गुरुवार, मई 27, 2010

हमारे देश के सत्ता पक्ष और विपक्ष क्या मिल कर देश की प्रगति के लिए आम सहमती नहीं बना सकते ?

जब भी समाचार पत्रों को उठा के देखो तो कोई भी मुद्दा हो, जैसे आज कल जातिगत जनगणना को मुद्दा,या नक्सल बाद का मुद्दा तो विपक्ष अक्सर सत्ता पक्ष पर आक्षेप ही लगाता ही दिखाई देता है, सत्ता पक्ष से उस मुद्दे का उत्तर माँगा जाता है,परन्तु अपनी और से कोई भी सुझाव देता नहीं देता   है, आज कल विपक्ष आसमान छूती महंगाई के विरोध में प्रदर्शन कर रहा है,परन्तु यह सुझाव नहीं दे रहा है,कि इस बड़ती हुई महंगाई कि रोकथाम कैसे हो, क्या विपक्ष का यही काम है सत्ता पक्ष के विरुद्ध आवाज उठाना, अगर इस समय का चुनाव के बाद विपक्ष का स्थान ले लेता है, जैसा होता आया है तो यह भी बस बदले हुए सत्ता पक्ष पर आरोप ही लगता नजर आयेगा
अगर विपक्ष आक्षेप लगाये और उसके साथ सुझाव भी दे और सत्ता पक्ष उन सुझावों वों को कार्यान्वित करे तो देश की प्रगति के आसार अधिक हो जायेंगे, देश की प्रगति के लिए स्वस्थ बहस तो अच्छी है, प्रतेक कार्य में गुण दोष तो होते ही हैं, अगर विपक्ष दोष तो बताये और उसके साथ उसका निवारण भी बताये और सत्ता पक्ष उन दोषों को सुन कर उनका निवारण करे तो देश उन्नति की ओर अग्रसर होगा |
 कोई भी राजनितिक पार्टी सत्ता पक्ष में आती है, उसकी अपनी उपलब्धियां तो होतीं ही हैं,जैसे इस समय के सत्ता पक्ष के द्वारा मेट्रो ट्रेन लाना और उसका विस्तार करना, लेकिन दोष भी होतें हैं, जैसे सदन पर हमला करने वाले अफजल गुरु का कोई फैसला नहीं हो पा रहा हैं, उसकी फाइल एक विभाग से दूसरे विभाग में सरका दी जाती है,परन्तु कुछ निष्कर्ष ही नहीं निकल पा रहा, यह तो सरकार के गले की फाँस बना हुआ है |
 आखिर यह लोग जनता के द्वारा चुने होतें हैं, और जनता इन से आशाएं रखतीं हैं,जब इन नेताओ के द्वारा जनता की आशाएं पूरीं नहीं हो पाती तो लोग यह समझ नहीं पातें किसको वोट दे कर अपना पर्तिनिधि  चुना जाये,और चुनाव के समय यह प्रचार होता कि हर नागरिक को वोट देना चाहिए,अगर कोई भी पार्टी सकारात्मक कार्य करेगी तो जनता का उस पार्टी पर विश्वास बढेगा और जनता उस पार्टी को स्वत: ही वोट देगी,इस प्रकार के प्रचार की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी |
 आखिर यह लोग लोकतान्त्रिक देश के राजनेता हैं,और जनता की आवश्यकताओं को पूरा करना इनका कर्त्यव्य है,जनता का आत्मविश्वास तो इनके हाथ में |
 अगर प्राक्रतिक आपदाओं के कारण, यह नेता संभावित कार्य नहीं कर पाते तो यह तो इनकी विवशता हो सकती है, जैसे गत वर्ष में वरिश ना होने के कारण फसल की हानि,और इस कारण महंगाई बड़ने का तो कारण था, लेकिन अगर प्राक्रतिक आपदाएं ना हो,और जनता की आशाओं पर तुषारापात हो तो,राजनेता कहलाने वालों से क्या आशा की जा सकती है |
 जब कोई पार्टी चुनाव में हार जाती है, तो उस पार्टी के लोगों में पार्टी के हार का कारण ढूँढा जाता है, कि वोह पार्टी क्यों हारी
 है, परन्तु यह नहीं ढूँढा जाता देश के विकास में क्या अवरोध आयें हैं,जिसके कारण पार्टी हारी है ?
 यह सदन में गरमा,गर्मी वाक आउट के स्थान पर अगर विपक्ष सत्ता पक्ष के दोष बता कर उनका निवारणका हल भी बताये  तो देश प्रगति कर सकता है |
 जनता को यह अधिकार ही नहीं है,कि इन लोगों से प्रश्न पूछ सके,तो यह आम जनता क्या करे? बस कभी,कभी प्रेस कोंफ्रेंस हो जाती है,और इन नेताओं से मीडिया ही अधिकतर प्रश्न पूछता है ?
  जब जनता त्रस्त हो जाती है,तो आन्दोलन पर उतर आती है, तब सत्ता पक्ष समाधान की बात करता है, अगर अकारण ही मूल भूत सुविधा ना मिले तो जनता में रोष तो होगा ही |
पक्ष हो या विपक्ष कभी विपक्ष सत्ता पक्ष में आयेगा और सत्ता पक्ष विपक्ष में आएगा अगर आम जनता का विश्वास प्राप्त कर सकेगा तो जनता स्वत: ही वोट देगी |
 देश हित में सत्ता पक्ष में निजी मतभेद मिटा कर देश हित में एकमत तो होना ही पड़ेगा |
  






2 टिप्‍पणियां:

honesty project democracy ने कहा…

बना सकते हैं लेकिन इनको अपने स्वार्थ और लोभ-लालच से ऊपर उठकर देश और समाज हित में सोचना होगा /

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

और अधिकतर चैत्तिंग में पूर्णिमा लिख रहा था,तब पूर्णिमा जी ने मजाक में कहा जब आप पूर्णिमा लिखेंगे,तब शुभकामनाये लूंगी,लेकिन फिर मैंने पूर्णिमा लिखा तब वोह बोली फिर गलत,उसके बाद मैंने अपनी त्रुटी सूधार के पूर्णिमा लिखा तो वोह बोलीं, "यही हुई ना बात" |
विनय जी ये पहेली मेरी समझ में नहीं आयी । कृपया सुलझायें ।
मुझे सभी " पूर्णिमा " नाम एक जैसे लग रहे हैं और आपके
अनुसार अंतोम को छोङकर ऊपर वालों में त्रुटि है..कृपया
इस जिग्यासा का समाधान करें ।
golu224@yahoo.com
satguru-satykikhoj.blogspot.com