर कहतें हैं, इसी कारण जब कोई किसी का अंग प्रत्यारोपित करवाता है,तो अंग देने वाले की  अंगों की नाडिया अंग प्रत्यारोपित करवाने वाले के साथ जुड़ जाती है,चूंकि अंग दान देने वाले के अंग में उसका स्वाभाव संचित होता है,इस कारण अंग प्रत्यारोपित करवाने वाले का स्वाभाव अंग दान देने वाले जैसा हो जाता है,अभी तक यह पूर्ण प्रमाणित नहीं हुआ है, परन्तु इस विषय पर शोध चल रहा है,और मैंने यह भी पड़ा था स्वाभाव मस्तिष्क में जुड़ने वाली दो नाड़ियों के गेप के अनुरूप होता है,अभी बस इतना ही जब यह शोध प्रमाणित हो जायेगा तो हो सकता है,मुझे इसका साक्ष्य उपलब्ध हो जायेगा,और उस साक्ष्य के बारे में भी बता दूंगा |
        चिकत्सा शास्त्र का नया शोध

मिर्गी के दोरे पर चंद्रमा की कलाओं प्रभाव होता है(नया शोध)

यह तो सर्वविदित है कि, पूर्ण चंद्रमा के कारण अर्थार्त पूर्णमासी को बहुत बार सागर की लहरों में एक उफान आता है,जिसके कारण सागर की लहरें कई,कई मीटर ऊपर की ओर जातीं हैं, जिसको ज्वार कहतें हैं, इसका वैज्ञानिक कारण है कि इस समय चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति बड़ जाती है,और यह गुरुत्वाकर्षण शक्ति समुन्दर की लहरों को अपनी और आकर्षित करती है,और इसी कारण सागर में ज्वार आता है, और एक विषय यह भी रहा है कि चंद्रमा की कलाओं का प्रभाव मानसिक रोगियों के उन्माद पर पड़ता है |
  यूनिवरसिटी कालेज ऑफ़ लन्दन ने एक हाल ही में एक शोध किया है कि मिर्गी के दोरे अँधेरी रात में सर्वाधिक होता है, इसका आकलन मेलोटिन हारमोन का शरीर में स्राव होने के कारण किया जा रहा है, इस मिलोटिन हारमोन का स्राव अँधेरी रात में सरवाअधिक होता है, इसके लिए मिर्गी के दोरे के रोगियों पर चंद्रमा की किरणों का प्रभाव चोबीस घंटे के लिए देखा गया,और इस मनोवेगाय्निक परिक्षण में यह देखा गया कि, अँधेरी रात में मिर्गी के दोरे सबसे अधिक होतें हैं |
   मेरे एक मानसिक चिकत्सक मित्र मिर्गी के रोगियों और उनके परिजनों को यह सलाह देते थे, कि मिर्गी के रोगी वेल्डिंग के प्रकाश की ओर ना देखें, टुयूब के प्रकाश की ओर सीधी दृष्टि से ना देखें, या और किसी भी प्रकार के तेज कृत्रिम प्रकाश की और सीधी दृष्टि से ना देखें,उस समय तो मुझे यह समझ में नहीं आता था, ऐसा यह मानसिक चिकत्सक क्यों कहते थे, और ना ही मैंने उनसे इस विषय पर पूछा कभी, संभवत: उक्त कारण होगा कि मिर्गी के दोरे वाले रोगी पर इसका प्रभाव पड़ता होगा |
      यह आजकल का नया मनोवेगाय्निक शोध है |

         

रविवार, नवंबर 22, 2009

मुझे राय चाहिए?

में यह छोटा सा लेख,बिना किसी उदहारण,बिना किसी घटना का वर्णन,ना कोई पड़ी,सुनी और देखी घटना के वर्णन के यह लेख लिख रहा हूँ,इसको आप लोग माईकरो ब्लॉग्गिंग,और  ब्लॉग्गिंग के बीच की ब्लॉग्गिंग कह सकतें हैं, बहुत से लोग, या कुछ लोग किसी एसी बात  जिसमें ना किसी की बुराई हो, ना किसी पर कोई कटाक्ष हो ना,किसी पर व्यंग्य हो, और ना ही अपनी बात मनवाने का आग्रह हो,उसको सुन के पड़ के,व्यंग क्यों करते हैं,  और ना ही मानना चाहते हैं, और हो सकता है देख कर  भी कह दें,दृष्टि भ्रम हो ?
    ऐसे लोगों का क्या कह सकते हैं,सजग,सजग भी इसलिए लिख रहा हूँ,कोई पाठक बुरा ना माने,बस मुझे प्रकार के लोगों को क्या कह सकतें है,इस बारे में आपकी राय चाहिए 

धन्यवाद्

शनिवार, नवंबर 21, 2009

मांगे मनवाने के लिए यह कैसा आक्रोश है?

