शुक्रवार, अक्तूबर 09, 2009

मेरी पहेली हवाई यात्रा वोह भी विदेश की |

वैसे तो अब तक तो में,अपने काम के संदर्भ में, बहुत सी देशी,विदेशी हवाई यात्राएं कर चुका हूँ, जैसे अमरीका,कनाडा,जर्मनी इत्यादि,परन्तु पहली यात्रा थी,इंग्लैंड की और वोह भी ,हवाई यात्रा, इसके शुभारम्भ भी हमारे पिता जी के द्वारा ही होता है,
में उन दिनों मोदीनगर के मोदीपोन फैक्ट्री में,कार्यरत था, पिता जी के कस्टम और सेंट्रल एक्ससाइज़ में होने के कारण, उनका संपर्क पासपोर्ट अधिकारीयों से भी था, परिणाम स्वरुप उन्होंने मेरा पासपोर्ट,और मेरी पत्नी का पासपोर्ट मय हमारी बेटी का बनवाने की सोची,उन दिनों हमारी बेटी संभवत: दो,तीन साल की होगी,मैंने पिताजी से कहा "मेरा पासपोर्ट क्यों बनवा रहें हैं,मुझे कहीं जाना,आना तो कहीं नहीं है",परन्तु उन्होंने मेरी सुनी नहीं और ले आये पासपोर्ट बनाने के लिए फॉर्म, अब फॉर्म तो भरना ही था, और उसमें भी एक रोचक किस्सा हुआ, मैंने पिताजी से पुछा की, व्यवसाय वाले प्रश्न में क्या भरूं, उनका उत्तर था निल लिख दो,औरउसके बाद उन्होंने हम लोगों के पासपोर्ट के फॉर्म जमा करवा दिए गए |
कुछ दिनों के बाद पासपोर्ट के लिए पूछ ताछ के लिए अधिकारी आया,में तो बहुत असमंजस में,मैंने ना कोई चोरी की,ना डाका डाला या और कोई गुनाह नहीं किया तो यह पूछ ताछ क्यों? और उस समय वोह अधिकारी मेरा पासपोर्ट भी लेकर आया था और पूछने "लगा कहाँ काम करते हो?" मैंने तो बताना ही था कि,मोदीपोन में,फिर उसने मेरा पासपोर्ट सामने रख दिया,और उसमें व्यवसाय की स्थान पर निल लिखा हुआ था,कहने लगा इसमें तो व्यवसाय निल लिखा हुआ है, अब तो में पुन: शंका में की हुआ मेरा पासपोर्ट रद्द पर ऐसा नहीं हुआ,वोह अधिकारी मेरा पासपोर्ट मुझे दे कर के चला गया |
खैर समय बीतता गया, हम इंजिनियर लोगों को लालच तो होता ही है,जहाँ पर पैसे और अच्छी सुवधाएँ मिलेगीं हम लोग वहीँ चल देते हैं, अब तो जीवन का उतरार्ध आ गया,परन्तु उस समय तो जवान था, और ऐसे में, अच्छे पैसे और सुविधा का आकर्षण अधिक तो होता ही है, समय ने तो अपनी गति से चलना ही था, उस समय कनाडा की एक कम्पनी में तो नौकरी मिल गयी थी, और उसके साथ गुजरात की हीरा नगरी सूरत में,मोदीपोन से अच्छे पैसे और अच्छी सुविधा के साथ नौकरी मिल गयी थी, और में अपनी पत्नी,और पुत्री के साथ सूरत के लिए आजीविका कमाने के लिए चल पड़ा, और मेरे पासपोर्ट बनने के कुछ समय अन्तराल पर मेरी पत्नी का पासपोर्ट मय मेरी पुत्री के साथ भी बन कर आ चुका था |
सूरत में काम करते समय मेरा निजी व्यवसाइयों से भी समपर्क हो गया था, अब किसी व्यवसाई को अपने कारखाने के लिए मशीन खरीदनी थी, और मेरी कम्पनी मुझे अवकाश नहीं दे रही थी, आखिरकार मुझे तीन दिन का अवकाश मिल गया, अब मुझे करनी थी विदेश यात्रा और वोह भी हवाई,अभी तक तो में हवाई अड्डे से लोगों को लेने और छोड़ने ही गया था, और बचपन में तो हवाई जहाज को पास से देखा था, पर जब से पूरा होश सम्भाल चुका,तो हवाई अड्डे का प्रवेश,और निकास द्वार ही देखा था, सूरत से चला मुंबई की ओर साहर हवाई अड्डे की ओर रेलगाड़ी से, क्योंकि वोह पहली यात्रा थी इंग्लॅण्ड की,उसके बाद तो अनेकों बार जा चुका हूँ, वहाँ के कुछ अंग्रेज परिवार मेरे मित्र भी बन चुके हैं |
