सर्व मंगल मांग्लय शिवे सर्वार्ध साधिके |
नारायणी त्रियअम्बके गौरी नामोस्तेय ||
सबका मंगल चाहने वाली माता,आपके तीन नेत्र हैं,आपको नमस्कार है |
माँ के शस्त्र धारण करने का कारण यही है, दुष्टों का विनाश करना और संतो को अभयदान देना,माँ आपके दुर्गा सप्तशती के मन्त्र इतने सशक्त है, जो तुरन्त फल देते हैं, कहीं यह दुष्टों के हाथ ना पड़ जाये इसलिए देवादि देव महादेव को इनको कीलित करना पड़ा, जिसकी एक हुँकार से दुष्टों का विनाश हो सकता है, आपकी सोच इतनी उत्तम है, मेरे शस्त्रों से जो मारे जाये वोह उत्तम लोको को जाएँ, इसलिए आपने दुष्टों का संघार करने के लिए शस्त्र उठाये |
बस में,शिव,शिवा और गौरी पुत्र गणेश को कर बध नमस्कार करके कहता हूँ |
माँ की हर बात निराली है, माँ की शान निराली है ||
अपराध मेरे बहुतेरे माँ ध्यान ना धरना माँ
अपराधो समेत तेरी शरण में आया हूँ |
माँ तेरा ही जाया हूँ ||
मन्त्र,तंत्र ना जानू माँ |
कर्म कांड के मंत्र क्या हैं,पहचानू ना माँ ||
है,जाग जननी,है योगमाया आपको नमस्कार करके,आपके सहज दिए हुए दर्शन के बारे में लिख रहा हूँ,
या देवी सर्वभूतेषु मात्र रूपेण,संस्थिता,नम्स्त्सय,नमस्तस्य,नमो: नम :
है ! भोली माता लिखने में,कोई त्रुटी हो तो क्षमा कर देना माँ, इस लेख श्रृंखला के द्वतीय भाग में,मैंने लिखा था,मेरी ममेरी बहिन मुझ से कटने लगी, एक तो मेरा उसकी ओर जाना, और उसका मुझ से दूर,दूर रहना मेरी बुद्धि पर असर करने लगा, मेरी माँ अक्सर दुर्गा स्तुति का पाठ करती है, इसी कारणवश में एक रविवार को अपने मामा जी के यहाँ ना जाकर के, दुर्गा स्तुति का पाठ,माँ की मूर्ति के सामने बैठ कर करने लगा,वोह भी माँ की जोत जलाये बिना, उस दुर्गा स्तुति में,माँ का स्वरुप ढूंढ़ता लेकिन उसमें तो माँ की महिमा का वखान है, दुर्गा स्तुति का पाठ समाप्त करने के बाद में,दिल्ली की जमुना के घाट पर जा पहुंचा, उस स्थान उससमय चीनी खाने बनते थे, जिसका प्रारंभ ही हुआ था,जो कि तिब्बत के विस्थापित लोगों द्वारा नया,नया ही प्रारम्भ हुआ था,पर वहाँ ना जाकर के जमुना घाट पर बैठ कर दूसरे किनारे की ओर देखता और खुली आँखों से माँ के चिंतन में खोया हुआ था, कुछ समय वहाँ व्यतीत करके घर आ गया,और जब शयन का समय हुआ,तब सो गया, पता नहीं वोह कौन सा रात्रि का प्रहर था,या प्रात: काल का वोह समय होगा जब अंधकार होता है,उस समय दुर्गा माँ और माँ काली मेरे स्वपन में आयीं, पता नहीं में कैसे उठ कर बैठ गया और देखता हूँ, मेरा वोह शयन कक्ष आलोकिक प्रकाश से भरा हुआ था,
माँ अम्बे और माँ काली मेरे समक्ष खड़ी हुईं थीं,और माँ अम्बे ने संकेत से पूछा भी,"क्या चाहिए", लेकिन में तो माँ काली के स्वरुप से भयभीत था,और दूसरे कमरे की ओर जिसमें मेरे माँ और पिता जी सोये हुए थे वहाँ भागा कोई गुरु तो था नहीं मेरा जो मुझे संभालता और जब लौट कर अपने कमरे में आया,तो माँ दुर्गा और माँ काली वहीँ विद्यमान और माँ अम्बे का वही संकेत तब मेरे मुख से भय और घबराहट से यही निकला,"मुझे कुछ नहीं चाहिए आप जाइए",और दोनों अंतरध्यान हो गयीं,उसके पश्चात बहुत प्रयास किया पर माँ के साक्षात् पुन: दर्शन नहीं हुए,हाँ कभी,कभी अम्बे माँ का आभास हो जाता है, और कंजक रूप में आ कर कुछ ना कुछ गलतियों का एहसास करा जातीं है, माँ का दिल ममता से भरा हुआ है,वोह बार,बार क्षमा करतीं हैं |
में तो येही सोचता था, ऐसी लगी लगन मीरा हुई मगन प्रभु के गुण गाने लगी |
जयकारा शेरा वालीं माँ का |
2 टिप्पणियां:
जयकारा शेरा वालीं माँ का
आप तो भग्यशाली हैं जिन्हे माँ ने दर्शन दिए|
एक टिप्पणी भेजें