मैं प्रेमचंद की कहानी दो बैलो की आत्मकथा से इस विषय को प्रारम्भ कर रहा हूँ, जिसमे उन्होने गधे के विषय मैं लिखा है, और इन्सान को उसकी उपमा दी जाती है, प्रेमचंद जी के अनुसार गधे जैसा संत कोई नही है, एक स्थान पर जिस मुद्रा मैं खडा हो जाता है, उसी मुद्रा मैं खडा रहता है, और एक क्दिवंती के अनुसार इसका नाम वैश्ख्नानादन है, क्योंकि यह वैशाखयानि कि ग्रीष्म ऋतु के समय मैं मोटा हो जाता है, और शीत ऋतु मैं दुर्बल हो जाता है,क्योंकि यह इतना सीधा जानवर है, जब मैदान मैं इसको ग्रीष्म ऋतु मैं घास नही दिखाई देती तो इसको लगता है,मैंने सारी घास कहा ली और यह सोच,सोच कर के मोटा हो जाता है, और जब शीत काल मैं इसको मैदान मैं घास ही घास दिखाई देती है, यह सोच,सोच कर यह दुर्बल हो जाता है कि अभी तो इतनी घास पड़ी है, फिर मानव का अपमान गधा कह कर क्यों किया जाता है, जब कि यह इतना संत,सीधा और शांत जानवर है।
अब आता हूँ कुत्ते पर जो की इन्सान का बहुत अच्छा दोस्त है, यह जानवर वफादारी मैं बेमिसाल है, और इन्सान इसको अपने मतलब के लिए पालता है, ताकि घर मैं चोरी ना हो, और यह कुत्ते पुलिस के पास भी होते है,जिनको खोज करने की ट्रेनिंग दी जाती है, और यह अपनी जान की परवाह ना करते हुए खोज करते है, फिर मानव को इनकी उपमा क्यों दी जाती है?
अब आता हूँ बेचारे उल्लू पर इसने किसी का क्या बिगाडा है, बेचारा रात को निकलता है,वोह भी अपना पेट भरने के लिए,इसने इन्सान का क्या बिगाडा है, जो कि इन्सान इसकी उपमा देता है, अधिकतर तो येही जानवर जिनका प्रयोग इन्सान इनकी उपमा अपमान के रूप मैं देता है, और अधिक इन्सान को अपमानित करने वाले जानवर अभी मस्तिष्क मैं नहीं आ रहे।
वोह जानवर जिसका इन्सान को डर होता है,जैसे शेर उसकी उपमा तो अच्छे रूप मैं दी जाती है, जैसे बहादुर और निडर लोगो के लिए, ऐसे ही कोई सीधा इन्सान होता है तो कह देते हैं, वोह तो गाये है, गाये की उपमा भी अच्छे रूप मैं दी जाती है, बेचारे गधे,कुत्ते,उल्लू का क्या दोष जिनकी उपमा इन्सान को अपमानित करने के लिए दी जाती है?
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