अभी,अभी पंडित दी.के वत्स जी का लेख पड़ा,मन्त्र,कर्मकांड,उपासना से लाभ क्यों नहीं मिलता, में पंडित जी के लेख बहुत मनोयोग से पड़ता हूँ, जिसमें पंडित जी ने जो लिखा है, हमें इस योग्य होना चाहिए कि, हम इन चीजों का लाभ उठा सकें, मेरे मन में बहुत से अनसुलझे प्रश्न उठते हैं, ईश्वर के एक बार दर्शन करने के बाद यहाँ,वहाँ भटकता रहा कि पुन: दर्शन हो जाएँ, किसी ने कहा कोई गुरु बनाओ, फिर गुरु की खोज में,भटकता रहा, यह भी कहा जाता है,"पानी पियो छान के,गुरु बनाओ जान के", एक गुरु भी बनाये, प्रारंभ में तो वोह गुरु तो मुझे अच्छे लगे, और लगभग तीन साल के बाद मुझे लगा कि उनकी अपने सब शिष्यों पर सम दृष्टि नहीं है, लेकिन यह बात मैंने प्रकट नहीं करी, लेकिन एक दिन मैंने उन गुरु जी से जिज्ञासावश कोई प्रश्न पूछा तो उन्होंने मुझे बहुत बुरी तरह से धुत्कार दिया, और मेरे को चार दिन तक तो रात को नींद ही नहीं आई, और तो और उनके एक और शिष्य हैं, मुझे ज्ञात नहीं वोह मेरे मनोभावों को कैसे पड़ लेते थे, मेरी उनके उन शिष्य से अच्छी मित्रता हो गयी थी,उनके पास मुझे कुछ मानसिक आराम मिलता था,परन्तु वोह तथाकथित गुरु जी,अपने उन शिष्य और मेरे मित्र के पास सुबह,शाम आया करते थे,मेरे पास भी वोही समय होता था, इसलिए मैंने अपने उन मित्र के पास जाना छोड़ दिया |
मेरी विडंबना यह रही,मैंने श्री परमहंस योगानंद जी को गुरु बनाने के लिए आवेदन किया था, योगानंद जी तो इस दुनिया में नहीं थे, परन्तु उनके अध्याय ही गुरु की तरह प्रेरणा देते थे,वोह केवल एक माह में एक ही प्रति आती थी, और उन अध्यायों का मेरी बहुत मानसिक,शारीरिक और अध्यात्मक उन्नति कर रहे थे, आप विश्वास करें या नहीं करें,में लोगों की चिकत्सा योग से करने लगा,और उक्त घटना के बाद मेरे मन में वोह अध्याय पड़ने की रूचि बिलकुल समाप्त हो गयी थी, और एक और विद्या जो कि संभवत: चीन कि थी,प्राणिक हीलिंग जिसमें दूरस्थ या समीप लोगों की चिकत्सा बिना छुये और बिना दवाइयों के में कर लेता था,और यही काम में योग द्वारा कर लेता था, परन्तु यह विद्याएँ मेरे में उस घटना के बाद समाप्त हो चुकीं हैं |
पंडित जी का वोह लेख भी पड़ा है,जिसमें उन्होंने अंत:कारण को गुरु बताया है, यह बात तो यहीं पर छोड़ता हूँ, जब यह सब समाप्त हो गया तो में तो क्षणिक ख़ुशी की खोज करता हूँ, मुझे मालूम हैं यह क्षणिक खुशियाँ क्षणिक ही हैं, स्थायी नहीं हैं,और यह क्षणिक खुशियाँ नहीं मिल पातीं तो मन बहुत खिन्न हो जाता है,फिर भी मन क्षणिक खुशियों की ओर भागता है, यह सब मेरे मन के उदगार हैं, पंडित जी का वोह लेख पड़ कर में भावुक हो उठा, मैंने एक बार लिखा था कि में विवादित लेख नहीं लिखूंगा,पर क्या करुँ दिल है कि मानता नहीं |
पुन: कहता हूँ,यह मेरे हिर्दय से निकले हुए उदगार हैं,कोई माने या नहीं माने, पंडित जी की इस सार्थक लिखी हुई पोस्ट से भावुक हो गया |
इसी प्रतीक्षा में हूँ, क्षणिक ख़ुशी के स्थान पर वास्तविक और स्थायी ख़ुशी मिल जाये
स्थायी ख़ुशी की प्रतीक्षा है
पंडित जी से क्षमायाचना सहित
शनिवार, फ़रवरी 27, 2010
सोमवार, फ़रवरी 22, 2010
मनोभावों को बहुत सी कला के माध्यम से पर्दर्शित करने का प्रयत्न किया
मेरा हिर्दय मेरे पर मेरे मस्तिष्क से अधिक राज करता है, और हिर्दय में अनेकों उदगार हिलोरे लेते रहेतें हैं, इसी कारण अपनी दिल की भावनाए को अपनी किशोरावस्था में डायरी में अंकित किया करता था, परतिदिन डायरी में अपनी भावनाओ को लिखने में भी,मेरे हिर्दय को आराम नहीं मिलता था, इंसान में गुण दोष तो दोनों ही होतें हैं, और यह गुण दोष में अपनी डायरी में प्राय: लिखा करता था, और इसी कारण से यह डायरी में लोगों की निगाह से बचा कर,छुपा कर गुप्त स्थान पर रखता था, परन्तु मुझे यह डायरी लिखने पर यह प्रतीत होता था कि,में अपने से ही वार्तालाप कर रहा हूँ, अब डायरी तो नहीं लिखता,परन्तु यदा कदा अपने से वार्तालाप करता ही रहता हूँ, हर प्रकार की वार्तालाप अच्छी,बुरी दोनों ही और इस प्रकार अपने आप से वार्तालाप करने में मुझे सुखद अनुभूति होती है |
इस प्रकार अपने आप से वार्तालाप करने का कारण यह है, बहुत प्रकार की कला के माध्यम से अपने मनोभावों को पर्दर्शित करने का प्रयत्न किया,परन्तु अपने मनोभावों को औरो तक ना पंहुचा सका, अगर एक दो लोगों से बोल कर बात करता तो मेरे मन के भाव अधिक लोगों तक ना पहुंचते, इसी लिए मैंने कला का सहारा लिया, सब से पहले गाना गाने का सहारा लिया, परन्तु अगर में कोई गीत गुनगुनाता तो लोगों से गायकी की ही प्रशंसा मिलती, जो गीतों में छुपे हुए मनोभावों को कोई नहीं समझता था, गीत गाने के साथ वाद्य यन्त्र बजाने का प्रयत्न किया पर सफल ना हो सका, फिर लिया चित्र बनाने और उनमें रंग भरने की कला का सहारा, चित्र बना के रंग भी भर लेता था परन्तु अपने चित्रों में, हाव भाव के द्वारा अपने हिर्दय की भावनाए ना उकेर सका, रहीं मोडर्न आर्ट की बात, जब तक उसको समझाया नहीं जय तो समझ में नहीं आते, लिहाजा मैंने इस दिशा में कोई प्रयत्न नहीं किया,और अंत में कविता लिखना और बोलना प्रारंभ किया, और काव्य के लिए विशेष प्रकार के श्रोता होने चाहिए,और उन श्रोताओं से कविता के शब्द और उसकी प्रस्तुति से बस वाहवाही मिलती थी,लेकिन दिल के उदगार समझने वाले मिल नहीं पाते थे |
अब तो काव्य बन नहीं पाता, कुछ कहानी लिखने का प्रयत्न किया पर सफल नहीं हो पाया, हाँ ब्लॉग का माध्यम मिला नहीं जानता इसमें कहाँ तक सफल हो पाया हूँ, मेरे ब्लॉग किसी निश्चित विषय पर तो होते नहीं,जो दिल में आता है लिख देता हूँ, बस इसीलिए अपने आप से बात करता हूँ |
क्या करुँ मेरे ऊपर मेरे मस्तिष्क से अधिक मेरा हिर्दय राज करता है |
इस प्रकार अपने आप से वार्तालाप करने का कारण यह है, बहुत प्रकार की कला के माध्यम से अपने मनोभावों को पर्दर्शित करने का प्रयत्न किया,परन्तु अपने मनोभावों को औरो तक ना पंहुचा सका, अगर एक दो लोगों से बोल कर बात करता तो मेरे मन के भाव अधिक लोगों तक ना पहुंचते, इसी लिए मैंने कला का सहारा लिया, सब से पहले गाना गाने का सहारा लिया, परन्तु अगर में कोई गीत गुनगुनाता तो लोगों से गायकी की ही प्रशंसा मिलती, जो गीतों में छुपे हुए मनोभावों को कोई नहीं समझता था, गीत गाने के साथ वाद्य यन्त्र बजाने का प्रयत्न किया पर सफल ना हो सका, फिर लिया चित्र बनाने और उनमें रंग भरने की कला का सहारा, चित्र बना के रंग भी भर लेता था परन्तु अपने चित्रों में, हाव भाव के द्वारा अपने हिर्दय की भावनाए ना उकेर सका, रहीं मोडर्न आर्ट की बात, जब तक उसको समझाया नहीं जय तो समझ में नहीं आते, लिहाजा मैंने इस दिशा में कोई प्रयत्न नहीं किया,और अंत में कविता लिखना और बोलना प्रारंभ किया, और काव्य के लिए विशेष प्रकार के श्रोता होने चाहिए,और उन श्रोताओं से कविता के शब्द और उसकी प्रस्तुति से बस वाहवाही मिलती थी,लेकिन दिल के उदगार समझने वाले मिल नहीं पाते थे |
