मंगलवार, सितंबर 29, 2009

हमारे पिता जी की फनी बातें

ब्लोगवाणी के सथागित होने पर ब्लोगवाणी के पाठक वर्ग,और लेखको में निराशा फैल गयी थी, सोचा कि माहौल को कुछ हल्का फुल्का कर दूं, वैसे तो हमारे पिता जी का देहावसान ८२ वर्ष की आयु में हो गया था, लेकिन आज भी उनकी कुछ यादें मन को गुदगुदा जातीं है, वोह गुलाम देश के अंग्रेजो से बहुत प्रभावित थे, उनका जन्म मथुरा नगरी में हुआ था,और उनको M.A. अंग्रजी में करने के लिए अल्ल्हाबाद भेजा गया था, अगर किसी साइनबोर्ड पर कुछ अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओँ में लिखा होता था,तो उनको हिंदी में पड़ना गवारा नहीं था, बस वोह अंग्रेजी में ही पड़ते थे, और यह अंग्रेजी भी विचत्र भाषा हैं,अगर put पुट है,तो but बट हैं, एक बार पिता जी को किसी पुस्तक की आवयश्कता पड़ी तो वोह चल पड़े,वोह किताब लेने,घुमते,घुमते उनकी निगाह किसी साइनबोर्ड पर पड़ी जिस पर अंग्रेजी में kitabistan लिखा हुआ था,और उसके ठीक नीचे लिखा हुआ था किताबिस्तान,पर पिता जी को हिंदी में पड़ना गवारा नहीं था,लिहाजा उन्होंने उसको अंग्रेजी में पड़ा कइटबसतन,और बिना पुस्तक लिए पहुँच गये वापिस अपने छात्रावास, उन्होंने अपने सहपाठियों से पुछा अमुक पुस्तक कहाँ मिलेगी,तो किसी उनके सहपाठी ने उस किताबिस्तान का रास्ता बता दिया, वोह वहीँ पहुंचे और अपनी आवयश्कता की पुस्तक खरीद लाये |
 यह तो उनका बताया हुआ किस्सा है, उनका अंग्रेजी बोलने के कुछ हास्यापद किस्से तो मेरे साथ भी हुए थे, उनमे से दो का जिक्र कर रहा हूँ, हम लोग उन दिनों छोटे,छोटे हुआ करते थे, उस ज़माने में दूरदर्शन तो होता नहीं था,बस रेडियो ही एक मात्र मनोरंजन का साधन था,और रेडियो में एक सुई होती थी,जो की एक डोरी के ऊपर चलती थी, इसी से रेडियो स्टेशन का निर्धारण होता था,एक बार वोह डोरी टूट गयी, तो वोह मुझे बोले लाला को बुला लाओ,वोह लाला परचून की दूकान करता था,और उसको रेडियो ठीक करने का अनुभव भी था,में उस लाला के पास पहुंचा और मैंने उस लाला से उन्ही के शब्दों में कहा "रेडियो का Dial Cord टूट गया",पापा बुला रहें हैं,अब लाला हैरान,परेशान मेरे साथ अपने औजार लेकर के चलने लगा, उसको डायल कॉर्ड समझ नहीं आया था, मेरे साथ चलते चलते वोह अचानक रूक कर बोला ठेर  जाओ में अभी मल्टीमीटर ले कर आता हूँ,पता नहीं डायल कॉर्ड क्या होता है,खेर वोह घर पर आया उसने रेडियो की डोरी ठीक करी, और मुझ से बोला यह दूकान पर ही बता देते डोरी टूट गयी है |
  इसी प्रकार मुझे एक और किस्सा याद आ रहा हूँ, मेरी नयी,नयी नौकरी लगी थी,और हम लोगों को कोन्वेयोंस अलओनस मिलता था,उस जमाने में यजदी बाईक का चलन था, मैंने भी खरीद ली,अब मुझे उस पर पिट्ठू लगाने की आवयश्कता पड़ी, सो पिता जी भी चल पड़े मेरे साथ पिट्ठू लेने, और दूकान वाले से बोले हैबेरसेक देना,दूकान वाला बोला "बाउजी यह हेबरसेक क्या होता है?", मैंने जब कहा एक "पिट्ठू देना" तो उसने मुझे पिट्ठू दे दिया,पिता जी हर एक से अंग्रेजी के शब्दों में बात करते थे, चाहें अगला समझे या ना समझे |
 अपनी बड़ती उम्र के कारण वोह कुछ ऊँचा सुनने लगे थे,वैसे तो उन्होंने ऊँचा सुनने की मशीन खरीद रखी थी, पर उसका प्रयोग कम ही करते थे, अक्सर हम लोग उनके साथ उनकी गाड़ी में बैठ कर के घुमने जाया करते थे, और उनका ड्राईवर गाड़ी चलाया करता था,एक बार सदा की भांति उनके साथ घुमने जाया करते थे, गाड़ी के डेक में उस समय का गाना बज रहा था,"दिल देने की रुत आई", तो उन्होंने पता नहीं क्या सुना, अपने ड्राईवर चुन्नू से बोले "क्यों बे चुन्नू क्या कह रही है,दिल्ली में लुगाई",हम लोगों का हंसते,हंसते बुरा हाल और चुन्नू के हाथ से तो गाड़ी का स्टीरिंग हंसते,हंसते छुट गया |
 अविनाश जी से शमा याचना के साथ इस पोस्ट का अंतिम पारूप दे रहा हूँ, क्योंकि अगर उनके ब्लॉग  पिताजी में लिखता तो उसको एडिट करना कठिन हो जाता, बस अंत में यही कहना चाहता हूँ,हंसते रहो,हंसाते रहो, और ब्लोगवाणी के पुन: लौटने पर खुशियाँ मनाओ,और ऐसा कोई कार्य ना करो जिससे ब्लोगवाणी को अघात पहुंचे |
  सबके होंठो पर मुस्कान देखने की इच्छा से इस पोस्ट का पटाक्षेप | |

धन्यवाद् ब्लोगवाणी टीम

ब्लोगवाणी टीम
  आप लोगों का ब्लोगवाणी पुन: प्रारंभ करने के लिए,तहदिल से शुक्रिया,धन्यवाद् और thank you कहता हूँ,कल जब विजयदशमी के दिन यह जानकारी हुई,किसी कारण से आपको ब्लोगवाणी को स्थगित करना पड़ रहा है,तो हिर्दय पर एक तुषारापात सा हो गया,कारण तो सभी पाठक वर्ग जानते हैं, यह समझ नहीं आता कि लोग ऐसी नासमझी करके अपने ही पैरो पर कुल्हारी क्यों मारते है?, मुझे तो ऐसा लगा कि किसी वाइरस से ने मेरा कंप्यूटर ही खराब कर दिया, आप ही लोगों के कारण दूसरे लेखको के लेख पड़ने को मिलते है, और नए,नए विषयों का ज्ञान होता है, मेरा तो बहुत से लेखकों से अच्छे संपर्क हो गये हैं, औरो के भी हो गयें होंगे, में समझता हूँ आप लोगों को दिल पर पत्थर रख कर इसको बंद करना पड़ा होगा, ब्लोगवाणी का पुन: प्रारंभ होने के समाचार मिलने के बाद में तुंरत यह लेख लिख रहा हूँ, अभी तक मैंने ब्लोगवाणी को खोल कर भी नहीं देखा, ब्लोगवाणी टीम,मैथिली जी और सिरल जी की सहहिर्द्यता को शत: शत: नमन |

विनय

सोमवार, सितंबर 28, 2009

सीमित विज्ञान कैसे ज्ञात करेगा असीमित विद्याएँ ?