अब आप लोग हसेंगे मैंने सोचा इंग्लॅण्ड में तो सर्दी पड़ती है,इसलिए मैंने अपने लिए कम्बल ले लिया, जाना हैं,इंग्लॅण्ड और वोह भी ठंडा स्थान तो अपनी सुरक्षा करना तो उचित ही था ना?
वहाँ मुंबई में मुझे वोह व्यवसाई बही मिल गये, और मुझे हैरानी से देखते हुए बोले "कोई विदेश भी कम्बल ले जाता है?", और उस समय तो किसी से विदेश जाने के लिए किसी से राए लेना तो हमारी शान के विरूद्व था ना, चलो यहाँ तक तो सही अब उन्ही व्यवसाई से सुना वीसा के लिए इंग्लिश एम्बेसी में इंटरव्यू होगा,में मन में सोचने लगा भई विनय शर्मा यह कौन सी नयी मुसीबत, विदेश जाने के लिए बही इंटरव्यू, जैसे तैसे ब्रिटिश एम्बेसी के इंटरव्यू का समय आ गया, पासपोर्ट तो इंटरव्यू से पहेले वहीं जमा हो जाता है,खैर अब हमको इंटरव्यू तो देना ही था, उस ब्रिटिश अधिकारी ने बहुत से प्रश्न पूछे,परन्तु एक प्रश्न पुछा "आपने अपना यह पासपोर्ट सन १९८५ में क्यों बनवाया?" उसी समय मेरे मस्तिष्क की बत्ती जली,चूंकि मुझे कनाडा में नौकरी मिल तो गयी थी,बस किन्ही कारणों से वहाँ ज्वाइन नहीं किया था, सो हमने उत्तर दे दिया, "मुझे कनाडा में नौकरी मिल गयी थी,इसलिए मैंने उपरोक्त सन में पासपोर्ट बनवाया", अब उनको तो यह संदेह हो गया की यह तो इंग्लैंड में बस जायगा,मुझे क्या मालूम था इस उत्तर से लेने के देने पड़ जायेंगे,परिणामस्वरूप उन लोगों ने मेरे पासपोर्ट पर लिख दिया "Applied for", वोह व्यवसाई तो बहुत सी विदेश यात्राएं कर चुके थे, वोह पासपोर्ट के पुन: आवेदन के लिएकोई पीला फॉर्म लाये, उसको मैंने भरा फिर उस अंग्रेज अफसर ने मेरे पासपोर्ट पर इंग्लैंड के वीसा की मोहर लगाते हुए कहा,हम आपको छे महीने के लिए वीसा दे रहें हैं, पीला फॉर्म जमा करने के बाद इंटरव्यू में दिए गये उत्तर तो मुझे याद नहीं हैं,ऐसे प्रारंभ हुई मेरी विदेश यात्रा |
विदेश यात्रा का श्री गणेश तो हो ही चुका था, और उसके बाद मुझे भेजा गया अमरीकन एक्सप्रेस बैंक पैसा लेने के लिए,में फिर सोचने लगा की मेरा अमरीकन एक्सप्रेस बैंक में खाता तो है नहीं,फिर यह मुझे पैसा क्यों मिल रहा है, वहाँ से मैंने पैसा तो लिया और एक चीज नयी देख कर फिर असमंजस में, पैसा लेने के लिए मैंने जो फार्म भरा,उसके नीचे दूसरा फार्म लगा हुआ था,उस पर बही मेरे लिखे की कॉपी बिना कार्बन पेपर के बन गयी, उस समय मुझे कार्बन लेस पेपर के बारे में नहीं पता था,खैर अब में तीन हजार डॉलर लेकर निकला बैंक के बहार,और अब हमें जाना था इम्मीग्रेशन के लिए,वोह मेरे लिए नयी चीज, अब इम्मीग्रेशन के बाद आ ही गया नंबर हवाई जहाज में बैठने का, लेकिन