हर्निया के ऑपेरशन के बाद, असहेज होने के कारण,लिख नहीं पाया,अब कुछ सहज हुआ हूँ,और ऑपेरशन के बाद यह पहला लेख लिख रहा हूँ, इस लेख को लिखने से पहले,स्वामी परमहंस योगानन्द द्वारा लिखी हुई,एक कहानी लिख रहा हूँ |
एक बार भगवान विष्णु से ब्रह्मऋषि नारद जी से, प्रश्न किया,"भगवन यह बताइए आप का सब बड़ा भक्त मृत्यु लोक में कौन है?"
भगवान विष्णु ने नारद जी से कहा," नारद तुम्ही जा कर पृथ्वी लोक पर जा कर देख लो", यह सुन कर नारद जी पृथ्वी लोक में आये, और विचरण करते हुए उन्होंने पहले जो देखा,एक व्यक्ति मदिरा के नशे में चूर,पृथ्वी में खुदे हुए गड्ढो में,कुछ बांस गाड़ने का प्रयत्न कर रहा था,परन्तु मदिरा के नशे में,चूर उस व्यक्ति से गड्ढो में,बांस नहीं जा रहे थे,नारद जी ने उससे,पूछा,"तुम्हरी इच्छा क्या है?", उसने उत्तर दिया विष्णु भगवान से साक्षात्कार की", नारद जी असमंजस में पड़ गये,और आगे चल पड़े,और उन्होंने देखा, "एक व्यक्ति नदी के किनारे एक पैर पर खड़ा होकर के,शीत ऋतू हो, बर्षा ऋतू हो या ग्रीष्म,बिना वस्त्रों के वर्षों से तपस्या कर रहा था, नारद जी ने उससे भी यही प्रश्न किया,"भाई यह सब तुम क्यों कर रहे हो?", उसने भी वोही उत्तर दिया विष्णु भगवान से साक्षात्कार के लिए ",अब नारद जी बैकुंठ लोक में पहुंचे,तो विष्णु भगवान ने,नारद जी से पूछा देख लिया?",नारद जी ने हाँ कहा,तब विष्णु भगवान ने ने पूछा "क्या देखा?" नारद जी ने पहले उस व्यक्ति के बारे में बताया,जो नदी किनारे एक पैर पर खड़ा होकर तपस्या कर रहा था,नारद जी के बताने पर विष्णु भगवान ने कोई रूचि नहीं दिखाई,विष्णु भगवान ने कहा "उस व्यक्ति को देखा था,जो पृथ्वी के गड्ढों में बांस गाड़ने का प्रयत्न कर रहा था?",नारद जी ने असमंजस में पड़ते हुए हाँ कहा, और पूछा,"है लक्ष्मीपति जी उस में क्या विशेष बात है?",विष्णु भगवान ने कहा वोह ही,"मेरा सबसे बड़ा भक्त है", नारद जी ने कहा,"वोह कैसे प्रभु?", विष्णु भगवान बोले,पुन: "पृथ्वी लोक पर,जाओ और",उसव्यक्ति को जो मदिरा के नशे में चूर था,उसको कहना तुम से विष्णु जी मिलने आयेंगे,और उस व्यक्ति को जो एक पैर पर खड़ा हो कर तपस्या कर रहा है, उसको मेरा यह सन्देश देना,"तुम से मिलने विष्णु भगवान नहीं आयेंगे", नारद जी मृत्यु लोक में पुन: पधारे और जैसा विष्णु भगवान ने सन्देश दिया था,वोही अलग,अलग सन्देश दोनों व्यक्ति को दिया, जो व्यक्ति नशे में था,वोह तो बांस छोड़ कर नाचने लगा,और नाच,नाच कर कहने लगा,"विष्णु भगवान आयेंगे",और दूसरे व्यक्ति को जो तपस्या कर रहा था,उसको जब नारद जी ने कहा,"तुम से मिलने विष्णु भगवान नहीं आयेंगे",तो वोह तपस्या छोड़ कर दोनों पैरो पर खड़ा हो गया,और बोला "में तो यह तपस्या व्यर्थ ही कर रहा हूँ |",और उसने तपस्या छोड़ दी,थोड़े अन्तराल के बाद,विष्णु भगवान आये और उस व्यक्ति के साथ में नाचने लगे जो,मदिरा के नशे में चूर था,और नारद जी भी वीणा बजाते हुए,उस नृत्य में सम्मलित हो गये |
प्रभु कोई आडम्बर के भूखे हैं,उनको केवल भाव से किसी भी रूप में,किसी भी विधि से पूजा,अर्चना,ध्यान से,वंदना की आवश्यकता है |
जैसे संत कबीर ने कहा है,"मन मैला और तन को धोये",आपमें ,लाख व्यसन हैं",अगर सच्चे मन से प्रेम भाव से प्रभु का स्मरण करोगे तो प्रभु को अवश्य पाओगे, इसी सन्दर्भ में मुझे एक भजन की चंद पंक्तिया याद आ रही हैं |
"तेरे को काहे की चड़ाऊं पूजा |
जल चड़ाऊं पूजा,मछली ने कर दिया झूठा ||
फूल चड़ाऊं तो भँवरे ने कर दिया जूठा|
दूध चड़ाऊं तो बछड़े ने कर दिया झूठा ||
तुझे चड़ाऊं प्रेम की पूजा |
भाई इस ढाई अक्षर के शब्द में,बहुत शक्ति है, इस ढाई अक्षर के शब्द ने ही तो प्रभु राम ने शबरी के झूठे बैर खाए थे,कुछ लोगों को मेरे इस वाक्य से असुबिधा हो सकती है,"आप में लाख व्यसन हों....."
अब इन व्यसनों और दुर्गुणों से दूर रखने वाला तो सदगुरु होता है, गुरु शब्द का अर्थ है,"अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला",और इसी से प्रचलित है,"असतो मा सदगमय,तमसो मा ज्योतिर्गमय",अर्थार्त हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाओ",सदगुरु का तो ईश्वर का सामीप्य होता है,और सदगुरु अपने शिष्य के सब,व्यसन और दुर्गुण दूर करके,भगवद प्राप्ति करवा देता है |
आजकल जागरण,या किसी भी धार्मिक सम्मलेन में,लाउड स्पीकर पर जोर,जोर से भजन गाये जाते हैं,बिना यह सोचे कोई गंभीर रूप से पीड़ित है,और सड़क के एक किनारे से लेकर दूसरे किनारे तक,लोगों का अवागमन वाधित करके,जब मन में परोपकार की तो बात छोड़ो,इस प्रकार से लोगों को कष्ट दे कर,तो कहाँ से ईश्वर को पाओगे?
अगर झूठे,आडम्बर,से लोगों को कष्ट देकर,बिना श्रद्धा के,बिना प्रेम के तो, भाई पूजा,अर्चना,ध्यान सब व्यर्थ है |
पूजा का अर्थ समझो
3 टिप्पणियां:
जी आपके विचार बिलकुल सही हे. आज भगवान को अपने अन्दर ही खोजने की जरूरत है.
अगर झूठे आडम्बर से लोगों को कष्ट देकर बिना श्रद्धा के,बिना प्रेम के पूजा,अर्चना,ध्यान सब व्यर्थ है |
...सत्य वचन।
भाई इस ढाई अक्षर के शब्द में,बहुत शक्ति है, इस ढाई अक्षर के शब्द ने ही तो प्रभु राम ने शबरी के झूठे बैर खाए थे,कुछ लोगों को मेरे इस वाक्य से असुबिधा हो सकती है,"आप में लाख व्यसन हों....."
बहुत सही लिखा है !!
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