अब तो काव्य बन नहीं पाता, कुछ कहानी लिखने का प्रयत्न किया पर सफल नहीं हो पाया, हाँ ब्लॉग का माध्यम मिला नहीं जानता इसमें कहाँ तक सफल हो पाया हूँ, मेरे ब्लॉग किसी निश्चित विषय पर तो होते नहीं,जो दिल में आता है लिख देता हूँ, बस इसीलिए अपने आप से बात करता हूँ |
क्या करुँ मेरे ऊपर मेरे मस्तिष्क से अधिक मेरा हिर्दय राज करता है |
बुधवार, फ़रवरी 17, 2010
बच्चो को रियलटी शो में क्यों लाया जा रहा है |
आज कल दूरदर्शन अनेकों प्रकार के चेनल हैं,भक्ति के लिए संस्कार और आस्था जैसे चेनल, ख़बरों के लिए आजतक,इंडिया टी.वी और भी अनेकों प्रकार के चेनल, मनोरंजन के लिए कलर,सोनी,जी टी.वी इत्यादि अनेकों चेनल,अंग्रेजी भाषा के अनेकों चेनल,चलचित्रों के लिए अनेकों चेनल, मनोरंजन वाले चेनलो पर धाराबाहिकों और रियल्टी शो दिखाने वाले अनेकों चेनल हैं, रिअलिटी शो आते,जाते रहतें हैं, जिसमें सभी उम्र के लोगों के लिए मनोरंजन होता है, और इन रियलटी शो में भी भाग लेने वाले भी प्राय: बच्चो से लेकर व्यस्क लोग होतें हैं, धराबहिकों में भी बच्चो से लेकर व्यस्क और प्रोड़ लोग होतें हैं |
रिअलिटी शो में, परतिस्पर्धा होती तो है ही ,और उनको जज करने वाले जज होतें हैं, और रियल्टी शो में भाग लेने वालों को जजों के द्वारा कमेंट्स दिए जातें हैं,तत्पश्चात मार्क्स दिए जातें हैं |
यह चेनल टी.आर.पी बढाने के लिए अनेकों प्रयत्न करतें हैं, इन चेनलो में टी.आर.पी बढाने की होड़ सी लगी,रहती है, यह चेनल वाले यह नहीं सोचते कि बच्चों के लिए रियल्टी शो बनाने से उनके कोमल मन पर क्या प्रभाव पड़ेगा, बस उनको तो अपनी टी.आर.पी कि चिंता है, धराबहिकों में तो बच्चों के द्वारा किया हुआ अभिनय तो फिर भी एक सीमा तक उचित है, इसमें बच्चो की कई,कई घंटो की रिहर्सल के कारण इन बच्चों की पडाई की हानि तो होती है,परन्तु उस पडाई की हानि को तो जैसे,तैसे यह बच्चे पूरी कर लेते हैं, परन्तु रियल्टी शो में जो बच्चे भाग लेते हैं, बहुत बारउन बच्चों को जजों के कठोर शब्द सुनने पडतें हैं,और बच्चों का मन तो फूल सा कोमल होता है,और यह जजों के कठोर शब्द बहुत बार इन बच्चों के मन पर ऐसा प्रभाव डालता है, इनका फूल सा मन मुरझा जाता है, एक रियल्टी शो में एक बच्ची को जज के कठोर शब्द सुन कर पक्षाघात हो गया था,और एक दूसरी बच्ची ने जज के कठोर शब्द सुन कर आत्महत्या को गले लगा लिया था, धरबाहिकों में तो नंबर नहीं मिलते ना ही जजों के कोमेंट्स होतें है,वहाँ तो केवल अभिनय ही होता है,इसमें भी घंटो का रियाज़ करना पड़ता है,परन्तु यहाँ बच्चों के मनोभावों पर वोह प्रभाव नहीं पड़ता जो कि रियल्टी शो में पड़ता है, रियल्टी शो के लिए घंटो का रियाज़ और परिणाम में अंक पाना और जजों के कठोर कोमेंट्स सुनना बच्चो को झकझोर देता है, हाँ कोमेंट्स अच्छे,बुरे सब प्रकार के होतें है, बच्चों में इतनी परिवक्ता नहीं होती कि वोह कठोर स्थितयों का सामना कर पायें, और हरने के बाद या कठोर कोमेंट्स सुनने के बाद यह बच्चे टूट जातें हैं,और घातक कदम उठा लेतें हैं |
