आज मुझसे ऐसी गलती हो गई, जिसका मुझे अ़ब पशचाताप हो रहा है,किसी से कोई वायदा किया था,परन्तु उसके साथ वायदा निभा ना सका,और उससे मेरा सम्बन्ध विच्छेद हो गया,और सोचता हु, दोवारा उससे संपर्क होगा कि नही, ह्रदय में एक टीस सी उठती है,और मन बेचेन हो जाता है, केवल एक दिन का संपर्क था,और अगले दिन का वायदा करके मैंने उससे वायदा तोड़ दिया,और उसने मेरे से मुँह मोड़ लिया, पता नहीं भविष्य क्या मोड़ लेगा,और में यह सोच कर परेशान हो गया।
ईश्वर ने इस संसार मैं अनेको जीव,जंतु उत्पन्न किए, और उसमे से स्त्री,पुरूष का जोड़ा भी बनाया था, बाइबल के अनुसार,ईश्वर ने ऐडम और हब्बा की सरंचना की थी, वोह लोग खुदा के बाग मैं रहते थे, और उस बाग में एक सेब का पेड़ था, जिसका फल खाने को खुदा ने उन दोनों को मना किया था,परन्तु एक दिन हव्वा ने ऐडम से उस पेड़ के फल के खाने की जिद की,और जो की निषिद्ध फल (forbidden apple) था वोह ऐडम ने खा लिया, और बाइबल के अनुसार मन्युष में इस प्रकार अच्छाई पर बुराई ने जनम ले लिया, और इस प्रकार मन्युष की वंशविरिधि होने लगी, इसा मसीह जो की खुदा के बेटे थे, उनको लोगो ने सूली पर चडा दिया, तिस पर भी उनोहने "अपने दोनों हाथ उठा कर खुदा से कहा, 'ये खुदा इनको माफ़ कर क्योकि यह नही जानते क्या कर रहे है", कुरान के हिसाब से मोहम्मद साहिब जो खुदा के पैगम्बर थे, उनको भी लोगो ने मार डाला, इन्सान की सुबुधि पर दुर्बुधि इस कदर हावी हो जाती है, कि वोह खुदा के बेटे या खुदा के पैगम्बर को नहीं छोड़ते,यह तो हुई ग्रंथो की बात, और तो और देवता भी इन्सान की सुबुधि पर दुर्बुद्धि को हावी करने का प्रयत्न करते हैं, विश्वामित्र जिनोहोने घोर तप किया, और इन्द्र भगवन को लगने लगा की उनका आसन संकट मैं हैं, तो इन्द्र ने स्वर्ग की अप्सरा मेनका को उनका तप भंग करने के लिए भेजा और विश्वामित्र का सयंम उसके मोहक निरित्य के आगे डोल गया और वोह मेनका के साथ पारिवारिक बंधन मैं,बंध गए और कालांतर मैं, भरत जिनके नाम पर भारत पड़ा उसके पिता हुए, इसी क्रम मैं गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का नाम याद आ रहा है, इन्द्र ने छल से अहिल्या की पत्नी का संसर्ग करने की इच्छा की और परिणाम भुगतना पड़ा बिचारी अहिल्या को गौतम ऋषि के कोप के कारण उसे शिला होना पड़ा, जिसका बाद मैं श्री राम के द्वारा उद्धार हुआ, इन्द्र जैसे देवता जब ऐसा करते है,तो मन्युष की क्या औकात?
यह सब तो हुई धार्मिक कहानिया, सुकरात को जहर का प्याला पीना पड़ा, क्या बुरा वोह करता था,केवल यही तो कहता था, जो सही लगे उसका पालन करो, बस येही तो दोष था बेचारे का, और उसने कीमत चुकाई जहर का प्याला पी कर, गलिल्यो के समय यह मान्यता थी, की सूर्य पृथिवी के चारो ओर घुमती है, परन्तु उसने इसका परतिवाद क्या और उसको भी जान गवानी पड़ी, इससे क्या सिद्ध होता है, अधिंकाश लोगो की सुबुधि पर दुर्बुधि हावी होती है, या यु कहा जा सकता है, अच्छाई पर बुराई शीघ्र हावी होती है।
और बुराई इन्सान को गर्त मैं धेकलती जाती है, कुछ बुराई तो मजबूरी बश होती है, जैसे अगर किसी के घर मैं खाने का अवाभव है तो वोह अपनी और अपने परिवार की शुधा शांत करने के लिए चोरी ही तो करेगा, यह जानते हुए भी की चोरी बुराई है, और पुलिस द्वारा बार बार पकड़े और छुटने के कारण उसकी यह आदत बन जायगी, किसी इस्त्री को अगर बलपूर्वक वैश्या बना दिया जाए, तो वोह लाख प्र्यतन के बाद भी वोह इस जंजाल से नहीं निकल पाती यह तो होता है मजबूरीवश, कहते हैं गुरु ही बुराई को अच्छाई मैं परिवर्तित करता है, परन्तु ऐसे गुरु आज कल मिलते ही कहा है,जो की शिष्य के आचरण को ही परिवर्तित कर के ऐसा कर दे की उसका अन्तकरण: ही बदल जाए और शिष्य के मन मैं दुर्बुधि के स्थान पर सुबुधि अंकुरित हो?
और तो और आज के समाज मैं अच्छाइयों के साथ जीना ही दुर्लभ हो रहा है, कोई ऐसा गुरु कहाँ मिलता है, जो की कृष्ण की तरह इस समाज की बुरइयो से लड़ते हुए जीना सिखा दे?
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