 लगभग एक सप्ताह से कंप्यूटर खराब पड़ा था, इस कारण कोई पोस्ट नहीं लिख पाया,बस एक पोस्ट लिखी थी वोह भी माइक्रोसॉफ्ट वर्ड में,और उस पोस्ट को साइबर कैफे में,जा कर ब्लॉगर में  पेस्ट कर दिया,अब पता नहीं कब तक यह कमपुयटर काम करेगा उसके उपरांत इस पर कुछ काम भी कर सकूँगा कि नहीं |
  विज्ञान का काम है किसी भी विषय पर शोध करना जब तो शोध में साक्ष्य मिलते रहते है, विज्ञान की सार्थकता बनी रहती है, परन्तु बहुत सी विद्याएँ  जिसमे विज्ञान को शोध में कुछ नहीं मिलता या बहुत सी विद्याएँ, जिस पर शोध हुआ ही नहीं अर्थार्त उन विद्याओं की सार्थकता विज्ञान ने सिद्ध ही नहीं करी, उसको कुछ विज्ञान के समझने वाले निरर्थक कह देते हैं, ना हीं उन विद्याओं की जानकारी लेने का प्रयास करते हैं, और व्यर्थ में उन विद्याओं को निरर्थक कह देते हैं |
  वैसे तो विज्ञान किसी भी जिज्ञासा की जानकारी प्राप्त करने के लिए शोध करता है, और उसको प्रमाणित करता है, फिर एक सीमा पर आकर रुक जाता है, में मानता हूँ विज्ञान ने इस संसार को बहुत सी उपलब्धियां दी हैं, परन्तु कुछ विषय जो कि हम लोगों के जीवन में नित प्रतिदिन होती हैं, जैसे कि पुर्बआभास किसी होने वाली घटना का पहले ही हो मालूम हो जाना  है,एक दुसरे से बिना किसी संचार माध्यम से बात होना अर्थार्त telepathy और मस्तिष्क के सुप्त भाग में क्या होता है,पुर्बजन्म के रहस्य  ? और  भी अनेक विषय विज्ञान के लिए अबूझ पहेली है, यह ऐसे विषय जिनको अभी तक तो विज्ञान सिद्ध नहीं कर पाया परन्तु भविष्य में इनको विज्ञान पता नहीं सिद्ध कर पायगा की नहीं |
  वैसे तो में वज्ञानिक तो नहीं परन्तु एक अभियंता होने के कारण मैंने विज्ञान के भोतिक शास्त्र,रसायन शास्त्र का तो गहन अध्यन किया है,और कुछ हद तक जीव विज्ञान और वनस्पति शास्त्र का भी अध्यन किया है |
  भौतिक शास्त्र में उर्जा के बारे में प्रयोगों के द्वारा सिद्ध किया गया है,एक उर्जा को दूसरी उर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है, मतलब प्रकाश को ताप में या ताप को प्रकाश में, या इसी प्रकार ताप या प्रकाश को बिजली में या और भी उर्जाओ को परिवर्तित ,परन्तु क्या विज्ञान उर्जा को स्वतन्त्र रूप में उत्पन्न कर सका है?
 इसी प्रकार रसायन शास्त्र में अणुओं का विघटन करके न्यूटरोंन,प्रोटोन और एलेक्ट्रोन तक पहुँच गये हैं,पर क्या इसके आगे विघटन हो पाया है क्या?, यहाँ तक तो ज्ञात हो गया है एलेक्ट्रोन पर रिनात्मक विदुत और प्रोटोन पर धनात्मक विदुत है, आइसटॉपस(एक ही सरंचना वाली धातु परन्तु गुण में अलग) के बारे में भी ज्ञात हो चुका है, परन्तु विगयान क्या कोई नई धातु दे पाया? इसी सन्दर्भ में मुझे याद आया,ज्वाला जी में बादशाह अकबर द्वारा चडाये हुए छत्र की धातु को विज्ञान अब तक नहीं ज्ञात कर सका जो सदियों पहले चडाया गया छत्र  था,कण के बारे में कणाद ऋषि ने बरसो पुरने समय में ज्ञात कर लिया था |
  इसी जीव शास्त्र  प्रकार D.N.A में उपस्थित जींस और उसके आगे क्रोमोसोम तक पहुँच गया है,और यहाँ तक भी पहुँच गया है कि  x,x  कोरोमोसोम के आपस के सयोंग से कन्या भ्रूण बनता है, और x, y कोर्मोसोम के सयोंजन से पुरुष भ्रूण का निर्माण होता है, और यहाँ तक की एक जीव को दूसरा परतीरूप क्लोन के रूप जीव शास्त्र ने बना दिया,परन्तु किसी मृत जीव को जीवन दे पायें क्या परन्तु यह मृत जीव को जीवन देनी वाली विद्याओं का प्रमाण हमें अपने पौराणिक ग्रंथो में मिलता है रामायण में लक्ष्मण जी को वैद्य सुषेण द्वारा जीवन दान का प्रमाण मिलता है और असुरों के गुरु शुक्राचार्य जी को भी इस मृतसंजीवनी विद्या का ज्ञान था ,विज्ञान  कोई भी किसी भी प्रकार का जीव उत्पन्न कर पाया है? मेडिकल साइंस ने बहुत उपलब्धिया हासिल कर ली जटिल से जटिल रोगों की दवाइयाँ खोज ली है,जटिल से जटिल ऑपरेशन करना संभव हो गया है,मानव के खराब अंगो का प्रत्यापर्ण संभव हो गया है,और कृत्रिम अंग भी बन चुके हैं,परन्तु क्या अभी तक बिलकुल उसी प्रकार के अंग का निर्माण हो सका है? विज्ञान ने रोबोट का निर्माण किसी कार्य को विशेष को करने के लिए तो कर लिया है,परन्तु मानव द्वारा सभी कार्य करने वाला रोबोट अभी तक बन सका है क्या? या बिलकुल मानव का परतिरूप बनाना विज्ञान के लिए संभव हो सका है क्या?
  इसी सन्दर्भ में मुझे याद आ गया ऋषि विशामित्र ने अपने तप बल से एक नयी सृष्टि बनाने की शक्ति प्राप्त कर ली थी, और बनाना भी प्रारंभ कर दी थी, देवी देवताओ पर अर्पित करने वाला नारियल इन्ही विश्वामित्र की देन है, परन्तु यह बात विज्ञान के लिए निरर्थक होगी,क्योंकि यह बात विज्ञान के नियमो नहीं बंधती है, इसी प्रकार रोगों के इलाज के लिए एलॉपथी के अतिरिक्त बहुत सी दूसरी इलाज की पदितिया है,जैसे आयुर्वेदिक,होमेओपथिक इत्यादि, आयुरवैदिक पर तो अब एलॉपथी का कुछ,कुछ विश्वास होने लगा है, परन्तु होमेओपथिक पदिती एलॉपथी के नियमो नहीं बंधती,परन्तु इससे भी रोगों का समाधान होता है,पर यह भी विज्ञान के नियोमो सेकोसो  दूर है, इसलिए बहुत से लोग इस विद्या को निरर्थक कह देते हैं, आयुर्वेद से प्राप्त होने वाला च्यवनप्राश च्यवन ऋषि की देन है, वोह च्यवन ऋषि जो दोनों नेत्रों से दृष्टिविहीन हो चुके थे,और बुड्ढे हो चुके थे,जिनको यह प्राश देवताओं के पुत्रो अश्वनी कुमारो द्वारा प्रदान किया गया था,और उनके दोनों नेत्रों की ज्योति और उनकी जवानी लौट आई थी, परन्तु इस च्यवनप्राश का कोई भी दीर्घायु के लिए कोई भी विज्ञान द्वारा तर्कसंगत नियम नहीं है,बस इस प्राश के लाभ केवल अनुभव पर आधारित हैं |