दूसरी ओर इन बच्चों पर स्टारडम का नशा छा जाता है,जिससे इनका बहार निकलना कठिन हो जाता है, इस कारण अपनी पडाई पर यह बच्चे उचित ध्यान नहीं दे पाते, बच्चो के लिए ऐसे कार्यक्रम तो होने चाहिए,जिसमें इन बच्चों की प्रतिभा तो उजागर हो परन्तु उसमें परतिस्पर्धा ना हो, ना अंको का सिलसिला |
टी.आर.पी बढाने की होड़ में कब बंद होगा बच्चों के साथ इस प्रकार का खिलवाड़
रिअलिटी शो में, परतिस्पर्धा होती तो है ही ,और उनको जज करने वाले जज होतें हैं, और रियल्टी शो में भाग लेने वालों को जजों के द्वारा कमेंट्स दिए जातें हैं,तत्पश्चात मार्क्स दिए जातें हैं |
यह चेनल टी.आर.पी बढाने के लिए अनेकों प्रयत्न करतें हैं, इन चेनलो में टी.आर.पी बढाने की होड़ सी लगी,रहती है, यह चेनल वाले यह नहीं सोचते कि बच्चों के लिए रियल्टी शो बनाने से उनके कोमल मन पर क्या प्रभाव पड़ेगा, बस उनको तो अपनी टी.आर.पी कि चिंता है, धराबहिकों में तो बच्चों के द्वारा किया हुआ अभिनय तो फिर भी एक सीमा तक उचित है, इसमें बच्चो की कई,कई घंटो की रिहर्सल के कारण इन बच्चों की पडाई की हानि तो होती है,परन्तु उस पडाई की हानि को तो जैसे,तैसे यह बच्चे पूरी कर लेते हैं, परन्तु रियल्टी शो में जो बच्चे भाग लेते हैं, बहुत बारउन बच्चों को जजों के कठोर शब्द सुनने पडतें हैं,और बच्चों का मन तो फूल सा कोमल होता है,और यह जजों के कठोर शब्द बहुत बार इन बच्चों के मन पर ऐसा प्रभाव डालता है, इनका फूल सा मन मुरझा जाता है, एक रियल्टी शो में एक बच्ची को जज के कठोर शब्द सुन कर पक्षाघात हो गया था,और एक दूसरी बच्ची ने जज के कठोर शब्द सुन कर आत्महत्या को गले लगा लिया था, धरबाहिकों में तो नंबर नहीं मिलते ना ही जजों के कोमेंट्स होतें है,वहाँ तो केवल अभिनय ही होता है,इसमें भी घंटो का रियाज़ करना पड़ता है,परन्तु यहाँ बच्चों के मनोभावों पर वोह प्रभाव नहीं पड़ता जो कि रियल्टी शो में पड़ता है, रियल्टी शो के लिए घंटो का रियाज़ और परिणाम में अंक पाना और जजों के कठोर कोमेंट्स सुनना बच्चो को झकझोर देता है, हाँ कोमेंट्स अच्छे,बुरे सब प्रकार के होतें है, बच्चों में इतनी परिवक्ता नहीं होती कि वोह कठोर स्थितयों का सामना कर पायें, और हरने के बाद या कठोर कोमेंट्स सुनने के बाद यह बच्चे टूट जातें हैं,और घातक कदम उठा लेतें हैं |
दूसरी ओर इन बच्चों पर स्टारडम का नशा छा जाता है,जिससे इनका बहार निकलना कठिन हो जाता है, इस कारण अपनी पडाई पर यह बच्चे उचित ध्यान नहीं दे पाते, बच्चो के लिए ऐसे कार्यक्रम तो होने चाहिए,जिसमें इन बच्चों की प्रतिभा तो उजागर हो परन्तु उसमें परतिस्पर्धा ना हो, ना अंको का सिलसिला |
टी.आर.पी बढाने की होड़ में कब बंद होगा बच्चों के साथ इस प्रकार का खिलवाड़
शनिवार, फ़रवरी 13, 2010
विगड़ते ज़माने में बच्चो का भविष्य देख कर सिहर जाता हूँ |
यह युग निरंतर कठिन हालातों की ओर अग्रसर होता जा रहा है, आसमन छूती महंगाई,बड़ता भ्रसटाचार,मिलावटी खाद्य पदार्थ, तेजी से होती पेड़ों की कटाई, बच्चों पर स्कूल की किताबों से बड़ते हुए बस्ते का बोझ और ना जाने क्या,क्या ?
