कल संगीता जी का एक आलेख पड़ रहा था, अब कम्पूयुटर ही पूरा करेगा मेरा शौक, यह तो सत्य है,अगर कोई शौक पूरा नहीं हो पाता तो इन्सान उसका विकल्प खोज ही लेता है, जैसे संगीता जी ने लिखा था,कि वोह गाड़ी चलाना नहीं सीख पायीं तो उन्होंने उसका विकल्प कम्पूयुटर पर कार चलाने वाला नए,नए खेल इंस्टाल करके अपना गाड़ी चलाने का शौक पूरा करतीं हैं, और कोई भी सीखी हुई चीज व्यर्थ नहीं जाती, उनके इस आलेख से मुझे एक दुर्घटना स्मरण हो आयी जो कि,जो हमारी बेटी के जेठ कि पत्नी की बहिन के साथ घटी थी |
वोह दोनों बहने गंगा तट पर बसी धार्मिक नगरी गंगा तट पर बसी हरिद्वार की हैं,हमारी बेटी के जेठ की पत्नी का प्रेम विवाह हुआ था,उसका पति जो अब इस लोक में ना होकर परलोक का हो गया है, वोह भी हरिद्वार का ही है, और उंनका एक बेटा भी है,उस मासूम बालक की आयु उस समय मात्र तीन वर्ष का था, जब उस पति का एक दुर्घटना में अंत हो गया था, किसी एक्सीडेंट वाली दुर्घटना नहीं, दोनों पति पत्नी की नौकरी दिल्ली में थी, तो इसलिए वोह परिवार के तीनो सदयस्य दिल्ली में ही रहते थे, चूंकि दोनों का घर हरिद्वार में होने के कारण उनका दिल्ली से हरिद्वार आना जाता रहता ही था, बहुत दिनों से उनका आवागमन बस या रेलगाड़ी से दिल्ली से हरिद्वार और हरिद्वार से दिल्ली के लिए होता रहता ही था,परन्तु उन लोगों ने एक नई मारुती गाड़ी खरीद ली,और अब उनका हरिद्वार से दिल्ली और दिल्ली से हरिद्वार उसी गाड़ी से होने लगा,सब कुछ बहुत दिनों से ठीक ठाक चलता रहा, परन्तु एक दिन ऐसा आया,उस परिवार में मेरी बेटी के जेठ की बहिन का पति,इस लोक को छोड़ कर अपनी पत्नी को रोता,बिलखता और उस मासूम बच्चे को छोड़ कर इस दुनिया से चला गया,और उसी समय मेरे मस्तिष्क में यह विचार आया,अगर हमारी बेटी के जेठ की पत्नी को गाड़ी चलाना आती तो उसका सुहाग बच जाता |
उस मनहूस दिन को मेरे मोबाइल की घंटी बजी,और मुझे हमारी बेटी के पति के द्वारा सन्देश दिया गया,गाजियाबाद के यशोदा
अस्पताल में तुरन्त पहुँचिये,सन्देश में यह भी कहा गया,हमारी बेटी के जेठ की पत्नी जिसका नाम सुषमा(काल्पनिक नाम) है,उसके पति का देहांत हो गया है,और आप को मोदीनगर से गाड़ी लानी है,(मोदीनगर दिल्ली से हरिद्वार के रास्ते में पड़ता है, जब में और मेरी पत्नी यशोदा अस्पताल पहुंचे रोती बिलखती सुषमा को कोई,उसके पति के ऑफिस का सहकर्मी उसी गाड़ी में लेकर आ गया |
बाद में मुझे पता चला हरिद्वार से ही सुषमा के पति को उल्टियाँ हो रही थी,और मोदीनगर आ कर वोह बेहोश हो गया, कुयोंकी मोदीनगर में बहुत अच्छा अस्पताल तो है,नहीं वहां के अस्पताल के डाक्टर ने उसकी जाँच परख कर कहा,वक्त बहुत कम है,इनको गाजियाबाद ले जाओ, चूंकि सुषमा को गाड़ी चलाना नहीं आता है,वोह बेचारी बेबस फ़ोन ही करती रही,और जब वोह गाजियाबाद के यशोदा अस्पताल अपने पति को लेकर पहुंची,तब वहाँ के डाक्टरों ने,उसके पति को मृत घोषित कर दिया,तब में में सोचता रहा अगर सुषमा को गाड़ी चलानी आती,तो संभवत: उसके पति की जीवन लीला समाप्त नहीं होती |
अब सुषमा का दूसरा विवाह हो चुका है |
परन्तु यह घटना मुझे भुलाये नहीं बनती |
गाड़ी चलाना परिवार के सब व्यस्क सदस्यों को आनी चाहिए |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें