शनिवार, सितंबर 12, 2009

क्या यह प्रक्रति का प्रकोप है

हमारे देश भारत में ग्रीष्म,बरसात और शीत ऋतुए मुख्यत: होती हैं, और अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार एक वर्ष में १२ माह होते हैं, और इन माह के अनुसार ऋतुएँ बदलती हैं, में प्रारंभ करता हूँ, ग्रीष्म ऋतू से जो की मई,जून के माह में अपनी चरमावस्था पर होतीं हैं, और इस के पश्चात् जून के अंत में, बरसात का आगमन होता है, और यह बरसात का मौसम जुलाई,अगस्त में अपनी चरम अवस्था पर पहुँच जाता है, वेगयानिक हिसाब से तो ग्रीष्म ऋतू में, नदियों,तालाबो और सागर से वाष्पीकरण ग्रीष्म ऋतू में सबसे अधिक होता है, और जब इस वाष्प की अधिकता हो जाती है,तो यही वाष्प वर्षा का रूप ले लेती है, और फिर इस वर्षा से ग्रीष्म ऋतू से गरम हुई धरती ठंडी पड़ने लगती है, तो होता है, सितम्बर के माह से आगमन होता है,शीत ऋतू जो कि गुलाबी सर्दी के रूप से अग्रसर होती हुई,नवम्बर,दिसम्बर,जनबरी  में यह अपनी पूर्ण जवानी पर होती है,और शारीर को कांपने के लिए विवश कर देती है,फिर शने:, शने: यह सर्दी कम होती जाती है,और फरबरी में,नहीं रहती यह शारीर को कंपने वाली यह शीत ऋतू, और मार्च केप्रारंभ में आ जाती है,सम ऋतू ना अधिक ठण्ड और ना अधिक गर्मी, अप्रैल से फिर गर्मी का आगमन होता है,और इसी प्रकार से प्रक्रति का चक्र चलता रहता है, इसी हिसाब से किसान अपने खेतो में फसल उगाता है, परन्तु इस वर्ष तो यह ग्रीष्म ऋतू ने तो अगस्त का महिना भी ले लिया, अपनी चपेट में, और जून के अंत में वर्षा की ओर टकटकी लगाये हुए किसानो की फसल सूखने लगी, अनेको स्थानों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया, खाद्य पदार्थो के मूल्य आसमान छुने लगे,बेचारे गरीब लोगो से मुँह का निवाला जुटाना कठिन हो गया,बहुत से किसानो की फसले सुख गयी, किसानो ने अपनी खेती के लिए स्थान,स्थान से कर्ज लिए हुए थे, और फसल ना होने के कारण बहुत से किसान कर्ज नहीं चुका पाए,और निराश हो कर के हो गये,अग्रसर आत्महत्या की ओर,ओर छोड़ गये अपने परिवार को रोते,बिलखते लोगो को, इसी महंगाई के कारण प्रारंभ हो गया जमाखोरी,और कालाबाजारी का धंधा, अब सितम्बर के प्रारंभ में,वर्षा आई और इस वर्षा ने अनेको नदियों में इस प्रकार से पानी भर दिया,अनेको स्थान पर बाड़ का कहर टूट पड़ा, अनेको कच्चे मकान टूट गए,इस वर्षा ने ऐसा अन्प्रतियाषित आक्रमण किया जिसके लिए सामान्य व्यक्ति तय्यार नहीं था, मेरे हिसाब से यह प्रक्रति को कोप ही है, पेडो की अनाव्यशक कटाई, अनेको प्रकार के प्रदुषण के कारण विश्व का तापमान बड रहा है, हमारे वायुमंडल के चारो ओर ओजोने की वोह परत जो की सूर्य की हानिकारक किरणों से हमें बचाती है,वोह पतली पड़ती जा रही है, अब कहाँ रहा वोह चालीस दिन का चिल्ला जिसमे अत्यधिक ठण्ड होती थी,और इस सर्दी के कारण कोहरा पड़ता था, जिसमे कुछ ही दूरी कीही  वस्तु दृष्टिगोचर हो पाती  थी, वोह आसमान में वर्षा ऋतू में बनने वाला वोह इन्द्रधनुष भी यदा,कदा ही दिखाई देता है|
  यह प्रक्रति का कहर नहीं तो और क्या है?
प्रकर्ति से छेड़,छाड करने वालों तनिक सोचो उन नन्हे,मुन्ने बच्चो को तुम क्या भविष्य दोगे ,जिनको तुम इस दुनिया में लाये हो?
  प्रक्रति को माँ इसीलिए तो कहते हैं,यह हमारे लिए जीवन का आवाश्य्क संतुलन बनाए रखती है| 
मत करो अपनी प्रक्रति माँ से छेड़ छाड|

3 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

मत करो अपनी प्रक्रति माँ से छेड़ छाड .. बहुत सही कहा आपने !!

Ashish Khandelwal ने कहा…

प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा बुरा ही होता है.. हैपी ब्लॉगिंग

दर्पण साह ने कहा…

Have a happy and prosperous 'Hindi Day' !

:)