शनिवार, अक्तूबर 17, 2009

मौसम,,सामाजिकता की अनेकता में एकता के प्रतीक हमारे भारत में झगड़े क्यों ?

आज दिवाली का पर्व है,और इस दीपावली के पावन अवसर में,मुझे लग रहा है, कि अभी दिवाली का पर्व समाप्त होगा तो कुछ समय के अन्तराल पर आ जायेगा, इसाईओं का क्रिसमस का त्यौहार, अभी,अभी तो नवरात्रे और ईद, और विजयदशमी के  त्यौहार समाप्त हुए हैं, और फिर आएगा नव वर्ष| हिन्दुओं के त्यौहार होली,दिवाली,विजयदशमी, इत्यादि के साथ अनेकता में एकता समेटे हुए,यहाँ पर अनेकों  संप्रदाय,हिन्दू, मुसलमान,सिख और इसाई हैं,सब मिल जुल कर हर्षौल्लास और उत्साह के साथ त्यौहार मानते हैं, फिर बाद में आपस वैमन्यस्य क्यों बड़ता है?
 सन १९८४ में जब हमारी पुर्ब प्रधानमंत्री श्रीमती इन्द्रा गाँधी को, उनके सिख गार्डों ने गोलियों से भून दिया, और प्रारंभ हो गया हिन्दू,सिखों के बीच में कत्ले आम, क्यों हम भूल गये थे, सिखों तो हिन्दुओं से ही बने हैं,  गुरु गोविन्दसिंह ने उस समय के बर्बर मुस्लिम शासको से लोहा लेने के लिए ही तो सिख बनाये थे, उन्ही के कारण ही तो बने थे पंज प्यारे, गुरु गोविन्दसिंह जी ने, अपना शिष्य बनाने के लिए, द्रीर प्र्त्य्ग लोगों का चुनाव करने के लिए , एक इन्सान कोबंद कमरे में  बुलाया और एक बकरा काट दिया, बहार लोगों ने देखा खून बह रहा है, इस प्रकार गुरु गोविन्दसिंह जी ने एक,एक कर के चार और लोगों को बुलाया और यही बकरा काटने का क्रम करते रहे, और उस समय के क्रूर शासक ओरोंग्जेब के विरूद्व उन पंज प्यरो को, सिखों के पॉँच ककारों,कछ,केश,कड़ा,कृपाण और पग से सुशोभित किया था, और इनका कारण था अगर तलवार या किसी अस्त्र के साथ, सर पर प्रहार किया जाये तो पग और केश उस अस्त्र के कारण सुरक्षा प्रदान हो,अगर लड़ने के लिए कोई हथियार ना हो,तो कड़े के द्वारा प्रहार हो सके, गुरुगोविंदसिंह जी ने, निडर और साहसी लोगों का चुनाव किया और उनको धारण कराई यह सैनिक वेश्वूषा,  और इस प्रकार गुरुगोविंदसिंह जी के और भी  अनुयायी बने और हुआ सिख धर्म,परन्तु सन १९८४ में कुछ राजनीती की रोटी सेकने के कारण हुआ,सिख हिन्दुओं के बीच कत्ले आम, इन लोगों ने भोली,भाले नासमझ लोगों को बरगला लिया,और यह भोले,भाले लोग यह नासमझी करने लगे |
 यही हमारा देश भारत ही तो है, जिसमे हिन्दुओं के मंदिरों के घंटों के साथ आरती, मस्जिद में कुरान की अजान और एक साथ सुनाई देते हैं, लेकिन विदेशी ताकते अपने ही देश की भोली,भाली जनता के नौजवानों को जिहाद के नाम बरगला कर आतंकवाद को जन्म देती हैं, कहाँ लिखा है कुरान में कि धर्म के नाम पर आतंकवाद फेलाया जाये, और मुंबई के आतंकवाद जैसी घटना हो ?, ईद के दिन तो हिन्दू,मुस्लमान गले मिलते हुए देखे जाते हैं,फिर  धर्म के नाम पर आतंकवाद क्यों? धरती का स्वर्ग कहलाने वाली कश्मीर की धरती आतंकवाद का नरक क्यों बन गया था?
  अभी कुछ दिनों के बाद संध्या के समय क्रिसमस के समय हमारे ही देश में,क्रिसमस करोल गूंजने लगेंगे, बिभीन्न संप्रदाय की अनेकता में एकता तो हमारे ही देश में मिलती है |
  दिवाली का अवसर गुजरातियों के लिए नया साल लेकर आता है, और हमारे देश भारत में, अनेकों प्रान्त हैं, परतेक प्रान्त की अलग,अलग परम्परा अलग,अलग बोली,अलग,अलग बेश्बूषा है, नवरातों में,गुजरात का गरबा, गणपति का महाराष्ट्र का प्रसिद्ध गणपति का त्यौहार, केरल का ओणम, पंजाब की लोहरी, बिहार का छट अनेकता में एकता लिए हुए इस हमारे देश में ही तो है, फिर आपस में सदभावना के स्थान पर यह प्रानतीय झगड़े क्यों? यह प्रान्त हमारा है,या वोह प्रान्त हमारा है |
  हमारा यह भारतवर्ष,मस्तक पर हिमालय पर्वत का मुकुट लिए और तीन और से जिसके सागर चरण धोता है, एक ही मौसम में अलग,अलग प्रकार के मौसम प्रदान करता है, गर्मी में अगर सर्दी का आनद लेना हो तो चले जाइये पहाडो में,सर्दी में गर्मी का आनद लेना हो तो चले जायिए, इस देश के दक्षिणो शेत्रो में,सम मौसम का आनद लेना चाहते हैं,तो चले जाईए समुद्रवर्ती शेत्रो में, और वर्षा का अनद लेना चाहते हैं,तो चले जाइये असम के चिरापुंजी शेत्र में |
 जब हमारा देश, सांस्कृतिक,सामाजिक, और मौसम की अनेकता में एकता है, तो हम सब लोग इन वस्तुओं से अनेकता में एकता का सबक क्यों नहीं लेते ?
 में इस प्रार्थना के साथ अपने इस लेख को विराम देता हूँ, सब के घरों में,धन लक्ष्मी,ज्ञान लक्ष्मी,वैभव लक्ष्मी का वास हो, दीपावली के दीयों से सब के घर में तिमिर का नाश हों, दीयों से परम्परानुसार दिए जलते रहे, इस दिन श्री रामचंद्र जी, असुरों का संघार कर के अयोध्या वापिस लौटे थे,और लोगों ने दीपो को परज्वालित करके उनका स्वागत किया था,और रामराज्य की स्थापना का प्रारंभ हुआ था, जब आपस में कोई वैमनस्य नहीं था, ना कोई संप्रादियक झगड़े, ना कोई आतंकवाद, ऐसे ही समाज की स्थापना हो, लोगों के हिर्दय में अंधकार के स्थान पर प्रकाश हो |
   तमसो माँ ज्योतिर्गमय 
   असतो माँ सद्गमय
    

2 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत अच्‍छे विचार !!
पल पल सुनहरे फूल खिले , कभी न हो कांटों का सामना !
जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना !!

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया है.

सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

सादर

-समीर लाल 'समीर'