अब हम लोग कानपुर और वहाँ के शब्दों को छोड़ कर , जैसे रंगबाजी, पाई और जेर होना, और वहाँ की सभ्यता जैसे की, तरक भड़क वाले कपडे, ना पहनने के लिए मजबूर होना क्यूंकि वहाँ के लोग पसंद नहीं करते थे, शायद रात्रि की रैल के प्रथम श्रेणी के डिब्बे मैं बैठ कर अपने नए स्थान गाजीयाबाद के लिए प्रस्थान कर रहए थे, मुझे अभी तक प्रस्थान करना याद नहीं है, शायद रात्रि की यात्रा होने के कारण, पर हमारी रेलगाड़ी नए स्थान, नए परिवेश की ओर अग्रसर हो रही थी, अन्ताथ्था भोर का सूरज हमारी परतिक्षा मय कुछ परिचित और कुछ अनपरिचित लोगो के साथ कर रहा था, अब हमारी रेलगाड़ी गाजीआबाद के प्लात्फोर्म नम्बर १ पर पहुँच चुकी थी, दिल्ली के पास होने के कारण हमारे मामा जी का लड़का कुकू हमारे स्वागत के लिए आया हुआ था, और भी परिचित लोग आए होंगे पर मेरे सम्रितिपटल पर उनकी आकृति नहीं उभर रही, शायद अब मैं उस अवस्था मैं पहुँच चुका था, जब कि भोगोलिक स्तिथि का ज्ञान होना प्रारम्भ हो जाता है।
अब नए शहर मैं अपना आशियाना ढूँढने से पहले, हमने अपना बसेरा मम्मी की रिश्तेदार दिछो के यहाँ डाला था, जो की गाजीयाबाद के तुराब नगर के पीछे अर्जुन नगर मैं डाला था, शायद वोह लोग भी स्टेशन पर आए होंगे, पर याद नहीं।
अब मुझे जहाँ से याद है, कि हम लोगो ने दयानंद नगर मैं अपना घर ले लिया था, छोटे से दो कमरे थे और हमारे मकान मालिक भी साथ रहते थे, पापा का कार्यालय भी पास ही मैं था, उस जगह का नाम मुझे याद नहीं, अभी भी वहाँ कभी कभी जाना होता है।
मैं माध्यमिक परीक्षा दे कर आया था और परीक्षाफल की परतिक्षा थी आखिर समय आ गया और मैं असफल घोषित हो गया। अब मेरी बदकिस्मती का कुछ भाग मेरी झोली मैं था, मेरी माँ मुझे फैलु,फैलु कह कर प्रातरित करती थी, और अपना ही तर्क की मछली,घोंगे पकड़ने के कारण फेल हो गया, पता नहीं मेरे माँ बाप बच्चो का मनोविज्ञान क्यो नहीं समझते थे, कारण तो था की टुशन के कारण दूर,दूर जाना पड़ता था, और अत्यधिक थकावट हो जाती थी और मैं पढाई पर ठीक से ध्यान नहीं दे पाता था।
अब मेरे भाई का भी हाई स्कूल का परीक्षा परिणाम आ गया था और वोह प्रथम श्रेणी मैं पास हो गया था,मुझे याद है कि वोह बोला मुझे प्रथम श्रेणी मैं आने कि खुशी नहीं है, मेरे असफल होने के कारण।
अब हमारा दाखिला सनातन धरम इंटर कॉलेज मैं होना था, मेरा दाखिला पापा ने यह कर के करवाया था, अगर छोटे को दाखिल करना है,तो बड़े को भी दाखिल करना पड़ेगा, मेरे भाई को तो स्कूल वाले दाखिल करने के लिए बहुत उत्सुक थे, इसलिए मेरा दाखिला भी १२ कक्षा मैं हो गया था।