  अब में आता हूँ स्वयं किये हुएअनुभवों  पर,पहेले बताता हूँ  स्पर्श चिकत्सा के बारे में ,दिल्ली में एक प्रदर्शनी होती थी, मीस्टिक इंडिया  जो कि हमारे भारत के दुर्लभ ज्ञान पर आधारित होती थी, जिज्ञासा वश में भी उस पर्दर्शनी में जाता था, उन दिनों मेरी कनपटियों में भयंकर पीडा होती थी,और किसी भी चिकत्सा से ठीक नहीं हो रही थी, वहाँ पर मुझे तपस्वी जनक शाही मिले जो लोगों का स्पर्श चिकत्सा के द्वारा इलाज कर रहे थे, कनपटियों में दर्द तो हो ही रहा था, में भी तपस्वी जनक शाही के पास गया उन्होने मेरी एक कनपटी पर अपना अंगूठा रखा,और दूसरी कनपटी पर अपनी शेष अंगुलियाँ और यह प्रक्रिया पॉँच मिनट तक करी,वोह कनपटियों का दर्द जो किसी भी चिकत्सा के कारण ठीक नहीं हो पा रहा था,वोह पॉँच मिनट में ठीक हो गया और उनको मैंने अनेको प्रकार के असाध्य रोगों का स्पर्श चिकत्सा द्वारा  इलाज करते और रोगी को ठीक होते देखा है ,अब विज्ञान इसे क्या कहेगा,यह परक्रिया विज्ञान के किसी नियम में बंधती ही नहीं, कुछ समय पुर्ब विनय बिहारी सिंह जी ने अपने एक ब्लॉग "ऐसे हुआ चमत्कार में" लिखा था कि उनकी पीठ में बहुत दर्द होता था, और उस पीठ के दर्द के कारण वोह चलने से भी लाचार थे, और एक योगदा सत्संग सोसाइटी के सन्यासी के परामर्श पर वोह ओर्थोपदिक डाक्टर को दिखाना चाहते थे, और बाद में उसी सन्यासी के एक बताये हुए योगासन से उनका वोह कमर का दर्द ठीक हो गया,और उनको ओर्थोपदिक डाक्टर को दिखाने की अवय्श्कता ही नहीं पड़ी,अब इसको विज्ञान क्या कहेगा? योगदा सत्संग सोसाइटी के संस्थापक पूज्य श्री परमहंस योगानंद जी द्वारा लिखित पुस्तक ऑटोवायोग्राफी ऑफ़ ऑफ़ ए योगी में विज्ञान को चुनोती देते हुए अनेकों चमत्कार हैं |
 कुछ वर्ष पहले मैंने प्राणिक हीलिंग का कोरस किया था, वोह चिकत्सा शारीर में स्थित विभिन्न चक्रो को ठीक करके की जाती है, और रोगों का पता शारीर के चारो ओर एक आवरण होता है, जिसको औरा कहते है,उसकी स्थिति का पता लगा कर किया जाता है,और इस औरा से यह भी ज्ञात हो जाता है,शरीर को कौन सी बीमारी घेरने वाली है? इस प्राणिक हीलिंग के द्वारा बिना स्पर्श के बिना दवाईओं के रोगी का इलाज होता है, और इस विद्या के द्वारा अपने से सेक्रों,हजारो मील बैठे हुए रोगी का इलाज भी संभव है,औरा का  तो एक विशेष कैमरा द्वारा चित्र भी  लिया जा सकता है |
  अभी तक तो विज्ञान चंद्रमा,और सूर्य की किरणों का इस पृथ्वी पर प्रभाव पड़ने के बारे में ज्ञात कर सका है,परन्तु क्या अभी तक विज्ञान सूर्य की प्रावेग्नी और इन्फ्रारेड किरणों के आगे पहुँच पाया है क्या?,या चंद्रमा की किरणों का समुन्द्र पे पड़ने वाले ज्वार,भाते को ही ज्ञात कर पाया है,और हमारे पुर्बजो ने तो सभी ग्रहोंकी किरणों का  पृथ्वी और मानव पर पड़ने वाले प्रभाव को ज्ञात कर लिया था, इसी से हमारे भृगु ऋषि ने भृगु सहिंता की रचना की थी,जो भूत,भविष्य और वर्तमान का ज्ञान करा देती है, और यहाँ तक बता देती है, अमुक व्यक्ति किस दिन अपने बारे में जानकारी लेने आयेगा, और इसको प्रमणित किया पंडित डी.के शर्मा जी ने मेरे लेख भ्रिगुसहिंता के बारे में मेरी अल्प जानकारी में टिप्पणी दे के, और संगीता जी जिनकी गत्यात्मक ज्योतिष द्वारा अधिकतर भविष्य वानिया ठीक निकलती हैं, उसको बहुत से लोग नकार देते हैं, जबकि संगीता जी ग्रहों के पड़ने वाले प्रबाभव को ज्योतिष की गणना के द्वारा बतातीं हैं और उन्होंने अपने लेख में भृगु सहिंता को आज के परिवेश के अनुरूप लिखने के बारे में भी बताया था , चाहें विज्ञान के ख्गोल्शास्त्रियो ने कई प्रकाश पुर्ब ग्रहों की खोज कर लीं है, परन्तु मानव शरीर पर रत्नों का प्रभाव नहीं जान पाए  है, इस विषय में भी अपना अनुभव बताता हूँ, दिल्ली में एक व्यक्ति ऐसे थे,जो बिभिन प्रकार के रोगों की चिकत्सा रत्नों द्वारा करते थे, और मुझे भी अपने कुछ रोगों में लाभ हुआ था, वैसे यह रत्न या पत्थर ही कह लीजिए ज्योतिषी लोग अनेको प्रकार की समस्याओं का इन पथरों द्वारा उपाय बताते हैं,अब विज्ञान की जानकारी रखने वालेंइस विद्या को  निरर्थक  ही बताते हैं |
  अंत में में यही कहूँगा महान विज्ञानिक इनसटीन ने कहा था, "There is something which is controlling the universe."
और कहा जाता है,जहाँ विज्ञान का अंत होता है,वहीं से अध्यात्म प्रारंभ होता है,और यह अध्यात्म हमारे ऋषि,मुनियों ने भगवद कृपा से प्राप्त की थी, साइंस मैंने भी पड़ी है,और में इन विद्याओं को कभी निरर्थक नहीं कहता, साइंस जिज्ञासा और जिज्ञासा का समाधान का प्रारूप है,और साइंस ने हमें बहुत उपलब्धियां दी हैं,और भविष्य में भी देती रहेगी,अभी तो मैंने मंत्र,यन्त्र और तंत्र की बात नहीं की, नाही मैंने भगवान से साक्षात्कार की बात नहीं की, लेकिन जो तथ्य आज भी उबलब्ध हैं,साइंस उसको निरर्थक ना कह कर  साक्ष्य उबलब्ध कराये,हो सकता है भविष्य में विज्ञान इसमें सफल भी हो जाये,परन्तु आज के तथ्य जो मैंने पौराणिक ग्रंथो को छोड़ के लिखे हैं, क्या कुछ लोग जो विगयान की जानकारी रखते हैं,इनका गलत होने का प्रमाण दे सकते हैं?
  अब तो रामायण काल के चरित्रों की खोज श्री लंका में हो चुकी है,और उस काल के अवशेष भी मिल चुके हैं,क्या यह भी कोरी गप है, विदेशिओं ने इन ग्रथों उनके चरित्रों को मिथ कह दिया,तो हम भी उसको मिथ अथवा गप मानने लगे, विदेशी तो परतेक विषय पर शोध करते हैं,और हम लोगों के पास अनन्त भंडार होने के बाद बिना उसको बिना जाने तर्क करते हैं,और जब विदेश में उन विषयों पर शोध होने के बाद प्रमाणित होतें हैं,तो हम मान लेते हैं,हमारे यहाँ बहुत से विषयों को जानने के विज्ञान के अतिरिक्त दुसरे रास्ते भी,पर पता नहीं हम लोग उन रास्तों पर अग्रसर क्यों नहीं होते?