यह सोच,सोच कर मन सिहर जाता है, की हम बड़े लोगों को इन कष्टों से गुजरना पड़ रहा है, तो हमारी भावी पीड़ी का भविष्य क्या होगा ? सुनते आयें हैं,कि हमारी बुजुर्ग पीड़ी की मासिक आय बहुत कम थी, मतलब कि 100,200 रूपये और उसमें भी उन लोंगो की अच्छी,खासी बचत हो जाती थी, फिर आया हम लोगों का युग, हम लोगों के प्रारंभ के दिनों में हम लोगों की आय में अच्छी खासी बचत हो जाती थी, परन्तु पता ही नहीं चला कि कैसे महंगाई बड़ती गयी,और यह हाल हो गया कि आमदनी अठन्नी और खर्चा रूपया, और बचत की आशा करना व्यर्थ लगने लगा, और पति,पत्नी अपने घर की व्यवस्था के लिए धनोउपार्जन करने लगे, इसी प्रकार महंगाई तेजी से आसमान छूने लगी और इस महंगाई पर नियत्रण नहीं लगा, तो हमारी भावी पीड़ी किस प्रकार से चलाएगी अपनी घर,गृहस्ती? आज के युग में जब पाती,पत्नी दोनों ही धन कमाने में लगे रहते हैं, इस कारण से बच्चो की ओर अपेछिकित ध्यान नहीं दे पाते हैं, उनकी इस विवशता के कारण बच्चो में उत्पन्न हो जाती है,भावनात्मक शुन्येता, यह भावनात्मक बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए निहायत ही अवशयक है |
आज बच्चो के कन्धों पर झूलते बस्तों में कितबों का बड़ता हुआ बोझ तो है ही जो इन नाजुक बच्चों के कंधो को पीडा तो पहुँचाता हैं, और गृहकार्य इन नन्हे,नन्हे बालक,बालिकाओं इतना मिलता है,इन के पास खेलने,कूदने का समय संभवत: मिल ही नहीं पाता तो कैसे हो इन शिशुओं का शारीरिक विकास? और आज कल धरती पर मैदान तो सिमटते जा रहे हैं, इन बच्चों को दोड़ने,भागने का स्थान नहीं मिल पा रहा है, इस दिशा में पता नहीं काम क्यों नहीं होता ? यह तो सच हैं,आज कल इन्टरनेट का विडियो गेम का युग आ गया है,और बच्चे इन चीजों में लग रहें हैं, इसी सन्दर्भ में मेरे मस्तिष्क में उभर रहा है,अमरीका के सर वाल्ट डिस्नी का नाम,जिनोहने बच्चों के लिए डिस्नेलैंड बनाया,जिसमें बच्चों के लिए सब प्रकार के मनोरंजन हैं, डिस्नीलैंड के मिकी मौस,टॉम ओर जेर्री जैसे कार्टून तो विश्विखायत है, हमारे यहाँ इस दिशा में काम क्यों नहीं होता?
और तो और दिल्ली में जो बच्चों के लिए अप्पू घर बना था, उसका अब कहीं नाम ही नहीं है,जब बच्चा किशोरावस्था में पहुँच जाता है,माता,पिता के पास उसको भावनात्मक समय देने का समय नहीं है, और उसको इस उम्र के पड़ाव में हारमोंस के कारण शारीरिक और मानसिक बदलाव के बारे में उठने वाली जिगयासओं का समाधान नहीं मिल पाता, तो इस युग में इन्टरनेट पर उपलब्ध सब प्रकार की सामग्री विशेष कर व्यसक सामग्री के कारण युवक,युवितियाँ भटक जातें है, और इन युवाओं को भुगतने पड़ते हैं,दुष्परिणाम विशेषकर युवा लड़कियों को, इन लड़कियों के लिए तो असमय माँ बनना,गर्भपात कराना इत्यादि तो बहुत ही असुविधाजनक हैं,और विशेषकरइसके द्वारा होने वाला मानसिक दवाब, आज कल तो लिव इन रिलेशनशिप चल पड़ा है,जिसमें यह संभावनाएं बहुत बड़ जाती हैं |
आजकल जिस खाद्य पदार्थ के बारे में सोचो उसमें मिलावट ही मिलावट है, क्या होगा वड़ते बच्चों का स्वास्थ्य ?
