बुधवार, फ़रवरी 03, 2010

प्रक्रति भेद भाव नहीं करती पर इन्सान क्यों?

अक्सर मेरे मस्तिष्क में यह प्रश्न उपजता है, साधारणत: प्रकर्ति भेद भाव नहीं करती कुछ अपवादों को छोड़ कर, अपने नियमित और अनुशासन्तक कर्मो में सदा बंधी रहती है, प्रातकाल कीसूर्य की  स्वर्णिम रश्मियाँ इस धरा को आलोकित कर देती हैं, पक्षियों का कलरव वातावरण में गूंजने लगता है, और सूर्य की प्रात: काल की किरने हमारे शरीर को विटामिन डी उपलब्ध करातीं है, इस प्रकार सूर्य मानव के स्वास्थ्य लाभ पहुंचाती हैं,और सूर्य की रश्मियाँ नदी तालाब,पोखर और सागर पड़ पड़ती हैं,तो जल वाष्प के रूप में परिवर्तित हो कर बादलों का स्वरुप ले लेतीं हैं, और जब इस वाष्प की अधिकता हो जाती है,तब पड़ती हैं रिमझिम वर्षा  और यह रिमझिम वर्षा का जल कुछ तो धरती की प्यास बुझाता है,और कुछ अधिकतर चला जाता है, धरती के गर्भ में और जल और यह जल पेड़ सूर्य की किरणों के साथ मिल कर पेड़ पौधों को जीवन प्रदान करता है, वर्षा के कारण इन्सान को झुलसती गर्मी से भी राहत मिलती है, और यह पेड़,पौधे भूमिगत जल को मजबूती से पकड़ कर रखतें हैं, और यही पेड़ पौधे हैं,जो सूर्य की किरणे प्राप्त करके हमारी प्राण वायु ओक्सीजन निष्कासित करतें हैं, और इसी वायुमंडल में नईटरोजन और कार्बोनडाईओक्सीइड इस ओक्सीजन के मिश्रण से हमारें साँस लेने की वायु का निर्माण होता है, और जब हम कार्बोनडाई ओक्सईड साँस के द्वारा निष्कासित करतें हैं, यही कार्बोनडाओक्सइड दिन में पेड़,पौधे ग्रहण करतें है,और ऑक्सीजन निष्कासित करतें हैं, जब वर्षा की अधिकता हो जाती है, तब आती है शीत ऋतू और, पर्वतों की उचाईयों पर वर्फ जमने लगती है,और ग्रीष्म ऋतू आते ही यह हिम पिघल कर नदियों में जाता है,इस कारण नदियों में जल का संतुलन बना रहता है, कभी प्रक्रति को भेद,भाव करते किसी ने भी अनुभव किया है? सूर्य  धरा के प्रतेयक स्थान पर अपनी रश्मियाँ विखेरता है,क्या इसका धरा से भेद भाव है ? क्या वर्षा हर स्थान पर नहीं पड़ती ? क्या इसका धरा से भेद भाव है ? वायु सब जो सारे प्राणियों का जीवन आधार है,कभी उसने किसी को भी इसने अपने से वंचित किया है ? जल ने    कभी किसी को अपने उपयोग से वंचित रखता है ?
  मानव क्यों इस प्रक्रति से नहीं सीखता ? क्यों लोग धर्म,जाती भूमि के लिए एक दूसरे की जान लेने तक पर आतुर हो जातें हैं ?
प्रक्रति ने तो ऐसा कभी नहीं किया, और तो और मानव इस प्रक्रति का ही शत्रु हो गया है,तेजी से पेडो की कटाई जिसके कारण प्रक्रति के द्वारा स्वस्थ और  जल  वायु का अभाव और भूमिगत जल का गिरता स्तर, लोग प्रात: काल में भ्रमण के लिए जाते थे और जाते है,और अब उनको कहाँ वोह स्वस्थ वायु मिल पाती है ? तेजी से बड़ते हुए पेट्रोल अथवा डीजल से चलते हुए वाहन यह वाहन भी प्रक्रति का संतुलन बिगाड़ रहें हैं   ,चलो अब विकसित शहरों में, गैस से चलने वाले वाहन (C.N.G) आ गयें हैं,परन्तु अधिकतर स्थानों पर नहीं, और नाही लोगों में यह समझ की अधिक इन वाहनों के स्थान पर कम वाहनों का उपयोग करें, जब कोई भी इस प्रकार की  प्रक्रिया जब जलने की क्रिया पूर्ण रूप से सक्रिय ना हो,तो कार्बोनमोनोऑक्सआइड गैस निष्कासित होती है,और यह गैस कार्बोनडाईओक्सइड से भी अधिक घातक है,और यह गैस हमारे वायुमंडल की ओजोने की पर्त को और पतला कर देतीं हैं, जिसके कारण सूर्य की हानिकारक किरणों को जो यह ओजोन पर्त रोकती हैं, उनकी सक्षमता कम हो जाती है, और वायुमंडल का तापमान भी बड़ने लगता है, और ग्लोबल वार्मिंग को कोलाहल प्रारम्भ हो जाता है, इंसान प्रक्रति से मिल जुल कर रहना तो सीखता नहीं और इसको हानि पहूचाने पर तुला हुआ है |
  मानव किंचित सीखो प्रक्रति का अनुशाशन और मेल जोल

4 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत शिक्षाप्रद आलेख !!

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत खूब लिखा है आपने , इतनी दूर तक तो हम सोच ही नहीं पाते ।

Udan Tashtari ने कहा…

सार्थक आलेख.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

अच्छी पोस्ट.