गुरुवार, अगस्त 13, 2009

जन्माष्टमी को प्यार अथवा प्रेम का संदेश

प्यार अथवा प्रेम ऐसी मूक भाषा है, जिससे एक दूसरे अपनत्व की भावना उत्पन्न होती है, परन्तु हम लोग इसको भूले बैठे हैं, यह अलग, अलग भाषा मैं अलग,अलग नामो से प्रचलित है, हिन्दी मैं प्रेम, उर्दू मैं इश्क,तो अंग्रेजी मैं लव, और इसका वर्गीकरण भी बहुत सुंदर है, जैसे कि माता,पिता का बच्चो के साथ वात्सल्य, और इस पर मुझे इस जन्माष्टमी पर याद आ है, महान संत और कवि सूरदास जी के दोहे, जिन्होने वात्सल्य रस से सरोबर भगवान कृष्ण के लिए लिखे, दूसरा माँ की ममता अपने बच्चो के लिए, हर धुप छांव से बच्चो को माँ की ममता से सुखमय ऐसहास कराती है, अपने आप गीले बिस्तर पर सोती है, और बच्चे को सुखे पर सुलाती है, बच्चे को कोई कष्ट ना हो इसके लिए ना जाने कितनी राते जगती है, जो कि उस ईश्वर की प्राक्रतिक देन है, और तो और भक्त का भी ईश्वर से प्रेम होता है, और कहते है ईश्वर को प्रेम से प्राप्त किया जा सकता है, कबीर दास जी के अनुसार ढाई अक्षर प्रेम से ईश्वर को पाया जा सकता है, किसी ने कहा है, "कहाए की चाराहूँ तुझे पूजा, जल चारहु तो मछली ने कर दिया झूठा
फूल चराहूँ भंवरे ने कर दिया जूठा, ढूध चारहु तो बछरे ने कर दिया झूठा, तुझे बस चारहु प्रेम की पूजा", और सच ही तो है उस भीलनी शबरी ने अपने झूठे बेर खिला कर भगवान राम को अपने बस मैं कर लिया, और मजारो मैं खुदा से प्यार की कव्वालिया गूंजती रहती हैं, चर्च मैं भी पादरी प्यार और सहानभूति से confession सुनते है,कहने वालो को प्रेम की ठंडी छाया मिल जाती है, यह भगवान के द्वारा दी हुई अलोकिक वस्तु है, प्रेम ऐसी मूक भाषा है,जिसको पशु,पक्षी भी समझते हैं, कुत्ते को प्यार करते हैं, तो वोह अपना प्रेम पूँछ हिला कर पर्दर्शित करता है, इसमे संवाद तो होता ही नही पर एक दूसरे के लिए मूक भाषा मैं प्रेम पर्दर्शित होता है, एक और वर्गीकरण है स्नेह,यह किसी मैं भी हो सकता है, भाई,बहनों का आपस मैं स्नेह, मित्रो,सहेलियों मैं आपस मैं स्नेह, यह सब हैं पवित्र प्रेम।
आज कल तो एक दिन हो गया वैलेंटाइन डे जिसका अस्तित्व तो है, बस एक दिन जिसको प्रेमी, प्रेमिका के प्यार के तोर पर लिया जाता है, परन्तु किसी का वैलेंटाइन कोई भी हो सकता है, लेकिन प्रेम तो शास्वत हैं,जिनका मैंने वर्गीकरण किया है, इसके खिलाफ लोग नफरत के बीज बो कर के आतंकवादी बना रहे हैं, हमारे गुरु जी के अनुसार अगर आप किसी को चांटा मारेंगे तो वोह आपको मुक्का मारेगा,आप मुक्का मारेंगे तो वोह लात मारेगा.