माँ,बाप का समयअभाव के कारण बच्चों को भावनात्मक प्यार ना दे पाना, सुरसा के मूह की तरह बड़ती महंगाई,बच्चों के खेलने की दिन,परतिदिन स्थान की कमी होते जाना,बस्ते का और पडाई का बड़ता बोझ, पेडो की कटाई के कारण शुद्ध हवा की तेजी से होती हुई कमी,खाद्य पदार्थों में मिलावट पर कोई नियंत्रण नहीं,क्या होगा हमारी भावी पीड़ी का भविष्य ? देश के कर्णाधार क्यों नहीं सोचते इस बारें में ?,बस एक दूसरे पर दोषारोपण के कारण अतिरिक्त कोई काम नहीं इनके पास,में यह नहीं कहता देश का विकास नहीं हुआ,परन्तु अगर एक दूसरे पर दोषअपरण करना छोड़ कर,देश के भावी कर्णाधार पर भी दें तो कितना अच्छा हो |
पहले तो बहुतयात से पेड़ पौधे हुआ करते थें,लोग प्रात भ्रमण के लिए जाते थे तो पेडो से निकलने वाली स्वछ हवा का सेवन करते थे,और आज क्या मिलता है,प्रदूषित वायु, पौधों पर रंग विरंगी तितलियों के पीछे बच्चे भागते,दौड़ते थे, परन्तु अब फूलों पर मंडराती तितलियों के इस प्रदुषण के कारण देखना दुर्लभ हो गया है,यह बच्चों का भोला मनोरंजन भी समय की गर्त में चला गया है |
मन कांप उठता है,यह सब सोच कर
यह सोच,सोच कर मन सिहर जाता है, की हम बड़े लोगों को इन कष्टों से गुजरना पड़ रहा है, तो हमारी भावी पीड़ी का भविष्य क्या होगा ? सुनते आयें हैं,कि हमारी बुजुर्ग पीड़ी की मासिक आय बहुत कम थी, मतलब कि 100,200 रूपये और उसमें भी उन लोंगो की अच्छी,खासी बचत हो जाती थी, फिर आया हम लोगों का युग, हम लोगों के प्रारंभ के दिनों में हम लोगों की आय में अच्छी खासी बचत हो जाती थी, परन्तु पता ही नहीं चला कि कैसे महंगाई बड़ती गयी,और यह हाल हो गया कि आमदनी अठन्नी और खर्चा रूपया, और बचत की आशा करना व्यर्थ लगने लगा, और पति,पत्नी अपने घर की व्यवस्था के लिए धनोउपार्जन करने लगे, इसी प्रकार महंगाई तेजी से आसमान छूने लगी और इस महंगाई पर नियत्रण नहीं लगा, तो हमारी भावी पीड़ी किस प्रकार से चलाएगी अपनी घर,गृहस्ती? आज के युग में जब पाती,पत्नी दोनों ही धन कमाने में लगे रहते हैं, इस कारण से बच्चो की ओर अपेछिकित ध्यान नहीं दे पाते हैं, उनकी इस विवशता के कारण बच्चो में उत्पन्न हो जाती है,भावनात्मक शुन्येता, यह भावनात्मक बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए निहायत ही अवशयक है |
आज बच्चो के कन्धों पर झूलते बस्तों में कितबों का बड़ता हुआ बोझ तो है ही जो इन नाजुक बच्चों के कंधो को पीडा तो पहुँचाता हैं, और गृहकार्य इन नन्हे,नन्हे बालक,बालिकाओं इतना मिलता है,इन के पास खेलने,कूदने का समय संभवत: मिल ही नहीं पाता तो कैसे हो इन शिशुओं का शारीरिक विकास? और आज कल धरती पर मैदान तो सिमटते जा रहे हैं, इन बच्चों को दोड़ने,भागने का स्थान नहीं मिल पा रहा है, इस दिशा में पता नहीं काम क्यों नहीं होता ? यह तो सच हैं,आज कल इन्टरनेट का विडियो गेम का युग आ गया है,और बच्चे इन चीजों में लग रहें हैं, इसी सन्दर्भ में मेरे मस्तिष्क में उभर रहा है,अमरीका के सर वाल्ट डिस्नी का नाम,जिनोहने बच्चों के लिए डिस्नेलैंड बनाया,जिसमें बच्चों के लिए सब प्रकार के मनोरंजन हैं, डिस्नीलैंड के मिकी मौस,टॉम ओर जेर्री जैसे कार्टून तो विश्विखायत है, हमारे यहाँ इस दिशा में काम क्यों नहीं होता?
और तो और दिल्ली में जो बच्चों के लिए अप्पू घर बना था, उसका अब कहीं नाम ही नहीं है,जब बच्चा किशोरावस्था में पहुँच जाता है,माता,पिता के पास उसको भावनात्मक समय देने का समय नहीं है, और उसको इस उम्र के पड़ाव में हारमोंस के कारण शारीरिक और मानसिक बदलाव के बारे में उठने वाली जिगयासओं का समाधान नहीं मिल पाता, तो इस युग में इन्टरनेट पर उपलब्ध सब प्रकार की सामग्री विशेष कर व्यसक सामग्री के कारण युवक,युवितियाँ भटक जातें है, और इन युवाओं को भुगतने पड़ते हैं,दुष्परिणाम विशेषकर युवा लड़कियों को, इन लड़कियों के लिए तो असमय माँ बनना,गर्भपात कराना इत्यादि तो बहुत ही असुविधाजनक हैं,और विशेषकरइसके द्वारा होने वाला मानसिक दवाब, आज कल तो लिव इन रिलेशनशिप चल पड़ा है,जिसमें यह संभावनाएं बहुत बड़ जाती हैं |
आजकल जिस खाद्य पदार्थ के बारे में सोचो उसमें मिलावट ही मिलावट है, क्या होगा वड़ते बच्चों का स्वास्थ्य ?
