शुक्रवार, जुलाई 30, 2010

ईश्वर ने यह सृष्टि क्यों बनाई ?

"दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई
काहे तूने दुनिया बनाई
काहे बनाये तुने यह पुतले
क्यों उनको दे दी खुदाई "
यह राजकपूर द्वारा "तीसरी कसम फ़िल्म में गाया हुआ यह गीत मझे भी यदा,कदा विचलित करता है, मेरा भी उस ईश्वर,खुदा,
गोड, परमपिता परमेश्वर से यही प्रश्न है,क्यों तूने इस सृष्टि का निर्माण किया?आप को बहुत से  नामों से पुकारा जाता है, हिन्दू धर्म में परमात्मा,ईश्वर, भगवान,आदि,आदि,मुस्लिम धर्म में,खुदा और अल्लाह,और इसाई धर्म में गोड,जिसके बेटे इसा मसीह थे,और मुस्लिम समुदाय के पेगेम्बेर थे मोहम्मद साहब, प्रभु इंसान ने जन्म लिया था,उस समय तो उसका कोई धर्म नहीं था,पर आपके बन्दों ने तो आते ही  जाती,धर्म में बटवारा कर दिया,और अलग,अलग जाती और धर्म वाले अपने को एक दूसरे से श्रेष्ठ बताने लगे,है परमपिता यह आपने इंसानों को इस प्रकार की बुद्धि देकर कौन सा खेल रचा था?  और है ईश्वर इसी से इंसान का मन नहीं भरा तो,एक ही जाती और धर्म मानने वाले भी तो अपने को एक दूसरे से श्रेष्ठ बताने लगे हैं, हिन्दू धर्म में सगुण,और निर्गुण मर्गियों में आपस में मतभेद,सगुण कहते हैं,सगुण श्रेष्ठ और निर्गुण कहते हैं,निर्गुण श्रेष्ठ,फिर द्वैतवाद और अद्वैतवाद का यही आपस में तर्क है ईश्वर ? मुस्लिम सम्प्रदाय में शिया और सुन्नी में भी यही तर्क, इसाईओं में भी यही कथोलिक,प्रोटेसटेंट इत्यादि में यही तर्क ऐसा क्यों प्रभु?
और तो और है ईश्वर हिन्दू धर्म के चार और उपजातियां बन गयीं,ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र, इंसानों ने तेरी इस दुनिया में
है मालिक,यह हिन्दू धर्म में उपजातियां बना कर,ब्राहमण को सर्वश्रेष्ठ,फिर क्षत्रिय,वैश्य को क्रमतर श्रेष्ठता के आधार पर वरिनिकृत किया है  और शुद्रो को निकृष्ट, और कहीं,कहीं तो शूद्रों से ऐसा व्यवहार कि नित्य परतिदिन की आवश्यकता जैसे कुँए का पानी सार्वजानिक कुओं से नहीं ले सकतें,उनसे छूना दोष है, ऐसा क्यों प्रभु,जब सब की आत्मा एक हैं,सब आपकी संतान है,तो यह भेदभाव कैसा है ईश्वर?
इस सृष्टि में,आपने प्राकर्तिक आपदाएं क्यों बनाई,जिसमें नीरीह,भोले,भाले जीवों की मृत्यु हो जाती है,और उनके संगी,साथी कुछ नहीं कर पातें हैं , सिवाय रोने बिलखने के, ऐसा क्यों है परमात्मा ?
और तो और सबके हिर्दय में,मृत्यु का ऐसा भय इस कारण बैठा दिया है, मृत्यु के ऐसी अनजानी मंजिल बना दी जहाँ से कभी कोई लौट के नहीं आता है, और यह भय सबमें व्याप्त कर दिया ऐसा क्यों है परमात्मा ?
क्या आपने इसीलिए सृष्टि की रचना की नीली छत्री वाले ?

