बहुत दिनों से मन में विचार आ रहा था,सहानुभूति पर्दर्शित करने से उत्तम है के बारे में लिखूं ,अनुभूति करना,सहानभूति के शब्द तो इंसान के मन को रहत देता है,और अनुभूति तो मानव को अपना बना लेती है, सहानभूति तो कुछ समय के लिए राहत देती है,और अनुभूति तो सदा के लिए अपना बना लेती है, सहानुभूति का तो अर्थ है,किसी बेबस को देखकर चंद शब्द कह देना या उस बेबस की कुछ सहायता कर देना,परन्तु अनुभूति करना का अर्थ है,किसी बेबस की परिसिथित्यों को,उसी बेवस के अनुसार महसूस करना और फिर उसी की सहायता करने के लिए उसी के अनुरूप क्रिया कलाप करना,यह चीज किसी विवश को एक बहुत ही सुखद एहसास कराती है |
अनुभूति करना तो एक कला है,इसमें अपने स्वाभाव,और परिस्थितयों को गौण रख कर किसी दूसरे के व्यक्तिव और परिस्थितयों के अनुसार अपने को ढालना पड़ता है, इसमें सुनने की कला आवश्यक रूप से आनी चाहिए, और उसके साथ,साथ मनन करना भी अति आवश्यक है, वाद विवाद का तो विल्कुल ही स्थान नहीं है, किसी का दुःख,सुख के अनुभव उसके अनुसार करना तो अति कठिन काम है,अगर दूसरे इंसान की बात गलत लगती हो,तो अपना आचरण इस प्रकार से बनाना पड़ता है,की उसका अंत:कारण बदल जाये, यह प्रभाव ऐसा होना चाहिए,आप उसके रोल माडल बन जाएँ |
इसीलिए मनोचिक्त्सक किसी मानसिक रोगी की चिकत्सा के लिए,उसके परिवार के सदस्यों को बुला कर,उनसे बात करके उनको परामर्श देते हैं,कि उक्त रोगी के साथ कैसा व्यव्हार किया जाये |
2 टिप्पणियां:
मुझे लगता है कि अगर हाथ जल जाये तो तुरंत ठंडा पानी डाल देने से राहत मिलती है और फिर धीरे धीरे इलाज से घाव जाता रहता है.
वैसे ही सहानुभूति त्वरित राहत के लिए आवश्यक है और अनुभूति कर मदद करना उपचार स्वरुप है.
दोनों की अपनी महत्ता है.
राहत के आभाव में शायद पीड़ित उपचार हेतु मनोबल ही न जुटा पाये और बात बिगड़ जाये.
--विचार अच्छा किया है आपने.
कुछ होश नहीं रहता, कुछ ध्यान नहीं रहता।
इंसान मोहब्बत में, इंसान नहीं रहता।।
Vikas Gupta
vforvictory09@gmail.com
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