नौकरी के सिलसिले मैं स्थान,स्थान पर गया,गाजिआबाद से अपनी नौकरी के सिलसिले मै कोटा गया,परन्तु मुझे उस फैक्ट्री का वातावरण काम के सिलसिले मै,अच्छा नहीं, लगा,मन ही मन मैं माँ भगवती से प्रार्थना करता था, कि मुझे यहाँ से छुटकारा दिलाओ, वैसे तो प्रतेय्क देवी,देवता को मानता हूँ, परन्तु अपनी माँ के कारण दुर्गा माँ के प्रति अधिक आकर्षण था, अब तो सब देवी,देवताओ को सामान रूप से मानता हूँ, मेरा तो साईं बाबा की तरह मानना है,सबका मालिक एक, गुरद्वारे,मन्दिर,और चर्च सब मैं चला जाता हूँ, मेरी माँ पंजाब मै अमृतसर शहर की है, और पिता जी मथुरा के है, अमृतसर मै स्वर्ण मन्दिर मै,हम लोग अक्सर माथा टेकने जाते थे, इसी प्रकार ब्रिज भूमि मैं कण,कण मै कृषण भगवन का वास है, हम लोग जब मथुरा मैं होते हैं,तो उस ब्रिज्भूमी के पावन मंदिरों का दर्शन करते है, और मेरे गुरु जी स्वामी परमहंस योगानंद जी अनेको वर्षो तक विदेशो मैं प्रचार करते रहे, तो उनके अदधायो मैं इसाई धर्मं के वारे मैं लिखा हुआ है,यह अद्दाहय आप भी मंगा सकते है, और उनको पड़ के आप भी वोह लाभ उठा सकते है जैसा मैंने ऊपर लिखा है,यह प्रयोग आप भी कर सकते है, उनके स्थापित किए हुए योगदा संत्संग सोसाइटी की मुख्य शाखा रांची मैं है,और अनेको शेहरो मैं इसकी शाखाएँ हैं, रांची मैं मुख्य ब्रांच है, जिसका पता है, yogda saatsanga society of India
Pramhans Yogananda Path Ranchi 834 001
झारखण्ड
उनके जब आप अद्धाय आप पड़ेगे तो आप लोगो को बहुत सी मूल्यवान वस्तुए मिलेंगी, और उनके द्वारा रचित पुस्तक है,योगी अमृत्कथा,उसमे आप को बहुत सी ऐसी जानकारी मिल जाएँगी उस पर बहुत से पाठक को विश्वास करना कठिन है।
अब आता हूँ मूल विषय पर माँ दुर्गा की कृपा से चार महीने मैं,मुझे मोदीनगर मै, नौकरी मिल गई, सब कुछ ठीक,ठाक चलता रहा, एक दिन हमारे घर मैं,चोरी हो गयी, और वह चोरी भी इस प्रकार, की गोदरेज की अलमारी का ताला बंद और मेरी पत्नी कुछ आभूषण आलमारी से गायब और कुछ अलमारी से नीचे गिरे हुए, इस असमनजस में में पड़ा हुआ था, तो किसी ने हमे बताया की एक आदमी है, वोह इस चोर का पता बता सकता है, और वोह उस फैक्ट्री जहाँ में काम करता था, पता नहीं वोह अब वोह वहाँ कि नही, बोला हम पड़ के चावल देंगे, जिस पर आप को शक है, उसको खिला देना, उसके मुँह से खून निकलने लगेगा, अब मै कहता हूँ,ऐसे लोगो के पास नहीं जन चाहिए,परन्तु में भ्रमित था, और चोर का पता भी जानना चाहता था, मैंने चावल तो लिए नही,बस और बातो में उसका अनुसरण करने लगा, इससे मेरे ऊपर से माँ कि कृपा उठ गई।
अब में गाजिआबाद आ चुका था, मन्दिर तो जाता ही था, उस मन्दिर में एक भैरो बाबा के पुजारी आते थे, और मन्दिर में वोह लोगो कि समस्यों का निदान करते थे, अभी मेरे पर योगंनद जी के अद्ध्याओ का अच्छा प्रभाव पड़ रहा था।
मैंने प्राणिक हीलिंग सीख ली थी,वोह विद्या वोह थी,जिससे मरीज को बिना छुए,और बिना दवाईयों के इलाज कर सकते हैं,यह आप भी सीख सकते है, और स्वामी जी के अद्ध्याओ के कारण अभी इसी प्रकार का इलाज में योग विद्या के द्वारा करने लगा था।
परन्तु भाग्य में तो कुछ और बदा था, मुझे उन भेरो बाबा के पुजारी का आचरण अच्छा लगा, और उनको गुरु बना लिया,परन्तु अभी गुरु मंत्र नहीं लिया था, एक दिन मैंने अपनी जिगयासा शांत करने के लिए कुछ पुछा,उन्होने अकारण ही मुझे बुरी तरह से फटकार दिया, उसके बाद मुझे चार तक नींद नहीं आयी,और दिमाग पर ऐसा असर पड़ा की अब ना तो योगानंद जी के अध्याओ को पड़ने का मन करता है,और नही अब वोह इलाज कर पाता हूँ, जिससे अनेको लोग लाभ्बंतित हुए है।
इसीलिए कहता हूँ
पानी पिओ छान के।
के गुरु करो जान के ।।
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