  सभी पाठको को विजयदशमी की अनेको शुभकामना

मंगलवार, सितंबर 22, 2009

माता रानी से प्रार्थना

माता रानी से प्रार्थना

सर्व मंगल मांगलेय शिवे सर्वार्थ साधिके शरन्ये त्रियम्बके।
शरनेय त्रियम्बके गौरी,नारयणी नम्सतुते॥
"आप का कितना सुन्दर शलोक है,है सब के मंगल की कामना करने वाली,तीन चक्षु वाली माता,आपको नमस्कार है",और आपके इस धरा पर इस बार आगमन ऐसे शुभ समय पर हो रहा है,जबकि आप के आने से दो दिन पहले यहाँ पर देवताओं के मुख्य अभियन्ता विश्वकर्मा जी आये थे,और आपके पवित्र नवरातों में ईद की खुशियां भी मनेगीं,कितना सुन्दर संयोग है, हम अपने पितरों को आपके आने से पहले सदा की भातिं श्रद्धापुर्बक पितर लोक के लिये,प्रस्थान करा चुके होगें,और स्थान,स्थान पर मर्यादा पुर्षोत्तम श्री राम की रामलीला का संचालन हो रहा होगा जब आपका इस धरती पर आगमन होगा।
माता रानी आपके शस्त्र धारण करने का कारण यही है,दुष्टों का विनाश करके भक्तो को अभयदान प्रदान करना,आप तो अपनी एक हुकांर से राक्षसों का विनाश कर सकतीं हैं,परन्तु आप का कितना सुन्दर विचार हे,आप के शस्त्रों द्वारा मारे जाने पर राक्षस भी उत्तम लोकों को जायें।
(दुर्गासप्तशती से उद्दरित)
आप के मन्त्र इतने सशक्त हैं कि भोलेनाथ को आपके मन्त्रो को कीलीत करना पड़ा,क्योंकी दुष्ट प्रक्रती के लोग इनका लाभ ना उठा लें,आप ही शिव की शिवा अर्थार्थ शिव के प्राण हो,विना आपके शिव शव हैं,आप ही इस स्रिष्टी की रचेयीता हो,माँ आपने वरह्मा जी के कर्ण से उतप्न हुये मधु,कैटभ का संहार विष्णु भगवान द्वारा करवाया, जो कि काम और क्रोध के प्रतीक हैं,माता रानी अब तो इस संसार में,अनेकों मधु,कैटभ के रूप में बुराईयों ने जन्म ले लिया है,उनका विनाश करो, माता रानी आपने महिषासासुर का विनाश किया,जो कि एक से दूसरी बुराई के जन्म लेने का प्रतीक है,आप की इस स्रिष्टी में,अनेको प्रकार के महिषासुर उतपन्न हो गयें हैं,माँ इन महिषासुरों का विनाश करो,आप ने रक्त्बीज जिसकी रक्त की बूदं गिरने पर उसी प्रकार के और असुर उतपन्न हो जाते थे,उस रक्तबीज का आपने संहार किया,यह प्रतीक है,एक बुराई दूसरी बुराई को जन्म देने का,इस प्रकार के अनेकों रक्तबीज इस प्रिथ्वी पर है, माँ उन रक्तबीजो का संहार करो,इस प्रकार अनेकों राक्षसों का आपने संहार किया,जो कि बुराई का प्रतिरूप थे,आज तो बुराई के रूप में अनेकों राक्षस उत्पन्न हो गयें हैं,माँ उनका समूल नाश करो।
आप के पवित्र नवराते जो कि नों दिन चलेगें,उन नवरात्रों में लोग संयम रखेंगे,और उपवास रखेंगें,माता रानी आपसे करव्ध विनती है,यह संयम सब लोग अपने जीवन में सदा के लिये उतार लें,आप ने नो दिन की पूजा और रात भर जागरण की बहुत ही,सुन्दर सौगात दी है,और इन नो दिनों के प्रारम्भ में,लोग अपने,अपने घरों में जौ बीजेगें,जो की जितने बड़गें,उतनी ही खुशहाली का संकेत है,इस वर्ष सबके घर में यह जौ अत्याधिक बड़े,बड़े हों,यह कामना करता हूं,इन्ही नवरात्रो में गुजरात का प्रसिध गरबा प्रारम्भ हो जाता है,जिसमें अम्बे माँ की पूजा भी सम्मिलित है,इतना रमणीक है,आपका आगमन,वैसे तो आप कण,कण में विदयामान है,आपके इस धरा पर नों पवित्र स्थान हैं,और आप के इन पवित्र नों दिनों के पश्चात आयेगा,बुराईयों पर अच्छाई की विजय करने वाला त्योहार दशहरा, आप का इतना सुन्दर प्रस्थान होगा,आप सबकी माँ हो,सब की कल्याण करने वाली माँ, बस अन्त में यही कहुगाँ,"पूत कपूत हो सकतें हैं,माता हो नहीं हो सकती कुमाता"।
बस अन्त में आपसे करब्ध निवेदन है,"अपने इस मन्त्र की लाज रखना।
सर्बमंगल मांगलेय शिवे सर्वाध साधिके।
शरनेय त्रियम्ब्के नारायणी नमस्तुत॥
आप सब को नवरात्रे मंगलमय हों,माँ आप सभी लोगों को सुख समपन्न करें।
सब भाई बहनों,बच्चों,सगीं,साथियों,बुज़ुर्गों और पाठकों को जय माता की॥

शनिवार, सितंबर 12, 2009

क्या यह प्रक्रति का प्रकोप है

हमारे देश भारत में ग्रीष्म,बरसात और शीत ऋतुए मुख्यत: होती हैं, और अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार एक वर्ष में १२ माह होते हैं, और इन माह के अनुसार ऋतुएँ बदलती हैं, में प्रारंभ करता हूँ, ग्रीष्म ऋतू से जो की मई,जून के माह में अपनी चरमावस्था पर होतीं हैं, और इस के पश्चात् जून के अंत में, बरसात का आगमन होता है, और यह बरसात का मौसम जुलाई,अगस्त में अपनी चरम अवस्था पर पहुँच जाता है, वेगयानिक हिसाब से तो ग्रीष्म ऋतू में, नदियों,तालाबो और सागर से वाष्पीकरण ग्रीष्म ऋतू में सबसे अधिक होता है, और जब इस वाष्प की अधिकता हो जाती है,तो यही वाष्प वर्षा का रूप ले लेती है, और फिर इस वर्षा से ग्रीष्म ऋतू से गरम हुई धरती ठंडी पड़ने लगती है, तो होता है, सितम्बर के माह से आगमन होता है,शीत ऋतू जो कि गुलाबी सर्दी के रूप से अग्रसर होती हुई,नवम्बर,दिसम्बर,जनबरी  में यह अपनी पूर्ण जवानी पर होती है,और शारीर को कांपने के लिए विवश कर देती है,फिर शने:, शने: यह सर्दी कम होती जाती है,और फरबरी में,नहीं रहती यह शारीर को कंपने वाली यह शीत ऋतू, और मार्च केप्रारंभ में आ जाती है,सम ऋतू ना अधिक ठण्ड और ना अधिक गर्मी, अप्रैल से फिर गर्मी का आगमन होता है,और इसी प्रकार से प्रक्रति का चक्र चलता रहता है, इसी हिसाब से किसान अपने खेतो में फसल उगाता है, परन्तु इस वर्ष तो यह ग्रीष्म ऋतू ने तो अगस्त का महिना भी ले लिया, अपनी चपेट में, और जून के अंत में वर्षा की ओर टकटकी लगाये हुए किसानो की फसल सूखने लगी, अनेको स्थानों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया, खाद्य पदार्थो के मूल्य आसमान छुने लगे,बेचारे गरीब लोगो से मुँह का निवाला जुटाना कठिन हो गया,बहुत से किसानो की फसले सुख गयी, किसानो ने अपनी खेती के लिए स्थान,स्थान से कर्ज लिए हुए थे, और फसल ना होने के कारण बहुत से किसान कर्ज नहीं चुका पाए,और निराश हो कर के हो गये,अग्रसर आत्महत्या की ओर,ओर छोड़ गये अपने परिवार को रोते,बिलखते लोगो को, इसी महंगाई के कारण प्रारंभ हो गया जमाखोरी,और कालाबाजारी का धंधा, अब सितम्बर के प्रारंभ में,वर्षा आई और इस वर्षा ने अनेको नदियों में इस प्रकार से पानी भर दिया,अनेको स्थान पर बाड़ का कहर टूट पड़ा, अनेको कच्चे मकान टूट गए,इस वर्षा ने ऐसा अन्प्रतियाषित आक्रमण किया जिसके लिए सामान्य व्यक्ति तय्यार नहीं था, मेरे हिसाब से यह प्रक्रति को कोप ही है, पेडो की अनाव्यशक कटाई, अनेको प्रकार के प्रदुषण के कारण विश्व का तापमान बड रहा है, हमारे वायुमंडल के चारो ओर ओजोने की वोह परत जो की सूर्य की हानिकारक किरणों से हमें बचाती है,वोह पतली पड़ती जा रही है, अब कहाँ रहा वोह चालीस दिन का चिल्ला जिसमे अत्यधिक ठण्ड होती थी,और इस सर्दी के कारण कोहरा पड़ता था, जिसमे कुछ ही दूरी कीही  वस्तु दृष्टिगोचर हो पाती  थी, वोह आसमान में वर्षा ऋतू में बनने वाला वोह इन्द्रधनुष भी यदा,कदा ही दिखाई देता है|
  यह प्रक्रति का कहर नहीं तो और क्या है?
प्रकर्ति से छेड़,छाड करने वालों तनिक सोचो उन नन्हे,मुन्ने बच्चो को तुम क्या भविष्य दोगे ,जिनको तुम इस दुनिया में लाये हो?
  प्रक्रति को माँ इसीलिए तो कहते हैं,यह हमारे लिए जीवन का आवाश्य्क संतुलन बनाए रखती है| 
मत करो अपनी प्रक्रति माँ से छेड़ छाड|