बुधवार, जुलाई 21, 2010

धन्यवाद हमारीवाणी |

जब से आपका अस्थायी संकलक बंद हुआ था,और ज्ञात ही नहीं था,कब दुबारा अपने सवरूप में आएगा,में तो अपने को अपाहिज सा अनुभव कर रहा था, यह तो अच्छा हुआ कि चर्चा मंच को मैंने जोड़ रक्खा है,और उसमें रूप चन्द्र शास्त्री के द्वारा सूचित करने पर मैंने तुरंत आपके नए स्वरुप "हमारीवाणी.कोम  में,अपना खाता,तथा प्रोफाइल और अपने ब्लोगों को जोड़ा,और अनामिका की सदायें को धन्यावाद देता हूँ,जिन्होंने मेरे ब्लॉग को चर्चा मंच में जोड़ा,और में इस हमारीवाणी को उनके कारण देख सका |
और मेरे पास कहने को शब्द नहीं हैं |

"धन्यवाद ब्लोगवाणी का नया स्वरुप हमारीवाणी"

शनिवार, जुलाई 17, 2010

महिलओं के नामो से परेशान हुआ

पत्नी ने पूछा क्या कर रहे हो ?
मैंने कहा अपनी कविता के साथ हूँ 
तमतमा के बोली पत्नी यह कविता कौन है ?
उत्तर था मेरा यह तो मेरी रचना है |
अब वोह बोली अभी तो कविता के साथ थे ||
यह रचना कहाँ से आ गयी |
में बोला अरे में प्रगति की ओर जा रहा हूँ |
फिर तो वोह बोली अभी तो कविता,रचना कर रहे थे?
क्या इनसे मन नहीं भरा जो चल दिए प्रगति की ओर ||
अब मेरा उत्तर था अरे में काव्य की बात कर रहा हूँ |
गुस्से में तो थीं ही श्रीमती जी काव्य को काव्या सुना |
बोली फूटी किस्मत मेरी अब यह काव्या कहाँ से आ गयी ||
जब मैंने अंग्रेजी में कहा पोइट्री तो श्रीमती शांत हुईं|
 
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शुक्रवार, जुलाई 16, 2010

वर्णव्यवस्था दूषित क्यों हो गयी थी ?