झगडा बढता ही जाएगा, परन्तु अगर प्रेम से बात करेंगे तो संभवत: झगडा समाप्त हो जाएगा, मैंने यह सब इस्लिएय लिखा, क्योंकि मुझे एक घटना याद आ रही है, एक अंग्रेज लड़की को किसी कारण से मेरे से बात करने को कहा तो वोह बोली "i hate him", कुछ ऐसा सयोंग हुआ कि एक दिन उसको पहली बार साँस का अटैक हो गया, उसको कुछ समझ नही आ रहा था, मैं उसको अपनी गाड़ी मैं बैठा कर के चिकत्सक के पास ले गया, मेरे मन में उसके परति कोई वैमन्यस्य की भावना नही थी, गुरु जी के आशीर्वाद से मैंने शांत रहना सीख लिया है, खैर डॉक्टर ने उसका परिक्षण किया, और उसको दवाइयाँ दी, बाद मैं मुझे पता चला कि वोह हिंदुस्तान के गांवों मैं जाती रहती है,
और गांवों मैं धूल का परदुषण तो होता ही है, जिसका उसको पहली बार साँस का अटैक हो गया, आज वोह मेरी अच्छी मित्र है, इसीलिए तो कह रहा हूँ,वासना रहित प्रेम या प्यार सर्वोपरि है, यह ऐसी मूक भाषा है जिसको मानव, पशु, पक्षी सब समझते हैं, पक्षियों को चुग्गा डाल कर देखिये वोह भी अपने हाव: भाव: से प्रेम का मूक प्रदर्शन करेंगे, जब मैं छोटा था,मेरी माँ अनाज साफ करते समय उसके ना खाने वाले पदार्थ फेंका करती थी, उस घर मैं जंगली कबूतर बहुत आया करते थे, जो की जरा सी आहट से डर जाते हैं, परन्तु उनका डर निकल गया था और वोह गुटरगूं,गुटरगूं करते हुए मेरी माँ के पास आ जाते थे, यह है शाश्वत प्रेम का प्रवाहाव, और इसका ज्वलंत उदहारण है, एक ब्लॉगर द्वारा लिखा हुआ लेख, जिसमे खन्ना साहव और उनके बेटे की आवाज पर कोए उनकी छत पर खाने के लिए पर चले आना, इस जन्माष्टमी को इस सर्विदित गोपियों के कृष्ण प्रेम के साथ समाप्त करता हूँ,गोपिया क्या सारा वृन्दावनके पेड़,पोधे,गए, बछरे कृष्ण के वृन्दावन छोड़ने के बाद मैं, कृष्ण विरह के वियोग से पीड़ित थे, एक बार कृष्ण भगवान ने उद्धव जो कि बहुत ज्ञानी थे, उनको गोपियों को समझाने के लिए भेजा,तो गोपियाँ कहती हैं,"उधो हम तुम्हारे योग योग नही", इस प्रेम के आगे उद्धव जी विवश हो कर के मथुरा लौट गये,ऐसा होता है पवित्र प्रेम, और प्रेम की पराकाष्ठा ही तो है, एक बार द्वारका मैं कृष्ण भगवान ने पेट के दर्द का बहाना किया, और पूछने पर वोह बोले अगर कोई मुझे अपने चरणों की धूल खिला दे तो यह पेट का दर्द ठीक हो जाएगा, पर उनकी सोलह हजार एक सो आठ रानियों मैं, कोई भी अपने चरणों की धूल भगवान को नही खिलाना
चाती थी, क्योंकि उनको नरक का भागी होने का डर था, फिर कृष्ण जी ने अपने प्यारे सखा उद्धव को इस के लिए वृन्दावन भेजा, तब जितनी भी गोपिया थी सब की सब अपने चरणों की धूल देने को तत्पर थी, कहती थी, हम जाती है नरक जायें, परन्तु हमारे प्र्यितम स्वस्थ होने चाहीएय।
जन्माष्टमी के पावन अवसर पर शुभकामनाये देते हुए प्यार,प्रेम,इश्क, लव का संदेश।

1 टिप्पणी:

Vinay ने कहा…

जय श्री कृष्ण!