याद आता है,सन १९८४ जब हमारी पुर्ब प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी को उनके ही गार्डो ने उनको गोलियों से भून डाला, और उनकी  इतालवी बहु सोनिया गाँधी उनका लहूलुहान पार्थिव शरीर लेकर आल इंडिया मेडिकल इंस्टिट्यूट लेकर पहुंची, उनके इस संसार में ना रहने का समाचार जंगल की आग की तरह सारे देश में फेल गया, और उस समय कैसा भिवत्स दृश्य पैदा हुआ, एक संप्रदाय विशेष की सम्पति की लूट,आगजनी, और इसी विशेष संप्रदाय के लोगों को आग के भेट करना,केवल इसलिए कि जिन लोगों ने श्रीमती इन्द्रा गाँधी ने गोलियों से भूना यह संप्रदाय उस सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखता था, जिनकी संपत्ति लूटी गयी, जिनको आग लगा के स्वाहा किया गया था, इस देश की भोली जनता तो आसामाजिक तत्वों के कारण क्यों बहक जाती है,संभवत शिक्षा के अवाभ्व के कारण और होता है नुक्सान जान माल का|
  यह तो बात थी सन १९८४ की जब श्रीमती इन्द्रा गाँधी की हत्या हुई थी, वोह तो एक लहर थी जिसमें यह सब हुआ था, परन्तु  अब भी जो मांगे मनवाने के लिए आन्दोलन होता है,उसमें सरकारी संपत्ति जैसे रेलगाड़ी,सरकारी बसों इत्यादि को आग लगायी जाती है, लोग भूल जातें हैं यह उन्ही के द्वारा उत्पन्न की हुई सम्पति है, और तो और निजी संपत्ति  आने जाने वाले वाहनों को आग लगाई जाती है, लोग क्यों भूल जाते हैं,उनको चलाने वाले या उसमे बैठे हुए लोग उन्ही की तरह है, क्यों अपने ही लोगों और उनकी ही जैसी संपत्ति का सर्वनाश होता है |
  इससे कम हानि वाला रास्ता है, सडको पर, रैल पथ पर जाम लगाना,परन्तु इस प्रक्रिया के कारण हो सकता है, किसी को कहीं आवश्यकता के अनुसार कहीं जाना हो सकता है,कोई गंभीर बिमारी से ग्रसित हो और अपने तीमारदारों के साथ चिकत्सालय जा रहा हो, और इस जाम के कारण देर होने से इस संसार को  अंतिम विदा कह सकता है, किसी को नौकरी के कारण साक्षात्कार के लिए जाना हो,और समय पर ना पहुचने के कारण अपनी कमाई का साधन खो सकता है, हाँ यह तो हो सकता है,उसको आजीविका कमाने के लिए दूसरा अवसर मिल जाए पर जीविका के लिए बिलम्ब तो होता ही  है |
   हाल ही में गन्ना उत्पादकों किसानो ने, महाराष्ट्र के समर्थन मूल्य ना मिलने के कारण कोई सरकारी और निजी संपत्ति का कोई नुकसान नहीं  किया था, हाँ जाम तो लगाया था, परन्तु हानि तो अपनी ही की थी,अपने स्वयं के पैदा हुए गन्ने को,और आखिर कार सरकार को विवश हो कर उनकी मांग को मानना पड़ा, अगर आन्दोलन करना है तो निजी,सरकारी संपत्ति और जान को नुक्सान क्यों |
 विदर्भ के किसानों ने तो सुखा पड़ने के कारण,अपनी फसल को सूखता हुआ देख कर कर्ज के बोझ में डूबने के कारण,अपना ही जीवन गवायाँ, उनको तो किसी और से रहत नहीं मिली,और इसके बाद  उन्होंने तो कोई भी जान,माल की हानि नहीं की बस हताश हो कर अपना जीवन ही समाप्त किया,में यह नहीं कहता कि अपना अमूल्य जीवन खो दो,बस यह बताना चाह रहा हूँ, यह बिचारे जीवन से निराश हो चुके थे,इस पर भी इन किसानों ने जान माल को हानि नहीं पहुचाई |
  में यह सन्देश उन लोगों तक पहुचना चाहता हूँ,जो लोग अशिक्षित हैं,और आसामाजिक तत्वों के बरगलाने में आ जाते हैं,और जान माल की हानि करते हैं, लिख तो रहा हूँ, चाँद पड़े लिखे लोग और उसमें भी वोह लोग जिनको कोम्पुटर के बारे में मालूम है,और उसमें भी अधिकतर ब्लॉगर लोग ही पड़ पाएंगे,परन्तु यह प्रचार में देश के सुदूर कोने,कोने गाँव,गाँव तक करना चाहता हूँ, भाषा का भी बंधन सामने आता है,में तो केवल हिंदी और अंग्रेजी जानता हूँ,चाहता हूँ यह चीज तोड़ दे भाषाई बन्धनों को |
   अपने देश के बारे में सजग हो |

सोमवार, नवंबर 16, 2009

कैसे सुधरेंगी हमारे देश की अवय्व्स्थाएं?

