रविवार, अक्तूबर 11, 2009

मेरा सच का सामना |


सच का सामना धारावाहिक तो समाप्त हो चुका है,परन्तु मैं भी सच का सामना करना चाहता हूँ |

१) सच बोलने का साहस ना कर पाना, बहुत वर्षो पहले मैं, गुटके का सेवन करता था, जो कि मेरी पत्नी को पसंद नहीं था, गुटका खाता था,तो मुँह से गुटके की गंध तो आती थी, जिससे पत्नी को पता चल जाता था,की मैंने गुटके का सेवन किया है, पर जब मुझसे वोह कहती थी,गुटका खाया है,तो मैं झगड़े से बचने के कारण कह देता था,नहीं खाया, जब गुटके कारण मेरे दो दांत टूट गये तब से मैंने गुटका छोड़ दिया |
२) वैसे तो मैं किसी भी इन्सान जिसको मेरी सहायता की आवयश्कता है,तो अपने को कष्ट दे कर के उसकी सहायता करने को बड़े मनोयोग से तत्पर रहता हूँ, परन्तु अगर मुझे शारीरिक रूप से किसी की सहायता करने की आवश्यकता पड़े, जैसे किसी का सर दवाना,या पैर दवाना,पर उतने मनोयोग से सहायता नहीं कर पता, उस समय मुझे भी किसी भी चीज का सहारा लेना पड़ता है,जैसे पैर दवाते हुए या सर दवाते हुए दूरदर्शन देख्नना, अगर यह सम्भव नहीं होता है, उस समय शारीरिक रूप से सहयता तो करता हूँ,पर उतने मनोयोग से नहीं |

3 टिप्‍पणियां:

अनूप शुक्ल ने कहा…

बहुत सुन्दर काम किया गुटखा छोड़कर।

Mahfooz Ali ने कहा…

Bahut achcha kiya aapne........

शरद कोकास ने कहा…

यह बताकर ठीक किया कि दो दाँत टूट गये कुछ लोग तो सावधान हो ही जायेंगे ।