रविवार, फ़रवरी 01, 2009

मेरी जीवनी फरुखाबाद

अब हम आगरा से फरूखाबाद गए थे,तब मुझे फरुखाबाद के सिटी गर्ल्स स्कूल में दाखिल करवाया गया,एक और स्कूल था राखा, क्योंकि मेरे पिता डरपोक किस्म के थे,इसलिए दूर होने के कारण राखा मैं नहीं दाखिल करवाया,हम लोग फरूख्बाद की लाल कालोनी में रहेते थे, राखा के लिए बस जाती थी और सिटी गर्ल्स स्कूल के लिए तांगा,मुझे चोथी क्लास मैं दाखिल करवाया गया था,कभी कभी हम लोग स्कूल मैं पेड़ के नीचे बेठ कर पदाई करते थे,और ऊपर से बंदर मूत्र कर देता था,वहां पर बेदी साहिब जो की पापा के दोस्त थे,उनसे मुलाकात हुई, उनकी लड़की मेरी कॉपी के पेज फाड़ कर चूरन वाले से चूरन ले कर खा लेती थी, जो स्कूल के बहार खडा होता था,लाल बैग मैं हम पहेले किसी घर मैं रहतऐ थे,हमारे पड़ोस में दो अंग्रेज औरते रहती थी,जो की कभी कभी हमे टोफ्फी देती थी, पर मेरी माँ छुआ छूत के कारण नही लेती थी, फिर हम १२ नम्बर के कुआटर मैं गए,जहाँ पर बहार क्यारी और लाउन था, और अंदर किचन गार्डन और एक गुलर का पेड़ था,तअब मैं बहुत संहासी होता था, पेड़ की उस चोटी पर चला जाता था,जहाँ बच्चे हिम्मत नहीं करते थे।
हम लोगो ने पेड़ की अलग अलग शाखाओ को अपनी राजधानी बना रखा था, मुझे वहां एक टेचेर पाडने आता था,और उसको देख कर मैं पेड़ पर चढ़ जाता था।
हम लोग जगह जगह आग जला कर आलू भुना करते थे, और वहां का मालिक जेम्स आग को भुजा देता था,जेम्स के घर मैं काली मेम आया करती थी,और जेम्स के बच्चो के लिए खिलोने लाती,थी जेम्स एकदम काला और उसकी पत्नी जो की अंग्लो इंडियन थी एक दम गोरी चिट्टी।
वहां पर पापा ने बदमिन्तों कोर्ट बब्न्बाया था,जिसमे लोग बदमिन्तों खेलते थे,अब मुझे पराग जो की बच्चो की पत्रिका थी उसकी याद गई,शायद यहीं से मैंने पत्रिका पड़ना शुरू किया था।
बदमिन्तों कोर्ट के दूसरी तरफ कोई कालोनी थी, जहाँ पर हम बच्चो मैं आपस मैं पाथोरे से लडाई होती थी,येही पर पापा मेरे लिए मथुरा से अजीब सी तीन पहिओये की साइकिल लाये थे,जिसय बच्चे कीडा कहेत्ये थे।
यहीं से मुझे अपने जनम दिन की याद है,शायद यही तक था मेरा बचपन,एक बार में चोथी मैं फर्स्ट आया, तब जब हम दिल्ली गए हुए थे,पापा मेरे लिए प्लास्तेर्सन लाये थे,मेरा नन्हिहाल दिल्ली परताप बाग मैं था,जहाँ मेरी मासी,मेरे मामा और मेरे नाना नानी रहेते थे, यहाँ तक शायद अकेलापन नहीं था,यहाँ तक था मेरा बचपन।

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