इस लेख का प्रारंभ कर रहा हूँ,एक प्राचीन काल की घटना से,आज के युग में नारियों को अभी बराबरी का हिस्सेदार नहीं समझा जाता है, वनिस्पत आज नारियां बहुत से वोह कार्य कर रहीं हैं, जिनपर पुरषों का एकाधिकार था,आज सेना में नारियां हैं,परन्तु उनका सेवा काल केवल चोदह वर्ष है,जबकि पुरषों का सेवाकाल पद के हिसाब से अधिक है, वायु सेना में स्त्रिया हवाई जहाज उड़ा रहीं हैं, लेकिन फाइटर वायुयान के लिए नारियां नहीं हैं,इसी प्रकार इन्फेंटरी वोह सेना जो जंग के समय युद्ध मोर्चे पर आगे रहती हैं, उसमें स्त्रिया नहीं हैं,कारण यह है,की नारियां कहीं युध्बंदी ना हो जाये, हाँ बोर्डर सिकुयुरीटी में नारियों का समावेश अवश्य किया गया है ,आज संसद में जब 33 प्रतिशत महिला आरक्षण का बिल पास किया गया था,तो इसके विरोध में जोरदार प्रदर्शन हुआ था, जो हुआ था वोह तो सर्वविदित है |
लेकिन हमारे प्राचीन भारतवर्ष में स्त्रियों को उचित सम्मान दिया जाता था और स्त्री पुरष को एक समान समझा जाता था, और उस समय बहुत सी विदुषी स्त्रियाँ भी हुई थीं, उनमे से एक थीं गार्गी शस्त्रों में प्रकांड पंडित,उस समय शस्त्रों की अधिकतर वाद विवाद प्रोतियुगता हुआ करती थी, शास्त्रार्थ करने के लिए लोग दूर,दूर से पुस्तकों लेकर आते थे, जिसके बारें में कबीर दास जी का दोहा भी है |
पोथी पड पड जग मुआ पंडित भया ना कोय |
ढाई आखर प्रेम के जो पड़े सो पंडित होय ||
गार्गी के समय एक ऋषि हुए थे,याग्यवाल्य्क्य ऋषि, ऋषि याग्वालाक्य के साथ गार्गी का शास्त्रार्थ होने लगा, जैसे कबीर दास जी ने अपने ऊपर लिखे हुए दोहे में,से पहली पंक्ति में कहा है,उसके अनुसार जो शास्त्रार्थ में विजयी हो जाता था, उसको हारने वाले से उच्च कोटि का पंडित माना जाता था, अब ऋषि याग्यवालाक्य और गार्गी का शास्त्रार्थ होने लगा, दिन बीतते गये पर ना गार्गी हार मान रही थीं ना ऋषि यागाय्वाल्क्य, ऋषि यागयावालाय्क्य को गृहस्थ जीवन का अनुभव नहीं था, परन्तु गार्गी तो गृहस्थ जीवन व्यतीत कर रहीं थीं, और गार्गी ने ऋषि यागावालाक्य से गृहस्थ जीवन के बारे में प्रश्न पूछ लिया, जिसका उत्तर ऋषि यागावाल्य्क्य नहीं दे पाए और शास्त्रार्थ में हार गये,और गार्गी विजयी हो गयीं, तत्पश्चात ऋषि यागावालाक्य ने माँ के गर्भ में प्रवेश कर के गृहस्थ जीवन का अनुभव लिया, वास्तव में तप क्या है, अपने को तपाना, इसका अर्थ यह नहीं है अपने शरीर को बिभिन्न प्रकार के कष्ट दो, इसका अर्थ है दूसरों के लिए विभिन्न प्रकार के कष्ट सहना, और इन कष्टों को सेहन करते हुए,प्रभु को समरण करना, इसी सन्दर्भ में एक और कथा है, सीता जी के पिता राजा जनक और राजा परीक्षत को भगवद्गीता सुनाने वाले शुकदेव जी के बारे में |
शुकदेव जी को किसी ने कहा राजा जनक को अपना गुरु बनाने को, और शुकदेव जी पुस्तकों का बोझ लादे हुए पहुँच गए राजा जनक के यहाँ,और देखते क्या हैं राजा जनक शानदार महल है,अनेकों रानियाँ हैं, शुकदेव जी सोचने लगे कि इतनी भोग विलासिता वाला मेरा गुरु कैसे हो सकता है, राजा जनक को शुकदेव जी की बात का ज्ञान हुआ,तो राजा जनक के हाथ में एक दिया दिया और राजा जनक शुकदेव जी से बोले,इस दिए को लेकर मेरे महल का चक्कर लगाओ और यह दिया बुझना नहीं चाहिए,शुकदेव जी का ध्यान तो केवल दिए पर ही केन्द्रित था,कहीं यह दिया बुझ ना जाये,और जब शुकदेव जी महल का चक्कर लगा कर राजा जनक के पास पहुंचे,तो राजा जनक ने पूछा महल में क्या देखा, शुकदेव जी का ध्यान तो दिए पर ही केन्द्रित था,तो उन्होंने उत्तर दिया मेरा ध्यान दिए पर ही केन्द्रित था,फिर बाकि में क्या देख पाता ?
राजा जनक ने फिर शुकदेव जी के हाथ में दिया,दिया और बोले महल की सब वस्तुएं देखना,और ध्यान रखना दिया ना बुझे,अब शुकदेव जी महल की वस्तुएं तो देखते ही थे,और बीच,बीच में दिए को भी देखते थे,और अब जब शुकदेव जी महल का चक्कर लगा कर राजा जनक के पास पहुंचे,तो राजा जनक ने पुन: पूछा महल में क्या देखा ? तो शुकदेव जी ने महल की सारी भव्यता राजा जनक को सुना दी,और दिए की लौ भी जल रही थी, तब राजा जनक ने कहा जिस प्रकार तुमने दिए में भी ध्यान रखा और महल को भी अच्छी प्रकार से देखा,उसी प्रकार में इस भोग विलासिता में रह कर गृहस्थ जीवन के सारे कर्म करता हूँ,और प्रभु को भी हर समय स्मरण करता हूँ, यही गृहस्थ जीवन का तप है,जो कि सबसे बड़ा तप है |
अपने गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों को छोड़ कर, तप के लिए,पर्वतों,कंदराओ,जंगलो में भटकना तो पाप है |
थोड़ा गंभीर हो गया है,यह लेख चलो कुछ हंसी भी हो जाये |
परीक्षा और गर्लफ्रेंड एक समान हैं
दोनों में ही कठिन प्रश्न होते हैं
और उनकी व्याख्या बहुत करनी पड़ती है
हिंदुस्तान टाइमस के देल्ही टाइमस के सोजन्य्स से |
बस एक हल्का फुल्का चुटकुला
कृपया कोई बुरा ना माने
क्रमश:
1 टिप्पणी:
Bahut sundar aalek hai..aapke saath sahmat hun..
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