कहा जाता है,जब इस पृथ्वी पर प्रलय हो चुकी थी,और उस प्रलय के बाद केवल  स्वयंभू  मनु और श्रधा इस संसार में जीवित बचे थे, पृथक,पृथक धर्मो में,एक कथा तो लगभग सभी धर्मो में एक सी ही है, जब इस पृथ्वी पर प्रलय हुई थी,तो सर्वत्र जल का समराज्य था,हमरे देश में, विष्णु भगवान ने मतस्य अवतार लेकर,एक नौका को अपने से बांध कर मतस्य अवतार लेकर उस जल में से खींच कर के सुरक्षित स्थान पर ले गये थे,और उस नौका में वोह लोग वैठे हुए थे,जिनको पता चल गया था,प्रलय के समय सर्वत्र जल का सम्राज्य होगा,और वोह लोग बच गये थे,परन्तु अधिकतर वर्णन आता है,श्रधा और मनु का ,और उसके पश्चात मानव ने इस धरा पर जन्म लिया,इसी प्रकार मुस्लिम और इसाई धर्म में भी,नूह और नोहा का वर्णन आता है, इन लोगों ने भी जब जल सर्वत्र था,परमेश्वर के द्वारा बताने के बाद,उसी प्रकार सुरुक्षित स्थान पहुँच गये थे, जैसे  विष्णु भगवान के मतस्य अवतार लेने के बाद,वोह लोग पहुँच गये थे, जो लोग उस नौका में बैठे थे,जिसको विष्णु भगवान ने मतस्य रूप में खींचा था, बाकि धर्मो को छोड़ कर हिन्दू धर्म को लेतें हैं,जो कि भारतवर्ष में हैं,और जिसमें मनु और श्रधा हुए थे, और जो मनु और श्रधा के बाद और मानव,मानवी इस हिंदुस्तान की धरा पर आये,और उसके पश्चात बनी वर्णव्यवस्था,ब्राहमण,क्षत्रिय,वैश्य,शुद्र,सब के अलग,अलग कर्तव्य निर्धारित कर दिए गये,ब्राह्मणों का कार्य पठन, पाठन क्षत्रियों का काम सुरक्षा,वैश्य का कार्य धनोउपार्जन,और शूद्रों का कार्य सबकी सेवा करना, यह बात पृथक है,जब देश की सुरक्षा का सवाल आया तो, सबसे पहले देश और शास्त्रों की रक्षा करने के लिए,ब्राह्मणों ने क्षत्रियों  के प्रकार शस्त्र भी उठा लिए थे, और तत्कालीन राजाओं ने ब्रहामणों के लिए एक शाही दिन इनके लिए निर्धारित कर दिया था, कुम्भ पर होने वाला शाही स्नान इसी बात का प्रतीक है, ब्राहमण,क्षत्रियों,वैश्यों के साथ तो सम भाव रहा,परन्तु शुद्रो के साथ उपेक्षित व्यवहार क्यों था, अगर शुद्रो वेद सुन लें तो उनके कानो में पिघला हुआ सीसा डालने का कानून था,उनसे छूना वर्जित था, बहुत से रुर्डीवादी तो आज कल भी यह छुआ छूत की परम्परा निबाह रहें हैं, जब कालांतर में सब मनु और श्रधा की संतान बने तो आपस में इस प्रकार की मानसिकता क्यों थी,एक ही प्रकार की संतान में वैर क्यों था ?क्या माँ बाप अपनी संतानों को सिखाते हैं आपस में वैर भाव रखो?  कहा जाता है,"आत्मा अंश जीव अविनाशी ",और आत्मा को परमात्मा का अंश कहा गया है,शुद्रो को मंदिर में जाने की आज्ञा नहीं थी,यह कैसा विरोधाभास था, एक ओर तो कहा जाता था,आत्मा परमात्मा का अंश है,क्या शूद्रों की आत्मा परमात्मा का अंश नहीं थी?आत्मा अगर परमात्मा का अंश है, तो परमात्मा का परमात्मा से वैर कैसा ?
 शूद्रों को उच्च जाती के लोगों के साथ बैठना, उनके कुओं से पानी लेना सर्वथा वर्जित था,यह किस प्रकार की वर्णव्यवस्था थी ?
यह भी कहा जाता है,ब्राह्मणों की उत्पत्ति,ब्रह्मा जी के मुख से, क्षत्रियों की उत्पत्ति ब्रह्मा जी की भुजाओं से, वैश्यों की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के उदर से,और शूद्रों की उत्पत्ति ब्रह्मा जी की टांगो से हुई थी, फिर एक ही शरीर से उतपन्न लोगों का आपस में वैर? समझ नहीं आता |
अंत मे कहना चाहूँगा, शरीर के अलग,अलग भागो को भी इस प्रकार से विभक्त क्या गया है, सिर को ब्राहमण, भुजाओं को क्षत्रिय,उदर को वैश्य कहा गया और पैरो को शुद्र कहा गया है, तो इस शरीर के भागो का आपस में वैर कैसा ?
क्यों थी वर्णव्यवस्था दूषित?

गुरुवार, जुलाई 08, 2010

हमारे देश में सामाजिक चेतना का अभाब क्यों है ?