माँ,बाप का समयअभाव के कारण बच्चों को भावनात्मक प्यार ना दे पाना, सुरसा के मूह की तरह बड़ती महंगाई,बच्चों के खेलने की दिन,परतिदिन स्थान की कमी होते जाना,बस्ते का और पडाई का बड़ता बोझ, पेडो की कटाई के कारण शुद्ध हवा की तेजी से होती हुई कमी,खाद्य पदार्थों में मिलावट पर कोई नियंत्रण नहीं,क्या होगा हमारी भावी पीड़ी का भविष्य ? देश के कर्णाधार क्यों नहीं सोचते इस बारें में ?,बस एक दूसरे पर दोषारोपण के कारण अतिरिक्त कोई काम नहीं इनके पास,में यह नहीं कहता देश का विकास नहीं हुआ,परन्तु अगर एक दूसरे पर दोषअपरण करना छोड़ कर,देश के भावी कर्णाधार पर भी दें तो कितना अच्छा हो |
पहले तो बहुतयात से पेड़ पौधे हुआ करते थें,लोग प्रात भ्रमण के लिए जाते थे तो पेडो से निकलने वाली स्वछ हवा का सेवन करते थे,और आज क्या मिलता है,प्रदूषित वायु, पौधों पर रंग विरंगी तितलियों के पीछे बच्चे भागते,दौड़ते थे, परन्तु अब फूलों पर मंडराती तितलियों के इस प्रदुषण के कारण देखना दुर्लभ हो गया है,यह बच्चों का भोला मनोरंजन भी समय की गर्त में चला गया है |
मन कांप उठता है,यह सब सोच कर
बुधवार, फ़रवरी 03, 2010
प्रक्रति भेद भाव नहीं करती पर इन्सान क्यों?
अक्सर मेरे मस्तिष्क में यह प्रश्न उपजता है, साधारणत: प्रकर्ति भेद भाव नहीं करती कुछ अपवादों को छोड़ कर, अपने नियमित और अनुशासन्तक कर्मो में सदा बंधी रहती है, प्रातकाल कीसूर्य की स्वर्णिम रश्मियाँ इस धरा को आलोकित कर देती हैं, पक्षियों का कलरव वातावरण में गूंजने लगता है, और सूर्य की प्रात: काल की किरने हमारे शरीर को विटामिन डी उपलब्ध करातीं है, इस प्रकार सूर्य मानव के स्वास्थ्य लाभ पहुंचाती हैं,और सूर्य की रश्मियाँ नदी तालाब,पोखर और सागर पड़ पड़ती हैं,तो जल वाष्प के रूप में परिवर्तित हो कर बादलों का स्वरुप ले लेतीं हैं, और जब इस वाष्प की अधिकता हो जाती है,तब पड़ती हैं रिमझिम वर्षा और यह रिमझिम वर्षा का जल कुछ तो धरती की प्यास बुझाता है,और कुछ अधिकतर चला जाता है, धरती के गर्भ में और जल और यह जल पेड़ सूर्य की किरणों के साथ मिल कर पेड़ पौधों को जीवन प्रदान करता है, वर्षा के कारण इन्सान को झुलसती गर्मी से भी राहत मिलती है, और यह पेड़,पौधे भूमिगत जल को मजबूती से पकड़ कर रखतें हैं, और यही पेड़ पौधे हैं,जो सूर्य की किरणे प्राप्त करके हमारी प्राण वायु ओक्सीजन निष्कासित करतें हैं, और इसी वायुमंडल में नईटरोजन और कार्बोनडाईओक्सीइड इस ओक्सीजन के मिश्रण से हमारें साँस लेने की वायु का निर्माण होता है, और जब हम कार्बोनडाई ओक्सईड साँस के द्वारा निष्कासित करतें हैं, यही कार्बोनडाओक्सइड दिन में पेड़,पौधे ग्रहण करतें है,और ऑक्सीजन निष्कासित करतें हैं, जब वर्षा की अधिकता हो जाती है, तब आती है शीत ऋतू और, पर्वतों की उचाईयों पर वर्फ जमने लगती है,और ग्रीष्म ऋतू आते ही यह हिम पिघल कर नदियों में जाता है,इस कारण नदियों में जल का संतुलन बना रहता है, कभी प्रक्रति को भेद,भाव करते किसी ने भी अनुभव किया है? सूर्य धरा के प्रतेयक स्थान पर अपनी रश्मियाँ विखेरता है,क्या इसका धरा से भेद भाव है ? क्या वर्षा हर स्थान पर नहीं पड़ती ? क्या इसका धरा से भेद भाव है ? वायु सब जो सारे प्राणियों का जीवन आधार है,कभी उसने किसी को भी इसने अपने से वंचित किया है ? जल ने कभी किसी को अपने उपयोग से वंचित रखता है ?
