बहुत दिनों से कोई ब्लॉग नही लिखा, इसके दो कारण थे, एक तो डॉक्टर को दिखाने गया था,पहेले माह मैं अचानक कमजोरी लगने लगी और चक्कर आने लगे, जिसके कारण मुझे चिकतासलय मैं रहना पड़ा,और दूसरा कारण था,दूसरे माह मैं असहनिएय पेट मैं दर्द होने लगा, इस प्रकार दो माह निकल गए।
समय व्यतित होता गया, और कुछ लिखने का मन नहीं करता था, यह भी समझ मैं नहीं आता था क्या लिखुं, परन्तु एक दिन किसी से कंप्यूटर पर बात कर रहा था, उन्होने कहा बहुत दिनों से शायद आपने कुछ नहीं लिखा, इस कारण मस्तिष्क मैं एक बिचार उभरा कि दो प्रकार के सयोंग होते है, कुछ समय के लिए और दीर्घकालीन।
इसी सन्दर्भ मैं यह भी विचार आया कि, कभी कभी कुछ सयोंग ऐसे हो जाते है, जिस के कारण मन्युष का सम्पूर्ण व्यक्तिव बदल जाता है।
ऋषि बाल्मीकि पहले समय मैं, अत्यन्त क्रूर और निष्ठुर डाकू थे, लूटपाट करते और लोगो की हत्या कर देते थे, परन्तु ब्रह्मा जी के संपर्क मैं आने के बाद उनका सम्पूर्ण व्यक्तिव बदल गया, ब्रह्मा जी ने उनको राम राम जपने के लिए कहा, तब वाल्मीकि जी मरा,मरा जपने लगे और उनका व्यक्तिव मैं ऐसा बदलाव आया कि उनका क्रूर हिरदय दयालु हिरदय मैं परिणित हो गया, क्रोंच के पक्षियों की हत्या देख कर उनके मुख से अनायास निकल पड़ा, "वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान", और कालान्तर मैं उन्होंने ने रामायण की रचना करी और एक डाकू ऋषि के रूप मैं परिवर्तित हो गए।
कौन भूल सकता बोध धर्म के संस्थापक गौतम बुध को, जो कि एक राजकुमार सिद्धार्थ थे, उनके पिता जी को किसी ज्योतिषी ने कहा कि सिद्धार्थ को बहार की दुनिया नहीं देखने देना, परन्तु यह सयोंग ही था कि उन्होने बीमारी,जरा अवस्था, मृत्यु को देखा और इन दृश्यों को देख कर घर बार छोड़ के निकल पड़े सत्य की खोज मैं, और बोधिस्तव को प्राप्त किया और गौतम बुध हो गए बाद मैं उनका पुत्र राहुल और उनकी पत्नी उनके शिष्य हो गए, और वोह घटना तो सुप्रसिद्ध है कि कैसे उन्ग्लीमाल का हिरदय सयोंग से भगवान बुध के संपर्क मैं आने के paश्चात क्रूर और निष्ठुर से कोमल हिरदय मैं परिवर्तित हो गया और उसने १००० ऊँगली की माला पहनने का प्रण छोड़ दिया और चल पड़ा बौध धर्म की और।
इसी प्रकार यह भी सयोंग हुआ की रामचरितमानस के रचिएयता तुलसीदास जी जो कि इतने अपनी पत्नी के प्रेमी थे कि उनकी पत्नी जब आपने मायके गई तो वोह उफनती नदी मैं मुर्दे को तखत समझ कर उस पर खडे हो कर नदी पर कर गए और साँप को रस्सी समझ कर उसको पकड़ के पहुंच गए अपनी पत्नी के पास, जब उनकी पत्नी ने उनको प्रतरित करते हुएय कहा कि इतना ही प्रेम अगर हरि मैं होता तो वोह मिल जाते, बस तुलसीदास जी लग गए प्रभु की खोज मैं और उनका व्यक्तिव एक रसिक प्रेमी से धार्मिक परिवर्तित हो गया।
यह भी तो सयोंग था कि राजकुमारी मीरा के अपनी माँ से यह पूछने पर मेरा पती कौन है, और उत्तर मिलने पर जा के सिर पर मोर मुकुट तेरा पती सोई, राजकुमारी मीरा पर ऐसा प्रवाहाव पड़ा वोह कृष्ण प्रेम मैं इतनी खो गयी कि वोह हो गयीं मीराबाई।
इसी प्रकार सयंगो के प्रवहाव से मन्युष का व्यक्तिव परिवर्तित हो जाता है, अच्छा भी बुरा भी, पर बुरा व्यक्तिव अच्छा होने के प्रमाण मिल जाते है, परन्तु इसके विपरीत भी तो हो सकता है, जो कि सुनने और पड़ने मैं मेरे विचार से नहीं मिलते।
मेरे संक्षिप्त ज्ञान के कारण मैं कह सकता हूँ, कि व्यक्ति का व्यक्तिव सयंगो के कारण भी बदल जाता है।
बस इस लेख को इस शेर के साथ विश्राम देता हूँ, "उसकी रजा के बिना पत्ता तक नहीं हिल सकता फिर बंद क्यों गुनाहगार है"।