हमारे देश भारत में सामाजिक चेतना का अभाव क्यों है, समझ नहीं आता क्या यह अशिक्षा का प्रभाव है ?, या स्वार्थ की भावना
है ? या इन दोनों का मिला,जुला प्रभाव है ?
इस सामाजिक चेतना का लाभ उठातीं हैं,राजनीतिक पार्टियाँ और हानि किसकी होती हैं,जनता की, विरोधी पार्टियों को कोई मुद्दा मिला नहीं,और उतर आतीं हैं,अन्दोलोनो पर, आन्दोलन करना तो ठीक है, परन्तु  निजी,सरकारी संपत्तियों को हानि पहुँचाना कहाँ तक उचित है, कुछ राजनीतिक शरारती तत्व भोली जनता तो उकसाते हैं,और यह भोली जनता उनके बहकावे में,आकर के तोड़,फोड़,आगजनी,रेलगाड़ियों तथा बसों को रोकना प्रारम्भ कर देते हैं, इससे हानि किसे होती है,जरा सोचिये,अगर रेलगाड़ियों को रोका जाये तो कोई अपने विशेष प्रयोजन के लिए या आवश्यक काम के लिए जा रहा हो,जैसे किसी का व्यवसाय के लिए साक्षात्कार हो और वोह रेलगाड़ी रुकने के कारण वोह साक्षात्कार के लिए उपस्थित ना हो पाए,गया ना उस समय आजीविका कमाने का साधन वोह वंचित रह जाये ,वोह आपका भी तो बही,बंधू हो सकता है,|
बसों को जलाने या बसों को तोड़,फोड़ करने से क्या लाभ,कोई रोगी बस में बैठ कर अस्पताल के लिए जा रहा हो,और बस के चलने में बाधा पड़ने के कारण वोह अस्पताल ना पहुँच पाए और दम तोड़ दे, वोह हम लोगों में से कोई भी हो सकता है,आप लोग यह क्यों नहीं सोचते ? अभी कुछ दिनों पहले विरोधी पार्टियों ने महंगाई के विरोध में  बंध का एलान किया और बाजार बंद करवाए,यह तो सही है,परन्तु सोचिये निजी,सार्वजानिक संपत्तियों को हानि पहुँचाने से किसी हानि होगी ? सन 1984 में हमारी पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या हुई थी,और उस समय  एसी दंगो की आग भड़की की,अधिकतर सिक्खों की जान पर बन आई, वोही आगजनी,वोही तोड़,फोड़ और उस हानि की भरपाई आज तक नहीं हो पायीं है,अगर सरकारी संपत्तियों को हानि  पहुंचाई जाएगी तो सरकार उस हानि को किसके द्वारा क्षतिपूर्ति करेगी,जाहिर है,जनता से कर के रूप में, इन्टरनेट से तो यह सन्देश अधिक लोगों को नहीं पहुँच पायेगा,क्योंकि हमारी अधिकतर जनता में शीक्षा का आभाव है,मत आओ भाई,बहनों इन बहकावों में |
जब कोई धार्मिक कार्यक्रम जैसे जागरण इत्यादि इस प्रकार के कार्यक्रम होतें हैं,तो अक्सर शामियाने इस प्रकार लगाय जाते हैं की सड़क के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक यह शामियाने स्थान ले लेतें हैं, इससे सड़क पर निकलने में कठिनाई होती है, जैसे ऊपर लिखा गया है, अगर कोई किसी आवशयक काम के लिए जा रहा हो और उसको वोही रास्ता ज्ञात हो तो पड़ गयी ना उसके काम में बाधा,और इस प्रकार के धार्मिक अयोजोनो में,लाउडस्पीकर लगा कर जोर,जोर से  भजन इत्यादि गाए जाते हैं,अगर कोई आसपास में रोगी हो या कोई परीक्षा की तय्यारी कर रहा हो,यह कृत्य बाधक बनेगा की नहीं ? अरे भगवान का तो कार्य कर रहे हो,और भगवान के बन्दों को दुखी कर रहे हो,ये कैसी पूजा है ?
और तो और जागरण में नाम ले लेकर पुकारा जाता है, इसकी इतने रूपये की अरदास,क्या भगवान गरीबों का नहीं हैं,इसको व्यापर क्यों बनाते हो?
रामायण की इस चोपाई पर तनिक ध्यान दो "छल कपट मोहे नहीं भावा",इसका अर्थ समझो भगवान को प्राप्त करना है तो
छोड़ो यह आडम्बर भगवान प्रसन्न होतें हैं,निर्मल भक्ति से,अगर कोई धार्मिक आयोजन करना है,तो पार्क इत्यादि सार्वजानिक व्यवस्था करो,आप भी खुश,जनता भी खुश और ईश्वर भी प्रसन्न |
आज कल सड़को पर देखो तो कैसे अव्यवस्था नजर आयगी,हर किसी को जल्दी है,आगे निकालने का स्थान नहीं हैं,पीछे से भोपुओं के शोर अगर रात्रि काल हो तो पीछे से कार के दिप्पर,यह लोगों के अपने बनाये हुए नियम जो की,वाहन चलाने के लिखित नियोमो में तो नहीं हैं |
बहुत बार यह भी होता है,कोई बच्चा खेलता,खेलता बोरवेल या मन्होल में गिर जाता है,जो कि ठेकेदार या सरकारी कर्मचारियों का काम है,इनको सुरक्षित तरीके से ढक कार रखें,हो सकता है,अगला बच्चे का गिरने का नम्बर ठेकेदार या सरकारी कर्मचारी में से किसी का हो |
जागो बही,बहनों जागो कुछ अपने में भी तो सामाजिक चेतना लाओ |