आज कल सोशल साईट की बाड़ सी आ गयी है,नित नए,नए सोशल साईट का निमंत्रण मिलता है,आखिर कितने सोशल साईट का निमंत्रण स्वीकार करुँ? सबसे पहले ऑरकुट पर अपना खाता खोला था, फिर याहू मेसेंजर पर अमरीका की पेटरिका से चैट कर रहा था, और उन्होंने पूछा "क्या कर रहे हो "? मैंने उत्तर दिया" कुछ नही", तो वोह बोलीं मैंने फेसबुक पर अपने पारिवारिक फोटो लगाये हैं, और इस प्रकार मेरा खाता फेसबुक में भी खुल गया, किसी मेरे पुराने मित्र ने मुझे hi 5 पर निमन्त्रन मिला और इस प्रकार इस साइट में मेरा खाता खुल गया, इसी प्रकार से मेरा खाता नेटलोग और झूस में भी खुल चुकें हैं, इन सब में, मिला कर बहुत सारे इन्टरनेट पर मित्र हो गएँ हैं, और याहू मेसेंजर, जी मेल और हॉट मेल पर भीबहुत सारे मित्र हैं, इन सब को मेनेज करना बहुत कठिन है,और उसके साथ याहू,रेडिफ,जी मेल,हॉट मेल पर आने वाले सन्देश और उनका उत्तर भी देना होता है, में इस कारण से बहुत से लोगों के निमंत्रण को सवीकार नहीं करता हूँ, बहुत से लोगों को यह मेरा रूखापन लगता होगा,यह मेरी विवशता है,इसके अतिरिक्त में परिवार वाला हूँ, परिवार के बहुत से कर्तव्य भी निभाने होते हैं,और बहुत से काम घर गृहस्ती चलाने के लिए करने होतें हैं |
में और सोशल साईट में खाता खोलने में असमर्थ हूँ,जिस,जिसने मुझे अपना सोशल साईट पर मित्र बनाना चाह,उनको हार्दिक धन्यवाद |
मंगलवार, जून 15, 2010
गुरुवार, जून 10, 2010
ज्योतिष,तंत्र,मन्त्र,यंत्र या इस प्रकार की विद्याओं का अध्यन सार्थक या निरर्थक |
आज कल वैज्ञानिक युग है,और विज्ञान के बहुत से पृथक,पृथक विषय हैं,भोतिक विज्ञान,रासायनिक विज्ञान,जीव विज्ञान इत्यादि अगर सारे विज्ञानिक विषयओं के बारे लिखे जाये तो यह वेगयानिक विषयों की सूची बहुत लम्बी हो जाएगी,और इस प्रकार के विज्ञानिक विषयों पर शोध ही आजकल प्रचलन में हैं, इन्ही विज्ञानिक विषयों पर निरंतर शोध होने के करण मानव की बहुत सी आवश्यकताएं पूरी हो रही हैं, नयी,नयी बस्तुओं का अविष्कार हो रहा है, आज इन शोध के करण बहुत प्रकार के क्लोन बन चुके हैं ,और अब तो विज्ञान के करण रासायनिक क्रियाओं के द्वारा जीता जगता सेल बनाने में वैज्ञानिकों को सफलता मिल गयी हैं,अगर विज्ञानिक सिद्ध हुए प्रयोगों को जितनी बार दोहराया जाये तो परिणाम सदा एक रहेगा,विज्ञानिक सदा जिज्ञासु परवर्ती के होते हैं,और अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए तार्किक प्रयोग करते रहते हैं | जब आईसक न्यूटन ने पेड़ से सेव को गिरते देखा तो न्यूटन का पहला गुरुत्वाकर्षण का नियम बना,फिर इसी प्रकार न्यूटन का दूसरा नियम बना "जो वस्तु चल रही है चलती रहेगी" और इसी श्रृंखला में न्यूटन का तीसरा नियम बना," परतेक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है" |