हमारे देश में अगले वर्ष यानी २००१० में कोम्मोन वेल्थ खेल होने वाले हैं,देश विदेश से अनेकों खिलाडी इस अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में भाग लेंगे, बेशक वोह पॉँच सितारे वाले होटलों में रहेंगे,ऐसे समय पर मेरे मानस पटल पर अनेकों अव्यवस्थाओं से सम्बंधित प्रश्न उठते हैं, यह तो जाहिर है,विदेशी खिलाडी केवल अपने होटल और कमरे तक सीमीत नहीं रहेंगे, पहला प्रश्न तो उठता है,वोह लोग दिल्ली और आसपास के शेत्र को देखना चाहेंगे, सबसे पहले तो मन में  आता है, अव्यवस्थित बिजली व्यवस्था, कभी भी कहीं भी बिना रोटीन के दिल्ली और दिल्ली के आसपास के शेत्र में बिजली  चले जाना, यह बात मेरे दिमाग में इसलिए आई, मेरे पास पी.सी हैं,और देश विदेश के में काम के सिलसिले में जाने के कारण मेरे बहुत से विदेशी मित्र बन गये, और उन लोगों से यदा कदा में चेट्टिंग करता हूँ, और अचानक बिजली बिना रोटीन के अक्सर चली जाती है, और उन लोगों को मेरा सफाई देना कठिन हो जाता हैं, और यह भी होता है,इन्वेर्टर पूरी तरह से चार्ज नहीं होता,और में विवश हो कर इन्वेर्टर से भी पी.सी नहीं चला पाता |
  दूसरा सवाल जो मस्तिष्क में,उभरता हैं,रात में अचानक कुत्ते भोकने लगते हैं,और नींद में खलल पड़ता है,हो सकता है विदेशी लोगों को कहीं ऐसे स्थान पर रात को रूकना पड़े तो उन पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? और डंपिंग स्थान ना होने पर स्थान,स्थान पर पड़ी हुई गंदगी उन पर क्या प्रभाव डालेगी ?, दिन  में सडको पर घुमते हुए पशु देख कर वोह लोग क्या सोचेंगे?
  चलो कोई विदेशी दिल्ली से बहार नहीं निकला हो ,परन्तु सडको पर तो अकारण गाड़ियों के होर्न बजाना,और ऐसी चीज जो विकसित देशों में परचलित नहीं है, पीछे से दीपपर देना, इसका उन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?, ऐसा तो संभव नहीं हैं,हर समय वोह उनके लिए बनाये गये रास्तों पर चलें |
  और भी बहुत से विचार मेरे मानस पटल पर उभरते हैं,जैसे कोई विरोध करने का तरीका,अगर किसी समूह विशेष की मांगे ना मानी जाये,या कोई हादसा हो जाये तो विरोध ऐसा निजी और सार्वजानिक बाहन को आग के हवाले करना,मुझे तो यह जान,माल पर हमला करना तो बिलकुल नहीं समझ में आता,तो उन विदेशी लोगों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा |
   अभी तो स्लुमडोग मिल्लिओनर वोह पिक्चर बनाई हैं,जिसमे हिंदुस्तान की गरीबी दिखाई गयी थी,और उसको बहुत सारे ओस्कर मिल गये थे, अभी तो पिकचर में हमारे देश की गरीबी दिखाई थी, अगर किसी ने ऊपर लिखी हुई बातों पर फिल्म बना दी तो विश्व में,क्या प्रभाव पड़ेगा?, किसी नेउयोर्क  दो लोगों ने जो कि दिल्ली में रह रहे हैं,  ने एक साईट बनाया हैं, www.ourdelhistruggle.com और उन लोगों ने बहुत सी दिल्ली की अव्यवस्थाएं लिखी है,सोचिये इस प्रकार की अव्यवस्थाओं का विदेशिओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?

स्नेह बडाने के लिए दूसरे की रुचि में भी योगदान दीजिये |

लोगों की अपनी,अपनी रुचि होती है, किसी की पिक्चर देखने की, किसी की भ्रमण की,किसी की लेखन की,किसी की पड़ने की और भी बहुत कुछ, अधिकतर लोग तो अपनी ही रुचि में ही व्यस्त रहते हैं,और उसी में उनको संतोष मिलता है,आखिर रुचि तो होती ही है,अपने लिए ख़ुशी और संतोष के लिए |
  यह भी होता है,एक ही प्रकार की रुचि अनेकों लोगों की हो, जैसे ताश खेलना, कोई खेल खेलना, पिकनिक पर जाना,सामूहिक डांस करना,इस प्रकार की रुचिया तो साहूमिक होतीं हैं, इस प्रकार की रूचियों में तो अनेकों लोगों का मनोरंजन होता है, जैसे क्रिकेट के खेल में बाईस खिलाडी होते हैं उसमे २२ लोगों का मनोरंजन होता है , इसी प्रकार होकी,फूटबाल में भी अनेकों खिलाडी होते हैं,और इसमें सामाहुइक मनोरंजन होता है,  ताश के खेल में भी दो से लेकर अनेकों खिलाडी हो सकते हैं, इसमें भी सामाहुइक मनोरन्जन होता है, पिकनिक,डांस इत्यादि में तो लोगों की कोई सीमा निर्धारित नहीं होती,इसमें भी सामाहुइक मनोरंजन होता है |
  अब आता हूँ,उन रूचियों पर जैसे मैंने आरम्भ किया था,किसी की रुचि पिक्चर में हैं,किसी की भ्रमण की है,लेकिन स्नेह तब बड़ता है, अगर आप की रुचि दूसरे में ना हो, परन्तु फिर भी  मन से दूसरे की रुचि में मन से साझीदार  बनिए, इसमें,कुछ सीखने को मिलने के साथ आपस में स्नेह बड़ता है |
  अगले इंसान को लगता है,वोह मुझे महत्तव दे रहा है,और आपस में प्यार बड़ता है, और भी अनेकों उदाहरण, जो कि अकेले भी किये जा सकते हैं,जैसे बर्ड वाचिंग,किसी अभ्यारण में जाना, अगर इनमे से  आप किसी का आप साथ देते हैं,तो उक्त इंसान की ख़ुशी बड जाती है,और आपके उसके साथ आत्मीय सम्बन्ध हो जाते हैं |