उससे पहले अपना सामान तो रखना ही था,कन्वेर बेल्ट पर मैंने अपना सामान उस बेल्ट पर रखा और देखने लगा की मेरा सामान वापिस आयगा तो उठा लूँगा,पर यह क्या मेरा सामान तो वापिस आया ही नहीं, तब मेरे साथ जाने वाले वोह शख्स शायद मेरी मनोस्थिति को भांप गये थे,वोह वोले पहुँच गया सामान हवाई जहाज में, अब तो हवाई जहाज में प्रवेश करने का नंबर था, अब तो सिक्यूरिटी चेक का नम्बर था उस समय मेरी जेब में कुछ भारतीय सिक्के थे,सो वोह सिक्यूरिटी चेक करने वाला यन्त्र बोलने लगा,मैंने सोचा मर गये विनय भई अब तो यह लोग पकड़ के जेल में बंद करेंगे, परन्तु ऐसा नहीं हुआ,आखिरकार हम लोगों ने हवाई जहाज में प्रवेश कर लिया, वड़ा हवाई जहाज था, और में सोच रहा था, कि उड़ते हुए नीचे देखूँगा कि आकाश से धरती और धरती की वस्तुएं केसी दिखाई देती हैं, पर यह क्या मेरे को जो सीट मिली वोह बीच वाली कतार में थी, कुछ देर तो नीचे की वस्तुएं दिखाई दीं, फिर तो नीचे दिखाई दे रहे थे, बादल, मन तो कर रहा था,उचक,उचक के नीचे देखूं, पर यह ना कर सका,जब कुछ ना मिला तो सीट में लगे हुए बटन के बारे में जानकारी लेने लगा,एक बटन दबाया तो परिचालिका आ गयी अ़ब उससे पूछूँ तो क्या?
आखिर दस घंटे बाद पहुँच गए हम लोग इंगलैंड के हिथ्रो हवाई अड्डे, और वहाँ हवाई जहाज से उतर कर निकल कर बिना किसी बस में सवार हो कर निकल चुके, हवाई अड्डे के निकास द्वार से लन्दन शहर के लिए, वहाँ तो सामान्य जीवन ही गुजारा और तीसरे दिन निकल पड़े अपने भारत देश के लिए, आये तो थे भारत सेतो चले थे रात के समय में, और इंगलैंड से प्रस्थान किया भारत के लिए सुबह के समय,पहले हवाई जहाज बहुत ही धीरे,धीरे चल रहा था,मैंने सोचा हवाई जहाज ख़राब हो गया,फिर तो धीरे,धीरे चलते हुए,हवाई जहाज ने रफ्तार पकड़ और उड़ने लगा, नीचे बिल्डिंग इत्यादि दिख रहे थे,और उसके बाद हो गयाहवाई जहाज बादलों के ऊपर, अब परिचालिका आई और उसने ने पुछा लाल वाइन या सफ़ेद वाइन,मुझे वाइन के बारे में कुछ नहीं पता था, पहले लाल वाइन के लिए कहा, फिर उसने वोही प्रशन किया तब मैंने कहा,सफ़ेद वाइन और सिगरेट तो पीता था इसलिए बैठाया गया नॉन स्मोकिंग जोन मैं , कभी,कभी पार्टी इत्यादि में शराब का भी सेवन कर लेता था, शराब की तो आदत नहीं थी,अब तो सिगरेट भी छोड़ चुका हूँ, और निर्धारित समय पर हमारे हवाई जहाज ने जबभारत की धरती को छुआ,तो केवल एक बार जोर का झटका लगा, में सोचने लगा कि यह क्या हुआ?,कोई क्रेश लैंडिंग है क्या? अब तो विदेश यात्रा और हवाई यात्रा का अनुभव भी हो चुका है, ऐसी थी मेरी विदेश यात्रा वोह भी हवाई |
उसके बाद ही मैंने अपने देश में हवाई यात्रायें की हैं |

3 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

यात्रा भी लम्बी ,विवरण भी लम्बा ! बहरहाल पढ़ा -अच्छा भी लगा !

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया रहा संस्मरण.

M VERMA ने कहा…

सुन्दर संस्मरण. बधाई