अक्सर दूरदर्शन पर श्रीडी के साईं बाबा के चमत्कार देखता हूँ, और इन दिनों में,मुझे अपने छोटे भाई के साथ हुआ माता रानी का चमत्कार याद आ गया, बहुत पुरानी बात है, मेरे पिता जी की पोस्टिंग उन दिनों मेरठ में थी,और हम दोनों भाई छोटे,छोटे थे,उस समय हम दोनों की आयु क्या होगी ठीक से याद नहीं, मेरा भाई मेरे से २ साल ८ माह छोटा है , में आठवीं कक्षा में और मेरा छोटा भाई छटी कक्षा में पड़ता था |
वोह दिन दिवाली से एक दिन पहले था, और मेरा भाई धागे में बांध के एक कंकर घुमा रहा था (जिसको लंगर बोला जाता है),वोह कंकर का टूकरा उसकी बायीं आँख में लग गया,और उसकी आँख सूज गयी थी, उस समय मेरठ में आँखों के विघयात डाक्टर वीर चन्द्र हुआ करते थे,मेरी माँ और पिता जी उसको उस डाक्टर के पास ले गए, उन आँखों के डाक्टर ने बताया की आंख की पुतली(कोर्निया) में,आंख का मांस फस गया है,इस बच्चे को सीतापुर ले जाओ,और उन्होंने आँख में,आंख की दवाई अतरोपीन डाल दी,जिससे आंख की पुतली फेल जाये और कहा इसको मेरे पास कल सुबह लाना, अगले दिन मेरे भाई को उन्ही डाक्टर के पास ले कर गए, तो आँख में कोई लाभ नहीं हुआ, आंख की पुतली में उसी प्रकार से आंख का मांस फसा हुआ था, अतरोपीन दवाई की बूंदे आंख में डालने के २४ घंटे के बाद पुतली फेल जाती है,और आंख की पुतली में फसी हुई वस्तु निकल जाती है,परन्तु मेरे भाई की आंख की पुतली में से आंख का फसा हुआ मांस नहीं निकला |
उन दिनों मेरे पिता जी के पास उन्ही के महकमे में काम करने वाले,माता के भक्त दुर्गसिंह आया करते थे, वोह मुझे गणित की टूशन भी पडाते थे, वोह उस दिवाली के एक दिन पहले भीसुबह आये थे, और जब उनको मेरे छोटे भाई की आंख के बारे में पता चला तो वोह बोले में रात को आता हूँ,और वोह रात में आये और उन्होंने रात भर माँ दुर्गा का हवन किया,और अगले दिन की सुबह,मेरे माँ,पिता जी,और दुर्गासिंह मेरे भाई को लेकर उन्ही आँखों के डाक्टर वीरचन्द्र के पास लेकर गये, उन डाक्टर सहाब ने मेरे भाई की चोट लगी आंख को चेक किया,और वोह हैरान रह गये कि यह आंख की पुतली में से आंख का मांस निकल गया,यह तो चमत्कार है, मेरे माँ,पिता जी ने कहा यह इन दुर्गासिंह के कारण हुआ है,तब डाक्टर साहब ने कहा इस आदमी को पहले क्यों नहीं बुलाया था, दुर्गासिंह जी ने हवन के समय एक मिटटी की माँ दुर्गा की परतिमा बनाई थी, और पूजा के बाद उस परतिमा को वोह ले जाना भूल गये थे,जब भी हम लोग उस कमरे में जाते थे,तो हम लोगों को एक करंट सा लगता था,तब वोह बोले में इस परतिमा को ले जाना तो भूल गया,और उन्होंने वोह परतिमा अपनी जेब में रख ली, और हम लोगों को करेंट लगना समाप्त हो गया था, यह घटना मुझे याद आ गयी जो की हमारे साथ घटित हो चुकी है, इसलिए लिख दी |
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JAI MATA DI
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