गुरुवार, नवंबर 12, 2009

मुझे तो लगने लगा है, ऐसे लेख लिखूं जिसमें कोई भी विवाद ही ना हो |

अब उम्र के इस पड़ाव में आ कर सोचने लगा हूँ,ऐसे लेख लिखूं जिसमें कोई विवाद ना हो, बहुत सारी पुस्तक लगभग हर विषय पर पड़ी, बहुत स्थानों पर भ्रमण किया,देश विदेश में,अनेकों स्थानों की सभ्यता देखी, अनेकों स्थानों की संस्कृति देखी,अपने अनुभव बाटने का प्रयास किया, और आज पंडित डी.के शर्मा जी का लेख पड़ा "विज्ञान किन चीजों को निषेध करता है ?" और उसपर कुछ तार्किक और कुछ तर्कहीन टिप्पणी देखी, तर्कहीन टिप्पणी जिसमें पंडित जी पर बिना तर्क के सीधा,सीधा आक्षेप था, लेकिन कोई प्रमाण नहीं था,और मुझे ताऊ रामपुरिया की टिप्पणी ने प्रभावित किया,जिसमें उन्होंने गलेलियो के द्वारा पृथ्वी के बारे में बतया था,और तत्कालीन समाज मानने गलेलियो की बात मानने को तयार ही नहीं था,और मेरे मस्तिष्क में एक साथ तीन विचार उभरे,पहला एडिसन के बारे में था,जिसने प्रकाश करने के लिए बल्ब का आविष्कार किया था, उस समय एडिसन ने कहा कि में,धातु के तारों में बिजली प्रबाहित करके प्रकाश उत्पन करूंगा, तत्कालीन लोगों को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ,और एडिसन ने धातु के तारों में बिजली प्रबाहित करके प्रकाश उत्पन्न किया, वोह बल्ब आधे घंटे तक जला और फिर उसके तार जल गये, और एडिसन उस समय हो गया हंसी का पात्र, बस उसने उस बल्ब से हवा निकाल कर उसमें वेकउम नहीं किया था, और वोह धातु के तार ओक्सीडाइस हो कर जल गये थे, फिर एडिसन ने उस बल्ब में से हवा निकाल कर उस बल्ब में वेकउम बनाया, तब हुआ बल्ब का अविष्कार जो निरंतर जलता रहता है |
दूसरा विचार जो मेरे मन में आया वोह था,इटली के महान दार्शनिक सुकरात का,वोह यही तो कहता था,किसी चीज को अपनाने से पहले अपने मन में तर्क करो,यह बात ठीक है कि नहीं,तत्कालीन लोगों को उसका यह तर्क पसन्द नहीं आया,और उसको उस समय जहर का प्याला पी कर अपना जीवन गंवाना पड़ा |
 तीसरा विचार आया महान वेग्य्यानिक जगदीश चन्द्र बोस का,जिनोहोने उस समय के अंग्रेजो को कहा,में विना तार के एक कमरे से दूसरे कमरे में घंटी बजा दूंगा,उस समय के अंग्रेजो ने इस बात को माना नहीं,और उन्होंने ने एक कमरे से दूसरे कमरे में घंटी बजा कर आश्चर्य चकित कर दिया,और इस प्रकार हो गया बेतार के तार यानि आज के टेलीग्राफ का आविष्कार जिस पर अब मोर्स कोड के द्वारा सन्देश पहुंचाए जाते हैं |
  मैंने अपने लेख सीमित " विज्ञान कैसे जानेगा असीमित विद्याएँ ",अपनी विद्याओं के वोह उदहारण दिए थे, जिन विद्याओं के कारण विदेशों में हमारी साख थी, कुछ ऋषि मुनिओं के द्वारा दी गयी अमूल्य धरोहर के बारे में लिखा था, जो हमारे यहाँ विवादित हैं, परन्तु जिसका लाभ विदेशियों ने उठाया है, कुछ,कुछ याद आता है,हमरे यहाँ जो वेद निरर्थक पड़े हुए थे,उसको जर्मन  ले गये थे,और उन लोंगों ने अपने घर में तकनिकी विकास किया, अनेकों प्रकार की विद्याएँ जैसे आयुर्वेद,योग और भी विद्याएँ कहाँ उस सीमा तक रह गये हैं,जैसे पहले थीं?
 एक लेख मैंने और लिखा था "बिना जाने और बिना खोजे लोग तर्क क्यों देते हैं", और  उसमें उदहारण जो दिए थे,जो कि विवादित हैं, मेरा मूल विषय तो था बिना जाने और बिना खोज किये लोग तर्क देते हैं,इस पर एक दो टिप्पणी तो विषय से सम्बंधित थी,वाकी उदहारण को लेकर तर्क था, (लगता है मेरे लिए तीन नंबर ही उपूक्त है,मन में तो आ रहा है,कहूँ अंक ज्योतिष के अनुसार) वैसे तो मुझे अंक ज्योतिष का ज्ञान नहीं है,इसलिए इस बात को यही रोकता हूँ |
  इसी बात से मुझे मनोविज्ञान से सम्बंधित लेख इम्पल्सिव व्यव्हार रिश्ते बिगाड़ सकता है, मैंने तो लिखा था इम्पल्सिव व्यवहार के बारे में,लेकिन एक टिप्पणी मुझे मूल विषय से हट कर मिली कि (यह सब पड़ कर लगता है आप झक्की हैं") में कोई भी टिप्पणी नहीं हटाता,मैंने तो टिप्पणी के लिए शब्द समीक्षा लिखा हुआ है |
  मैंने एक लेख लिखा था,"(संवाद की कला") मैंने उस लेख में वर्णन किया था संबाद चार प्रकार के होते हैं |
मूक संवाद(Body Language),बोल के संवाद(Dialogue Communication),लिखित संवाद(Written Communication),चित्र संबाद(Picture Communication), लेकिन मुझे लगता है,उस लेख को भी बहुत कम लोगों ने पड़ा होगा,मुझे उस पर कोई भी अच्छी,बुरी समीक्षा नहीं मिलीं |
  हमें तो मेनेजमेंट में,बताया गया है कि संवाद ,मूल विषय से सम्बंधित,स्पष्ट,साफ,और सूक्ष्म होना चाहिए(Communication should be to the point,clear,clean and precise.)
 बस अंत में यही कहना चाहता हूँ, किसी भी प्रकार की समीक्षा दें,सब मुझे स्वीकार है,बही मुझे तो बात को मनन करने की दिशा मिलेगी, और लिखा हुआ,बोला हुआ संवाद तो सोच का परतिबिम्ब हैं( Written and Oral Communication is Reflection of Mind).
      अपनी समीक्षा देकर मुझे समृद्ध करें |