गुरुवार, सितंबर 10, 2009

मझे इंसानों के रूप मे हीरे मिले

इस लेख को संत कबीर दास के इस दोहे के द्वारा आरम्भ करना चाहता हूँ|
             बुरा देखेन मे चला,बुरा ना मिला कोय |
             जो देखा आपने मुझ से बुरा ना कोय | |
मुझे अपने शहर गाजिआबाद में, १५ वर्ष से ऊपर हो चुके हैं, मुझे अपने इस शहर में, मेरी मुलाकात बहुत से लोगो से होती रहती है, और बहुत से अच्छे इंसान मिले, कम पैसा कमाने वालों से लेकर अधिक पैसा कमाने वालो तक, सब से पहेले वर्णन करूँगा एक रिक्शा वाले का जिसका नाम है, सिब्बू , मेरी पत्नी यहाँ के एक परिथिष्ट  स्कूल में अध्यापिका है,और उस स्कूल की छुट्टी २.३० पर होती है, मेरी पत्नी स्कूल से २.४५ तक निकल पाती है,  वोह रिक्शा वाला बिना नागा २.३० बजे मेरी पत्नी को लेने के लिए  सब प्रकार के मौसम में, लेने पहुँच जाता है, भीषण गर्मी हो तो वोह खड़ा हो जाता पेड़ की छा में, परन्तु उस भीषण गर्मी को तो सहता ही है, मूसलाधार बरसात हो तो भीगते हुए वहाँ,पहुँच जाता है, इसी प्रकार अगर ठिठुरती हुई,शीत ऋतू हो तो पहुँच जाता है,ठिठुरते हुए वहाँ पहुँच जाता है , और सवारियों को भी गंतव्य स्थान तक भी  पहुंचाता  है, एक दिन मैंने उससे पुछा तुम क्यों प्रतिदिन मेरी पत्नी को ले जाने के लिए पहुँच जाते हो, तो उसका उत्तर ऐसा था कि जैसे कि किसी बहुत प्यासे को शीतल जल पिला दिया हो,वोह बोला " बच्चो को पढाते हुए मैडम थक जाती होंगी,पता नहीं उनको रिक्शा मिले या नहीं मिले",और  होताहै भीहै  ,कि बहुत ख़राब मौसम में कोई स्कूल से घर के लिए कोई भी रिक्शा नहीं मिलती|
जब मेरे पास किसी कारणवश कोई वाहन नहीं होता,या कोई मेरी कोई मजबूरी होती है, तो वोह  ले जाता है,मेरे को मेरे गंत्याव्य स्थान तक ,औरअगर  उसके पास कोई सवारी नहीं होती तो मुझे लेने भी पहुँच जाता है, कुछ समय पहले  मेरे पेट में असेहनिये पीडा होती थी, और ना तो में अपना स्कूटर चला सकता था,ना गाड़ी वोह रिक्शा वाला डाक्टर के पास ले जाता था, और बहुत देर तक मेरे वापस आने का इंतजार करता था|
 यह पेट की असेहनिये पीडा कभी भी हो जाती थी, एक बार में, केमिस्ट से दवाई लेने गया तो वोह पेट दर्द की पीडा,अचानक उठ गयी,और ऐसे में मुझसे चलना भी दूभर हो जाता था, उस केमिस्ट की दूकान ऐसे स्थान पर है, जहाँ से रिक्शा कठिनाई से ही मिलती है,या यों  कह लीजिये वहाँ रिक्शा मिलती ही नहीं,उस केमिस्ट ने अपनी पत्नी को फ़ोन करके बुला लिया,और चल दिया मेरे लिए रिक्शा लेने,उस के कारण में बिना किसी कठिनाई  के, पेट दर्द की असेहनिये के अतिरिक्त पहुँच गया सकुशल अपने घर पर|
  मेरे को धूम्रपान का व्यसन था,जो कि अब में छोड़ चूका हूँ ,में एक पान,बीड़ी,सिगरेट कि दूकान पर सिगरेट लेने जाता था,और एक बार ऐसा हुआ जिस ब्रांड कि में सिगरेट पीता था,वोह बाजार में मिलनी कठिन हो गयी,तो वोह दूकानदार पुरे शहर में उसी ब्रांड कि सिगरेट खोजता था, और मुझे उपलब्ध करा देता था|
उस पेट्रोल पम्प पर पेट्रोल भरने वालो  के  बारे में,वर्णन करता हूँ,जहाँ में पेट्रोल भरवाने जाता हूँ, वहाँ तो मुझे कुछ समय पहले जाना पड़ता है,पेट्रोल तो भरते तो हैं,परन्तु मेरे को चाय और पिलाते हैं,पैसे देने का प्रयत्न करता हूँ,तो बुरा मानते हैं,लेकिन में उनकी सहयता किसी ना किसी रूप में कर ही देता हूँ|
 हमारे घर के सामने एक परचून की दूकान है, जिसके पास कोल्ड ड्रिंक,शैंपू, और भी घर की आवयश्कता का सामान मिल जाता है, और अपने और उसके खाली समय पर पहुँच जाता हूँ, उसकी दूकान पर,और वोह मेरी अनेक प्रकार की अध्यात्मिक जिज्ञासा का निवारण कर देता है|
 यह तो हुआ कम पड़े लिखे लोगो के बारे में, उस केमिस्ट के अतिरिक्त,अब आता हूँ,पड़े लिखे लोगो की ओर, जिन डाक्टर साहब के पास हम लोग रोग निवारण के लिए,जाते हैं, उनको अगर ज्ञात होता है,कोई गरीब है,और दवाई नहीं ले पायेगा,उससे यह डाक्टर साहब फीस तो लेते नहीं,और ऊपर से अपनी कमाई से उक्त रोगी को दवाई के लिए पैसे भी दे देते हैं , स्नेह परिवार के बारे में तो लिख ही चुका हूँ, मेरा संपर्क उस स्नेह परिवार की संचालिका से उस स्थान पर ही  हुआ था, जहाँ पर मेरे मित्र अजय भाई ने एक ऐसा कार्यकर्म संपन्न किया था,जिसमे उन लोगो को सम्मानित किया गया था,जो समाज के लिए योगदान देते तो हैं,परन्तु सम्मानित नहीं होना चाहते,उन लोगो का कहना है, ऐसे सम्मानित होने से अभिमान हो जाता है|
   अंत में फिर में यही कहना चाहूँगा
                             बुरा देखेन में चला बुरा ना मिला कोई|
                             जो देखा आपने मुझ से बुरा ना मिला कोय | |