कालांतर में जब महान नोबल पुरुस्कार प्राप्त वैज्ञानिक ईनसटीईन का समय आया तो उनकी जिज्ञासा के करण न्यूटन के नियोमों पर ईनसटीईन ने कुछ संशोधन किये जैसे न्यूटन के दूसरे नियम "जो वस्तु चल रही है,चलती ही रहेगी,या जो वस्तु रुकी है रुकी रहेगी", पर ईनसटीन ने कहा जब तक उस पर वाहिये बल ना लगाया जाये, इसी प्रकार न्यूटन के तीसरे नियम "परतेक क्रिया की पर्तिक्रिया होती है", पर उन्होंने संशोधन किया उसके "विपरीत और बराबर", विवाद तो हमेशा बने रहे हैं हैं,गलेलियो ने अपने समय में कहा था कि " पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है",जो आज के युग में सत्य है,पर उस युग में सत्य नहीं था,क्योंकि धर्मग्रन्थ में लिखा हुआ था," सूर्य पृथ्वी का चक्कर लगाता है", इस कारण गलेलियो को बहुत अधिक विरोध सहना पड़ा था , इसी प्रकार इटली में,"सुकरात लोगों को कहता था,किसी बात को ऐसे ही नहीं अपनाओ,अपनी बुद्धि से सोचो फिर अपनाओ ", तो उसको विष का प्याला पीना पड़ा,जो आज के युग में सत्य है |,आर्किमिडिज़ ने जब सनान के लिए टब में प्रवेश किया तो,कुछ जल बहार निकला और आर्किमिडिज़ "यूरेका,उरेका चिल्लाते हुए निवस्त्र ही भाग निकले, मतलब कि पता चल गया,और आर्किमिडिज़ का सिधांत बन गया,"जो भी वस्तु द्रव में जाती है,वोह अपने भार के बराबर द्रव को विस्थापित करती है", इस तर्क को मान लिया गया,मतलब कि कभी विरोधाभास और कभी अपना लेना तो सदा ही चलता रहा है |
यह तो केवल अनुसन्धान की ही बात है,परन्तु अब बात करते हैं अविष्कारों की,जैसे के ऊपर लिखा आज तो विज्ञान ने प्राणयुक्त सेल निर्मित कर लिया है,और आगे चल कर क्या,क्या वैज्ञानिक अविष्कार हो जाएँ,कुछ कहा नहीं जा सकता है,निरन्तर वैज्ञानिक विषयों पर शोध होते रहते हैं,और नए,नए अविष्कार होते हैं, इसी सन्दर्भ में अगर बात करें थोमस अल्वा
एडिसन ने जब बल्ब के अविष्कार के बारे में कहा तो लोग हंसने लगे,परन्तु उन्होंने बल्ब का अविष्कार कर लिया,और जब उसको विद्युत् उर्जा के द्वारा प्रकशित किया गया,तो प्रकाश तो हुआ और आधे घंटे के बाद,उस बल्ब के अन्दर के धातु के तार जल गये,फिर एडिसन की उस समय किरकरी हुई,क्योंकि वोह धातु के तार ओक्सजीन के कारण ओक्ससीडाइज होने के कारण जल गये थे,फिर एडिसन ने उस बल्ब में सारी वायु नीकाल कर वेकुयम बना दिया,और इसी प्रकार हो गया बल्ब का अविष्कार,और आज तो ट्यूबलाइट,सी.ऍफ़.एल इत्यादि हैं |
