अब मैं ५६ साल को हो गया हूँ,पहेले मैने अपने अकेलेपन के लिए लिखा था,शायद कारन
वोह हैं जो मैं लिख रहा हूँ.
मुझे अपना बचपन जब मैं आगरा मैं था, तब से याद हैं,मेरे को बस का ड्राईवर कई बार स्कूल के लिए गोद मैं उठा कर ले जाता था।
शायद मैं बचपन से अलग प्रकृति का था, मुझे आगरा के संत जोर्सिस स्कूल मैं दाखिल करवाया गया था। शायद मेरे को मेरे माता पिता कभी समझ ही नहीं पाए,मैं यहाँ से शरू करता हूँ,जो मुझे सबसे पहेली घटना याद है, एक बार हमारी परीक्षा थी, तब मेरी टीचेर ने १ से १० तक के लिए गिनती लिखने को दी थी तो मैंने १ से लेकर १०० तक लिख दी थी, लिहाजा मुझे फेल कर दिया गया,तब मेरे पिता जी ने मेरी खूब लातो से पिटाई कीथी ।
क्योंकि यह घटना स्कूल से सम्बंधित है, तो और भी बातें जहन मैं आ गई, हमारी अमेरिकन टीचेर हुआ करती थी,
हम लोगो को खूब पिक्चर दिखाई जाती थी, मेरा एक दोस्त तम्रुद्दीन हुआ करता था,हआमरे दो ग्रुप हुआ करते थे,वेब्ल्य्स्कोत और हरिया, वेब्ल्य्स्कोत की स्पोर्ट्स निकर पर साइड मैं दो पट्टिया हुआ करती थी,वेब्लेय्स्कोत की निकर पर लाल पट्टिया,और हरिया की निकर पर नीली पट्टिया,मेरी बुआ ने मेरे लिए निकर सिली थी।
हम लोग आगरा की ईदगाह कालोनी मैं रहते थे,और मेरे पापा को ऑफिस पास मैं ही होता था।
तब मैं और मेरा भाई माँ को मामा केहेत्य थे,एक बार हमारे किसी पड़ोसी ने कहा की क्या यह तुम्हारे मामा हैं,तब से हम माँ को मम्मी कहने लगे, वोह पड़ोसी पेड़ पर बल्ब टांग कर बन्दूक से निशाना लगाते थे,बस आगरा की गह्त्नाओ का इतना ही याद है, फिर हमरि बदली फरुखाबाद हो गई, मैंने शायद अपने दोस्त को कहा,फरुखाबाद बहुत दूर है, और याद आया हम लोग रिंगा रिंगा रोसेस खेलते थे, और लोटते मैं हमारी बस आगरा के लाल किले की तरफ़ से आती थी, और रास्ते में बिल्लोरिया और ब्रूस को उतारती थी।
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