सोमवार, अक्तूबर 12, 2009

नए गेजेट्स से दूरियां तो कम हुई हैं,परन्तु आत्मिक बड दूरियां गयें

बहुत बार मन में विचार आता है, कि आव्यशकतायों के कारण नए,नए गेजेट्स का आविष्कार हुआ, और इन्सान को बहुत प्रकार की सुविधाएँ मिल गयीं, आज मोबाइल हैं, कंप्यूटर, है, लेप टॉप है, इन्टरनेट हैं, और भी अनेकों प्रकार के उपकरण है, परन्तु वोह वसुधेव कुटुम्बकम कहाँ है? जीवन की गति इतनी बड़ गई है, हर इंसान भागता हुआ सा प्रतीत होता है, बहुत से महानगरों जैसे मुंबई मैं तो आजीविका कमाने के लिए, बहुत,बहुत दूर जाना पड़ता है, इस कारण वहाँ के आम लोगों का आपस मैं मेल,मिलाप तो यदा कदा ही हो पाता हैं,जैसे कोई सामाजिक समारोह हो या सार्वजानिक अवकाश हो, वहाँ तो एक प्रकार की विवशता सी हो गई है, मैं इन उपकरणों के विरूद्व नहीं हूँ, बस यह कहना चाहता हूँ, इन उपकरणों का प्रयोग करते हुए अगर विवशता ना हो, उपकरणों के प्रयोगके साथ अत्मिक दूरी मैं सामंज्यस्ता स्थापित करने का प्र्यतन करे,तो कितना सुंदर हो |
मेरे मस्तिष्क मैं,बचपन की वोह यादें,अभी ताजा हैं, उन दिनों विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे, हम बच्चो का प्रिय होता था,वोह बाइस्कोप वाला,जिसके ऊपर रिकॉर्ड बजता रहता था,और बहुत से झरोखे होते थे,जिनमे शीशे लगे होते थे,और उन शीशो के अन्दर झांक कर विभिन्न चित्र देखते थे, समय बिताने के लिए कभी अंतराक्षरी, कभी ताश का खेल,कितने आत्मीयता से भरे दिन होते थे,वोही रूठना,मानना, फिर मद्रियों द्वारा बन्दर,भालू इत्यादि का नाच, कहीं सर्कस,तो कहीं जादूगर द्वारा जादू के खेल दिखाना, हम सब बच्चे मिल जुल कर वोह देखते थे, किसी के जन्मदिन इत्यादि पर अपने हाथो द्वारा, ग्रीटिंग कार्ड बनाना,अगला कितनी खुशी से उस कार्ड को स्वीकार करता था|
फिर आया दूरदर्शन का युग, उस समय तो केवल राष्ट्रीय प्रसारण होता था,वोह भी सुबह,शाम सीमित समय में, तब तक तो मिलने,जुलने का सिलसिला चलता रहा, अब आया रामायण का प्रसारण सब लोग रामायण को देखने में व्यस्त रहते थे,दूरियां बड़ने का सिलसिला बड़ने लगा,और उसके बाद महाभारत, अब सुबह का समय तो दूरदर्शन को ही समर्पित हो गया, सुबह के समय यह कार्यकर्म तो चलते रहे,अब आए हमलोग, बुनियाद जैसे धारावाहिक शाम को, यह शाम के समय का मिलना,जुलना लील गया, और उसके बाद का स्थान लिया केबल दूरदर्शन का,उसमे सुबह,शाम अनेको प्रकार के कार्यक्रम इन्सान तो दूरदर्शन से चिपट कर ही रह गया, इसी कारण पश्चिम में इसको इडयट बॉक्स कहने लगे,और उन लोगों ने मिलना,जुलना और दूसरे कार्यक्रम में भाग लेना,प्रारम्भ किया |
उसके बाद आया मोबाइल का युग, सुभीधा तो हो गयी,कहीं से भी किसी को संदेश देने की, परन्तु उसके बाद तो यह हर समय कान से चिपट कर रहने लगा,और यांत्रिकता आ गयी,और बड़ गयी आत्मिक दूरी, फिर आया इस पर S.M.S करने की सुविधा, अब तो इंसान बात करने और S.M.S करने का कायल हो गया,विषेत: युवा वर्ग, और अ़ब है इन्टरनेट भी,यह तो अपने में दुनिया ही समेटे हुए हैं,और युवा वर्ग कई,कई घंटे इस पर व्यतीत कर देते हैं |
मेरा कहना यह है, सब उपकरणों को, अपनी रुचि के और आवश्यकता के अनुसार समय दें,पर उसके आदि ना होकर के, आपस में भी अत्मिक रिश्ता,बनायें और इस प्रकार से इन उपकरणों के उपयोग करने के साथ,आपस में समय दे कर अत्मिक रिश्तों और इन उपकरणों मे सामंजस्य रखें |

6 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

मेरा कहना यह है, सब उपकरणों को, अपनी रुचि के और आवश्यकता के अनुसार समय दें,पर उसके आदि ना होकर के, आपस में भी अत्मिक रिश्ता,बनायें और इस प्रकार से इन उपकरणों के उपयोग करने के साथ,आपस में समय दे कर अत्मिक रिश्तों और इन उपकरणों मे सामंजस्य रखें |
बहुत अच्‍छी बातें कही .. हम सबों को ऐसा ही सोंचना चाहिए !!

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

सार्थक पोस्ट लिखी है।आप की बात सही है।

अजय कुमार ने कहा…

swagat aur shubhkamnayen

Amit K Sagar ने कहा…

चिटठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है.
लेखन के द्वारा बहुत कुछ सार्थक करें, मेरी शुभकामनाएं.
व सपरिवार दिवाली की शुभकामनाएं.
---

हिंदी ब्लोग्स में पहली बार Friends With Benefits - रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]

बेनामी ने कहा…

ज्योति पर्व दीपावली


शत शत अभिनन्दन!
ढेरों शुभ कामनाएँ!

Dev ने कहा…

WiSh U VeRY HaPpY DiPaWaLi.......