हमारे देश भारत में सामाजिक चेतना का अभाव क्यों है, समझ नहीं आता क्या यह अशिक्षा का प्रभाव है ?, या स्वार्थ की भावना
है ? या इन दोनों का मिला,जुला प्रभाव है ?
इस सामाजिक चेतना का लाभ उठातीं हैं,राजनीतिक पार्टियाँ और हानि किसकी होती हैं,जनता की, विरोधी पार्टियों को कोई मुद्दा मिला नहीं,और उतर आतीं हैं,अन्दोलोनो पर, आन्दोलन करना तो ठीक है, परन्तु निजी,सरकारी संपत्तियों को हानि पहुँचाना कहाँ तक उचित है, कुछ राजनीतिक शरारती तत्व भोली जनता तो उकसाते हैं,और यह भोली जनता उनके बहकावे में,आकर के तोड़,फोड़,आगजनी,रेलगाड़ियों तथा बसों को रोकना प्रारम्भ कर देते हैं, इससे हानि किसे होती है,जरा सोचिये,अगर रेलगाड़ियों को रोका जाये तो कोई अपने विशेष प्रयोजन के लिए या आवश्यक काम के लिए जा रहा हो,जैसे किसी का व्यवसाय के लिए साक्षात्कार हो और वोह रेलगाड़ी रुकने के कारण वोह साक्षात्कार के लिए उपस्थित ना हो पाए,गया ना उस समय आजीविका कमाने का साधन वोह वंचित रह जाये ,वोह आपका भी तो बही,बंधू हो सकता है,|
बसों को जलाने या बसों को तोड़,फोड़ करने से क्या लाभ,कोई रोगी बस में बैठ कर अस्पताल के लिए जा रहा हो,और बस के चलने में बाधा पड़ने के कारण वोह अस्पताल ना पहुँच पाए और दम तोड़ दे, वोह हम लोगों में से कोई भी हो सकता है,आप लोग यह क्यों नहीं सोचते ? अभी कुछ दिनों पहले विरोधी पार्टियों ने महंगाई के विरोध में बंध का एलान किया और बाजार बंद करवाए,यह तो सही है,परन्तु सोचिये निजी,सार्वजानिक संपत्तियों को हानि पहुँचाने से किसी हानि होगी ? सन 1984 में हमारी पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या हुई थी,और उस समय एसी दंगो की आग भड़की की,अधिकतर सिक्खों की जान पर बन आई, वोही आगजनी,वोही तोड़,फोड़ और उस हानि की भरपाई आज तक नहीं हो पायीं है,अगर सरकारी संपत्तियों को हानि पहुंचाई जाएगी तो सरकार उस हानि को किसके द्वारा क्षतिपूर्ति करेगी,जाहिर है,जनता से कर के रूप में, इन्टरनेट से तो यह सन्देश अधिक लोगों को नहीं पहुँच पायेगा,क्योंकि हमारी अधिकतर जनता में शीक्षा का आभाव है,मत आओ भाई,बहनों इन बहकावों में |
जब कोई धार्मिक कार्यक्रम जैसे जागरण इत्यादि इस प्रकार के कार्यक्रम होतें हैं,तो अक्सर शामियाने इस प्रकार लगाय जाते हैं की सड़क के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक यह शामियाने स्थान ले लेतें हैं, इससे सड़क पर निकलने में कठिनाई होती है, जैसे ऊपर लिखा गया है, अगर कोई किसी आवशयक काम के लिए जा रहा हो और उसको वोही रास्ता ज्ञात हो तो पड़ गयी ना उसके काम में बाधा,और इस प्रकार के धार्मिक अयोजोनो में,लाउडस्पीकर लगा कर जोर,जोर से भजन इत्यादि गाए जाते हैं,अगर कोई आसपास में रोगी हो या कोई परीक्षा की तय्यारी कर रहा हो,यह कृत्य बाधक बनेगा की नहीं ? अरे भगवान का तो कार्य कर रहे हो,और भगवान के बन्दों को दुखी कर रहे हो,ये कैसी पूजा है ?
और तो और जागरण में नाम ले लेकर पुकारा जाता है, इसकी इतने रूपये की अरदास,क्या भगवान गरीबों का नहीं हैं,इसको व्यापर क्यों बनाते हो?
रामायण की इस चोपाई पर तनिक ध्यान दो "छल कपट मोहे नहीं भावा",इसका अर्थ समझो भगवान को प्राप्त करना है तो
छोड़ो यह आडम्बर भगवान प्रसन्न होतें हैं,निर्मल भक्ति से,अगर कोई धार्मिक आयोजन करना है,तो पार्क इत्यादि सार्वजानिक व्यवस्था करो,आप भी खुश,जनता भी खुश और ईश्वर भी प्रसन्न |
आज कल सड़को पर देखो तो कैसे अव्यवस्था नजर आयगी,हर किसी को जल्दी है,आगे निकालने का स्थान नहीं हैं,पीछे से भोपुओं के शोर अगर रात्रि काल हो तो पीछे से कार के दिप्पर,यह लोगों के अपने बनाये हुए नियम जो की,वाहन चलाने के लिखित नियोमो में तो नहीं हैं |
बहुत बार यह भी होता है,कोई बच्चा खेलता,खेलता बोरवेल या मन्होल में गिर जाता है,जो कि ठेकेदार या सरकारी कर्मचारियों का काम है,इनको सुरक्षित तरीके से ढक कार रखें,हो सकता है,अगला बच्चे का गिरने का नम्बर ठेकेदार या सरकारी कर्मचारी में से किसी का हो |
जागो बही,बहनों जागो कुछ अपने में भी तो सामाजिक चेतना लाओ |
3 टिप्पणियां:
छोड़ो यह आडम्बर भगवान प्रसन्न होतें हैं,निर्मल भक्ति से,अगर कोई धार्मिक आयोजन करना है,तो पार्क इत्यादि सार्वजानिक व्यवस्था करो,आप भी खुश,जनता भी खुश और ईश्वर भी प्रसन्न |
बहुत सही लिखा है !!
Gambheer vivechan.
अनामिका जी 9 जुलाइ का समय तो बतायें,अगर बिजली रही तो अवश्य आउँगा,आपका इ.मेल देखने का प्रयत्न किया मिला नहीं,इस लिये यहीं उत्तर दे रहा हूँ ।
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