          धन्यवाद्

मंगलवार, नवंबर 10, 2009

संवाद की कला |

मेरी जवानी के दिनों में, हमारे देश में हिप्पी लोग आये थे,फटे हुए कपड़े बड़े हुए बाल,बड़ी हुई दाड़ी,और युवा लोगों में,वोही फटे हुए कपड़े पहनना फैशन बन चुका था, अधिकतर हिप्पी लोग चिप्पी लगी हुई फटी हुई नीले रंग की  जीन और नीले रंग का ही टॉप पहनते थे, और जीन भी एसी जिसका रंग अनेकों स्थान से फीका पड़ गया होता था, उन्ही दिनों दिल्ली में इसी प्रकार की जीन पहनना और टॉप पहनना फैशन बन चुका था, और इसी कारण मैंने भी उसी प्रकार की जीन और टॉप मैंने भी पहन लिया,और जा पहुंचा अपने पिता जी के कार्यालय में,पिता जी तो मुझे अच्छे कपड़ो में देखना चाहते थे, और उन्होने मेरी ओर इस प्रकार की दृष्टि डाली जैसे वोह मुझे पहचानते ही ना हों और उन्होंने अपने सहकर्मियों से परिचय भी नहीं करवाया , यह हुआ एक मूक संवाद जिसमें कोई बोल के संवाद हुआ ही नहीं,यह संवाद अनेकों प्रकार की भाव भंगिमा द्वारा हो सकता है, जैसे आँखों,आँखों में इशारा हो सकता है, किसी प्रकार का मुँह बनाना हो सकता है, अनेकों प्रकार के संवाद बिना बोलें हो सकतें हैं,और इस प्रकार के संवाद में  तो केवल सोचा जा  सकता है,किस बात का इशारा हो रहा है, लेकिन स्पष्ट कुछ भी नहीं पता चलता,मूक संवाद की यही कमी है |            
दूसरे प्रकार का संबाद तो आपस में बोल कर होता है, और इस प्रकार के संवाद में इन्सान एक दूसरे के साथ,भाव भंगिमा के साथ बोलता है, लेकिन इसमें भी,एक इंसान का संबाद दूसरा कैसे लेता है, यह उसकी सोच के ऊपर होता है, और बहुत बार ऐसा होता है,बिना जानकारी के इस संवाद पर विराम लग जाता है, में अपने काम के सिलसिले में अमरीका के फिलाफेल्डिया शहर में गया हुआ था, फिल्फेडेलिया की उस फैक्ट्री में,एक महिला थी,उसने मुझे डिनर पर अपने घर बुलाया था, और बातों,बातों में उससे बात हुई कि वोह पुराने धर्मों के बारे में पड़ रही है, उसने मुझसे हमारे हिन्दू धर्म के बारे में,पहला प्रश्न पुछा कि, यह
 ट्रीयूनोन क्या है,मुझे उसकी बात समझ ही नहीं आई,मैंने कहा क्या तो वोह बोली ब्रह्मा,विष्णु,महेश, तब में समझा यह त्रिदेवों के बारें में पूछ रही है,तो मैंने उसे बताया,ब्रह्मा,वीष्णु,महेश पैदा करने वाले,पलने वाले और संघार करने वाले देवता हैं,और यह भी बताया ब्रह्मा जी के साथ विद्या की देवी सरस्वती,विष्णु जी के साथ धन की देवी लक्ष्मी जी,और महेश के साथ शक्ति पारवती हैं, अब उसने पूछा शरीर में स्थित चक्रों के बारें में,वोह भी मैंने उसको बता दिया,मूलाधार चक्र से लेकर सहस्त्रधार चक्र के बारे में,और दोमूही सर्प यानि कि कुण्डलनी  का मूलाधार चक्र से जागृत होकर,सब चक्र को भेदन करते हुए सहस्त्रधार चक्र तक पहुचने के बारे में,और में सोचने लगा इसको हिन्दू धर्म के बारे में,इतना सब कुछ पता है, अगर इसने कोई ऐसा प्रश्न पूछ लिया जो में नहीं जानता तो संवाद पर विराम लग सकता है,इसको तो बहका भी  नहीं सकता, इसी में एक दूसरे की बात ना समझने के कारण मतभेद हो सकते है, इस प्रकार के संबाद में सुनने की भी कला आनी चाहिए, पहले किसी की बात शांत रह कर सुनें और मनन करें फिर बोलें |
  इसके बाद करता हूँ,लिखित संबाद और इस प्रकार के संबाद में लिखे हुए शब्दों को भी इंसान, अपने सोचने के प्रकार या बहुत बार  जिस प्रकार की पड़ने वाले का मस्तिष्क ढला होता है,उसी प्रकार से पाठक उसको ले लेता है, इसका एक दो दिन पहले मैंने एक लेख लिखा था "बिना जाने और बिना खोजे लोग अपना तर्क क्यों दे देते हैं ?" यह लेख विवादस्पद था, और इसमें मुझे मिली,जुली पर्तिक्रिया मिली, मूल विषय से सम्बंधित टिप्पणी के साथ, उसमें दिए हुए उदहारण से सम्भ्न्धित टिप्पणियाँ मिली जो कि मेरे लिए अप्रत्याशित थीं,और जिसने मुझे सोचने पर विवश कर दिया मूल विषय तो यह नहीं था,इस प्रकार की टिप्पणियाँ क्यों?, यह मेरे लिए बिलकुल नया अनुभव था,और मुझे कुछ अच्छा नहीं  लगा और सोचने लगा  मैंने इस प्रकार के उदहारण क्यों दे दिए?
  आखिर में उस संबाद की कला के बारे में लिखता हूँ, जो कि चित्रों के द्वारा पर्दर्शित होती है,किसी के सामने किसी चीज का चित्र रख दो उसका मस्तिष्क,उस चित्र की कल्पना में खो जाता है ,किसी इंसान का चित्र,किसी सीनेरी का चित्र हो सकता है |
  बस आखिर में इस बात से इस विषय को समाप्त करता हूँ, मुख्यत: संवाद चार प्रकार के होतें हैं,मूक संबाद,बोल कर संवाद,लिखित संबाद और चित्र संबाद , और सर्वशक्तिमान से प्रार्थना करता हूँ,मेरे किसी संबाद से किसी का मन ना आहात हो |

सोमवार, नवंबर 09, 2009

सीखने की कोई आयु सीमा नहीं होती |

बहुत दिनों पहले किसी ब्लॉगर भाई का लेख देखा था, जिसमें उन्होंने उम्र दराज लोगों को ब्लॉग्गिंग सिखाने के बारे में,बताया था, अब जो लिखने जा रहा हूँ, उसमें मेरी ही स्वयं की अभीव्यक्ति है, मेरी आयु जीवन के उतरार्ध में पहुँच चुकी है,नयी चीजे जानने की ललक अभी भी बनी हुई है, बाल खिचडी हो चुके हैं,आँखों पर लिखने,पड़ने वाला चश्मा लग चुका है, और लोगों से बात करके,नए नए प्रयोग करके, और पड़ कर के अभी भी हर चीज के जानने की जिज्ञासा रहती है, शाररिक क्षमता पहले से कुछ कम हो चुकी है,लेकिन व्यवस्थित जीवन, और खान पान के द्वारा शरीर को स्वस्थ रखता हूँ, कभी,कभी कोई बीमारी घेर लेती है,परन्तु अभी तक कोई ऐसा रोग नहीं हुआ जो असाध्य हो |
   जीवन के ३५ वर्ष की आयु में कार चलाना सीखने की इच्छा होती थी, और दो सप्ताह में, अकेले कार को सड़क पर चलाने में सक्षम हो गया था,४० वर्ष की आयु में हमारी फैक्ट्री में,कंप्युटर आया था, उस समय तो डॉस ही होता था,और हम लोगों का हमारी आवश्यकता के अनुसार लेन के द्वारा प्रोग्राम दिए जाते थे,अब मन में उत्सुकता थी कि यह प्रोग्राम कैसे बनते हैं, वोह प्रोग्राम उस समय फॉक्स बेस में बनते थे,दिल्ली जा कर फॉक्स बेस की प्रोग्रामईंग की किताब ले आया,और स्वयं ही उस किताब के सहारे काफी हद तक प्रोग्रामिंग सीख ली, अभी प्रोग्रामईंग सीखने की बहुत जिज्ञासा थी,५० वर्ष की अवस्था में, N.I.I.T से कोम्पुटर में डिप्लोमा किया, मेरे कोम्पुटर सीखना प्रारंभ करने के समय टाइपिंग वर्ड स्टार में होती थी,लेकिन अब माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस के सारे प्रोग्राम मुझे  आतें हैं,उसके अतिरिक्त फोटोशोप,फ्लैश एनीमेशन भी कर लेता था,बस इन दोनों अभाय्स करना छोड़ दिया है, जिसके कारण इन दोनों सॉफ्टवेर मेरा हाथ थोड़ा तंग हो गया है,अभाय्स करुँ तो पहले जैसा हो जायगा |
   जीवन सीमित है,और ज्ञान असीमित हर किसी के लेख पड़ कर अपने ज्ञान में वृद्धि करने की अभी भी,जिज्ञासा है,सब लेखों को पड़ने का प्रयत्न करता हूँ, असीमित ज्ञान को इस सीमित ज्ञान में कैसे समेट पाउँगा? इधर,उधर भ्रमण करता रहता हूँ,अनेकों संस्क्रित्यों को देखता हूँ,उनके बारे में जानने का यतन करता हूँ |
         हाँ हो सकता है कोई अवस्था आ जाये जब मस्तिष्क शिथिल हो जाये,परन्तु अभी तो हर चीज की जानकारी पाने की जिज्ञासा है, मुझे यह नहीं समझ नहीं आता लोग क्यों कहतें हैं, बुदापे में क्या सीखेंगे ? बड़ती आयु के साथ लोग कुछ नया सीखने के लिए हतोउत्साहित क्यों होतें हैं?
  मनुष्य जीवन पर्यंत सीखता है,मुझे तो ऐसा लगता है,हाँ अब मेरा झुकाब अध्यातम की और अधिक  हो गया है,बहुत से प्रश्न मन में उठतें हैं,अगर मनुष्य के छह शत्रु, काम,क्रोध,लोभ,मद,मोह अहंकार हैं,तो मनुष्य के मित्र कितने हैं,उनका वग्रीकरण क्या है?
  यम्,नियम,प्रतिहार क्या है,और भी बहुत सारे प्रश्न हैं , हाँ विद्याओं,संस्कृति इत्यादि को जानने की जिज्ञसा अभी  भी है|
   भागवद के सप्ताह को पूरा सुनने का बहुत प्रयत्न किया,बस कुछ अंश ही  सुन पाता हूँ, पूरा कभी नहीं सुन पाया, इसमें बहुत कुछ अध्यात्मिक जिज्ञासा शांत हो जाती है, जीवन से जुडे दृष्टान्त इसमें है, जिसके साथ यह अध्यात्मिक जिज्ञासा शांत करती है, गुरु जी श्री परमहंस जी के अध्यायओं से जीवन से जुड़े हुए अध्यात्मिक प्रश्न की जिज्ञासा पूर्ति तो होती है, परन्तु और भी अध्यात्मिक प्रश्न मन में उठते हैं |
 कुल मिला कर सभी चीजों की जानकारी लेने की ललक है |
  अगला लेख प्रबंधन से सम्बंधित संवाद की कला पर  लिखूंगा |
             जय गुरुदेव |
  

      

शनिवार, नवंबर 07, 2009

बिना जाने और खोज किये बिना लोग अपने तर्क क्यों देते हैं?