यह तो रहा विज्ञान के बारे में,अब आतें हैं मूल विषय पर ज्योतिष,तंत्र,मन्त्र,यंत्र या इस प्रकार की विद्याओं का अध्यन सार्थक या निरर्थक, विज्ञान से अधिकतर लोग परिचित है,पर इन विवादित विषयों से बहुत कम लोग परिचित है, में भी विज्ञान का शिष्य रहा हूँ, इन विवादित विषयों से अधिक परिचित नहीं हूँ,ज्योतिष के बारे में इतना ही जानता हूँ, ग्रह इत्यादि की गणना की जाती है,और भविष्यवाणी करना कला है,फिर ज्योतिष में विभिन्न ग्रहों का प्रभाव कम या अधिक करने के लिए रत्न धारण किये जाते हैं, और जिस प्रकार की रश्मियों की शरीर की आवशयकता है,यह रत्न उस प्रकार की रश्मियों को वातावरण से लेकर शरीर को पहुंचाते हैं|
अब आता हूँ,जड़ी,बूटियों के द्वारा रोग निवारण, हमारे पूर्वज इसके बारे में जानते थे,परन्तु जैसे,जैसे समय बीतता गया इस विद्या का ज्ञान कम होता रहा, परन्तु चिकत्सा क्षेत्र में,दूसरी पद्दतिया की चिक्त्साए जीवित हैं,जैसे एलोपेथी,होमोपेथी, यूनानी इत्यादि,लेकिन जड़ी,बूटियों से चिकत्सा के बारे में शोध नहीं होता,इसी प्रकार आता हूँ तंत्र,मंत्र यंत्र पर यह विद्याएँ जीवित तो हैं, परन्तु इन विद्याओं के साधक नहीं मिल पाते,अगर मिल भी जाएँ तो इस क्षेत्र में इतना पाखंड हैं,कि कौन सही और कौन गलत इस पर सहज विश्वास नहीं हो पाता,इन्सान इनके चंगुल में फँस सकता ना ही इन विषयों पर शोध नहीं होता है, अब इस बात को पाठकों के ऊपर छोड़ता हूँ,यह विद्याएँ सार्थक हैं या निरर्थक,मेरी ओर से इस विषय पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हैं, बस पाठको कि क्या राए अच्छी या बुरी जानने की उत्सुकता है,सबका स्वागत है |
पाठकों की प्रतिक्रियाएं सर आँखों पर धन्यबाद
कालांतर में जब महान नोबल पुरुस्कार प्राप्त वैज्ञानिक ईनसटीईन का समय आया तो उनकी जिज्ञासा के करण न्यूटन के नियोमों पर ईनसटीईन ने कुछ संशोधन किये जैसे न्यूटन के दूसरे नियम "जो वस्तु चल रही है,चलती ही रहेगी,या जो वस्तु रुकी है रुकी रहेगी", पर ईनसटीन ने कहा जब तक उस पर वाहिये बल ना लगाया जाये, इसी प्रकार न्यूटन के तीसरे नियम "परतेक क्रिया की पर्तिक्रिया होती है", पर उन्होंने संशोधन किया उसके "विपरीत और बराबर", विवाद तो हमेशा बने रहे हैं हैं,गलेलियो ने अपने समय में कहा था कि " पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है",जो आज के युग में सत्य है,पर उस युग में सत्य नहीं था,क्योंकि धर्मग्रन्थ में लिखा हुआ था," सूर्य पृथ्वी का चक्कर लगाता है", इस कारण गलेलियो को बहुत अधिक विरोध सहना पड़ा था , इसी प्रकार इटली में,"सुकरात लोगों को कहता था,किसी बात को ऐसे ही नहीं अपनाओ,अपनी बुद्धि से सोचो फिर अपनाओ ", तो उसको विष का प्याला पीना पड़ा,जो आज के युग में सत्य है |,आर्किमिडिज़ ने जब सनान के लिए टब में प्रवेश किया तो,कुछ जल बहार निकला और आर्किमिडिज़ "यूरेका,उरेका चिल्लाते हुए निवस्त्र ही भाग निकले, मतलब कि पता चल गया,और आर्किमिडिज़ का सिधांत बन गया,"जो भी वस्तु द्रव में जाती है,वोह अपने भार के बराबर द्रव को विस्थापित करती है", इस तर्क को मान लिया गया,मतलब कि कभी विरोधाभास और कभी अपना लेना तो सदा ही चलता रहा है |
