आज से तीन दिन के बाद, विवाहित नारियों द्वारा मनाया जाने वाला करवा चौथ है, और इस दिन विवाहित नारियां,संध्या काल के समय में जब तक चाँद निकल नहीं आता, निर्जल,और बिना कुछ खाए हुए अपने पति की दीर्घायु की कामना लेकर व्रत रखती हैं, और चाँद को अर्घ्य देकर अपने पति का मुख देख कर ही ,अन्न,जल ग्रहण करतीं हैं, अब तो कुछ पति भी इसमें नारी का साथ देने लगे हैं,परन्तु पुरातन काल में इसका उद्देश तो यह था, पति कमा कर लाता था,और इसी कारण से नारी की जीविका चलती थी, पर अब तो नारी भी पुरुष के साथ कंधे से कन्धा मिला कल चल रही है, और दोनों हीं,अपना घर संसार चलाने में सक्षम हैं,और कभी,कभी तो घर गृहस्ती की सर्वेसवा ही स्त्री ही है, उसके बाद में भी हमारे समाज में नारी को पुरुष की तुलना में,नीचा स्थान ही प्राप्त है | यह तो समझ आता है, यह व्यवस्था पुरातन काल में,पुरष प्रधान समाज में पुरुषों द्वारा ही बनाई गयी थी, पर आज के बदलते समाज में भी वोह ही भेदभाद की दोहरी मानसिकता दिखाई देती है |
लड़के ने कोई गलती की तो उसको कम सजा मिलती है,और किसी लड़की ने भी वोही गलती करी तो उसकी सजा अधिक,अगर लड़के ने सिगरेट या शराब का सेवन किया तो उसको ,इतनी हेय दृष्टि से नहीं देखा जाता,जितना लड़की को अगर लड़की के साथ कोई बलात्कार की घटना हो जाती है,तो बिना मौत के वोह जीवन भर के लिए मर जाती है, और अगर किसी पुरुष के द्वारा यही घटना होती है,तो वोह स्वछंद रहता है,हालाँकि अब तो बलात्कार के विषय में कानून सख्त हो चुका है,पर हमारा समाज दोहरी मानसिकता का पीछा नहीं छोड़ता, आज कल वैसे अपवाद स्वरुप लिव इन रिलेशन ने भी जन्म ले लिया है, परन्तु मेरे विचार से हाईप्रोफाइल समाज में , उन पर तो कोई प्रवहाव नहीं होता,और यह तो उनके लिए शान की बात है, परन्तु पिस्ता तो मध्य वर्गीय परिवार |
इसी प्रकार व्यसन तो निम्न वर्गीय परिवारों में महिलाओं के लिए तो आम बात है, वोह खूब बीड़ी,हुक्के आदि का सेवन करतीं हैं,परन्तु उनको हेय दृष्टि से कोई नहीं देखता,हाँ निम्न वर्गीय परिवारों में पुरषों के द्वारा शराब पी कर के अपनी पत्नियों से गाली गलौज करना और उनको मारना पीटना तो आम बात है, यहाँ भी दोहरे स्त्री,पुरुष के अवगुण देखने के दोहरे मापदंड |
में एक परिवार को जानता हूँ,पति,पत्नी और उनके दो बेटे हैं , पत्नी कपडे पहने तो पति,और बेटों की मर्जी के अनुसार,सब्जी बनाये तो अपने पति की रुचि के अनुसार,मतलब की उसकी रुचि बिलकुल गौण ही हो गयी है, एक दिन वोह पत्नी मेरे साथ अपने लिए साडी खरीदने के लिए गयी,तो साडी तो खरीद तो ली जो मैंने दिलवा दी थी लेकिन वोह बोली की पता नहीं,यह पसंद आएगी की नहीं ?,बाद में उसने कहा कि यह साडी सबको बहुत पसंद आई,उसका इशारा अपने पति और अपने बच्चो कि ओर था, इसी प्रकार एक दिन मैंने उनसे पुछा आप को खाने में क्या पसंद हैं,तो वोह बोली घिया चने की दाल,और उसने वोह घिया चने की दाल अपने घर में शायद ही बनाइ होगी,में उसके लिए अपने घर से घिया चने की दाल उसके लिए बनवा के ले गया, ऐसा तो शायद कम ही होता है, पर मैंने स्त्री पुरष के अलग,अलग मापदंड ऐसे भी देखे हैं|
इसी संनदर्भ में मुझे केरल प्रान्त की याद आ रही है,जो की स्त्री प्रधान परदेश हैं,वहाँ पर स्त्री,पुरष में समंज्यस्ता है, और वहाँ संतान का नाम माँ के नाम से चलता है, और वहाँ पर स्त्री,पुरष को परखने के लिए दोहरे मापदंड नहीं हैं |
1 टिप्पणी:
आपने बिलकुल सही बात कही है. हमारे समाज में स्त्री और पुरुष के लिए दोहरे मापदंड अपनाए जाते है. मेरा अपना मानना है कि इसके लिए पुरुष तो जिम्मेदार है ही ,लेकिन महिलायें भी जिम्मेदार है. वैवाहिक जीवन में पति के ऊपर निर्भरता ,आर्थिक रूप से स्वतंत्र न होना ,ये सब मूल तत्व है. अगर महिलाए अपने व्यक्तिव के ऊपर ध्यान दें ,उसे आगे बढ़ाने में लगे ,तो समाज की तरक्की हो सकती है,क्योंकि आधी आबादी तो उन्ही की है. लेकिन महिलायें अगर पुरुष को कोसने लगे तो उनका कुछ भी भला न होगा,क्यों कि समस्या उनकी है उन्हें ही निदान खोजना होगा. और इसके लिए पुरुष से कोई प्रतिद्वंदिता नहीं बल्कि अपनी आत्मा को निखारना होगा. आपने एक सार्थक मुद्दे पर चर्चा की है इसके लिए मेरी तरफ से शुभकामनाये .
हिन्दीकुंज
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