 कल मैंने पंडित डी.के शर्मा जी का लेख पड़ा और "विज्ञान भी मानने लगेगा  है,भूत प्रेत आत्मा का सचमुच अस्तित्व है", और संगीता जी का लेख क्या "ज्योतिष को विकासशील नहीं होना चाहिए, और मैंने अपनी टिप्पणियों के द्वारा साक्ष्य के प्रमाण भी दिए,फिर भी लोग बिना जाने और खोज किये बिना अपने तर्क देने लगे,भूत प्रेत का अस्तित्व नहीं होता, मैंने भूत प्रेत को देखा तो नहीं,परन्तु उनका अधिकार लोगों के शरीर पर देखा है,अगर वोह लोग राजस्थान के महेंद्रगढ़ में बाला जी के मंदिर में जा कर देखे तो उनको उत्तर मिल जायेगा कि भूत,प्रेत का अस्तित्व होता है कि नहीं,वहाँ पर बहुत से लोगों के शरीर पर भूत प्रेत का अधिपत्य देखने को स्वयं ही मिल जायेगा,और मैंने  एक टिप्पणी यह भी देखा , भूत प्रेत होते हैं, इसका चेलेंज किया हुआ था,मेरा उत्तर भी उन सज्जन के लिए वोही है, और यही प्रमाण देता है,कि आत्माएं होती हैं,मेरा भी चेलेंज है,वोह सज्जन वहाँ जा कर देखे तो उनको इसका उत्तर स्वयं मिल जायेगा, वहाँ पर आरती के समय इन भूत,प्रेत से ग्रसित लोग इस प्रकार की हरकते ऐसी होती हैं,कोई आम इंसान नहीं कर सकता है, और दूसरा प्रमाण देता हूँ, जो आप लोग घर बैठे ही देख सकतें हैं, गूगल पर सर्च करिए, "Life After Death",और आप लोगों को संभवत: वोह किताब मिल जाये और उस पुस्तक में, उन लोगों के अनुभव हैं,जो चिकत्सक के अनुसार अपना जीवन छोड़ चुके थे,फिर उनके प्राण उनके शरीर में वापिस आ गये थे,और उन लोगों का अनुभव इस पुस्तक में हैं, और साक्षात् आप लोगों को आत्मा का प्रमाण मिल जायेगा,परन्तु जो लोग मेरे ऊपर दिए हुए प्रमाण को जानने का प्र्यतन ही नहीं करते, और अपने नकार्ताम्क तर्क प्रस्तुत करते हैं,वोह लोग इसको कपोल कल्पना ही समझेंगे, विदेश में हर चीज को जानने का प्र्यतन होता है, और जानने के बाद बताया जाता है, इसका एक उदहारण जो इंडिया टीवी के न्यूज़ चैनल पर दिखाया गया था, किसी विदेशी इंसान ने बताया था,हमारी पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्द्रा गाँधी पुर्ब जन्म में,नाना जी साहिब थीं,और इस बात को भी बताया गया था, सामान्यता अस्सी परतिशत आत्मा लिंग नहीं बदलती,जो आत्मा स्त्री में होती हैं,वोह दूसरे जन्म में स्त्री के ही शरीर में जाती है, और ऐसा ही पुरुष के लिए होता है,परन्तु बीस परतिशत में ऐसा होता आत्मा लिंग बदलती है, उस इंसान ने कुछ प्रयोग ही कियें होंगे तभी बताया होगा, ना कि बिना जाने और खोज किये अपना तर्क प्रस्तुत किया होगा |
दूसरा लेख संगीता जी का पड़ा "क्या ज्योतिष को विकासशील नहीं होना चाहिए?" तब मेरे मस्तिष्क में एक विचार आया,बहुत से लोग ज्योतिष को तुक्का कह देते हैं,वोह मेरे लेख "भिर्गु सहिंता के बारे में मेरी अल्प जानकारी" पर पंडित डी.के शर्मा जी की टिप्पणी देखे और उनको समझ में आ जायेगा की ज्योतिष क्या है, मेरे इस लेख को पड़ा ही बहुत कम लोगों ने,और बिना जाने,बिना होशियारपुर जाये हुए जहाँ पर यह भृगु सहिंता है,कह देते हैं ज्योतिष तुक्का है, या ज्योतिष कोई विद्या नहीं हैं,वहाँ पर यहाँ तक बता दिया जाता है,अमुक व्यक्ति,अमुक दिन अपने बारे में जानकारी लेने आएगा, और मैंने एक लेख भी लिखा था,"सीमित विज्ञान कैसे खोजेगा असीमित विद्यायें", वोह भी बहुत कम लोगों ने पड़ा होगा,में अपने लेख का प्रचार नहीं कर रहा हूँ,बस यह बताने की चेष्टा कर रहा हूँ, पहले जानने की चेष्टा तो करो,फिर अपना तर्क दो,में स्वयं इंजनियर हूँ,और में समझता हूँ,विज्ञान भी हर चीज को जानने की चेष्टा करता है,प्रयोग करता है,और प्रमाणित करता है,विज्ञान निरे तर्क पर नहीं आधारित है |
     कुछ दिन पहले मैंने लवली जी का पराशक्तियों के बारे में,लिखा हुआ लेख पड़ा था,जो कि,बिलकुल यथार्थ पर लिखतीं हैं,और उसमें किसी की टिप्पणी पड़ी थी, उकिसी ने  कहा था में पराशक्तियों का अनुभव करा सकता हूँ कुछ ऐसा ही लिखा था ,और लवली जी कि प्रसंशा करनी पड़ेगी,उन्होंने उस बात को नाकारा नहीं और उन्होंने कहा कभी झारखण्ड आ कर मुझ से मिलिए, यह होती है जानने की चेष्टा, और लवली जी ने किसी मनोविज्ञानिक विषय पर लिखा था,और उन्होंने किसी मानसिक रोगी  मनोचिक्त्सक को दिखाने का वर्णन किया था, उस के बाद वोह रोगी ठीक हो गया था,और वोह  इंसान मनोचिक्त्सक को गालियाँ देने लगा कि मनोचिक्त्सक ने मेरा भगवान् से संपर्क तोड़ दिया, और फिर मैंने एक लेख लिखा था, मानसिक चिकत्सक और मनोचिक्त्सक में अंतर वोह लेख केवल उन्ही ने पड़ा,उन्होंने स्किज्फ्रोनिया के बारे में,एक भी  लिखा और मैंने इम्पल्सिव हो कर एक उनके लेख पर किसी के द्वारा दी हुई टिप्पणी के कारण तीखी टिप्पणी दे दी,और फिर मैंने क्षमा मांगते हुए,इम्पल्सिव व्यव्हार रिश्ते बिगाड़ सकता है,एक लेख लिखा,तब उन्होंने टिप्पणी दी और टिप्पणी में लिखा, अगर आप लिंक दे देते तो पाठको को आसानी हो जाती,यहहोती है  जानने की चेष्टा करना और दूसरों को बताना , मालूम नहीं अब लिंक में क्यों नहीं दे पा रहा,पहले मैंने अपने स्नेह परिवार वाले ब्लॉग में,स्नेह परिवार का ही लिंक दे दिया था,और वोह मेरी हर पोस्ट को दो बार दिखा रहा था,पावला जी ने मुझे इस समस्या से छुटकारा दिलाया था,और इस बार भी वोह मेरे लिंक ना दे पाने की समस्या से ऑनलाइन हल कर  रहे थे, बस वोह समस्या बीच में ही रह गयी है, हो सकता है जब हम ऑनलाइन होंगे तो संभवत: लवली जी आपको लिंक दे पाउँगा |
प्रिय पाठको पहले विषयों को जानने की चेष्टा करो तो सही |
 

