बुधवार, दिसंबर 09, 2009

सिगरेट,गुटखा, छुड़वाने का सरकार की ओर से प्रवाधान क्यों नहीं?

समाचार पत्रों में पड़ा था,सिगरेट के पेकेट पर सिगरेट से होनेवाले नुक्सान का फोटोग्राफिक सन्देश के बारे में विचार हो रहा है,और उसके बाद सिगरेट के पेकेट पर फेफरों का नुक्सान पहूचाने वाला चित्र बन गया,और उससे पहले सिगरेट के पेकेट पर हिंदी में लिखा होता था,"सिगरेट स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है",और अंग्रेजी में भी लिखा होता था, " cigrette smoking is injurious for health", यह भी सर्वविदित है कि सिगरेट पीने से केंसर जैसी मृत्यु के कगार पर ले जाने वाली वीमारी हो जाती है,यही सबब होता है, गुटखे खाने वाले का उस गुटखे के पाउच पर भी हिंदी में लिखा होता है,"गुटखा खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है",यही सन्देश अंग्रेजी में लिखा होता है,"chewing tobacco is injurious for health", परन्तु ना सिगरेट पीने वाला सिगरेट छोड़ पाता है,और ना गुटखा खाने वाला,यह तो सच है,अगर इच्छा शक्ति हो तो सब कुछ संभव हो जाता है,परन्तु सिगरेट और गुटखा खाने वाले में इच्छा शक्ति प्रबल हो तो वोह इन व्यसनों को छोड़ पाता है, अन्यथा नहीं |
  अगर कोई सिगरेट ना पीने वाला या गुटखा ना खाने वाला, किसी सिगरेट पीने वाले और गुटखा खाने वाले से कोई यह प्रश्न करे कि सिगरेट क्यों पीते हो या गुटखा क्यों खाते हो, तो इन व्यसनों को करने वाला इसका कारण समझा ही नहीं पाता,ना तो यह व्यसन भूख को शांत करते हैं,ना प्यास को तो समझाए तो समझाए क्या? असल में इनमें पाया जाने वाला निकोटिन दिमाग में एसा प्रभाव डालता है,कि दिमाग को एक ख़ुशी होती है,दिमाग को उस प्रकार की ख़ुशी होती है,जैसे कोई पुरुस्कार मिल गया हो, और इसी कारण से मानसिक तनाव के कारण इंसान इन व्यसनों की संख्या बड़ा देता है |
  में भी सिगरेट पीता था और गुटखा भी खाता था,गुटखा तो मैंने पहले छोड़ दिया था,संभवत: इस कारण कि यह व्यसन बहुत बाद में लगा था,पर सिगरेट चाहते हुए भी नहीं छोड़ पाया था,यह आदत तो बहुत पुरानी थी, इन्टरनेट पर ढूँढा तो एक साईट सिगरेट छुड़ाने वाला मिल गया था,उसमें बहुत प्रकार की चीजे बताई गयीं थीं, चेविगुम, निकोटिन पेच और भी बहुत कुछ और साथ में मनोवेगाय्निक के पास कोंसिलिंग के लिए बताया गया था, सब कुछ ढूँढा हमारे देश में चेविन्ग्म ही मिल पाई थी जिसका नाम निकोतेक्स है, ५० रुपए की दस चेविन्ग्म,और शुरू के कुछ हफ़्तों में जब भी सिगरेट की इच्छा हो तो वोह चेविन्गुम खाने का निर्देश,मतलब की पॉँच,छे चेविन्गुम और धीरे,धीरे चेविन्गुम की और सिगरेट की इच्छा भी कम होने लगेगी बताया हुआ था |
  अब इतना महंगा इलाज जो कि साधारण इंसान के बस में नहीं, और भिन्न,भिन्न प्रकार की सरकार की और से सिगरेट,और गुटखे के पेकेट पर चेतावानिया, पड़ा लिखा इंसान तो जानता है,इस से केंसर हो सकता है,परन्तु सरकार अगर केंसर को रोकना चाहे तो इसका रोकथाम उस प्रकार क्यों नहीं जैसे पल्स पोलियो का बच्चों के लिए होता है, और तो और बीडी के पेकेट पर कोई चेतवानी नहीं होती, बीडी पीने वाले गरीब इंसान को अँधेरे में क्यों रखा हुआ है ?

     

2 टिप्‍पणियां:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

कोई समझदार व्यक्ति स्वयं ही कुछ कर सकता है.

वैसे तो व्यसन के सारे चीज़ ही अर्थव्यवस्था से जुड़े हुए हैं. सरकार के लिए स्थायी प्रतिबन्ध लगाना मुश्किल है. अगर गरीब व्यक्ति को बीडी, तम्बाकू से मानसिक राहत मिलती है तो वह सस्ता ही खोजेगा न. चाहे नुक्सान कितना भी हो.

Vinashaay sharma ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.