अब जो मैं लिख रहा हूँ,वोह भी मेरे साथ घटी सच्ची घटना है, दिमाग परेशां तो था ही,मेरी माँ दुर्गा स्तुति का पाठ किया करती थी, मैंने भी अपनी माँ के देखा,देखी मैंने भी दुर्गा स्तुति का पाठ कर लिया,मुझे नही पता था,आगे किया होगा, फिर मै दिल्ली मै जा कर जमुना किनारे बैठ गया, पाठ करते समय भी और जमुना किनारे बैठे भी माँ भगवती का ध्यान लगा हुआ था,आखिरकार लौट के घर आ गया,और निंद्रा के समय निंद्रा मैं लीन हो गया, अब जो लिखने जा रहा हूँ, उस पर पाठक गन को विश्वास हो या ना हो,पर यह मेरे साथ की घटित घटना है, रात्रि का अंधकार का था, समय क्या होगा ज्ञात नहीं,पर स्वपन मैं देखता हूँ, माँ दुर्गा और माँ काली साथ,साथ खड़ी थी, निंद्रा भंग हो गयी खुली आँखों से उन दोनों को देखा, उन दिनों मेरे पास कोई गुरु तो था नही, बस माँ काली के सवरूप से डर गया, और दूसरे कमरे मैं चला गया, पर वोह दोनों वहाँ नही थी, फिर मै उस कमरे मैं आ गया जा दोनों मातेय खड़ी थी, माँ दुर्गा के मुखमंडल ऐसा भावः क्या चाहिए,डर तो गया ही था मैंने कह दिया मुझे कुछ नहीं चाहिए,आप लोग जाओ और वोह दोनों अन्तरधयान हो गयीं, फिर मेरा विवाह हो गया,एक दिन मेरी पत्नी ने दिल्ली के कालका मन्दिर चलने के लिए कहा, और हम दोनों कालका मन्दिर से निकल रहे थे, तब एक स्त्री दुल्हन के भेष मैं कालका मन्दिर से निकल रही थी।
फिर हमारे घरमै कन्या ने जनम लिया, मेरे मन मैं उसका नाम माँ दुर्गा के नाम पर रखने का था,तो उस के बाद उसके नामकरण वाले दिन उसका नाम माँ दुर्गा के १०८ नाम मै जया पड़ा,और उससे मुझे मिलता है बेटी का स्नेह।
बेटिया ही तो है,जो आगे चल कर माँ,और पत्नी बनती है, माँ बन कर अपने बच्चो पर ममता लुटती है, और करती है,अपने बच्चो का निर्माण और अपना घर आँगन छोड़ कर पति के सुख,दुःख मैं,भागीदार बनती है, राखी को वोह पवित्र त्यौहार,इन्ही बेटियों की ही तो कारण है.
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