मंगलवार, सितंबर 08, 2009

क्यों नहीं होता प्राचीन परम्परागत विद्याओ की खोज का प्रयास

कुछ दिन पहले मैंने विनय विहारी जी का लेख पड़ा,ऐसे हुआ चमत्कार जिसमे उन्होने अपने कमर उस दर्द के बारे में लिखा था, वोह दर्द जिसके कारण उनका चलना भी दूभर हो रहा था, और वोह डाक्टर के पास जाना चाह रहे थे, वोह दर्द योगदा सत्संग सोसाइटी के एक सनायसी के द्वारा बताये गये आसन से ठीक हो गया।
यहाँ में योगदा सत्संग सोसाइटी के बारे में वर्णन करना चाहूँगा, योगदा सत्संग सोसाइटी के संस्थापक हमारे गुरु जी पूज्य श्री परमहंस योगानंद थे, उनके देहावसान के बाद उनका पार्थिव शरीर पन्द्रह दिन के लिए दर्शनार्थ रखा गया था, और उनके शरीर में कोई विकार नहीं आया था, श्री परमहंस योगानंद के गुरु थे,श्री युक्तेश्वर जी,और उनके गुरु थे श्री लेहरी महाशय, और उनके गुरु थे, श्री बाबा जी, बाबा जी आज भी विद्यमान है, उनको अपना शरीर ना छोड़ने के बारे में कहा गया था , यह पाठक गण श्री परमहंस योगनद द्वारा लिखी हुई पुस्तक में, पड़ सकते हैं।
यही बाबा जी हैं, जिन्होने महाभारत काल के क्रिया योग का ज्ञान दिया है, योगदा सत्संग सोसाइटी की तो विश्व में अनेक शाखाएँ हैं, परन्तु मुख्य शाखा रांची में जिस का पता मैंने अपने लेख मानो या ना मानो मे दे रखा है, और आज कल इस सोसाइटी की प्रमुख श्री,श्री दयामाता जी वोह एक विदेशी महिला हैं, परन्तु वोह योगानंद जी से प्रभावित हो कर के योगदा सत्संग सोसाइटी से जुड़ गयी थी, योगानंद जी ने देश,विदेश में प्रचार किया था।
सयोंग से में योगदा सत्संग सोसाइटी की दिल्ली शाखा गया,और मैंने एक फार्म योगदा सोसाइटी का भर कर के इस सोसाइटी की मुख्य शाखा रांची भेज दिया, और मेरे पास हर माह में,योगदा सत्संग के अध्याय आने लगे और मुझे अनेक बहुमूल्य अध्याय पड़ने को मिले और उन अध्याय में जीवन के सभी पहलु थे, उन्ही अध्याय में उपरोक्त आसन का वर्णन है, यहाँ तक कि आप जीवन भर निरोग कैसे रहे, उन आसनों का वर्णन किस रोग के लिए क्या खाना चाहिए वोह भी लिखा है।
अब आता हूँ अपने वेदों पर, इन वेदों में अमूल्य खजाना छुपा हुआ, आयुर्वेद,ज्योतिषशास्त्र और भी विधाओ का इन वेदों में विस्तार से वर्णन है, पर आम जनता इस के बारे में जानती ही नहीं, क्यों नहीं खोजा जाता है, इस अमूल्य निधि को, भृगु सहिंता जिस का मैंने अपने लेख में भृगु सहिंता के बारे मेरी अल्प जानकारी मुझे पंडित डी. के द्वारा टिप्पणी मे बताया गया था, भृगु सहिंता ऐसी पुस्तक है, जो भविष्य के बारे में तो बताती ही है,परन्तु यहाँ तक जानकारी दे देती है,अमुक व्यक्ति इस पुस्तक से भविष्य जानने कब आयगा इस पुस्तक के रहस्यों के बारे में क्यों नही होती खोज?
पहले दूरदर्शन पर दादीमां के नुस्खे आते थे, जिसमे घर पर उपोयग करने वाली सामग्रीद्वारा रोग निवारण के बारे में बतया जाता था,वोह आज के रियल्टी शो,धारावाहिक के चलते लोप हो गये है,इस विद्या को आगे बढाने का प्रयत्न क्यों नहीं किया जा रहा है? आज विज्ञानं की आधुनिक खोज हो रही है,और जनसाधारण को उसका लाभ तो मिल रहा है, परन्तु अगर हम अपनी उन खोई हुई विद्याओ की खोज करें जो वर्तमान में भी हमारे पास है,तो कितना अच्छा हो? बिहार का नालंदा विश्विद्यालय, देश,विदेश में प्रसिद्ध था,विदेश से विद्याअध्यन के लिए विधार्थी,हमारी इन विद्याओ के कारण ही तो आते थे, और विडम्बना यह है, हमारे विद्यार्थी, विद्याअध्यन के लिए विदेश जाते हैं।

विश्व को शुन्य देने वाला हमारा ही तो देश है, कण की खोज करने वाले कणाद ऋषि ही तो थे।
मेरा कहना यही है, आधुनिक लाभ की वस्तुओं का उपयोग करें,पर अपनी विद्याओ की भी खोज करें|

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