मंगलवार, सितंबर 08, 2009

क्यों नहीं होता प्राचीन परम्परागत विद्याओ की खोज का प्रयास

कुछ दिन पहले मैंने विनय विहारी जी का लेख पड़ा,ऐसे हुआ चमत्कार जिसमे उन्होने अपने कमर उस दर्द के बारे में लिखा था, वोह दर्द जिसके कारण उनका चलना भी दूभर हो रहा था, और वोह डाक्टर के पास जाना चाह रहे थे, वोह दर्द योगदा सत्संग सोसाइटी के एक सनायसी के द्वारा बताये गये आसन से ठीक हो गया।
यहाँ में योगदा सत्संग सोसाइटी के बारे में वर्णन करना चाहूँगा, योगदा सत्संग सोसाइटी के संस्थापक हमारे गुरु जी पूज्य श्री परमहंस योगानंद थे, उनके देहावसान के बाद उनका पार्थिव शरीर पन्द्रह दिन के लिए दर्शनार्थ रखा गया था, और उनके शरीर में कोई विकार नहीं आया था, श्री परमहंस योगानंद के गुरु थे,श्री युक्तेश्वर जी,और उनके गुरु थे श्री लेहरी महाशय, और उनके गुरु थे, श्री बाबा जी, बाबा जी आज भी विद्यमान है, उनको अपना शरीर ना छोड़ने के बारे में कहा गया था , यह पाठक गण श्री परमहंस योगनद द्वारा लिखी हुई पुस्तक में, पड़ सकते हैं।
यही बाबा जी हैं, जिन्होने महाभारत काल के क्रिया योग का ज्ञान दिया है, योगदा सत्संग सोसाइटी की तो विश्व में अनेक शाखाएँ हैं, परन्तु मुख्य शाखा रांची में जिस का पता मैंने अपने लेख मानो या ना मानो मे दे रखा है, और आज कल इस सोसाइटी की प्रमुख श्री,श्री दयामाता जी वोह एक विदेशी महिला हैं, परन्तु वोह योगानंद जी से प्रभावित हो कर के योगदा सत्संग सोसाइटी से जुड़ गयी थी, योगानंद जी ने देश,विदेश में प्रचार किया था।
सयोंग से में योगदा सत्संग सोसाइटी की दिल्ली शाखा गया,और मैंने एक फार्म योगदा सोसाइटी का भर कर के इस सोसाइटी की मुख्य शाखा रांची भेज दिया, और मेरे पास हर माह में,योगदा सत्संग के अध्याय आने लगे और मुझे अनेक बहुमूल्य अध्याय पड़ने को मिले और उन अध्याय में जीवन के सभी पहलु थे, उन्ही अध्याय में उपरोक्त आसन का वर्णन है, यहाँ तक कि आप जीवन भर निरोग कैसे रहे, उन आसनों का वर्णन किस रोग के लिए क्या खाना चाहिए वोह भी लिखा है।
अब आता हूँ अपने वेदों पर, इन वेदों में अमूल्य खजाना छुपा हुआ, आयुर्वेद,ज्योतिषशास्त्र और भी विधाओ का इन वेदों में विस्तार से वर्णन है, पर आम जनता इस के बारे में जानती ही नहीं, क्यों नहीं खोजा जाता है, इस अमूल्य निधि को, भृगु सहिंता जिस का मैंने अपने लेख में भृगु सहिंता के बारे मेरी अल्प जानकारी मुझे पंडित डी. के द्वारा टिप्पणी मे बताया गया था, भृगु सहिंता ऐसी पुस्तक है, जो भविष्य के बारे में तो बताती ही है,परन्तु यहाँ तक जानकारी दे देती है,अमुक व्यक्ति इस पुस्तक से भविष्य जानने कब आयगा इस पुस्तक के रहस्यों के बारे में क्यों नही होती खोज?
पहले दूरदर्शन पर दादीमां के नुस्खे आते थे, जिसमे घर पर उपोयग करने वाली सामग्रीद्वारा रोग निवारण के बारे में बतया जाता था,वोह आज के रियल्टी शो,धारावाहिक के चलते लोप हो गये है,इस विद्या को आगे बढाने का प्रयत्न क्यों नहीं किया जा रहा है? आज विज्ञानं की आधुनिक खोज हो रही है,और जनसाधारण को उसका लाभ तो मिल रहा है, परन्तु अगर हम अपनी उन खोई हुई विद्याओ की खोज करें जो वर्तमान में भी हमारे पास है,तो कितना अच्छा हो? बिहार का नालंदा विश्विद्यालय, देश,विदेश में प्रसिद्ध था,विदेश से विद्याअध्यन के लिए विधार्थी,हमारी इन विद्याओ के कारण ही तो आते थे, और विडम्बना यह है, हमारे विद्यार्थी, विद्याअध्यन के लिए विदेश जाते हैं।

विश्व को शुन्य देने वाला हमारा ही तो देश है, कण की खोज करने वाले कणाद ऋषि ही तो थे।
मेरा कहना यही है, आधुनिक लाभ की वस्तुओं का उपयोग करें,पर अपनी विद्याओ की भी खोज करें|