मानव क्यों इस प्रक्रति से नहीं सीखता ? क्यों लोग धर्म,जाती भूमि के लिए एक दूसरे की जान लेने तक पर आतुर हो जातें हैं ?
प्रक्रति ने तो ऐसा कभी नहीं किया, और तो और मानव इस प्रक्रति का ही शत्रु हो गया है,तेजी से पेडो की कटाई जिसके कारण प्रक्रति के द्वारा स्वस्थ और जल वायु का अभाव और भूमिगत जल का गिरता स्तर, लोग प्रात: काल में भ्रमण के लिए जाते थे और जाते है,और अब उनको कहाँ वोह स्वस्थ वायु मिल पाती है ? तेजी से बड़ते हुए पेट्रोल अथवा डीजल से चलते हुए वाहन यह वाहन भी प्रक्रति का संतुलन बिगाड़ रहें हैं ,चलो अब विकसित शहरों में, गैस से चलने वाले वाहन (C.N.G) आ गयें हैं,परन्तु अधिकतर स्थानों पर नहीं, और नाही लोगों में यह समझ की अधिक इन वाहनों के स्थान पर कम वाहनों का उपयोग करें, जब कोई भी इस प्रकार की प्रक्रिया जब जलने की क्रिया पूर्ण रूप से सक्रिय ना हो,तो कार्बोनमोनोऑक्सआइड गैस निष्कासित होती है,और यह गैस कार्बोनडाईओक्सइड से भी अधिक घातक है,और यह गैस हमारे वायुमंडल की ओजोने की पर्त को और पतला कर देतीं हैं, जिसके कारण सूर्य की हानिकारक किरणों को जो यह ओजोन पर्त रोकती हैं, उनकी सक्षमता कम हो जाती है, और वायुमंडल का तापमान भी बड़ने लगता है, और ग्लोबल वार्मिंग को कोलाहल प्रारम्भ हो जाता है, इंसान प्रक्रति से मिल जुल कर रहना तो सीखता नहीं और इसको हानि पहूचाने पर तुला हुआ है |
मानव किंचित सीखो प्रक्रति का अनुशाशन और मेल जोल
मानव क्यों इस प्रक्रति से नहीं सीखता ? क्यों लोग धर्म,जाती भूमि के लिए एक दूसरे की जान लेने तक पर आतुर हो जातें हैं ?
प्रक्रति ने तो ऐसा कभी नहीं किया, और तो और मानव इस प्रक्रति का ही शत्रु हो गया है,तेजी से पेडो की कटाई जिसके कारण प्रक्रति के द्वारा स्वस्थ और जल वायु का अभाव और भूमिगत जल का गिरता स्तर, लोग प्रात: काल में भ्रमण के लिए जाते थे और जाते है,और अब उनको कहाँ वोह स्वस्थ वायु मिल पाती है ? तेजी से बड़ते हुए पेट्रोल अथवा डीजल से चलते हुए वाहन यह वाहन भी प्रक्रति का संतुलन बिगाड़ रहें हैं ,चलो अब विकसित शहरों में, गैस से चलने वाले वाहन (C.N.G) आ गयें हैं,परन्तु अधिकतर स्थानों पर नहीं, और नाही लोगों में यह समझ की अधिक इन वाहनों के स्थान पर कम वाहनों का उपयोग करें, जब कोई भी इस प्रकार की प्रक्रिया जब जलने की क्रिया पूर्ण रूप से सक्रिय ना हो,तो कार्बोनमोनोऑक्सआइड गैस निष्कासित होती है,और यह गैस कार्बोनडाईओक्सइड से भी अधिक घातक है,और यह गैस हमारे वायुमंडल की ओजोने की पर्त को और पतला कर देतीं हैं, जिसके कारण सूर्य की हानिकारक किरणों को जो यह ओजोन पर्त रोकती हैं, उनकी सक्षमता कम हो जाती है, और वायुमंडल का तापमान भी बड़ने लगता है, और ग्लोबल वार्मिंग को कोलाहल प्रारम्भ हो जाता है, इंसान प्रक्रति से मिल जुल कर रहना तो सीखता नहीं और इसको हानि पहूचाने पर तुला हुआ है |
मानव किंचित सीखो प्रक्रति का अनुशाशन और मेल जोल
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