शनिवार, अप्रैल 17, 2010

प्राक्रतिक आपदाओं का परिणाम |

अभी हाल ही में, हैती में आये भूकंप ने हाहाकार उत्पन्न कर दिया था, अत्यधिक जान माल की हानि हुई थी, सब ओर इस प्रकार से अस्त,व्यस्ता की सुरक्षा का कोई रास्ता ही नहीं बचा था, सड़के क्षतिग्रस्त हो गयी थीं, सडको का मार्ग अवरुद्ध, हवाई अड्डे तहस,नहस सडकों की ओर से सहयता पहुचना दुर्लभ हो गया था, हवाई सहायता भी पहुचना भी दुर्लभ हो गया था, इमारते तहस नहस होने के कारण हजारो लाखो लोग मलबे के नीचे दब गए थे |
 और इसी वर्ष में चीन में भी ऐसा ही भूकंप आया है,और वोही दृश्य जैसा कि हैती में हुआ था,लोग जब तक संभले इससे पहले इस भूकंप ने लोगों को अपनी चपेट में लिया था, यह तो थी भूकंप की त्रासदी |
 और अभी हाल ही में आइसलैंड के ग्लेशिअर में जवालामुखी ऐसा भड़का की उससे कई किलोमीटर तक धुआ उठा और इस धुंए ने बहुत से देश अपनी चपेट में ले लिए , हवाई सेवाएँ युरोप के बहुत से देशो अवरुद्ध हो गयीं हैं, इस धुए के कारण लोगों को साँस की समस्या हो सकती हैं, इस धुंए में सल्फर की अधिक मात्रा होने के कारण बारिश होने पर यह सल्फर यह पानी के साथ मिल कर तेजाब बनाएगा (सल्फुरिक असिड ) जो कि त्वचा को हानि पहुंचाएगा,और यही बारिश का पानी धरतीऔर लावा में निकले कांच धरती पर पड़ कर उसको बंजर बनायेंगे  जो फसलो को उत्पन्न होने में कठिनाई पैदा करेगा, इस प्रकार की प्राक्रतिक आपदाए सुनने और पड़ने में ऐसा लगता है,जैसे कि दूसरे विश्वयुद्ध के समय पर हिरोशिमा नागासाकी पर परमाणु बम गिरा था,और अनेको वर्षो तक इस परमाणु बम ने रेडशीयन के कारण लोगों को हानि पहुंचाई थी, यह  रेडशीयन उसी प्रकार से हानि पहुँचाता है,जैसे कि दिल्ली के  स्थान पर कोबाल्ट-60 ने कुछ लोगों को हानि पहुचाई है, इसकी किरणे विकरण के कारण त्वचा को भेदता हुआ हड्डियो और खून को क्षतिग्रस्त करता है |
 अपने ही देश की बात लो गत वर्ष सुनामी ने हजारो लोगों को अपनी चपेट में लिया था, सुनामी के कारण कितने ही लोग बह गए कितनो के ही घर उजड़ गये थे, और मानसून के दिनों में एल नेनो मानसूनी हवाओ को क्षीण कर दिया था, और परिणाम वर्षा भी नाममात्र की हुई थी, फसल कम हुई थी और इस कारण फल सब्जिओ के दाम आसमान छुने लगे हैं, वैसे तो यह अर्थशास्त्र को नियम है,अगर किसी वस्तु की मांग अधिक होती है, और उपलब्धता कम तो उस वस्तु के दाम बड़ने लगते हैं, और ऊपर से यह सटोरिये जो अपने पास फल सब्जियों का अपने पास भंडार रख लेते हैं, और कमी होने के कारण यह सटोरिये अपना लाभ सोच कर ऊँची,ऊँची कीमतों में बेचते है, इन सटोरियों को आम जनता से कोई मतलब नहीं इनको तो अपने लाभ से मतलब |
 आज कल विश्व उतरोतर बडते हुए तापमान से ग्रसित हो रहा है, इसका कारण तो में अपने एक लेख में लिख चुका हूँ, अब ऐसी एसी प्राकर्तिक आपदाए आ रही हैं,जो पहले सुनने और पड़ने में बहुत कम आती थीं |
 क्या प्रक्रति की विनाश लीला प्रारंभ हो गयी है |

1 टिप्पणी:

Rohit Singh ने कहा…

विनय जी प्रकुति से लड़ने का नतीजा तो हम भुगतेंगे ही..साथ मे निकम्मी सरकार और निकम्मा प्रशासन भी दुनिया के कई देशों का इसका कारण है..आखिर इसी प्रशासन की मिलीभगत से दुनिया भर में पेड़ काटे जा रहे हैं. पर कोई सोचता नहीं. पिछले साल पड़ी गर्मी के बाद बर्फबारी करके प्रकुति ने तो बैलेंस बनाने की कोशिश की है. पर हम तो सुधरेंगे नहीं न..सब कुछ के लिए सरकार को दोषी देकर घर में बैठ जाएंगे..औऱ क्या करेगें....