रविवार, सितंबर 06, 2009

पश्चिम और भारतीय संस्कृति का अच्छा सम्मिश्रण बनाये

पशचमी और भारतीय सभ्याता का अच्छा
समिश्रण बनाये
बहुत दिनो पहले मैने एक पोस्ट लिखी थी, पाशच्यादवाद और उस पोस्ट मे लिखा था, हम क्यो पश्चमी सभ्यता का क्यो अन्धाअनुकरण कर रहे है, जैसे बेलनाटाईन डे,फ़ादर्स डे,मदर्स डे इत्यादि, और इसी सन्दर्भ मे लिखा था कि, यह डेस तो हमारी भारतीय सन्सक्रिती मे तो प्रतिदिन सम्मिलित है, और यह भी लिखा था माँ बाप का आदर करना तो हमारी सन्सक्रिती में प्रतिदिन सम्ममिलित है, तो हम इन दिनो को विशेष रूप से केवल एक दिन के लिये क्यों मनाये, और वेलेन्टाईन डे का सन्दर्भ देते हुए कालीदास की महान कृति मेघदूत का वर्णन किया था कि किस प्रकार कालीदास ने मेघो को दूत बना के अपना सन्देश अपनी प्रेयसी को पहुचाया था।
अब मै अपनी इस भारतिय सभ्यता के बारे मे नही लिखता, इसका वर्णन मै अपने लेख पाशच्यादवाद मे कर चुका हूँ, अब आता हूँ पश्चमी सभ्यता पर, मुझे अपने काम के लिये इंग्लैंड जाने का अवसर मिला, और अब मन मे आ रहा है, हम लोग अपने आचारण मै, उन वस्तुओं को तो उतार लेते है, जिनका वर्णन मै उपर कर चुका हू, इसके साथ मे कुछ लोग प्रगतिशीलता के नाम पर पश्चिम के लोगो की तरह जैसा कि स्त्री,पुरुष का आपस मे उन्मुक्त sa समबन्ध बनाना, जो कि हमारी सन्सक्रिती के विपरीत है, ऐसे ही लड़कियों के द्वारा अंग प्रदर्शति करने वाले वस्त्र पहनना, जो कि हमारी सन्सक्रिती के विपरीत है।
जब मे इन्गलेड गया तो तब मैने अनुभब किया जो हमे लेने आये थे, वोह उसी कम्पनी के कर्मचारी थे, जिस कम्प्नी मे हमे जाना था, यानि की कोइ ड्राइवर नही, और जब हम हीथ्रो हवाई अड्डे से कार मे बैठ कर जा रहे थे, तो हमने देखा, अलग,अलग वाहनो के लिये निरधारित गति सीमा थी,ना कोई ओवरटेक ना कोइ होर्न की आवाज और वहाँ होर्न बजाने का मतलब कोइ गंभीर समस्या है, ना कोइ पीछे से डिपर देना इत्यादी, इसको हम अपने आचरण मे क्या नही उतारते, हाईवे पर ना कोई जानवर ना कोइ पैदल चलने वाला था, मै यह मानता हूँ कि यह हमारे देश मे सम्भब नही
है, परन्तु सावधानी तो रक्खी जा सकती है,अशिक्षित वर्ग तो कही से सडक पार कर लेगा क्योकी उनको सड़क के नियमो का ज्ञान नही है, परन्तु शिक्षित वर्ग तो जेबरा क्रोसिग का उपयोग कर सकता है, हाँ अभी एक और बात मेरे को याद आ रही है, वहा पर सड़क के नियम तोड़ने वाला, अधिक ऊचा ओहदा रखता है, उस पर अधिक जुरमाना होता है, वनिस्पत कम ओह्दे वाले के, ऊचे ओह्दे वाले को कहते तुमने ही तो कानून बनाया है, यह हमारे यहाँ क्यो नहीं होता, फिर हम लोग आगे बड़े तो कुछ भूख लग गयी थी, तब सड़क के किनारे एक छोटे से होटल मे गये या वहाँ का ढाबा कह लीजीये,वहा कोइ वेटर नही, कोइ बैरा नही, अपना खाने का समान अपनी वहाँ पड़ी हुई प्लेट मे रक्खा और खाने के बाद इमानदारी से अपने,अपने बिल अदा किये, मै बात कर रहा हू, एक छोटे से होटल की जिसमे कोइ सी०सी० टीवी की व्यब्स्था नही थी, हम यह इमानदारी क्यो नही अपनाते, अब अपनी यात्रा करते, करते उसी कम्प्नी के कर्मचारी ने अपनी कार जिसमे हम यात्रा कर रहे थे, स्वयं पेट्रोल भरा और दूर बैठे एक व्य्कती को पैसे दिये,और हम लोग चल पड़े, वहाँ व्यकती अपने छोटे,छोटे अपने आप करताहै, किसी पर निर्भर नही रहता, यह हम क्यो नही अपने आचरण मे लाते, यह तो मे मानता हूँ, की हम अपने यहाँ नौकर रख कर गरीब की रोज़ी रोटी का सहारा बनते है, परन्तु यह किया, अपने छोटे,छोटे काम जैसे पानी का गिलास मांगना, जूते चप्पल ढूढनेको कहना,जबकि अस्वस्थ्य, अपाहिज जैसी समस्या ना होते हुए भी,अपने छोटे,छोटे काम के लिए भी नौकरों पर निर्भर रहना, मेरी छोटी साली कनाडा वहीँ के लड़के से शादी कर के बस गयी है, उन लोगो ने बच्चो की देखभाल के लिये एक नौकरानी रखी हुई है, वोह तब तक ही बच्चो की देखभाल करती है, जब तक माता और पिता मै से कोइ घर नही आ जाता, ऐसी आत्मनिर्भता हम अपने आचरण मे क्यो नही लाते, मैनेवहाँ लोगो को मदिरापान करते हुए तो देखा पर किसी को नशे मे धुत नही देखा,हम लोग यह क्यो नही लाते अपने आचरण मे।
मेरे एक मित्र है, जिन्होने अपने जीवन के ३५ वर्ष अमरीका मे बिताये हैं वह मुझे बता रहे थे, की चिक्त्सालय से कोइ ब्यक्ती सवस्थय हो कर लोटता है, तो उसका चिक्त्सालय मे ख्याल रखाही जाता, और कुछ दिनो के बाद उसके घर पर फोन करके उसका हाल भी पूछा जाता है, ऐसी व्यव्स्था हमारे यहा क्यो नहीं है, मेरे एक परिचित की पत्नी ने अमरीका मे बेटी को जन्म दिया, और वोह मानसिक रूप से जन्म लेते ही, ठीक नही थी, कारण था,उनकी पत्नी को माँ बनने के समय डाक्टर ने तेज दवाईया दी थी, जिसके कारण वोह उनकी बेटी जन्म से ही मानसिक रूप से ठीक नही थी, तो उनहोने उस डाक्टर पर केस कर दिया, और वोह बता रहे थे, वहा वकील वोही केस लेते है, जिसमे उनको १०% सच्चाई नज़र आती है,हम अपने आचरण मे यह क्यो नही लाते।
बहुत दिन पहले मे अमरीका देश की एक घटना,दूरदर्शन मे देख रहा था, एक विकलांग व्यक्ति बस से उतर रहा था, उस बस का द्वार इतना नीचे हुआ कि,वह सड़क से छू गया, और उस बस के ड्राईवर, कन्डक्टर उसव्यक्ति की सहायता के लिये बस से उतर के नीचे खड़े थे,इस प्रकार का आचरण हम लोग अपने जीवन मे क्यों नही उतारते।
अमरीका देश के लिए कोई अच्छा काम करता है, तो उसे उस देश की नागरिकता मिल जाती है, इस प्रकार से वोह कोई भी हो सकता है, अमरीका मे बस जाता है, और अमरीका को उन्निती की ओर अग्रसित करता है, इसका उदाहरण हैं D.N. A मे जीन की खोज करने वाले डोकटर हरविंद सिंह खुराना जो कि हमारे देश के थे, विडम्बना तो यही, उनको अपने देश ने कोई भी सम्मान नहीं दिया, अमरीका ने उनको अपनी राष्ट्रीयता दे दी, और अपने यहाँ रख लिया, हमारे यहाँ इस प्रकार का सम्मान क्यों नहीं मिलता।
इंग्लैंड में हम लोग लन्दन में टूरिस्ट बस से शहर को देख रहे तब एक किसी यात्री ने गाइड से कुछ कहा कुछ गलत्फेमी होने के कारण उसने समझा कि वोह शख्स बीच में टूर को रोक देने के लिए कह रहा है, वोह तो क्रोध से लाल हो गई और बोली।
I am paid for this.
इंग्लैंड वाले कहते हैं "This is duty for your country"

अमरीका के पूर्ब राष्ट्रपति जोन ऍफ़ केनेडी के शब्दों में।
What have you done for country?

पश्चिम कि अनेतिकता का अनुसरण करने वालों, अपनी नैतिकता छोड़े बिना उनकी नैतिकता भी तो अपनाओ

शुक्रवार, सितंबर 04, 2009

आइये अपने शिक्षको को नमन करें

कल ५ सितम्बर शिक्षक दिवस है , जैसा की सर्वविदित है, यह दिन हम अपने विश्वविख्यातशिक्षक पूर्ब राष्ट्रपती राधाकृष्णन के कारण मनाया जाता है, जो कि एक शिक्षक थे, आइये अपने पूर्ब राष्ट्रपती के साथ उन शिक्षको को नमन करें, जिनोहोने हमारे जीवन में ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न किए है, जिन्होने देश के कर्णधार, जैसे इंजिनियर, डॉक्टर,वकील,जज इत्यादी बनाने में हमारी सहायता की और हम इस काबिल हुए की कुछ बन पाए,इन्होने ही हमे वर्णमाला, अक्षरों और संख्या का ज्ञान दिया,जैसे जैसे हम अगली सीडिया चडते गये यही लोग हमें और निस्वार्थ भावः से परिष्कृत करते गये, और हम लोग कुछ बन पाए, और आज भी यह लोग अनवरत ज्ञान का उजाला फेला रहे है, और दिनों जैसे वैलेंटाइन डे,फ्रेंडशिप डे, मदर डे,फादर डे इत्यादि की तरह इस दिन को मनाये और इन शिक्षको को नमन करें।