अब मैं बहुत मनोयोग से पड़ने लगा, इसी बीच मैं हमने अपना घर पटेल मार्ग मैं ले लिया, जिस घर मैं हम लोग अभी भी रहते हैं, कभी कभी मैं फेल होने के कारण अवसाद मैं चला जाता था, एक बार मेरे अवसाद मैं जाने के कारण पापा ने मेरी पिटाई कर दी, मनोविज्ञान ना समझने के कारण।
आखिरकार मैं माध्यमिक परीक्षा मैं अच्छे नुम्बेरो से पास हो गया, पर मुझे आशा तो और अच्छे नुम्बेरो कि थी, पर फिर भी अच्छे नम्बर थे।
गाजीआबाद मैं अक्सर पापा के दोस्त मिस्टर बिट्टा आया करते थे, उनके दो लड़के थे मुन्नू और मुन्ना, मुनू का अक्सर हमारे घर आना होता था, वोह मेरे सीधे स्वाभाव के कारण मेरे पर ध्यान नहीं देता था, परन्तु मेरे भाई कि तरफ़ अत्यधिक ध्यान देता था, मेरी माँ ने मेरे लिए कहा इसको इंजिनियर बनायेंगे तो मुन्नू बोला "it is like the cry for moon for him",सयोंग से अब मैं टेक्सटाइल इंजिनियर हूँ।
हमारी कालोनी मैं एक लड़का राजा रहता था, तो एक दिन वोह मुन्नू से हम दोनों भाई के लिए बोला इनसे मेरी दोस्ती करा दो, मुन्नू ने पता नहीं कैसे हमारी दोस्ती राजा से करा दी।
अब मेरी दोस्ती राजा से हो चुकी थी, शायद उस समय तक मेरा माध्यमिक परीक्षा का परीक्षा फल नहीं घोषित हुआ था, फेल तो हो ही चुका था, और मेरी माँ हम दोनों भाइयों के बीच मैं भेद भावः करती थी, तब शायद गम ग़लत करने के लिए मुझे राजा कि संगत मैं सिगरट कि आदत कि शुरुआत हो गई थी, अभी तो मैं सिगरेट को होंठो से गिला कर देता था, पर बाद मैं तो व्यसन बन गया।
माध्यमिक परीक्षा का परिणाम घोषित होने के बाद मैंने म.म.ह कॉलेज मैं दाखिला ले लिया था, अब तो मैंने लड़कियों के पीछे भागना शुरू कर दिया था, और काव्य रचनाओ का प्रारम्भ कर दिया था, राजा के दोस्त भी आवारा थे, अब तो मेरा हाल ऐसा था कि रजिया गुंडों मैं फँस गई, उसके दोस्त भी मुझे घेर के मेरा उपहास करते थे।
अब मैं इंजीनियरिंग के लिए समाचार पत्रों मैं विगयापन देखता था, सयोंग से मैंने टेक्सटाइल इंजीनियरिंग का विज्ञापान देखा और पापा को प्रोस्पेक्टुस मंगा कर दिखाया तो वोह मुझे भिवानी टेक्सटाइल इंजीनियरिंग के दाखिले के लिए ले गए, बाद मैं चंडीगढ़ के इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल का प्रोस्पेक्टौस आया पर पापा को तो टेक्सटाइल अधिक पसंद आया था वोह तो हमे अपना निर्णय अपने आप नहीं लेने देने थे, जिसके कारण मेरी अपनी निर्णय लेने कि क्षमता सम्पात हो गयी थी, और भारत मैं टेक्सटाइल का युग सम्पात होने के कारण मुझे बेकार बैठना पड़ा, अगर सिविल कर लेता तो शायद खाली नहीं बैठना पड़ता, भाग्य ने भी साथ नहीं दिया, शायद जिसके कारण मैं परिवार पर एक बोझ बन गया, यहीं तक थी मेरी गाजीयाबाद की प्रथम चरण की जीवन यात्रा इंजिनियर बनने से पहेले।
अब मैं भिवानी के लिए प्रस्थान कर रहा हूँ।
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