शुक्रवार, नवंबर 06, 2009

कला का सृजन मनोविज्ञान से ही हुआ है |

कला अपनी आवाज जनसाधारण की ओर पहूचाने का एक साधन है, चाहे  इसका माध्यम संगीत,लेखन नाटक और भी अनेकों प्रकार की कला हो सकतीं हैं,लेकिन सबसे पहले कला का सृजन हुआ था, काव्य के रूप में जब किलोल करते हुए क्रोंच पक्षी के जोड़े में सेएक  को शिकारी ने मार डाला और कवी के मुख से अनायास ही निकल पड़ा "वियोगी होगा पहला कवी आह से उपजा होगा गान", कला एक प्रकार की कुंठा है, जिसको कह सकते हैं,सकारात्मक कम्पल्सिव पर्सनालिटी डिसआर्डर,कलाकार व्याकुल हो जाता है,अपनी बात जनसाधारण के पास हर संभव तरीके से पहूचाने के लिए और उसकी पर्तिक्रिया जानने के लिए, इसका उदहारण है,अपनी काव्य रचना को लोगों के पास पहूचाने के लिए,चाहे सुनने वाला सुनना चाहें या नहीं चाहे परन्तु कवी को तो एक प्रकार का ऐसा हिस्टरिया होता है,जो कवी के नियंत्रण में होता है, इसी प्रकार लेखक अपनी बात जनसाधारण के पास पहुँचाने के लेख लिखता है, लेखक को तो लिखने का नशा होता है, बस उसे तो लिखना ही लिखना है, कलाकार असल में बहुत संवेदन शील होता है,और उसकी भावना उजागर होती है कला के रूप में, लिखना तो निरंतर जारी रहता है, या कोई चित्रकार है, तो वोह अपनी कूंची और रंगों के द्वारा केनवस पर चित्र उकेरता हैं, जब तक वोह काम पूरा नहीं कर लेता उसको शांति नहीं मिलती, इसी में कलाकार को सुखद अनुभूति होती है, यह एक प्रकार से कलाकर के वश में रहने वाली मिर्गी नहीं तो और क्या है?
   कलाकार  अपनी अनभूति को कला के रूप में पेश करता है, यह अनुभूति सुखद भी हो सकती है और दुखद भी, कलाकार अपनी अनुभूति को हर स्थिति में उजागर करना चाहता है,यह कलाकार जिस को अपने नियंत्रण में रखता है,एक प्रकार का कम्पल्सिव पेर्सनिलिटी डिसआर्डर नहीं तो और क्या है?
  विंसेट वेन गोग चित्रकार के बारे में लिखा हुआ है,वोह अपनी चित्रकला में इतना खो जाता था, उसको ना भूख की चिंता होती ना और किसी और चीज की, अगर मन खुश हैं तो सुखद गीतों का सृजन होता है,और दुखी हैं तो दुखद गीतों का,अगर किसी को वाद्य यंत्रो में रुचि होती है,तो अपनी अनुभूति के  अनुसार वोह इंसान लगातार अपने वाद्य यंत्रों के तार छेड़ने लगता है, अगर मन अत्यधिक दुखी हैं तो लगातार वाद्य यंत्रो का उपयोग करता है,यह एक प्रकार की नियंत्रण में रहने वाली मिर्गी नहीं तो और क्या है |
यही है कलाकार का मनोविज्ञान जो कि उसके नियंत्रण में रहने वाला कम्पल्सिव पर्सोनालिटी डिसआर्डर,या उसका कोंटरलड हिसटीरीय|

    बस चलते,चलते एक बात बता दूं, वैज्ञानिक तो मनोवेगय्निक समस्या के कारण अपना मानसिक संतुलन भी  खो सकते हैं,और भाभा एटोमिक में तो हर छे माह बाद उनकी मानसिकता की परीक्षा होती है,कहीं किसी ने मानसिक संतुलन तो नहीं खोया?