गुरुवार, सितंबर 03, 2009

पत्नी का समर्पण अपने परिवार के लिए (सच्ची कहानी)

हमारे देश भारत में, नारी किस प्रकार से अपने परिवार के लिए समर्पित हैं, वोह एक सच्ची कहानी के रूप में,लिखने का प्रयास कर रहा हूँ, निशा और अलोक के विवाह को शायद ३० वर्ष से ऊपर हो चुके हैं, निशा एक स्कूल में नौकरी करती है, और स्कूल जाने से पहेले, और आने के बाद अंग्रजी की १०वीं,और १२ वीं कक्षा के बच्चो को टूशन पढाती है।
इसी से उसके घर का खर्चा चलता है, और रात को निढाल सी हो कर सो जाती है, और फिर अगले दिन भी येही क्रम बस शनिवार और रविवार को बच्चो को नहीं पढाती है,परन्तु शनिवार को स्कूल तो जाना ही पड़ता है, निशा अपने जीवन के ५० वर्ष के ऊपर हो चुकी है, और अलोक निशा से दो साल बड़े हैं, कोई १५ वर्ष हो चुके हैं,अलोक का कोई कमाई का साधन नही है, घर संसार निशा की कमाई पर ही चलता है, उम्र के इस पड़ाव पर स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याए तो हो ही जाती हैं, तो जाहिर सी बात है डॉक्टरों के खर्चे का वाहन निशा ही करती है।
अलोक अच्छे पद पर आसीन थे, और बहुत सी प्राइवेट संस्थाओं में काम कर चुके हैं, परन्तु अपने भोले और सहकर्मियों की चाले ना समझने के कारण नौकरियां बदलते रहे, आखिर यह क्रम कबतक चलता आखिरकार उनको घर बैठना पड़ा, यह भी अच्छा हुआ की अलोक जब नौकरी करते थे, निशा ने बी एड कर लिया था, और बहुत से स्कूलों में पढाती रही, अनुभव तो होता ही रहा, और अंत में एक प्रतिष्ठित स्कूल में पडाने लगी, और आय अच्छी हो गयी, तो वोह अपने परिवार का खर्चा उठाने के काबिल हो गयी, अलोक के खाली रहते हुए ही इन्ही १५ वर्षो के अन्दर उसकी बेटी का विवाह तय हो गया, अलोक जी के पास तो पी ऍफ़ में एक लाख रुपयों के अतिरिक्त तो कुछ बचा नहीं था, अब बेटी की शादी में किस प्रकार खर्चा हो यह सवाल मुँह बाये खड़ा था, तो इस समस्या का समाधान अधिकतर निशा के पिता जी और उसके सगे संबंधियों ने निशा और अलोक की बेटी की शादी में पैसा खर्च किया, अलोक जी के माँ,बाप के पास इतना पैसा नहीं था, की वोह अपनी पोती के विवाह में खर्च कर सकें, वोह भी अलोक को उसके खाली होने के समय अपने पैसे का अधिकतर भाग दे चुके थे, अलोक जी के पी ऍफ़ के एक लाख रुपयों,निशा के माँ,बाप और उसके सगे,सम्बोंधियो द्वारा निशा और अलोक की बेटी का विवाह धूम,धाम से हो गया।
भाग्य से उनको दामाद भी अच्छा मिल गया, जो की निशा और अलोक का एक बेटे की तरह ख्याल रखता है।
निशा के पैरो और घुटने मैं दर्द रहता है, परन्तु उसका स्कूल मै पडाने और टूशन का सिलसिला अनवरत चल रहा है।
अलोक और निशा के घर में एक काम करने वाली भी हैं, जिसका पती तो रिक्शा चलता है, कभी चलाता और कभी नहीं, और वोह काम करने वाली भी जगह,जगह पर झाडू, चोका बर्तन कर के अपने परिवार का भरण पोषण करती है।
फिर आज के युग में,नारी को अभिशाप क्यों समझा जाता हैं, हाँ यह भी सच है कि आज के युग में नारी पुरूष के साथ कंधे से कन्धा मिला कर साथ दे रही है।

मंगलवार, सितंबर 01, 2009

भृगु सहिंता के बारे मे मेरी अल्प जानकारी

संगीता जी के दो लेख भृगु सहिंता के बारे देखे, तो सोचा की मै, तो सोचा मै अपनी इस ग्रन्थ के बारे मैं अपनी अल्प जानकारी दे दूँ , भृगु सहिंता भृगु का निर्माण भृगु ऋषि ने किया था, और इस सन्दर्भ मे भृगु ऋषि के बारे मे बता दूँ, एक बार भृगु ऋषि के मन मैं आया, कि देखूं, कौन सा देवता जल्दी क्रोधित हो जाता,है,भृगु ऋषि ने,सभी पर अपने चरणों का प्रहार किया, इसी क्रम मे भृगु ऋषि ने विष्णु भगवान के सीने में भी अपने चरणों से प्रहार किया, तो भगवान विष्णु ने उनके चरण पकड़ लिए और बोले कि मेरे कठोर शरीर से आप के चरणों को चोट तो नही,पहुँची, और भगवान विष्णु के सीने पर भृगु ऋषि के चरणों की छाप बन गयी, इन्ही भृगु ऋषि ने भृगु सहिंता का निर्माण किया है।
जो मुझे अच्छे प्रकार से ज्ञात है, एक भृगु सहिंता पंजाब के होशियारपुर में है, और इसकी केवल तीन हस्तलिखित प्रतिलिपिया हैं, और भृगु सहिंता के अधिकतर पृष्ठ फट गये हैं, येही भृगु सहिंता भूत,भविष्य और वर्तमान का ज्ञान देती है, होशियारपुर के अतिरिक्त मुझे नहीं मालूम शेष प्रतिलिपिया कहा है।
भृगु सहिंता जो पंजाब के होशियारपुर में,उसकी जानकारी दूरदर्शन पर भी दी गयी थी, दूर्दाशन मे ही बताया गया था की इसको देखने बाद कुछ नियम है जिनका अनुसरण करना आवशयक है, यह तो नही बताया गया था यह क्या नियम हैं, परन्तु यह बताया गया था,नियमो का अनुसरण ना करने वालो का परिणाम बुरा होता है।
मैंने अपनी टिप्पणी मे लिखा था, की भृगु सहिंता पंजाब के होशियारपुर में है, और मेरे एक परिचित देख कर भी आए थे, और वोह कोई और नहीं, बल्कि हमारे नजदीकी रिश्तेदार थे, अब यह तो ज्ञात नहीं, की यह केवल सयोंग था,अथवा नहीं, हम लोग उन दिनों मोदीनगर में थे, दिल्ली से उनके पिता जी का फ़ोन आया था, और हम लोगो को एक चिकत्सालय में तुरन्त बुलाया था।
जब हम लोग उस चिकत्सालय में पहुंचे तो वोह हमारे रिश्तेदार मरनासन अवस्था में, बेड पर लेटे हुए थे,मरनासन अवस्था में क्या बल्कि उनकी सांसे मशीनों के द्वारा चल रही थी, वोह २५ दिसम्बर का ही काला दिन था, वोह दिल्ली में अपने कार्यालय में गए थे,और वही उनको ब्रेन हेमरेज हो गया था, बाद में उनकी पत्नी को उसी इंडियन आयल में नौकरी मिल गई थी, उनके तीन बच्चे हैं,जो अब स्थापित हो चुके हैं, उनके देहावसान के बाद उनके पर्स में से कुछ कागज मिले थे,जिन पर पूर्ण विवरण लिखा हुआ था।
हमारे ऋषि,मुनियों का ज्ञान तो सर्वविदित है, पता नहीं सत्य है,कि नहीं यह भी सुनने में आया है, कि भृगु सहिंता वालो को यह भी ज्ञात होता है,अमुक दिन अमुक व्यक्ति अपना भविष्य देखने को आएगा।