यह तो केवल अनुसन्धान की ही बात है,परन्तु अब बात करते हैं अविष्कारों की,जैसे के ऊपर लिखा आज तो विज्ञान ने प्राणयुक्त सेल निर्मित कर लिया है,और आगे चल कर क्या,क्या वैज्ञानिक अविष्कार हो जाएँ,कुछ कहा नहीं जा सकता है,निरन्तर वैज्ञानिक विषयों पर शोध होते रहते हैं,और नए,नए अविष्कार होते हैं, इसी सन्दर्भ में अगर बात करें थोमस अल्वा
एडिसन ने जब बल्ब के अविष्कार के बारे में कहा तो लोग हंसने लगे,परन्तु उन्होंने बल्ब का अविष्कार कर लिया,और जब उसको विद्युत् उर्जा के द्वारा प्रकशित किया गया,तो प्रकाश तो हुआ और आधे घंटे के बाद,उस बल्ब के अन्दर के धातु के तार जल गये,फिर एडिसन की उस समय किरकरी हुई,क्योंकि वोह धातु के तार ओक्सजीन के कारण ओक्ससीडाइज होने के कारण जल गये थे,फिर एडिसन ने उस बल्ब में सारी वायु नीकाल कर वेकुयम बना दिया,और इसी प्रकार हो गया बल्ब का अविष्कार,और आज तो ट्यूबलाइट,सी.ऍफ़.एल इत्यादि हैं |
यह तो रहा विज्ञान के बारे में,अब आतें हैं मूल विषय पर ज्योतिष,तंत्र,मन्त्र,यंत्र या इस प्रकार की विद्याओं का अध्यन सार्थक या निरर्थक, विज्ञान से अधिकतर लोग परिचित है,पर इन विवादित विषयों से बहुत कम लोग परिचित है, में भी विज्ञान का शिष्य रहा हूँ, इन विवादित विषयों से अधिक परिचित नहीं हूँ,ज्योतिष के बारे में इतना ही जानता हूँ, ग्रह इत्यादि की गणना की जाती है,और भविष्यवाणी करना कला है,फिर ज्योतिष में विभिन्न ग्रहों का प्रभाव कम या अधिक करने के लिए रत्न धारण किये जाते हैं, और जिस प्रकार की रश्मियों की शरीर की आवशयकता है,यह रत्न उस प्रकार की रश्मियों को वातावरण से लेकर शरीर को पहुंचाते हैं|
अब आता हूँ,जड़ी,बूटियों के द्वारा रोग निवारण, हमारे पूर्वज इसके बारे में जानते थे,परन्तु जैसे,जैसे समय बीतता गया इस विद्या का ज्ञान कम होता रहा, परन्तु चिकत्सा क्षेत्र में,दूसरी पद्दतिया की चिक्त्साए जीवित हैं,जैसे एलोपेथी,होमोपेथी, यूनानी इत्यादि,लेकिन जड़ी,बूटियों से चिकत्सा के बारे में शोध नहीं होता,इसी प्रकार आता हूँ तंत्र,मंत्र यंत्र पर यह विद्याएँ जीवित तो हैं, परन्तु इन विद्याओं के साधक नहीं मिल पाते,अगर मिल भी जाएँ तो इस क्षेत्र में इतना पाखंड हैं,कि कौन सही और कौन गलत इस पर सहज विश्वास नहीं हो पाता,इन्सान इनके चंगुल में फँस सकता ना ही इन विषयों पर शोध नहीं होता है, अब इस बात को पाठकों के ऊपर छोड़ता हूँ,यह विद्याएँ सार्थक हैं या निरर्थक,मेरी ओर से इस विषय पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हैं, बस पाठको कि क्या राए अच्छी या बुरी जानने की उत्सुकता है,सबका स्वागत है |
पाठकों की प्रतिक्रियाएं सर आँखों पर धन्यबाद
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