सोमवार, फ़रवरी 22, 2010

मनोभावों को बहुत सी कला के माध्यम से पर्दर्शित करने का प्रयत्न किया

मेरा हिर्दय मेरे पर मेरे मस्तिष्क से अधिक राज करता है, और हिर्दय में अनेकों उदगार हिलोरे लेते रहेतें हैं, इसी कारण अपनी दिल की भावनाए को अपनी किशोरावस्था में डायरी में अंकित किया करता था, परतिदिन डायरी में अपनी भावनाओ को लिखने में भी,मेरे हिर्दय को आराम नहीं मिलता था, इंसान में गुण दोष तो दोनों ही होतें हैं, और यह गुण दोष में अपनी डायरी में प्राय: लिखा करता था, और इसी कारण से यह डायरी में लोगों की निगाह से बचा कर,छुपा कर गुप्त स्थान पर रखता था, परन्तु मुझे यह डायरी लिखने पर यह प्रतीत होता था कि,में अपने से ही वार्तालाप कर रहा हूँ, अब डायरी तो नहीं लिखता,परन्तु यदा कदा अपने से वार्तालाप करता ही रहता हूँ, हर प्रकार की वार्तालाप अच्छी,बुरी दोनों ही और इस प्रकार अपने आप से वार्तालाप करने में मुझे सुखद अनुभूति होती है |
  इस प्रकार अपने आप से वार्तालाप करने का कारण यह है, बहुत प्रकार की कला के माध्यम से अपने मनोभावों को पर्दर्शित करने का प्रयत्न किया,परन्तु अपने मनोभावों को औरो तक ना पंहुचा सका, अगर एक दो लोगों से बोल कर बात करता तो मेरे मन के भाव अधिक लोगों तक ना पहुंचते, इसी लिए मैंने कला का सहारा लिया, सब से पहले गाना गाने का सहारा लिया, परन्तु अगर में कोई गीत गुनगुनाता तो लोगों से गायकी की ही प्रशंसा मिलती, जो गीतों में छुपे हुए मनोभावों को कोई नहीं समझता था, गीत गाने के साथ वाद्य यन्त्र बजाने का प्रयत्न किया पर सफल ना हो सका, फिर लिया चित्र बनाने और उनमें रंग भरने की कला का सहारा, चित्र बना के रंग भी भर लेता था परन्तु अपने चित्रों में, हाव भाव के द्वारा अपने हिर्दय की भावनाए ना उकेर सका, रहीं मोडर्न आर्ट की बात, जब तक उसको समझाया नहीं जय तो समझ में नहीं आते, लिहाजा मैंने इस दिशा में कोई प्रयत्न नहीं किया,और अंत में कविता लिखना और बोलना प्रारंभ किया, और काव्य के लिए विशेष प्रकार के श्रोता होने चाहिए,और उन श्रोताओं  से कविता के शब्द और उसकी प्रस्तुति से बस वाहवाही मिलती थी,लेकिन दिल के उदगार समझने वाले मिल नहीं पाते थे |
  अब तो काव्य बन नहीं पाता, कुछ कहानी लिखने का प्रयत्न किया पर सफल नहीं हो पाया, हाँ ब्लॉग का माध्यम मिला नहीं जानता इसमें कहाँ तक सफल हो पाया हूँ, मेरे ब्लॉग किसी निश्चित विषय पर तो होते नहीं,जो दिल में आता है लिख देता हूँ, बस इसीलिए अपने आप से बात करता हूँ |
  क्या करुँ मेरे ऊपर मेरे मस्तिष्क से अधिक मेरा हिर्दय राज करता है |

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